Father of Nation: ‘गॉधी जी के रचनात्मक आन्दोलन
डा0 नीता सक्सेना गॉधी जी के प्रिय भजन की सबसे प्रिय पक्ति – सच्चा मानव वही है जो पराये…
चेतना मंच | November 14, 2021 11:39 PM
डा0 नीता सक्सेना
गॉधी जी के प्रिय भजन की सबसे प्रिय पक्ति – सच्चा मानव वही है जो पराये दर्द को भी अपना समझे। गॉधी जी ने इस भजन में छिपी भावार्थ के आत्मसात किया और अपने जीवन का सार ही बना लिया।
गॉंधी जी सत्य, अहिंसा, परोपकर, करूना सेवा और स्वच्छता के ही आहयाल माना और उसी के जिया। उनके यह जीवनोयोगी व्यवहारिक जीवन दर्शन के आदेश के सिन्द्धात आज भी उतने प्रंासगिक है जितने उस समय थे: नि: सन्देह भविष्य में भी रहेंगे।
सत्य और आहिंसा को गांधी जी अपने जीवन का अचूक अस्त्र बनाया जिसके आत्मिक बल के आगे ऐसी शक्ति-शाली षाली ब्रिटिश सरकार जिसके राज्य में कभी सूरज अस्त्र नही होता था कॉंपने लगी भय भीतं हो कॉंपने लगी घुटने टेकने को मजबूर हो गई।
सोहन लाल दिवेद्धी की यह पक्तियां याद आती है कंपता असत्य कंपती मिथ्या, बर्बरता कंपती है थर थर कपते सिंहासन, राज मुकुर कंपते खिसके आते भू पर।
हमारा राष्ट्र बापू की 150 वी जयन्ती वर्ष मना रहा है इस विशिष्ट महान अवसर पर मैं यह बताने का प्रयास कर रही हूॅ कि मोहन को बापू से महत्मा और राष्ट्रपिता बनने तक कितनी अग्नि परिक्षाओ से गुजरना पड़ा। यह आश्चर्य जनक सत्य है कि इकंहरी काया कथा वाला साधारण सा मनुष्य खादी की धोती, हाथ में लाठी अपने आर्दिशवादी सिन्द्धातो से देश दुनिया महा -मानव के रूप में जाना जाता है।
02 अक्टूबर 1869 को गुजरात में जन्मे गॉंधी जी पर धार्मिक परिवार के धार्मिक संस्कारो का गहरा प्रभाव था। माता से प्राप्त रघुपति राघव राजा राम रामायण के संस्कारो के बीज बचपन में अक्रित एंव पल्लवित हुए। बाल्यकाल से ही श्रवण कुमार एंव सत्यवादी हरिशचन्द्र के नाटको की अमिट छाप उनके हृदय पर अंकित हो गई दोनो नाटको से प्रेरित हो उन्होने भी आजीवन सेवा और सत्य का संकल्प ले लिया। उस समय यह छोटा सा बालक यह नही जानता था कि सत्य की सराहना करना जितना आसान है उस पर चलना उतना ही कठिन। प्रारम्मिक शिक्षा पूरी करने बाद आपके बैरिस्ट्री थी पढाई करने इग्लैण्ड गये।
विलायत में रहने के बावजूद अपने वहॉ बहुत ही संयमित अनुशासित जीवन जिया, और विलायत जाने से पूर्व से दिये गये अपनी मॉं के दिये तीन वचनो का पालन मास मदिश का सेवन न करना पर स्त्री को मातृक्त भाव से देखना ईमानदारी से निभाया। अध्ययन काल में बाईबिल और गीता का अध्ययन किया और उनके सन्देशो को अपने जीवन में उतारा इस मसीहा के जीवन को तथा उनके प्रेम और अहिंसा को श्रेष्ठम् उदाहरण मानते है।
