बहराइच सलामी विवाद: कथावाचक को गार्ड ऑफ ऑनर पर बहराइच पुलिस कटघरे में
सामान्य तौर पर ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ राष्ट्रपति, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों या वरिष्ठ संवैधानिक/प्रशासनिक अधिकारियों के लिए तय प्रोटोकॉल का हिस्सा होता है; ऐसे में किसी गैर-संवैधानिक व्यक्ति को यह सम्मान देना नियमों के खिलाफ माना जा रहा है।

UP News : उत्तर प्रदेश के बहराइच में पुलिस परेड ग्राउंड पर कथावाचक पुंडरीक गोस्वामी को ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ देने का मामला अब एक जिले की सीमा से बाहर निकलकर पूरे उत्तर प्रदेश की प्रशासनिक और राजनीतिक बहस का विषय बन गया है। वीडियो–तस्वीरें सामने आते ही पुलिस महानिदेशक ने सख्त रुख अपनाया और एसपी बहराइच से तत्काल स्पष्टीकरण के साथ विस्तृत रिपोर्ट तलब कर ली। शासन स्तर पर इसे प्रोटोकॉल की मर्यादा और विभागीय अनुशासन पर सीधी चोट माना जा रहा है।
‘अति-भक्ति’ पर भारी पड़ा प्रोटोकॉल
यह मामला एक निजी कार्यक्रम से जुड़ा बताया जा रहा है, जिसमें बहराइच पुलिस लाइन्स के परेड ग्राउंड का इस्तेमाल कर कथावाचक को औपचारिक सलामी दी गई। लेकिन जिस मैदान को उत्तर प्रदेश पुलिस के अनुशासन, प्रशिक्षण और संवैधानिक मर्यादा का प्रतीक माना जाता है, उसका इस तरह निजी आयोजन में उपयोग होना अब गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। सामान्य तौर पर ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ राष्ट्रपति, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों या वरिष्ठ संवैधानिक/प्रशासनिक अधिकारियों के लिए तय प्रोटोकॉल का हिस्सा होता है; ऐसे में किसी गैर-संवैधानिक व्यक्ति को यह सम्मान देना नियमों के खिलाफ माना जा रहा है। प्रकरण तूल पकड़ने के बाद डीजीपी कार्यालय ने स्पष्ट कर दिया है कि पुलिस लाइन्स और परेड ग्राउंड का उपयोग केवल निर्धारित मानकों के तहत पुलिस प्रशिक्षण, अनुशासनात्मक गतिविधियों और आधिकारिक सरकारी समारोहों के लिए ही होगा, और किसी भी अनधिकृत इस्तेमाल पर जवाबदेही तय की जाएगी। इसी क्रम में एसपी बहराइच से पूरे घटनाक्रम की विस्तृत रिपोर्ट तलब कर ली गई है, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि आदेश किस स्तर से हुआ और जिम्मेदारी किसकी बनती है।
अनुशासन और निष्पक्षता पर उठे सवाल
विशेषज्ञों का कहना है कि परेड ग्राउंड महज एक खुला मैदान नहीं, बल्कि पुलिस का ‘अनुशासन-परिसर’ है वही जगह जहां बल कानून, संविधान और सार्वजनिक सेवा के प्रति अपनी निष्ठा को व्यवहार में उतारता है। ऐसे में किसी निजी या धार्मिक व्यक्ति के सम्मान में यहां औपचारिक सलामी देना न सिर्फ प्रोटोकॉल से टकराता है, बल्कि विभाग की निष्पक्षता और संस्थागत गरिमा पर भी सवाल खड़े करता है। अब असली कसौटी यही है कि यह फैसला किसके निर्देश पर और किस प्रक्रिया के तहत लिया गया और रिपोर्ट सामने आने के बाद उत्तरदायित्व तय कर विभाग इसे “मिसाल” बनाकर कार्रवाई करता है या इसे एक ‘चूक’ बताकर टाल देता है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं तेज
वीडियो वायरल होते ही उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी इस प्रकरण ने तूल पकड़ ली। विपक्ष ने इसे ‘प्रोटोकॉल’ से ज्यादा ‘प्राथमिकताओं की गड़बड़ी’ बताकर सरकार और पुलिस प्रशासन पर निशाना साधा। समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तंज कसते हुए कहा कि जब पुलिस सलामी में व्यस्त रहेगी, तो अपराधियों के हौसले अपने आप बढ़ेंगे—यही वजह है कि प्रदेश की कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े हो रहे हैं। दूसरी ओर, नगीना के सांसद चंद्रशेखर आज़ाद ने इसे संविधान की मूल भावना के खिलाफ करार देते हुए कहा कि भारत कोई मठ नहीं, बल्कि संवैधानिक गणराज्य है। उनके मुताबिक, सलामी राज्य की संप्रभु शक्ति और संस्थागत अनुशासन का प्रतीक है; इसे किसी धार्मिक या निजी प्रतिष्ठा बढ़ाने का माध्यम बनाना लोकतांत्रिक व्यवस्था की तटस्थता पर सीधा आघात है।
बहराइच पुलिस की सफाई
विवाद बढ़ने पर बहराइच पुलिस ने बयान जारी कर कहा कि प्रशिक्षण के दौरान पुलिसकर्मियों के मानसिक स्वास्थ्य और मनोबल को मजबूत रखने के लिए योग, ध्यान और काउंसलिंग जैसी गतिविधियां कराई जाती हैं। इसी क्रम में प्रेरक उद्बोधन के लिए कथावाचक को आमंत्रित किया गया था। हालांकि, इस सफाई ने परेड ग्राउंड के उपयोग और ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ जैसे औपचारिक सम्मान पर उठे सवालों को शांत नहीं किया है। UP News
