हिंडन एयरपोर्ट का विस्तार होगा, प्राधिकरण ने योजना बनाई

इस साल व्यावसायिक उड़ानों की शुरुआत के बाद से ही एयरपोर्ट के विस्तार पर जोर दिया जा रहा है। विस्तार दो चरणों में होगा। पहले चरण में एयरपोर्ट को नौ मीटर तक विस्तार करने की योजना पर प्रस्ताव तैयार हो गया है।

hindan
गाजियाबाद में स्थित हिंडन एयरपोर्ट
locationभारत
userयोगेन्द्र नाथ झा
calendar27 Nov 2025 05:58 PM
bookmark

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में स्थित हिंडन एयरपोर्ट का विस्तार करीब साढ़े आठ करोड़ रुपये से होगा। इसके लिए एयरपोर्ट प्राधिकरण ने योजना बना ली है। उत्तर प्रदेश के हिंडन एयरपोर्ट का विस्तार का काम आठ माह में पूरा करने का लक्ष्य है। विस्तार के बाद यात्री सुविधाओं में बढ़ोतरी के साथ उत्तर प्रदेश के इस टर्मिनल की क्षमता भी बढ़ जाएगी। उत्तर प्रदेश में स्थित हिंडन एयरपोर्ट छह साल पहले शुरू हुआ था। इस साल व्यावसायिक उड़ानों की शुरुआत के बाद से ही एयरपोर्ट के विस्तार पर जोर दिया जा रहा है। विस्तार दो चरणों में होगा। पहले चरण में एयरपोर्ट को नौ मीटर तक विस्तार करने की योजना पर प्रस्ताव तैयार हो गया है। अभी एयरपोर्ट 22,050 वर्गमीटर क्षेत्रफल में बना है।

6.8 एकड़ भूमि ली जाएगीपहले चरण में नौ मीटर एयरपोर्ट को बढ़ाने के लिए आवास एवं विकास परिषद और जिला प्रशासन की ओर से अतिरिक्त जमीन उपलब्ध कराई गई है। वहीं, दूसरे चरण में 6.8 एकड़ जमीन पर विस्तार होगा। जमीन के अधिग्रहण के लिए प्रशासन तैयारी कर रहा है। बाद में इसका क्षेत्रफल करीब 800 वर्गमीटर बढ़ जाएगा। इससे टर्मिनल की क्षमता बढ़ेगी और सड़कों को भी चौड़ा किया जा सकेगा। मुख्य द्वार भी अधिक बड़ा होगा। इसी माह टेंडर प्रक्रिया पूरी की जाएगी, जिसकेबाद काम शुरू हो जाएगा। आठ माह में कार्य पूरा करने का लक्ष्य है। समय से काम शुरू हुआ तो जुलाई 2026 तक पहले चरण के विस्तार का कार्य पूरा हो जाएगा।

टर्मिनल के चारों ओर बनेगा कर्ब

एयरपोर्ट की मुख्य सड़क 120 मीटर लंबी होगी। चार लेन की इस सड़क की चौड़ाई 14.5 14. मीटर होगी। सड़क के साथ ही डेढ़ मीटर चौड़ा फुटपाथ भी बनेगा। इसके साथ नया कर्ब एरिया भी बनाया जाएगा, जिसकी चौड़ाई साढ़े आठ मीटर होगी ताकि पिकअप और ड्राप के लिए अधिक वाहनों के आने पर यात्रियों को सुविधा होगी। डॉ. चिल्ला महेश, निदेशक, हिंडन एयरपोर्ट प्राधिकरण ने बताया कि एयरपोर्ट को सिटी साइड में नौ मीटर आगे तक बढ़ाया जाएगा। इससे यात्री सुविधाओं में बढ़ोतरी होगी। करीब साढ़े आठ करोड़ रुपये की परियोजना के लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इसे पूरा कर कार्य शुरू कराया जाएगा। 