1892 में वह बैरिस्टर बन कर स्वदेश लौटे। लगभग 18 महीनो बाद उनको एक भारतीय कम्पनी की पैरवी करने दक्षिण अफ्रीका गये। वहॉ गोरा शाही शासन को रंग भेद की नीति के कारण ही रेलवे का टिकट होने के बावजूद अपानित करने प्लेट फार्म पर ही उतार दिया गया। गांधी जी ने इस अशोमनीय निन्दनीय व्यवहार को भारत के ही नही पूरी मानवता पूरी मानवता आहत हुई। दक्षिण अफ्रिकी सरकार से इस अध्याय का प्रतिकार करने के लिए एक नूटम ही अस्त्र का प्रयोग किया इस नवीन अस्त्रो को नाम दिया सत्याग्रह। सत्याग्रह अभय-अहिंसा और आत्म बल के सिन्द्धातो से बना था। गॉधी जी ने अफ्रीका को सरकार का सामना करने के लिए Astatic Act एशियाई ब्लेक लोगो अधिनियम Transiningration Act ट्रान्सवाल देशान्तर अधिनियम Blacks Bill Acts- का विरोध किया वहॉ प्रवासी भारतीयो तक यह सन्देश पहुॅंचाया अफ्रीकी सरकार के अन्याय को हम नही सहेंगें क्यू कि अन्याय सहना भी अन्याय करने के समान पाप है। सत्य अहिंसा प्रेम-परोपकार द्वेरा द्यृणा का त्याग प्रत्येक सत्याग्रही का धर्म होना चाहिए और इसी आत्मिक बल पर हम अन्यायी सरकार का सामना करेंगे। गॉधी ने कहा था कि सत्याग्रह कायरो एंव निर्बलो का अस्त्र नही अपुति सबलो का अमोद्य हथियार है। यही से गॉधी जी ने अपना पहला सविनय अवज्ञा सत्याग्रह आन्दोलन शुरू किया। अन्याय और अहिंसा के आन्दोलन के प्रयासो के फलस्वरूप दक्षिण अफ्रिकी सरकार को भारतीय पर लागू अनैतिक -अमानवीय कानूनो को रद्द करना ही पड़ा। एक सफल आन्दोलन के साथ गॉधी जी की प्रथम प्र्रथम की विजय थी।
गॉधी जी के काम और नाम की चर्चा अब देश-विदेश में होनें लगी। एक प्रसिद्ध फ्रांसीसी दार्शनिक रोम्या रोला ने आपकी मुक्त कं0 से प्रशंसर करते हुए कहा कि महत्मा जी का नाम सदैव उसी श्रेणी में लिखा जायेगा जो मानव मात्र के सुखी बनाने के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देते है तो ऐसा अनूठा था गॉधी का प्रथम रचनात्मक सत्याग्रह आन्दोलन 1915 में स्वदेश वापसी गोरवले जी जैसा विद्धान महान राजनीतिक गुरू का सानिहय मिला जिनके मार्ग दर्शन में गॉधी जी ने स्वन्त्रता स्वाधीनता के लिए कारगर योजनाए बनाई। गोरवले जी के निर्देशानुसार अपने अहमदाबाद में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की।
1917 में चंपारण -खेड़ा के नील किसानो पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आन्दोलन शुरू किया जो काफी हद तक सफल भी रहा । इसके बाद गांॅधी जी के जीवन का एक ही लक्ष्य का ब्रिटिश सरकार को देश से बाहर खदेडऩा था। आपकी अदभुत सृजन क्षमता नि:स्वार्थ सेवा एंव संत आचरणो से रविन्द्र नाथ टैगोर इतने प्रभावित हुए कि आपको महात्मा कह कर बुलाने लगे और अब गॉधी जी बापू से महत्मा बन गये।
1920 में पंजाब के जलिया वाला बाग की संहार की दमन करी सैलरी एक्ट एंव हन्टर आयोग द्वारा पारित इन्डेमानिटी ;प्दकमदअपजल ठपससद्ध के विरोध में असहयोग आन्दोलन छेड़ दिया। यही से गॉधी जी की सक्रियता से राजनीति में भाग लेना शुरू कर दिया। उन्होने जनता से सरकार का किसी भी प्रकार का यहयोग न करने को अपील की इनके इस आवाहान से लोगो ने सरकारी नौकरियो के। विद्यार्थियो सरकारी कालेज स्कूलो के छोड़ दिया। विदेशी वस्तुओ का बहिस्कार कर दिया। अंग्रेजो द्वारा दी गई उपाधियो एंव पुरूस्कारो आदि को वापस कर दिया। आन्दोलन बड़े बेग से आगे बढऩे लगा। चर्खा कातने,खादी बनाने और पहनने, कुटीर उद्योगो पर बल दिया जाने लगा। इस तरह स्वदेशी निर्माताओ एंव स्वदेशो उपभोक्ताओ की गणनात्मक वृद्धि होने लगी। यह गॉधी जी के रचनात्मक सकारत्मक आन्दोलन का ही परिणाम था।
