बांके बिहारी केस में SC ने अपनाई कृष्णनीति, सरकार को दे डाली बड़ी नसीहत

उत्तर प्रदेश के वृंदावन स्थित ऐतिहासिक श्री बांके बिहारी मंदिर को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार के अध्यादेश पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गहरी आपत्ति जताई। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि मंदिर के प्रबंधन और इसके विकास से जुड़े मामलों में उत्तर प्रदेश सरकार ने न केवल हितधारकों को नजरअंदाज किया बल्कि अदालत की प्रक्रिया को भी दरकिनार करने की कोशिश की। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि अध्यादेश की वैधता पर जब तक हाई कोर्ट फैसला नहीं देता, तब तक मंदिर का प्रशासन एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली समिति के अधीन रहेगा। साथ ही मंदिर में पूजा-अनुष्ठान पूर्ववत् जारी रहेंगे। Uttar Pradesh Samachar
भगवान कृष्ण थे पहले मध्यस्थ : सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट ने यह भी कहा कि विवाद के समाधान के लिए मध्यस्थता की कोशिश की जानी चाहिए। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी करते हुए कहा, "भगवान श्रीकृष्ण पहले मध्यस्थ थे, हम भी इस परंपरा का अनुसरण करें। शीर्ष अदालत ने यूपी सरकार की उस कार्रवाई की कड़ी निंदा की जिसमें उसने बिना किसी सार्वजनिक सूचना के, मंदिर से जुड़े विवाद में एकतरफा कदम उठाया। अदालत ने राज्य सरकार से जवाब मांगते हुए सवाल किया कि जब मंदिर के मौजूदा प्रबंधन को सुना ही नहीं गया, तो यह निर्णय किस आधार पर लिया गया?
बिना जानकारी के लिया गया निर्णय
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराया कि राज्य सरकार ने 15 मई को कोर्ट से एक आदेश हासिल किया, जिसका मूल रूप से बांके बिहारी मंदिर से प्रत्यक्ष संबंध नहीं था। उन्होंने आरोप लगाया कि इस आदेश का इस्तेमाल अब एक व्यापक अध्यादेश को वैध ठहराने के लिए किया जा रहा है। दीवान ने यह भी तर्क दिया कि मंदिर एक निजी संपत्ति है और इसमें बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के सरकारी हस्तक्षेप न केवल अनुचित है, बल्कि असंवैधानिक भी है।
यह पहला अवसर नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यूपी सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। मई में हुई सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने भी सरकार की मंशा पर सवाल उठाया था और कहा था कि यह मामला दो निजी पक्षों के बीच का है, जिसे सरकार ने 'हाईजैक' कर लिया।
यह भी पढ़े:उत्तर प्रदेश में बाढ़ का कहर ! 21 जिले जलमग्न
जनहित में मध्यस्थता करें, पीठ पीछे न जाएं
अदालत ने यह भी कहा कि स्वर्ण मंदिर जैसे उदाहरणों से भी सीख ली जा सकती है, जहां बातचीत के जरिए व्यवस्थाएं बनाई गईं। पीठ ने तीखा सवाल पूछा, "क्या आपको लगता है कि अगर आप मंदिर प्रबंधन से बात करते तो वे इंकार कर देते? आप बिना सूचना के पीठ पीछे कोर्ट क्यों गए ? सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को याद दिलाया कि विकास के नाम पर मंदिर की संपत्ति पर कोई अवैध दावा नहीं किया जा सकता। पीठ ने कहा- मंदिर का धन मंदिर के विकास में लगे, न कि निजी हितों में। धार्मिक पर्यटन जरूरी है, पर व्यवस्था का अनुभव भी उतना ही जरूरी है ।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट ऑर्डिनेंस, 2025 की वैधता को चुनौती दी जा सकती है, लेकिन तब तक एक संतुलित अंतरिम व्यवस्था बनाई जाएगी। इसके तहत एक रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में एक समिति मंदिर का प्रबंधन संभालेगी, जिसमें मुख्य हितधारकों को भी प्रतिनिधित्व मिलेगा। Uttar Pradesh Samachar