अगली खबर पढ़ें

उत्तर प्रदेश: जहां बहती है साहित्य व ज्ञान की गंगा

यह राज्य हर युग में भारतीय साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। यहाँ के साहित्यकार समाज, संस्कृति और मानव जीवन की जटिलताओं को शब्दों में पिरोकर नई सोच और दृष्टिकोण पेश करते हैं। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश को साहित्य और कला का अभूतपूर्व केंद्र माना जाता है।

उत्तर प्रदेश के महान साहित्यकार
उत्तर प्रदेश के महान साहित्यकार
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar12 Nov 2025 04:57 PM
bookmark

उत्तर भारत के प्रमुख प्रदेशों में से एक उत्तर प्रदेश केवल भौगोलिक या आबादी के लिहाज से ही बड़ा राज्य नहीं है, बल्कि इसकी सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत इसे देश के सबसे संपन्न राज्यों में से एक बनाती है। लगभग 25 करोड़ की आबादी वाला उत्तर प्रदेश, इतिहास और कला के क्षेत्र में भी भारत का एक अग्रणी राज्य रहा है। उत्तर प्रदेश की धरती ने सदियों से साहित्य और ज्ञान के क्षेत्र में देश को अद्वितीय उपहार दिए हैं। यही वो भूमि है जहां से भारतीय ग्रंथो में प्रमुख रामायण और महाभारत जैसे अमर ग्रंथों की रचना हुई, जो आज भी भारतीय संस्कृति और जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। साहित्यिक दृष्टि से उत्तर प्रदेश ने हमेशा ही अपने कवियों और लेखकों के माध्यम से भारतीय सभ्यता को नया आयाम दिया है।

उत्तर प्रदेश ने देश को दिए कई महान साहित्यकार

उत्तर प्रदेश को साहित्यकारों की भूमि कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है। कबीर, तुलसीदास, सूरदास और केशवदास जैसे कवि इसी राज्य के गर्व हैं। प्राचीन काल में श्वघोष, बाणभट्ट, मयूर, दिवाकर और वाक्पति जैसे विद्वानों ने अपनी लेखनी और ज्ञान से न केवल दरबारों में बल्कि आम जनता के दिलों में भी विशेष स्थान बनाया। इनकी रचनाएँ आज भी साहित्य प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उत्तर प्रदेश की साहित्यिक धरोहर केवल कविता और ग्रंथों तक सीमित नहीं है। यह राज्य हर युग में भारतीय साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। यहाँ के साहित्यकार समाज, संस्कृति और मानव जीवन की जटिलताओं को शब्दों में पिरोकर नई सोच और दृष्टिकोण पेश करते हैं। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश को साहित्य और कला का अभूतपूर्व केंद्र माना जाता है।

1 . हरिवंश राय बच्चन

उत्तर प्रदेश की धरती ने हमेशा साहित्य और संस्कृति को नई पहचान दी है। ऐसी ही प्रतिभाओं में से एक थे हरिवंश राय बच्चन (27 नवम्बर 1907 – 18 जनवरी 2003), जो हिंदी साहित्य के उत्तर छायावादी काल के प्रमुख कवि माने जाते हैं। उनकी कविता और लेखनी ने हिंदी साहित्य को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई। सबसे प्रसिद्ध कृति “मधुशाला” ने उन्हें देश और दुनिया में अमर बना दिया।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवम्बर 1907 को प्रयाग (अब प्रयागराज), उत्तर प्रदेश में एक कायस्थ परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम प्रताप नारायण श्रीवास्तव और माता का नाम सरस्वती देवी था। बचपन में इन्हें ‘बच्चन’ कहा जाता था, जिसका अर्थ होता है ‘संतान’। उन्होंने कायस्थ पाठशाला में उर्दू और हिंदी की शिक्षा प्राप्त की। बाद में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. किया और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में डब्ल्यू.बी. यीट्स की कविताओं पर शोध कर Ph.D. की उपाधि प्राप्त की। 19 वर्ष की उम्र में उन्होंने श्यामा बच्चन से विवाह किया, लेकिन टीबी के कारण श्यामा का निधन हो गया। पाँच साल बाद 1941 में उन्होंने तेजी सूरी से पुनः विवाह किया, जो रंगमंच और गायन से जुड़ी हुई थीं। इसी दौरान उन्होंने “नीड़ का निर्माण फिर” जैसी रचनाएँ कीं। उनके सुपुत्र अमिताभ बच्चन आज भारतीय सिनेमा के सुपरस्टार हैं।

