इन्हें सबक सिखाने के लिए भारत, चीन और अमेरिका ने खोले इमरजेंसी ऑयल रिजर्व
पेट्रोल, डीजल, एलपीजी (रसोई गैस) की लगातार बढ़ रही कीमतों के बीच सरकार ने भारत के इमरजेंसी पेट्रोलियम रिजर्व में…
Anjanabhagi | November 24, 2021 1:35 PM
पेट्रोल, डीजल, एलपीजी (रसोई गैस) की लगातार बढ़ रही कीमतों के बीच सरकार ने भारत के इमरजेंसी पेट्रोलियम रिजर्व में से 50 लाख बैरल कच्चा तेल निकालने का फैसला किया है। सबको पता है कि भारत में 50 लाख बैरल तेल की खपत एक दिन में ही हो जाती है। सरकार के इस कदम से आखिर होगा क्या? क्या यह भी आगामी चुनावों के दबाव में लिया गया फैसला है?
इमरजेंसी पेट्रोलियम रिजर्व का मतलब
सरकार ने यह फैसला क्यों लिया? इसका जवाब जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर, इमरजेंसी पेट्रोलियन रिजर्व क्या होता है? और इतनी महंगाई बढ़ने के बावजूद सरकार इसे रिलीज क्यों नहीं कर रही थी?
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने 1998 में भारत में स्ट्रैटजिक (इमरजेंसी) पेट्रोलियम रिजर्व बनाने का फैसला किया था। इसके तहत युद्ध, प्राकृतिक आपदा या अन्य किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए सरकार ने 3.8 करोड़ बैरल कच्चा तेल रिजर्व करके रखा हुआ है।
अगर किसी कारण से देश में कच्चे तेल का आयात बंद हो जाता है तो रिजर्व में रखे इस तेल का इस्तेमाल किया जा सकता है। सामान्य हालातों में इसे बाजार में नहीं लाया जा सकता।
भारत सहित पांच अन्य देशों ने भी खोले इमरजेंसी रिजर्व
तो क्या भारत में कच्चे तेल का आयात बंद हो गया है? या कोई आपात स्थिति आने वाली है? दरअसल, अपने इमरजेंसी रिजर्व से तेल निकालने का फैसला भारत ने अकेले नहीं किया है। भारत के अलावा अमेरिका, चीन, जापान, यूके और दक्षिण कोरिया ने सामूहिक तौर पर अपने अपने रिजर्व में से तेल निकालने का फैसला किया है।
ये छह देश दुनिया के सबसे बड़े तेल आयातक देश हैं जो अपनी जरूरतों के लिए, ऑर्गेनाइजेशन ऑफ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज प्लस (OPEC+) पर निर्भर हैं। ओपेक और ओपेक प्लस ऐसे देशों का समूह है जो कच्चे तेल के सबसे बड़े उत्पादक और निर्यातक हैं।
एकजुटता के पीछे छुपा है एक गंभीर संदेश
ओपेक और ओपेक प्लस देशों ने कच्चे तेल के दाम बढ़ा रखे हैं जिसके चलते भारत, अमेरिका, चीन और यूके जैसे देश महंगाई की मार झेल रहे हैं और इन देशों में मुद्रास्फीति लगातार बढ़ रही है। कच्चे तेल की कीमतों को कम किए बिना महंगाई पर लगाम संभव नहीं है।
इन देशों ने ओपेक और ओपेक प्लस पर तेल की कीमतों को कम करने और तेल का उत्पादन बढ़ाने का दबाव बनाने के लिए इमरजेंसी रिजर्व को खोलने का फैसला किया है। इस कदम का मकसद यह संदेश देना है कि तेल आयातक देश एकजुट हैं और अगर उनकी मांग पर विचार नहीं किया गया तो नतीजे गंभीर हो सकते हैं।
आगामी दो दिसंबर को ओपेक देशों की बैठक होने वाली है जिसमें कच्चे तेल की सप्लाई और उसका उत्पादन बढ़ाने पर फैसला होना है। इस बैठक से पहले दबाव बनाने के लिए भारत सहित छह देशों ने इमरजेंसी पेट्रोलियम रिजर्व को खोलने का रणनीतिक फैसला किया है।
भारत ढाई महीने तक बिना आयात के कर सकता है गुजारा
भारत सरकार के पास करीब 3.8 करोड़ बैरल तेल का इमरजेंसी पेट्रोलियम रिजर्व है। भारत की रोजाना पेट्रोलियम खपत लगभग 50 लाख बैरल है। इस हिसाब से सरकार के कुल रिजर्व को बाजार में लाने पर सात से आठ दिन के पेट्रोलियम की मांग ही पूरी का जा सकती है।
सरकार के अलावा पेट्रोलियम रिफाइनरियों के पास लगभग 64 दिनों के पेट्रोलियम का भंडारण है। अगर इन सब को मिला दिया जाए तो वर्तमान में भारत के पास 70 से 72 दिन का पेट्रोलियम रिजर्व है। यानी, पेट्रोलियम का आयात पूरी तरह से बंद होने पर भी देश में लगभग ढाई महीने तक पेट्रोलियम की कमी नहीं होगी।
भारत बना रहा तीन नए इमरजेंसी आयल रिजर्व
अमेरिका और चीन के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा पेट्रोलियम आयातक देश है। भारत अपनी जरूरत का 84% हिस्सा आयात करता है जबकि, 16% का उत्पादन करता है। पेट्रोलियम आयात का 53% हिस्सा मध्य एशियाई देशों से आता है और ये सारे देश ओपेक या ओपेक प्लस के सदस्य हैं।
भारत ने आपात स्थिति से निपटने के लिए अपने इमरजेंसी ऑयल रिजर्व को बढ़ाने पर तेजी से काम शुरू कर दिया है। सरकार ने तीन नए पेट्रोलियम रिजर्व बना रही है। इसमें से एक ओडिशा के चांदीखोले, दूसरा राजस्थान के बीकानेर और तीसरा गुजरात के राजकोट में बन रहा है। इनके बनने से भारत का इमरजेंसी आयल रिजर्व कई गुना बढ़ने की उम्मीद है।
पहली बार हुआ ऐसा
ऐसा पहली बार हो रहा है कि दुनिया के छह सबसे बड़े तेल आयातक देशों ने एकजुटता दिखाते हुए तेल का निर्यात करने वाले देशों पर दबाव बनाने का फैसला लिया है। हालांकि, यह कहना मुश्किल है कि ऑयल रिजर्व से तेल निकालने के फैसले का दो दिसंबर को होने जा रही ओपेक देशों की मीटिंग पर क्या असर पड़ेगा। लेकिन, इन देशों की एकजुटता ने तेल निर्यातक देशों को यह स्पष्ट संकेत दे दिया है कि आपसी मतभेद के बावजूद तेल की कीमतों को कम करने के लिए वे एकजुट हैं और किसी भी हद तक जाने से परहेज नहीं करेंगे।
– संजीव श्रीवास्तव