– मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्
29 सितंबर को अष्टमी तिथि के श्राद्ध Shradh paksha के अलावा महालक्ष्मी व्रत रखने की भी परंपरा है। इसे संतान की दीर्घायु के लिए माताएं रखती हैं। सप्तमी तिथि मंगलवार 28 तारीख की सायं 6 बजकर 17 मिनट पर समाप्त हो जाएगी और अष्टमी आरंभ हो जाएगी। बुधवार 29 तारीख का पूरा दिन, 8 बजकर 30 मिनट तक अष्टमी रहेगी और श्री महालक्ष्मी व्रत रखा जा सकता है। इसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। इस दिन पितृपक्ष Shradh paksha होने के बावजूद सोना, वाहन, गृह संबंधी तथा लक्जरी आयटम खरीदी जा सकती हैं। श्राद्ध पक्ष में शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं, परंतु इस मध्य कई ऐसे मुहुर्त हैं, जब आप जमकर खरीदारी कर सकते हैं। नीचे दिए गए विशेष मुहुर्तों में भी आप सामान खरीद सकते हैं।
रवि योग-26 व 27 सितंबर 2021
सर्वार्थ सिद्धि योग- 27,30 सितंबर तथा 6 अक्टूबर 2021
गुरु पुष्य योग- 1 अक्तूबर 2021
मान्यताएं- क्यों नहीं करते शुभ कार्य ?
पितृ पक्ष, में लोग अपने पूर्वजों को याद करने के साथ-साथ उनको धन्यवाद करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। धर्म शास्त्रियों और विद्वानों के अनुसार, ये दिन केवल पितरों के लिए होते हैं और इस समय आपका ध्यान केवल उनके तर्पण और उनको याद करने में होना चाहिए। वहीं अगर आप इस दौरान नए कपड़े, घर या कोई और चीज़ खरीदते हैं या खरीदने के बारे में सोचते हैं, तो आपका ध्यान अपने पितरों पर से हट जाएगा और वो आपसे नाराज़ हो जाएंगे। मान्यता है कि इस दौरान हमारे पितृ या पूर्वज धरती पर हमसे मिलने आते हैं और हमें अपना आशीर्वाद देते हैं, लेकिन पितृ पक्ष को लेकर लोगों में कई तरह की धारणाएं भी हैं। जैसे इन दिनों को अशुभ माना जाता है और इस समय कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए, कुछ नया नहीं खरीदना चाहिए, ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए, मांस मछली नहीं खाना चाहिए आदि। ऐसा माना जाता है कि इन दिनों में किसी भी तरह की नई चीज़, जैसे घर, कपड़े, सोना आदि नहीं ख़रीदने चाहिए। मान्यता है कि श्राद्धों में खरीदी गयी सभी वस्तुएं पितरों को समर्पित होती हैं, जिनका उपयोग करना उचित नहीं होता है क्योंकि उनमें आत्माओं का अंश होता है। लोगों का ये भी मानना है कि अगर इस वक़्त कोई नई चीज़ ख़रीदी जायेगी, तो उससे हमारे पितरों को दुःख होगा और वो नाराज़ होंगे। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि पितृपक्ष उत्सव का नहीं, बल्कि एक तरह से शोक व्यक्त करने का समय होता है उनके प्रति जो अब हमारे बीच नहीं रहे।
दूसरी आधुनिक मान्यता-
शास्त्रों में ऐसा कहीं भी नहीं लिखा है कि श्राद्ध पक्ष में खरीदारी नहीं करनी चाहिए। श्राद्ध पक्ष अशुभ नहीं होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि गणेश चतुर्थी और नवरात्र के बीच का जो समय होता है, उसमें पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष आते हैं, तो ये अशुभ कैसे हो सकते हैं? और हिन्दू धर्म में ये भी मान्यता है कि किसी भी शुभ काम का आरम्भ गणेश पूजन से की जाती है, और श्राद्ध से पहले ही गणेश जी का पूजन होता है गणेश चतुर्थी के रूप में। इस लिहाज से मानें तो श्राद्ध पक्ष अशुभ नहीं होते। पितृ पृथ्वी पर आते हैं और देखते हैं कि उनके बच्चे किस स्थिति में हैं। अगर उनके बच्चे कोई चीज़ खरीदते हैं, तो पितरों को खुशी ही होती है। लेकिन अगर आप अपनी खुशियों के साथ-साथ पितरों का भी ध्यान करते हैं, तो श्राद्ध पक्ष में किसी भी तरह की शॉपिंग करने में कोई बुराई नहीं है।
29 सितंबर को महालक्ष्मी व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत केैसे रखें ?
इस व्रत को रखने से मां लक्ष्मी की कृपा बरसती है और जीवन में धन, यश और सफलता मिलती है और दरिद्रता दूर होती है। इस दिन गज लक्ष्मी यानी हाथी पर बैठी महालक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। श्राद्ध पक्ष में शुभ कार्य वर्जित होते हैं। इस दौरान लोग नई वस्तुएं, नए परिधान नहीं खरीदते और न ही पहनते हैं लेकिन इस पक्ष में आने वाली अष्टमी तिथि को बेहद शुभ माना जाता है। इसे गजलक्ष्मी व्रत, महालक्ष्मी व्रत, हाथी पूजा भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन खरीदा सोना आठ गुना बढ़ता है। इस दिन हाथी पर सवार मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है।
सौभाग्यवती महिलाएं सुबह नित्य कर्म के पश्चात लाल वस्त्र धारण कर लक्ष्मी जी के चित्र के सम्मुख बैठ कर लक्ष्मी जी की आराधना करें और उन्हें कष्टमुक्त दीर्धायु प्रदान करने की याचना करें। इस साधारण परंतु महाशक्तिशाली मंत्र जाप की एक माला करने से दरिद्रता का नाश होकर संपत्ति की प्राप्ति होती है। निर्धनता का सदा के लिए निवारण हो जाता है।
ओम् श्री महालक्ष्म्यै नमः
महालक्ष्मी व्रत एवं पूजा विधि
महालक्ष्मी व्रत में मां लक्ष्मी के आठों रूप- श्रीधन लक्ष्मी, श्रीगज लक्ष्मी, श्रीवीर लक्ष्मी, श्री ऐश्वर्य लक्ष्मी मां, श्री विजय लक्ष्मी मां, श्री आदि लक्ष्मी मां, श्री धान्य लक्ष्मी मां और श्री संतान लक्ष्मी मां की पूजा करनी चाहिए। आज के दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर माता लक्ष्मी की मिट्टी की मूर्ति पूजा स्थान पर स्थापित करें। मां लक्ष्मी के 8 रूपों की मंत्रों के साथ कुंकुम, चावल और फूल चढ़ाते हुए पूजा करें। मां लक्ष्मी को लाल, गुलाबी या फिर पीले रंग का रेशमी वस्त्र पहनाएं। फिर उनको चन्दन, लाल सूत, सुपारी, पत्र, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, नारियल, फल मिठाई आदि अर्पित करें। पूजा में महालक्ष्मी को सफेद कमल या कोई भी कमल का पुष्प, दूर्वा और कमलगट्टा भी चढ़ाएं। इसके बाद माता लक्ष्मी को किशमिश या सफेद बर्फी का भोग लगाएं। इसके बाद माता महालक्ष्मी की आरती करें। पूजा के दौरान आपको महालक्ष्मी मंत्र या बीज मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।