संदीप तिवारी
UP Nikay Chunav 2023 : उत्तर प्रदेश में आगामी नगर निकाय चुनाव को लेकर निर्वाचन आयोग ने अधिसूचना जारी कर दी है। वहीं नामांकन प्रक्रिया भी मंगलवार से शुरू हो गई। हालांकि अभी सभी राजनीतिक दलों ने प्रत्याशियों का ऐलान नहीं किया हैं। लेकिन, बुधवार को समाजवादी पार्टी, कांग्रेस पार्टी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने पहले चरण में होने वाले चुनाव के लिए प्रत्याशियों की घोषणा की है। हालांकि अभी भारतीय जनता पार्टी ने किसी भी कैंडिडेट को चुनावी मैदान में नहीं उतारा है। सपा और सुभासपा को बात करें तो लखनऊ से ब्राह्मण चेहरे को टिकट दिया है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी भी किसी ब्राह्मण चेहरे को उम्मीदवार बनाएगी।
सपा- सुभासपा ने इन जिलों में उतारे प्रत्याशी
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने यूपी में 5 नगर निगम, 17 नगर पंचायत और 87 नगर पालिका के उम्मीदवारों की सूची कर दी है। इसमें लखनऊ, प्रयागराज, गाजियाबाद, वाराणसी, कानपुर से मेयर पद के उम्मीदवारों का नाम शामिल है। वहीं लखनऊ से मेयर प्रत्याशी अलका पांडेय का नाम ज्यादा चर्चा है क्योंकि ओपी राजभर ने एक ब्राह्मण चेहरे पर भरोसा जताकर चुनावी मैदान में उतारा है। वहीं समाजवादी पार्टी की बात करें तो यूपी में 8 मेयर सीटों पर प्रत्याशी घोषित किए हैं। इसमें लखनऊ, गोरखपुर, प्रयागराज, झांसी, मेरठ, शाहजहांपुर, फिरोजाबाद और अयोध्या से महापौर पद के उम्मीदवारों का नाम शामिल है।
UP Nikay Chunav 2023 : क्या है इसके पीछे की वजह
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों के सहयोगी रह चुके ओपी राजभर नए मौके तलाशने की फिराक में है क्योंकि निकाय चुनाव के बाद 2024 का लोकसभा चुनाव है ऐसे में वो अपनी राजनीतिक पैठ को परखने की कोशिश कर रहे हैं। ओबीसी वर्ग के हितैषी बनने वाले राजभर अब ब्राह्मण चेहरे को चुनावी मैदान में उतारकर सामान्य वर्ग के लोगों के बीच एक बड़ा संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि इससे पहले भाजपा से हुई उनकी नजदीकियों ने तमाम तरह के कयासों को हवा दी। लेकिन बात न बनने पर उन्होंने निकाय चुनाव में अकेले लड़ने का फैसला लिया। राजनीतिक बैकग्राउंड न होने के बावजूद उन्होंने अलका पांडेय को टिकट देकर खुदको ब्राह्मणों का हितैषी जताकर नई हवा दे रहे हैं।
ब्राह्मणों में अपनी पैठ बनाने की कर रहे कोशिश
हालांकि, राजभर के इस दांव के बाद से राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। वहीं कुछ लोगों का यह भी कहना है कि पूर्वांचल इलाके से राजनीति शुरू करने वाले राजभर अब अवध में भी ब्राह्मणों के बीच अपनी पैठ को मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं। यही वजह भी है कि उन्होंने ब्राह्मण कार्ड खेला है। वहीं सपा मुखिया अखिलेश भी नाराज ब्राह्मणों को साधने की कोशिश में जुटे हैं। क्योंकि पूर्व में इनके खिलाफ भी एक जाति वर्ग विशेष के लोगों को बढ़ावा देने के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में वो प्रत्याशियों के चयन में इस बार कोई भी आरोप का सामना नहीं करना चाहते हैं। यही वजह भी है 8 में 2 ब्राह्मण कैंडिडेट को टिकट दिया है।
सपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं राजभर
UP Nikay Chunav 2023 : वहीं, जिस तरह से ओपी राजभर ने अलका पांडेय को प्रत्याशी घोषित किया है। उससे एक बात तो साफ कि वो लखनऊ की सीट पर जीत भले ही न दर्ज कर पाएं लेकिन कुछ अन्य विपक्षी दलों के वोटबैंक पर सेंधमारी करने का काम जरूर करेंगे। वहीं चर्चा यह भी है कि वो ब्राह्मणो के बीच अपनी राजनीति का एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं। इसके अलावा वो सपा के वोटबैंक को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इन मुद्दों के साथ निकाय चुनाव लड़ रही सुभासपा
ओम प्रकाश राजभर ने कहा कि भगवान राम और कृष्ण की धरती पर शराब बंदी इस चुनाव में बड़ा मुद्दा होगा। इसी के साथ उन्होंने पत्रकार आयोग गठन के मुद्दे को भी लेकर जनता के सामने जाएगी। इसके अलावा इस चुनाव में घरेलू बिजली बिल माफी भी एक मुद्दा बड़ा होगा। इसके अलावा एक सामान फ्री शिक्षा के मुद्दे को भी उनकी पार्टी इस चुनाव में उठाने की कोशिश करेगी। इसके अलावा भी प्रदेश में कई मुद्दे हैं। राजभर ने कहा कि हम भाजपा, सपा, बसपा सबकी चुनौती स्वीकार करके चुनाव लड़ रहे हैं। जल्द ही अन्य नगर निकाय उम्मीदवारों के नाम का ऐलान करेगी।
UP Nikay Chunav 2023 : सपा बीजेपी की है A टीम
राजभर ने कहा कि हमारे लिए कोई चुनौती नहीं हैं वहीं सपा मुखिया अखिलेश यादव पर निशाना साधते हुए कहा कि हम लोगों के लिए चुनौती हैं। हमसे सपा को चिंता है
सपा हमें BJP की C टीम बता रहे हैं, लेकिन सपा BJP की A टीम है। अखिलेश ममता, केसीआर से समझौता कर यूपी में कितने वोट पाएंगे? रामगोपाल अपराधियों की पैरवी के लिए सीएम से मिले तो अखिलेश को पीड़ा नहीं हुई। हम अगर किसी के हक़-उत्पीड़न के लिए मिलते हैं तो अखिलेश को बुरा लगता है। अखिलेश भाजपा को जिताने के लिए A टीम बना रहे हैं। अगर वाकई दलितों की चिंता है तो दलित को पीएम क्यों नहीं बना रहे।
भाजपा से संबंध सुधारने की कोशिश में लगे थे राजभर
बता दें कि सपा से गठबंधन टूटने के बाद से ही राजभर और भाजपा के खराब संबंधों के सुधरने शुरू हो गए थे। मौके-मौके पर दोनों तरफ से इसके संकेत भी दिए गए। बजट सत्र के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच हुए नोंकझोक के दौरान राजभर जिस तरह से सरकार के पक्ष में खड़े दिखे और नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव की घेरेबंदी की, उससे भी भाजपा और सुभासपा के बीच सियासी खिचड़ी पकने के संकेत मिल रहे थे।