Saturday, 11 January 2025

महाकुंभ की सबसे बड़ी जानकारी, इन तारीखों पर करें महाकुंभ में स्नान

Mahakumbh 2025 : उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ (Mahakumbh) शुरू हो चुका है। सवाल यह है कि महाकुंभ में…

महाकुंभ की सबसे बड़ी जानकारी, इन तारीखों पर करें महाकुंभ में स्नान

Mahakumbh 2025 : उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ (Mahakumbh) शुरू हो चुका है। सवाल यह है कि महाकुंभ में किस तारीख को स्नान करने पर सबसे ज्यादा पुण्य प्राप्त होता है। हम यहां महाकुंभ से जुड़े इस सबसे बड़े सवाल का जवाब दे रहे हैं। महाकुंभ (Mahakumbh) का पर्व 45 दिन तक चलेगा। इन 45 दिनों में 6 अलग-अलग तारीख अति महत्वपूर्ण हैं। इन 6 तारीखों में किसी भी एक तारीख के दिन महाकुंभ (Mahakumbh) में स्नान करने का विशेष महत्व है।

शाही स्नान होता है महाकुंभ में स्नान करने का सबसे बड़ा मुर्हूत

महाकुंभ के दौरान शाही स्नान के दिन त्रिवेणी में स्नान करना सबसे अधिक फलदायक होता है। महाकुंभ में शाही स्नान के दिन पर ही साधु-संत स्नान करते हैं। शाही स्नान को बेहद खास माना जाता है क्योंकि इस दिन संगम में डुबकी लगाने से कई गुना ज्यादा पुण्य मिलता है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन स्नान करने से न सिर्फ इस जन्म के, बल्कि सात जन्म के पाप खत्म हो जाते हैं। इसके साथ ही पितरों की आत्मा को भी शांति मिलती है। शाही स्नान के दिन आप भी महाकुंभ में स्नान करेंगे तो आपके सभी जन्मों के पाप समाप्त हो जाएंगे।

इन तारीखों पर करें महाकुंभ में स्नान

महाकुंभ में शाही स्नान का महत्व हमने आपको बता दिया है। बात करें शाही स्नान की तारीखों की तो इस महाकुंभ में शाही स्नान का पहला मुर्हूत 13 जनवरी 2025 को है। 13 जनवरी 2025 को महाकुंभ में स्नान करने का विशेष महत्व है। दूसरा शाही स्नान का मुर्हूत 14 जनवरी 2025 को है। तीसरा मुर्हूत 29 जनवरी 2025 को है। इसी प्रकार महाकुंभ में शाही स्नान का चौथा मुर्हूत 2 फरवरी 2025 को पांचवां मुर्हूत 12 फरवरी 2025 को तथा छठा मुर्हूत 26 फरवरी 2025 को है। इस प्रकार आप प्रयागराज के महाकुंभ में 13 जनवरी, 14 जनवरी, 29 जनवरी, 2 फरवरी, 12 फरवरी तथा 26 फरवरी को स्नान करते हैं तो आपको परम सौभाग्य प्राप्त होगा।

महाकुंभ से बड़ा कोई आयोजन नहीं होता

दरअसल कुंभ चार प्रकार के होते हैं। पहला कुंभ साधारण कुंभ होता है। दूसरा कुंभ अर्ध कुंभ होता है। तीसरा कुंभ पूर्ण कुंभ होता है। चौथा तथा सबसे महत्वपूर्ण कुंभ महाकुंभ होता है। अर्ध कुंभ 6 साल में एक बार, पूर्ण कुंभ 12 साल में एक बार तथा महाकुंभ 144 साल में एक बार आता है। इसका सीधा सच्चा अर्थ यह है कि महाकुंभ में स्नान करने का अवसर हर किसी को नहीं मिलता। जो भी लोग इस समय पृथ्वी  पर हैं तथा महाकुंभ में आस्था व विश्वास रखते हैं उनके लिए प्रयागराज में शुरू हो चुके महाकुंभ में स्नान करने एक मात्र सुनहरा अवसर है। अब नहीं तो कभी नहीं वाली कहावत महाकुंभ में स्नान के ऊपर पूरी तरह से लागू होती है। इस बार महाकुंभ में स्नान करने का अवसर हाथ से चला गया तो यह अवसर फिर इस जीवन में लौटकर आने वाला नहीं है। प्रयागराज में महाकुंभ का पहला स्नान 13 जनवरी 2025 को है। स्नान का यह सिलसिला 26 फरवरी 2025 तक चलेगा। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में शुरू हो चुके महाकुंभ के मेले में 50 करोड लोगों के आने का अनुमान है।