अगस्त 1921 में मालाबार मदस-मुम्बई के हो रहे विरोध इधर उ0प्र0 में चैरी -चैरा कांॅड में केे लिए अंग्रेजी सरकार ने गॉधी का उत्तरदायी ठहराते हुए राजद्रोह का अभियोग लगा कर छ: वर्षो की सजा सुनाकर कारावास में डाल दिया लेकिन यहॉ एक विशेष बात यह थी कि उक्त न्यायधीश ने गॉधी जी को सजा देते हुए खेद प्रकट किया।
गॉधी जी को जेल जाना पड़ा आन्दोलन में थोड़ी शिथिलता आ गई। गॉधी के सद्विचारो एंव उच्च चरित्र को अंग्रेजी सरकार नजर अंदाज नही कर सकी उन्हे समय से पूर्व ही दो वर्ष बाद जेल से रिहा कर दिया गया।
अंग्रेजी की फूट डालो – राज करो की नीति ने हिन्दू -मुस्लमानो के बीच सम्प्रादायिक ढंगे करवा दिये मध्य भारत पंजाब उत्तरप्रदेश में जगह जगह सैकड़ो हिन्दुओ की जाने गई गयी देशो को रोकने के लिए गॉधी जी ने 21 दिन का उपवास रखा सबसे शान्ति संचय रखने का आगह किया।
1919 के कार्यो की समीक्षा का दिखावा मात्र करने के लिए साइमन 1927 में कमीशन भारत आया। कमीशन का एक भी सदस्य भारतीय नही था। कमीशन की हर जगह -हर रूप में बस्किार किया जगह जगह काले झन्डे दिखा कर साइमन वापसी जाओ विरोधी नारे लगाये अपना रोष प्रकट किया। गॉधी जी एंव अन्य सभी कॉग्रेसी नेताओ का एक ही मॉग थी एक ही लक्ष्य था स्वीधीनता और स्वराज।
दूसरा सविनय अवज्ञा आन्दोलन 12 मार्च 1930 दॉडी मार्च के साथ शुरू हुआ। अपने 78 साथियो के साथ लगभग 400 किमी की यात्रा पूरी करने दॉडी पहुचे वहॉ नमक बना कर नमक कानून तोड़ा। यह चेतावनी थी फिरंगी सरकार को कि अब हम ब्रिटिश के नही है। सरकार की अधीनता और शासनादेशो के मानने के लिए बाध्य नही है। गॉधी जी ने तो यह घोषणा ही कर डाली कि राजद्रोह ही अब मेरा धर्म है। पूरे देश में स्थान पर नमक बना कर नमक कानून तोड़ा गया गॉवो से शहरो से हजारो की संख्या में लोग गॉधी के इस धर्म युद्ध से जुडते चले गये बापू का सत्यग्रह आन्दोलन ऑधी की तरह बड़ता चला जा रहा था। गॉधी का एक बार फिर सरकार की आज्ञाओ की अवेहलना करने के अपराध में गिरफतार कर कर लिया गया। जेल जाते-जाते भी गॉधी जी हिन्दुस्तानियो में आत्म निर्भरता का मन्त्र फूंक गये।
स्वराज्य एंव स्वाधीनता की मांगो की विचार विमर्श के हेतु सन् 1930 मे गोल मेज सभा में कुछ अन्य वर्ग के प्रतिनिधियो ने भाग लिया कॉग्रेसी नेताओ ने गोल मेज सभा से अपने आपको अलग रखा। लम्बी वार्ता के बाद कोई निस्कर्ष नही निकला हो अंग्रेजी सरकार ने बिना किसी शर्त के राजनैतिक केद्रियो। के मुक्त कर दिया।