साहित्यिक योगदान और प्रमुख कृतियाँ

हरिवंश राय बच्चन की रचनाएँ हिंदी कविता की अमूल्य धरोहर हैं। उनकी प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं:

तेरा हार (1929)

मधुशाला (1935)

मधुबाला (1936)

मधुकलश (1937)

आत्म परिचय (1937)

2 सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

उत्तर प्रदेश की धरती ने हमेशा ही साहित्य और कला को नई पहचान दी है। इसी मिट्टी से जन्मे सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (21 फ़रवरी 1899 – 15 अक्टूबर 1961) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार स्तंभों में से एक माने जाते हैं। जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ निराला ने हिन्दी कविता को यथार्थ और स्वतंत्रता का स्वर दिया। उनकी ख्याति कविता के क्षेत्र में विशेष रूप से रही, हालांकि उन्होंने कहानी, उपन्यास और निबंधों में भी अमूल्य योगदान दिया।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

निराला का जन्म बंगाल की महिषादल रियासत में हुआ, लेकिन उनके परिवार की जड़ें उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ाकोला गाँव से जुड़ी हैं। जन्म के समय उनका नाम सुर्जकुमार रखा गया। पिता पंडित रामसहाय तिवारी और माता का नाम मनोहरा देवी था। पिता की नौकरी और परिवार की आर्थिक कठिनाइयों के कारण निराला का बचपन संघर्षों से भरा रहा। तीन वर्ष की उम्र में उनकी माता का और बीस वर्ष की अवस्था में पिता का निधन हो गया।उनकी प्रारंभिक शिक्षा हाई स्कूल तक हुई। इसके बाद उन्होंने हिन्दी, संस्कृत और बंगला का स्वतंत्र अध्ययन किया। युवा उम्र से ही उन्होंने समाज के कमजोर और शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति विकसित की।

व्यक्तिगत जीवन और कठिनाइयाँ

निराला ने अपने जीवन में कई व्यक्तिगत tragedies देखीं। 1918 में स्पेनिश फ्लू महामारी में उन्होंने पत्नी मनोहरा देवी और बेटी सहित परिवार के कई सदस्य खो दिए। इसके बावजूद उन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी अपने सिद्धांतों को नहीं छोड़ा और संघर्ष का रास्ता अपनाया।उनका जीवन उत्तरार्द्ध इलाहाबाद में बीता, जहाँ उन्होंने स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य किया। 15 अक्टूबर 1961 को उन्होंने अपनी इहलीला समाप्त की।

साहित्यिक कार्य और योगदान

निराला ने हिन्दी कविता में यथार्थ और स्वतंत्रता को प्रमुखता दी। उन्होंने मुक्तछन्द के प्रवर्तक के रूप में हिन्दी कविता को नया आयाम दिया। उनका मानना था कि मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है।

उनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ इस प्रकार हैं:

अनामिका (1923)

परिमल (1930)

गीतिका (1936)

अनामिका (द्वितीय) (1939)

तुलसीदास (1939)

अगली खबर पढ़ें

जरूरी काम में फेल साबित हुआ उत्तर प्रदेश

पुरस्कारों की इस सूची में प्रदेश के तौर पर उत्तर प्रदेश का नाम शामिल नहीं है। केवल उत्तर प्रदेश के तीन शहरों को जल शक्ति पुरस्कार देने वाली सूची में शामिल किया गया है। उत्तर प्रदेश के जिन शहरों को जल शक्ति पुरस्कार देने की सूची में शामिल किया गया है। उत्तर प्रदेश के उन शहरों में वाराणसी, मिर्जापुर

जल संरक्षण में पीछे छूटा उत्तर प्रदेश
जल संरक्षण में पीछे छूटा उत्तर प्रदेश
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar12 Nov 2025 12:06 PM
bookmark

