Motivational Story : दो साल पहले अपने भाई को खोने और पिता के सदमे से मिले दुख को नन्दनगरी की एक युवती ने मातम नहीं बल्कि मिशन बना लिया। मिशन लावारिस शवों का वारिस बनकर उनका अंतिम संस्कार करने का। दो साल पहले इस 26 वर्षीय एक युवती ने जो शपथ ली थी उस पर कायम रहते हुए आज भी वह लावारिस शवों का अंतिम संस्कार और अस्थि विसर्जन कर मानवता की मिसाल बनी हुई है। अब तक इस युवती ने अपने बलबूते 4 हजार से अधिक लावारिस शवों की अंत्येष्टि रीति रिवाज से की है।
भाई को खोकर 26 साल की पूजा ने लावारिस शवों की वारिस बनने की खाई थी शपथ
जीवन लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने में खुद समर्पित करने वाली इस 26 वर्षीय युवती का नाम पूजा शर्मा है। इस कार्य को अपना मिशन बनाने के पीछे की पूजा की कहानी बेहद भावुक कर देने वाली है। दरअसल, चार साल पहले तक पूजा का दिल्ली के नन्दनगरी में भरा पूरा परिवार था। वह दादी, पिता यशपाल शर्मा, माँ ममता और भाई रामेश्वर के साथ सामान्य जीवन बिता रही थी। परिवार में दुख की शुरूआत माँ की मौत से हुई। 20 दिसम्बर 2019 को पूजा की माँ का दिमाग की नस फटने से अचानक निधन हो गया। इस दुख से परिवार पूरी तरह उबर भी नहीं पाया 13 मार्च 2022 को एक विवाद में हुए झगड़े में पूजा के भाई की हत्या हो गई। बेटे के जाने से पिता को सदमा लगा और वे कोमा में चले गए। ऐसे में परिवार में कोई पुरुष नहीं था, जो उनके भाई का अंतिम संस्कार करता। परिवार के ऐसे हालात में पूजा ने हिम्मत नहीं हारी और नई भूमिका के रूप में पगड़ी पहनकर खुद ही अपने भाई का अंतिम संस्कार किया। दो दिन बाद 15 मार्च को जब अपने भाई की अस्थियां लेने शमशान पहुंची तो वहां शिवलिंग से लिपटकर 2 घंटे तक रोती रही। इस पूरे घटनाक्रम से उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि जिन लोगों के परिवार में कोई नहीं है उनका अंतिम संस्कार कैसे होता होगा। बस यहीं से पूजा के जीवन ने नया मोड लिया और लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कराना उनके लिए मिशन बन गया। उन्होंने न जाति देखी न धर्म और लावारिस शवों के अंतिम संस्कार करने का बीड़ा उठा लिया। भाई की हत्या के बाद लावारिस शवों का वारिस बनने की जो शपथ ली थी उस पर कायम रहते हुए पूजा अब तक दिल्ली के 4000 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुकी है। अपने मिशन को पूरा करने के लिए पूजा दिल्ली के अस्पतालों के मुर्दाघरों के संपर्क में रहती हैं, जहां से उन्हें लावारिस लाशों के बारे में जानकारी मिलती रहती है। इसके बाद वो शव को निकटतम श्मशान घाट तक ले जाने के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था करती हैं। पूरे सम्मान व रीतिरिवाज के साथ लावारिश शवों को अंतिम संस्कार करती हैं और उनकी अस्थियों को हर महीने की अमावस्या को हरिद्वार के कनखल घाट में पिंडदान करती हैं जिनकी पहचान हो जाए उनके धर्म के मुताबिक अंतिम संस्कार करती हैं।
Motivational Story : 4 हजार से अधिक लावारिस शवों का कराया अंतिम संस्कार
दिल्ली के नंदनगरी में रहने वाली पूजा बताती है कि शुरूआती दिनों में उसकी शादी के लिए माँ ने जो गहने आभूषण बनवाए थे, उनको उसने बेच दिया, भाई की आखिरी निशानी स्कूटी भी बेच दी। यहां तक प्रॉपर्टी गिरवी रख दी। सारा पैसा लावारिस शवो के अंतिम संस्कार की सेवा में खर्च करने लगी। आज भी पूजा अपने मिशन को परिवार की मदद से पूरा करती हैं। पूजा ने इस मिशन को जारी रखने के लिएदिल्ली में ब्राइट द सोल फाउंडेशन एनजीओ बनाई हुई है। इस एनजीओ के जरिए वो लोगों को प्रेरित और सशक्त बनाना चाहती हैं। पूजा को समाजिक कार्यों से जुड़े कुछ लोगों ने भी आर्थिक मदद की है, जो उनके काम से प्रेरित हुए हैं। पूजा के पिता का इहबास हास्पिटल शाहदरा दिल्ली से आज भी ट्रीटमेंट चल रहा है। बेटे की याद में उन्हें आज भी दौरे पड़ते हैं। पूजा ने बताया कि दादी ने 50 गज का प्लाट दिया है उसी पर वृद्धाश्रम बना रही है। पूजा कहती हैं कि ”सच बता रही हूं मैं भी वही लड़की हूं जो कॉकरोच और छिपकली से डरती थी। आज मैं सांपों के बीच में रहती हूं। इन 4 सालों में शमशान महाकाल तो जाती हूं लेकिन लौट कर नहाती नहीं हूं। शवो से उड़ती लपटों की तपिस से ही नहाना हो जाता है।” बहरहाल, पूजा का एनजीओ और उनका निस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा करने का महान मिशन मानवता की एक बड़ी मिसाल बन रहा है।Motivational Story
डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की बड़ी मुश्किल, 22 फरवरी तक रहेंगे हिरासत में
ग्रेटर नोएडा– नोएडा की खबरों से अपडेट रहने के लिए चेतना मंच से जुड़े रहें।
देश-दुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमें फेसबुक पर लाइक करें या ट्विटर पर फॉलो करें।