उत्तर प्रदेश के वृंदावन स्थित ऐतिहासिक श्री बांके बिहारी मंदिर को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार के अध्यादेश पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गहरी आपत्ति जताई। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि मंदिर के प्रबंधन और इसके विकास से जुड़े मामलों में उत्तर प्रदेश सरकार ने न केवल हितधारकों को नजरअंदाज किया बल्कि अदालत की प्रक्रिया को भी दरकिनार करने की कोशिश की। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि अध्यादेश की वैधता पर जब तक हाई कोर्ट फैसला नहीं देता, तब तक मंदिर का प्रशासन एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली समिति के अधीन रहेगा। साथ ही मंदिर में पूजा-अनुष्ठान पूर्ववत् जारी रहेंगे। Uttar Pradesh Samachar
भगवान कृष्ण थे पहले मध्यस्थ : सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट ने यह भी कहा कि विवाद के समाधान के लिए मध्यस्थता की कोशिश की जानी चाहिए। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी करते हुए कहा, "भगवान श्रीकृष्ण पहले मध्यस्थ थे, हम भी इस परंपरा का अनुसरण करें। शीर्ष अदालत ने यूपी सरकार की उस कार्रवाई की कड़ी निंदा की जिसमें उसने बिना किसी सार्वजनिक सूचना के, मंदिर से जुड़े विवाद में एकतरफा कदम उठाया। अदालत ने राज्य सरकार से जवाब मांगते हुए सवाल किया कि जब मंदिर के मौजूदा प्रबंधन को सुना ही नहीं गया, तो यह निर्णय किस आधार पर लिया गया?
बिना जानकारी के लिया गया निर्णय
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराया कि राज्य सरकार ने 15 मई को कोर्ट से एक आदेश हासिल किया, जिसका मूल रूप से बांके बिहारी मंदिर से प्रत्यक्ष संबंध नहीं था। उन्होंने आरोप लगाया कि इस आदेश का इस्तेमाल अब एक व्यापक अध्यादेश को वैध ठहराने के लिए किया जा रहा है। दीवान ने यह भी तर्क दिया कि मंदिर एक निजी संपत्ति है और इसमें बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के सरकारी हस्तक्षेप न केवल अनुचित है, बल्कि असंवैधानिक भी है।
यह पहला अवसर नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यूपी सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। मई में हुई सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने भी सरकार की मंशा पर सवाल उठाया था और कहा था कि यह मामला दो निजी पक्षों के बीच का है, जिसे सरकार ने 'हाईजैक' कर लिया।
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जनहित में मध्यस्थता करें, पीठ पीछे न जाएं
अदालत ने यह भी कहा कि स्वर्ण मंदिर जैसे उदाहरणों से भी सीख ली जा सकती है, जहां बातचीत के जरिए व्यवस्थाएं बनाई गईं। पीठ ने तीखा सवाल पूछा, "क्या आपको लगता है कि अगर आप मंदिर प्रबंधन से बात करते तो वे इंकार कर देते? आप बिना सूचना के पीठ पीछे कोर्ट क्यों गए ? सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को याद दिलाया कि विकास के नाम पर मंदिर की संपत्ति पर कोई अवैध दावा नहीं किया जा सकता। पीठ ने कहा- मंदिर का धन मंदिर के विकास में लगे, न कि निजी हितों में। धार्मिक पर्यटन जरूरी है, पर व्यवस्था का अनुभव भी उतना ही जरूरी है ।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट ऑर्डिनेंस, 2025 की वैधता को चुनौती दी जा सकती है, लेकिन तब तक एक संतुलित अंतरिम व्यवस्था बनाई जाएगी। इसके तहत एक रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में एक समिति मंदिर का प्रबंधन संभालेगी, जिसमें मुख्य हितधारकों को भी प्रतिनिधित्व मिलेगा। Uttar Pradesh Samachar