उत्तर प्रदेश के लिए यह अच्छी खबर नहीं है। देश भर में चल रहे एक जरूरी काम के मामले में उत्तर प्रदेश फेल प्रदेश साबित हुआ है। भारत सरकार ने हाल ही में जल संरक्षण प्रबंधन के लिए जलशक्ति पुरस्कारों की घोषणा की है। जल शक्ति पुरस्कारों के मामले में उत्तर प्रदेश फेल प्रदेश साबित हुआ है। भारत सरकार द्वारा घोषित किए गए जल शक्ति पुरस्कारों में उत्तर प्रदेश का नाम शामिल नहीं है। उत्तर प्रदेश को लेकर यह गनीमत रही कि उत्तर प्रदेश के 3 शहरों को जल शक्ति पुरस्कारों की श्रेणी में रखा गया है।

उत्तर प्रदेश का नाम नहीं है जल शक्ति के पुरस्कारों की सूची में

आपको बता दें कि देश में जल संरक्षण प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए सभी प्रदेशों को जल शक्ति पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। वर्ष-2025 के लिए भारत सरकार जल शक्ति पुरस्कारों की घोषणा कर दी है। इस घोषणा के तहत महाराष्ट्र को प्रथम, गुजरात को द्वितीय तथा हरियाणा प्रदेश को तीसरा स्थान मिला है। पुरस्कारों की इस सूची में प्रदेश के तौर पर उत्तर प्रदेश का नाम शामिल नहीं है। केवल उत्तर प्रदेश के तीन शहरों को जल शक्ति पुरस्कार देने वाली सूची में शामिल किया गया है। उत्तर प्रदेश के जिन शहरों को जल शक्ति पुरस्कार देने की सूची में शामिल किया गया है। उत्तर प्रदेश के उन शहरों में वाराणसी, मिर्जापुर तथा जालौन शहर शामिल किए गए हैं। प्रदेश के तौर पर उत्तर प्रदेश का नाम जल शक्ति पुरस्कारों की सूची में दूर-दूर तक नहीं है।

भारत सरकार ने घोषित की जल शक्ति पुरस्कार पाने वाले प्रदेशों की सूची

भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि जल शक्ति पुरस्कार-2025 की विधिवत घोषणा कर दी गयी है। भारत सरकार के प्रवक्ता के अनुसार जल प्रबंधन और जल संचय में श्रेष्ठ काम के लिए महाराष्ट्र, गुजरात और हरियाणा को पहला, दूसरा और तीसरा स्थान मिला है। 18 नवंबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू इन राज्यों को पुरस्कार देंगी। जल संरक्षण के लिए तेलंगाना, छत्तीसगढ़, राजस्थान ने पहले तीन स्थान पाए हैं। इस श्रेणी में चार पुरस्कार उत्तर प्रदेश के जिलों को भी मिले हैं। इसके तहत परियोजनाओं को समय से पूरा करने वाले राज्यों को सम्मानित किया जाएगा। तेलंगाना ने 5.20 लाख जल संरक्षण परियोजनाओं को पूरा किया। छत्तीसगढ़ ने 4.05 लाख और राजस्थान ने 3.64 लाख जल संरचनाओं के संरक्षण का काम किया। इस मौके पर केंद्रीय जल शक्ति मंत्री ने कैच द रेन अभियान के तहत भी पुरस्कार पाने वालों के नाम की घोषणा की। 

जल संचय, प्रबंधन और संरक्षण को बढ़ावा 

इस पहल हल के तहत राज्यों को 5 क्षेत्रों में विभाजित और जिलों को कम-से-कम 10 हजार कृत्रिम पुनर्भरण और भंडारण संरचना बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों के जिलों के लिए यह संख्या तीन हजार है। देश भर के नगर निगमों के लिए संख्या 10 हजार है। इन संरचनाओं में छतों पर वर्षा जल संचयन के साथ झीलों, तालाबों और बावडिय़ों का पुनरुद्धार भी शामिल हैं। शहरी जल संरक्षण प्रयासों को मजबूत कर लिए आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने शक्ति मंत्रालय के साथ साझेदारी की है।