1931 में इरविन -गॉधी समझौता हुआ। समझौते के तहत् गॉधी जी ने सत्यग्रह आन्दोलन को रोकने की घोषणा करदी। गॉधी-इरविन समझौते से देश में शन्ति का वातावरण स्थापित हो गया।
1932 में दूसरी गोल मेज सभा में श्रीमति नायडू एंव मालवीय तथा अन्य कुछ कॉग्रेसी नेताओ के साथ गॉंधी जी भारत के प्रतिनिधि के रूप में लंदन गये।
गॉधी जी वायसराय की लम्बी वार्ताओ के बाद भी कोई सहमति नही हुयी। वायसराय ने सत्याग्रह का द्रढ्ता से दमन करने का आदेश दिया जनता में रोष दिन पर दिन बढता जी जा रहा था। गॉधी के आत्मविश्वास तोडऩ को बोझ एंव आन्दोलन को नियन्त्रित करने की नियत से एक बार फिर गॉधी जी के। जेल भेज दिया गया।
नवम्बर 1932 में तीसरी गोल मेज परिषद हुई शासन सुधार हेतु प्रस्तावो पर बहस हुई उसी के आधार पर 1933 में श्वेंत पत्र भी प्रथशित हुआ।
इसके विरोध पुन: सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरूआत हुयी लेकिन किन्ही विशेष कारणो से गॉधी जी कॉग्रेस से त्याग पत्र दे दिया और स्वयं को सक्रिय राजनीति से अलग देखते कर स्वयं को सामाजिक एंव रचनात्मक के लिए समर्पित कर दिया।
अंग्रेजी सरकार ने भारत को बलात् द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका मे झोंक दिया। जो अब किसी भी हालात में न तो जनता को न हो नेताओ को किसी भी तरह स्वाकार था गॉधी जी ने इसका मुखर विरोद किया। अंग्रेजी सरकार ने भी कॉग्रेस नेताओ की आजादी और स्वराज की मॉग के सिरे से ठुकरा दिया।
08 अगस्त 1942 अंग्रेजो भारत छोड़ो के साथ गॉंधी जी ने निर्णायक आन्दोलन का विगुल बजा दिया। अंग्रेजी सरकार ने भी हर प्रकार के आन्दोलन से निबटने की तैयारी कर ली थी। आन्दोलनकारियो के साथ-साथ इनके नेताओ एंव गांधी जी को जेल में डाल दिया गया। इसी जेल यात्रा के कैदरान गॉधी जी के सचिव भाई सहयोगी महोदव देसाई का निधन हो गया। 1943 में उनकी पत्नी कस्तुरबा गॉधी का भी स्वर्गवास हो गया। 1944 में गॉधी जी को जेल से रिहा कर दिया गया। बाहर आने के बाद भी स्वतन्त्रता आन्दोलन में बाधाए आ रही थी।
अंग्रेजी आपनी धूर्त चाले चलते जा रहे थे हमारे हिन्दु-मुस्लमान भाई अंग्रेजी सरकार की फूट डालो राज करो को अनैतिक नीति का शिकार बन एक दूसरे के खून के प्यासे हो गये थे। जिनका अलग पाकिस्तान की मॉंग को लेकर अड़े थे गॉधी जी की कोई बात सुनने को तैयार नही थे। गॉधी जी बड़े आहत हुए।
15 अगस्त के भारत आजाद 1947 के भारत आजाद हो गया। जहॉ एक ओर पूरा राष्ट्र आजादी के जश्न में इबा था वही गॉधी कुछ असहाय से देश के विभाजन के ॉाोक में डूबे थे। उपद्रेवो से और भी निराश थे निसन्देह ऐसी रक्तिम स्वतन्त्रता की तो उन्होने सपने में भी कल्पना नही की होगी।