देवी-देवता भी करते हैं महाकुंभ में स्नान

कूर्म पुराण में वर्णित किया गया है कि धरती पर मौजूद इंसानों की तरह ही देवलोक में देवता भी महाकुंभ में स्नान करते हैं। कूर्म पुराण में इस बात का उल्लेख भी किया गया है जैसे धरती पर गंगा पवित्र नदी है। उसी तरह देवलोक में भी कई पवित्र नदियां हैं, जिनमें केवल देवता ही स्नान कर सकते हैं। जब धरती पर महाकुंभ का आयोजन होता है, तो देवलोक के द्वार खुलते हैं और सभी देवतागण देवलोक में ही कुंभ स्नान करते हैं। शिव पुराण की कहानी के अनुसार माघ पूर्णिमा पर भगवान शिव माता पार्वती और अन्य कैलाशवासियों के साथ धरती पर वेश बदलकर कुंभ घूमने आते हैं। इस दौरान भगवान शिव प्रयागराज, वाराणसी आदि प्राचीन शहरों में घूमकर प्रकृति का आनंद लेते हैं और अपने भक्तों की परीक्षा भी लेते हैं।

महाकुंभ का इतिहास बहुत रोचक है

हिन्दु धर्म-ग्रंथों, मान्यताओं तथा पुराणों के अनुसार महाकुंभ मेले का संबंध समुद्र मंथन से माना जाता है। कथा के अनुसार, एक बार ऋषि दुर्वासा के श्राप से इंद्र और अन्य देवता कमजोर पड़ गए थे। इसका लाभ उठाते हुए राक्षसों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया था और इस युद्ध में देवताओं की हार हुई थी। तब सभी देवता मिलकर सहायता के लिए भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें सारी बात बताई। भगवान विष्णु ने राक्षसों के साथ मिलकर समुद्र मंथन कर के वहां से अमृत निकालने की सलाह दी। जब समुद्र मंथन से अमृत का कलश निकला, तो भगवान इंद्र का पुत्र जयंत उसे लेकर आकाश में उड़ गया। यह सब देखकर राक्षस भी जयंत के पीछे अमृत कलश लेने के लिए भागे और बहुत प्रयास करने के बाद दैत्यों के हाथ में अमृत कलश आ गया। इसके बाद अमृत कलश पर अपना अधिकार जमाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच 12 दिनों तक युद्ध चला था। इसी दौरान अमृत कलश से कुछ बूंदें हरिद्वार, उज्जैन, प्रयागराज और नासिक में गिरी थीं।

अमृत की बूंदें गिरने से यह चारों स्थान अति पवित्र हो गए थे। एक निश्चित मुहूर्त पर अमृत की पवित्रता इन स्थानों पर बार-बार अवतरित होती है, जिन मुहूर्तों पर अमृत की पवित्रता उतरती है उन्हीं मुहूतों पर कुंभ, अर्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ तथा महाकुंभ का आयोजन किया जाता है। महाकुंभ के शुभ मुहूर्त पर गंगा में स्नान करने से सभी जन्मों के पाप एक ही झटके में कट जाते हैं तथा इंसान पवित्र हो जाता है। Mahakumbh 2025

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