UP News : उत्तर प्रदेश के बहराइच में पुलिस परेड ग्राउंड पर कथावाचक पुंडरीक गोस्वामी को ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ देने का मामला अब एक जिले की सीमा से बाहर निकलकर पूरे उत्तर प्रदेश की प्रशासनिक और राजनीतिक बहस का विषय बन गया है। वीडियो–तस्वीरें सामने आते ही पुलिस महानिदेशक ने सख्त रुख अपनाया और एसपी बहराइच से तत्काल स्पष्टीकरण के साथ विस्तृत रिपोर्ट तलब कर ली। शासन स्तर पर इसे प्रोटोकॉल की मर्यादा और विभागीय अनुशासन पर सीधी चोट माना जा रहा है।
‘अति-भक्ति’ पर भारी पड़ा प्रोटोकॉल
यह मामला एक निजी कार्यक्रम से जुड़ा बताया जा रहा है, जिसमें बहराइच पुलिस लाइन्स के परेड ग्राउंड का इस्तेमाल कर कथावाचक को औपचारिक सलामी दी गई। लेकिन जिस मैदान को उत्तर प्रदेश पुलिस के अनुशासन, प्रशिक्षण और संवैधानिक मर्यादा का प्रतीक माना जाता है, उसका इस तरह निजी आयोजन में उपयोग होना अब गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। सामान्य तौर पर ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ राष्ट्रपति, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों या वरिष्ठ संवैधानिक/प्रशासनिक अधिकारियों के लिए तय प्रोटोकॉल का हिस्सा होता है; ऐसे में किसी गैर-संवैधानिक व्यक्ति को यह सम्मान देना नियमों के खिलाफ माना जा रहा है। प्रकरण तूल पकड़ने के बाद डीजीपी कार्यालय ने स्पष्ट कर दिया है कि पुलिस लाइन्स और परेड ग्राउंड का उपयोग केवल निर्धारित मानकों के तहत पुलिस प्रशिक्षण, अनुशासनात्मक गतिविधियों और आधिकारिक सरकारी समारोहों के लिए ही होगा, और किसी भी अनधिकृत इस्तेमाल पर जवाबदेही तय की जाएगी। इसी क्रम में एसपी बहराइच से पूरे घटनाक्रम की विस्तृत रिपोर्ट तलब कर ली गई है, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि आदेश किस स्तर से हुआ और जिम्मेदारी किसकी बनती है।
अनुशासन और निष्पक्षता पर उठे सवाल
विशेषज्ञों का कहना है कि परेड ग्राउंड महज एक खुला मैदान नहीं, बल्कि पुलिस का ‘अनुशासन-परिसर’ है वही जगह जहां बल कानून, संविधान और सार्वजनिक सेवा के प्रति अपनी निष्ठा को व्यवहार में उतारता है। ऐसे में किसी निजी या धार्मिक व्यक्ति के सम्मान में यहां औपचारिक सलामी देना न सिर्फ प्रोटोकॉल से टकराता है, बल्कि विभाग की निष्पक्षता और संस्थागत गरिमा पर भी सवाल खड़े करता है। अब असली कसौटी यही है कि यह फैसला किसके निर्देश पर और किस प्रक्रिया के तहत लिया गया और रिपोर्ट सामने आने के बाद उत्तरदायित्व तय कर विभाग इसे “मिसाल” बनाकर कार्रवाई करता है या इसे एक ‘चूक’ बताकर टाल देता है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं तेज
वीडियो वायरल होते ही उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी इस प्रकरण ने तूल पकड़ ली। विपक्ष ने इसे ‘प्रोटोकॉल’ से ज्यादा ‘प्राथमिकताओं की गड़बड़ी’ बताकर सरकार और पुलिस प्रशासन पर निशाना साधा। समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तंज कसते हुए कहा कि जब पुलिस सलामी में व्यस्त रहेगी, तो अपराधियों के हौसले अपने आप बढ़ेंगे—यही वजह है कि प्रदेश की कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े हो रहे हैं। दूसरी ओर, नगीना के सांसद चंद्रशेखर आज़ाद ने इसे संविधान की मूल भावना के खिलाफ करार देते हुए कहा कि भारत कोई मठ नहीं, बल्कि संवैधानिक गणराज्य है। उनके मुताबिक, सलामी राज्य की संप्रभु शक्ति और संस्थागत अनुशासन का प्रतीक है; इसे किसी धार्मिक या निजी प्रतिष्ठा बढ़ाने का माध्यम बनाना लोकतांत्रिक व्यवस्था की तटस्थता पर सीधा आघात है।
बहराइच पुलिस की सफाई
विवाद बढ़ने पर बहराइच पुलिस ने बयान जारी कर कहा कि प्रशिक्षण के दौरान पुलिसकर्मियों के मानसिक स्वास्थ्य और मनोबल को मजबूत रखने के लिए योग, ध्यान और काउंसलिंग जैसी गतिविधियां कराई जाती हैं। इसी क्रम में प्रेरक उद्बोधन के लिए कथावाचक को आमंत्रित किया गया था। हालांकि, इस सफाई ने परेड ग्राउंड के उपयोग और ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ जैसे औपचारिक सम्मान पर उठे सवालों को शांत नहीं किया है। UP News