इधर कलकत्ता मे नोआरवाली फैली दंगो की आग के बुझाने का गॉधी जी अपील कर रहे थे तो उधर पंजाब में भीषण दंगे की ज्वाला धधक उड़ी दिल्ली की गलिया और सड़के भी खून से लथपथ थी गॉधी यथा संभव जनता केसद्वारा प्रयास के बावजूद भी दंगो पर नियंन्त्रण करने में असफल रहे अंतत उन्होने आमरण अनशन करने का निर्णय लिया। आमरण अनशन से उपद्रवी जनता को होश आया और किसी तरह झगड़े शांत हुए। आजादी के बाद भी देश की स्थिति अभी बहुत नाजुक थी देश स्थिति एंव बदलते समय को समझते हुए गॉधी जी ने सर्व सहमति से देश की बागडोर नेहरू जी के हाथ में सौप दी। भविष्य को रणनीतियो एंव अत्यन्त महत्वपूर्ण विषयो पर विचार विमर्श करने के लिए नेहरू जी गॉधी जी को दिल्ली में ही रोक लिया। दिल्ली में उसी दौरान एक दिन प्रार्थना सभा में जाते समय एक सिर फिरे युवक ने गोली मार कर गॉधी जी की निमेम हत्या कर दी। हे राम हे राम अमिृत पवित्र शब्दों के साथ इस पुण्य आत्मा ने इस जगह से विदाई ली।
गॉधी जी देश के लिए केवल और राजनीति स्वतन्त्रता की सोच नही रखते थे बल्कि वरन् जनता की आर्थिक समाजिक एंव आत्मिक उभति का विकास भी करना चाहते थे।
इस भावना से प्रेरित उन्होने कार्यो एकता अस्प्रश्यता निवारण ग्रामोद्योग संद्य जी रक्षा संद्य बेसिक शिक्षा संद्य आदि बनाये। समाज के आत्मनिर्मरता के लिए कुटीर उद्योगो के प्रोत्साहित किया खादी बनाना पहनना देश की आर्थिक रूप से
मजबूत करने की मंशा थी। जाति धर्म धन की असमानताओ थे सम्पूर्ण करने के लिए एक समय पर अपने स्वयं की राष्ट्रीय आन्दोलनो के लिए समार्पित कर दिया।
गॉधी जी ने अस्प्रश्यता को सामाजिक रोग मानते थे। अधूत जैसी समस्या के दूर करने के लिए अथक प्रयास किया अधूत ॉाब्द को हटा कर हरिजन (हरिथ प्रिय) नाम दिया। मन्दिर एंव पवित्र स्थलो में प्रवेश एंव पूजा का अधिकार
दिलाने तक का भरसक प्रयास किया गॉधी जी के प्रयासो का अस्थायी लाभ तो दिखाई दिया लेकिन स्थायी समाधान अभी बाकी है। समाज सुधारक राजा राम के बाद गॉधी जी ने ही स्त्री शिक्षा आत्मनिर्मता एंव बराबरी की जोर दार पैरवी की। गॉधी सदैव कहा करते थे कि पुरूषो की अपेक्षा स्त्रियो में नैतिक गुण अधिक होते है उन्हाने गॉधी जी सदैव महिलाओ समाज की मुख्य की मुख्य धारा से जोडऩे के लिए प्रयत्नशील रहे। शिक्षा के विषय में उनका दृष्टि करण बहुत व्यवहारिक था व्यक्ति को ऐसी शिक्षा मिले जिससे वह स्वालम्बी बने और अपनी जीविका कमाने में समक्ष हो। शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही होना चाहिए। नैतिक शिक्षा, चरित्र निमार्ण शिक्षा प्रत्येक विद्याार्थी थे प्रारूप से मिलनी चाहिए।
बापू जी आज हमारे बीच नही हे लेकिन उनके आर्दश उनकी शिक्षाए उनकी स्मृति हमारा मार्ग दर्शन कर रही है। विश्व वन्धुत्व का संन्देश समस्त मानव जाति के लिये था-सत्य, करूणा, प्रेम मानवता के लिए उन्होने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। हमारा देश हमारी भावी पीढी सदैव-सदैव इस कर्म योगी की श्रेणी रहेगी।
श्री द्विवेदी जी ने उनके सम्मान में कहा है कि।
हे कोटि चरण, हे कोटी बाहु
हे कोटी रूप, हे कोटी नाम
तुम एक मूर्ति, प्रति मूर्ति कोटि
हे कोटि मूर्ति तुम्हे प्रणाम।