Greater Noida: भारत गांवों का देश है। 80 प्रतिशत जनसंख्या अब भी गांवों में ही रहती है। गांवों में भारतीय संस्कृति और इतिहास के दर्शन होते हैं। आज हम आपको एक प्रसिद्ध गांव से परिचित करा रहे हैं। दरअसल गुर्जर बाहुल्य इस गांव के नामकरण की बड़ी ही अनोखी कहानी है।
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आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर जिले का एक गांव है “”डेरी मच्छा”” इस गांव पर आज भी गुर्जर समाज बेहद नाज करता है। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के पैतृक गांव बादलपुर के पास बसे डेरी मच्छा गांव का नाम कैसे पड़ा इसके पीछे शानदार कहानी है। डेरी मच्छा गांव के निवासी व वरिष्ठ समाजसेवी बिजेन्द्र नागर ने बताते हैं कि आज से लगभग 150 साल पहले इस गांव का नाम डेरी था। डेरी गांव में हमारे ‘बाबा मच्छा’ रहते थे वे बेहद साधारण व्यक्ति थे, लेकिन दिन-रात वे लोगों की मदद व सामाजिक कार्यों में जुटे रहते थे। उनके बारे में गांव व क्षेत्र में कई किस्से मशहूर हैं, जिस पर समूचा गुर्जर समाज गर्व महसूस करता है।
उन्होंने बताया कि जिस समय बाबा मच्छा गांव में रहते थे उस समय अशिक्षा, छुआछूत व समाज में ऐसी कुरीतियां फैली थीं जिसके आधार पर कई फैसले लिए जाते थे। कहा जाता है कि एक बार बादलपुर गांव में एक धर्म विशेष के व्यक्ति ने गुर्जर समाज की शादी में खाना परोस दिया था। इस बात को लेकर गुर्जर समाज के लोगों की पंचायत हुई और बादलपुर में रहने वाले गुर्जर समाज के लोगों का हुक्का-पानी बंद कर दिया गया था। बादलपुर के गुर्जरों का लगभग 2-3 साल तक आसपास के गांवों में रहने वालों के साथ मेल-जोल पूरी तरह बंद रहा। लेकिन ‘बाबा मच्छा’ के प्रयासों से बादलपुर के गुर्जरों को पुन: बिरादरी में शामिल किया गया था।
‘बाबा मच्छा’ हर समय सबकी मदद के लिए तत्पर रहते थे। यह गांव मुख्य मार्ग (जी.टी. रोड) के किनारे बसा हुआ है जिसके चलते कोई भी राहगीर, बारात या अंजान आदमी गांव के सामने से गुजरता तो ‘बाबा मच्छा’ उसे बड़े प्यार से अपने पास बिठाकर उसे पानी, खाना आदि खिलाते थे। बाबा मच्छा के बारे में एक किस्सा और भी मशहूर है। एक बार हरियाणा से धूम गांव में ठाकुर बिरादरी के घर बारात आई थी। लेकिन शादी के दिन कुछ विवाद होने के कारण लडक़ी के घरवालों ने फेरे डलवाने से मना कर दिया। तब बाबा मच्छा ने 3 दिनों तक बारात को अपने घर पर रूकवाया। उनके खाने-पीने की व्यवस्था की।
बाद में पंचायत हुई और लडक़ा फेरे डालने के बाद अपनी दुल्हन लेकर हरियाणा के लिए रवाना हुआ। ‘बाबा मच्छा’के कुछ ऐसे ही सामाजिक सरोकारों व परोपकारी कार्यों के कारण गांव डेरी को ‘डेरी मच्छा’ के नाम से पुकारा जाने लगा। एक किस्सा यह भी है कि एक बार चार राहगीर उनके घर आए उस समय बाबा मच्छा के पास उन्हें खिलाने के लिए कुछ नहीं था। तभी उनकी पत्नी ने चुपके से घर में रखी टोकनी (पानी रखने का बड़ा बर्तन) को बाजार में जाकर गिरवी रखा और उन पैसों से चारों राहगीरों को खाना खिलाया। लेकिन एक राहगीर ने बाबा मच्छा की पत्नी को टोकनी गिरवी रखते हुए देख लिया था, सुबह होते ही उन राहगीरों ने बाबा मच्छा की दरियादिली की खूब तारीफ की तथा अपने पास से पैसे देकर गिरवी रखी गई उनकी टोकनी भी छुड़वाई। ऐसे थे बाबा मच्छा, जिनके नाम पर दादरी क्षेत्र का गांव डेरी मच्छा आज सब जगह प्रसिद्ध है।
आज गांव की आबादी लगभग 5 हजार के आस-पास है। गांव में गुर्जर व जाटव समाज के लोग आपसी भाई चारे व शांतिप्रिय माहौल में रहते हैं। गुर्जर समाज को अपने ‘बाबा मच्छा’ पर गर्व है जिनके परोपकारी गुणों का असर आज भी गांव के लोगों में देखने को मिलता है।
शायद बाबा मच्छा की कहानियां व किस्से सुनकर ही प्रसिद्ध शायर मासूम गाजियाबादी ने यह शेर लिखा होगा-
“तुम्हारी शख्सियत से ये सबक लेंगी नई नस्लें,
वही मंजिल पे पहुंचा है जो अपने पांव चलता है।
डुबो देता है कोई नाम तक भी खानदानों के,
किसी के नाम से मशहूर होकर गांव चलता है॥”
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