Taj Mahal : वक्फ कानून और वक्फ संपत्तियों को लेकर देशभर में चल रही बहस के बीच ताजमहल (Taj Mahal) की ज़मीन को लेकर पुराना विवाद फिर चर्चा में आ गया है। कुछ लोग इसे मुग़ल बादशाह शाहजहाँ द्वारा मुमताज़ की याद में बनवाया गया मक़बरा मानते हैं, जबकि कुछ इसे जयपुर राजघराने की ज़मीन बताते हैं। वहीं, कुछ हिंदू पक्ष इसे पुराने शिव मंदिर के अवशेषों पर बना हुआ बताकर इसे तेजोमहालय कहते हैं।
शाहजहां और मुमताज की प्रेम कहानी या राजनीति?
इतिहास के मुख्यधारा विवरणों के अनुसार, ताजमहल (Taj Mahal) का निर्माण मुग़ल बादशाह शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में करवाया था। बताया जाता है कि मुमताज की कब्र ताजमहल के अंदर स्थित है। यह कहानी वर्षों से स्कूलों की किताबों और पर्यटन प्रचार का हिस्सा रही है, लेकिन साथ ही इसके पीछे की ज़मीन पर स्वामित्व और उसका इतिहास अक्सर बहस का कारण बना है।
जयपुर राजघराना और 17वीं सदी के दस्तावेज़
17वीं सदी में लिखी गई किताब ‘बादशाहनामा’ और कुछ अन्य दस्तावेज़ों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि यह ज़मीन जयपुर के राजा जयसिंह की थी। जब शाहजहां को यह लोकेशन पसंद आई, तो उन्होंने इसे जयसिंह से ले लिया और बदले में उन्हें आगरा में चार हवेलियां दी गईं। इतिहासकार एबा कोच और जाइल्स टिलोट्सन जैसे आधुनिक विशेषज्ञ भी इसी जानकारी की पुष्टि करते हैं।
मंदिर, बाग़ या रणनीतिक ज़मीन है ताजमहल (Taj Mahal)?
कुछ दावों के अनुसार, ताजमहल (Taj Mahal) के स्थान पर पहले शिव मंदिर था, जबकि अन्य इतिहासकार इसे बाग-बगीचों से घिरी खाली ज़मीन बताते हैं। ताजमहल (Taj Mahal) के निर्माण का समय 1632 से 1653 तक का बताया जाता है। यह भूमि यमुना के किनारे स्थित है, इसलिए इसका रणनीतिक और भावनात्मक महत्व मुग़ल शासकों के लिए विशेष रहा होगा। हालांकि मंदिर होने का कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण अब तक नहीं मिला है।
ताजमहल (Taj Mahal) की भूमि का विवाद कोई नया नहीं है, लेकिन वक्फ संपत्तियों पर हो रही बहस के बीच यह मुद्दा फिर से सुर्खियों में है। यह बहस ऐतिहासिक तथ्यों, राजनीतिक दृष्टिकोण और धार्मिक भावनाओं का मिला-जुला स्वरूप बन चुकी है। Taj Mahal :
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