Saturday, 27 July 2024

महापुरुषों को जातियों में बांट कर आपसी वैमनस्यता उचित नहीं

कर्मवीर नागर प्रमुख आजकल की राजनीति के बिगड़ते स्वरूप में महापुरुषों और देश की महान विभूतियों को संप्रदायों और जातियों…

महापुरुषों को जातियों में बांट कर आपसी वैमनस्यता उचित नहीं

कर्मवीर नागर प्रमुख
आजकल की राजनीति के बिगड़ते स्वरूप में महापुरुषों और देश की महान विभूतियों को संप्रदायों और जातियों में बांटने का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है। कभी महात्मा गांधी को जातिगत आधार पर देखा जाता है तो कभी सरदार वल्लभभाई पटेल को जातियता की सीमाओं में बांधा जाता है। यहां तक कि आजकल बड़े-बड़े ऋषियों और महा मुनियों के नाम पर भी जातीयता की ओछी राजनीति का प्रचलन शुरू हो गया है।

ऐसी ही राजनीति दादरी डिग्री कॉलेज में सम्राट मिहिर भोज की मूर्ति के अनावरण को लेकर प्रारंभ हो गई है। कुछ संगठनों ने सम्राट मिहिर भोज गुर्जर डिग्री कॉलेज में गुर्जर समाज के निमन्त्रण पर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा 22 सितंबर 2020 को सम्राट मिहिर भोज की मूर्ति के अनावरण पर इसलिए नाराजगी व्यक्त करते हुए विरोध जताया जा रहा है कि सम्राट मिहिर भोज राजपूत वंशज थे। हालांकि इसकी वजह जो भी हो, लेकिन कहीं न कहीं यह मुद्दा किसी राजनीति से प्रेरित नजर आ रहा है। यह दूसरा विषय है कि इससे लाभ किसको होगा और नुकसान किसे? फिलहाल तो यह प्रकरण उन दोनों जातियों के आपसी सौहार्द में दूरी बढ़ाता नजर आ रहा है जिनमें सदैव तालमेल रहा है।

इस विषय में मेरी निजी राय यह है कि अगर हम संप्रदाय और जातियों के आधार पर इसी तरह बंटते चले गए तो वह दिन दूर नहीं जब अखंड भारत एक बार फिर से खंड-खंड नजर आएगा। महापुरुष और देश की महान विभूतियों को जातिगत सीमाओं में बांधना उनके सम्मान और प्रतिष्ठा को कम करना है। जहां तक सम्राट मिहिर भोज का सवाल है कि सम्राट मिहिर भोज गुर्जर वंशज थे या क्षत्रिय वंशज थे। यह तो इतिहास विद्वेताओं का विषय है। लेकिन सरसरी तौर पर इस संबंध में यही कहा जा सकता है कि  गुर्जर और राजपूत दोनों ही क्षत्रिय कौम हैं। इसलिए मिहिर भोज सम्राट जैसे महापुरुष पर दो बहादुर कौमों में किसी राजनीतिक स्वार्थवश आपसी मतभेद, वैमनस्यता और विचार भिन्नता कतई उचित नहीं है। अगर राजपूत जाति के लोग सम्राट मिहिर भोज को अपना मानते हैं और गुर्जर जाति के लोग भी उन्हें सम्मान दे रहे हैं तो इसमें विरोध करने जैसा कोई विषय नहीं है। इसी तरह अगर राजपूत जाति के लोग सम्राट मिहिर भोज को अपना वंशज मानकर सम्मान देते हैं तो गुर्जरों को भी इसमें कोई विरोध नहीं होना चाहिए। मेरी निजी राय में सम्राट मिहिर भोज जैसे महापुरुष के नाम पर आपसी तनाव और आपसी बिखराव समझदारी का परिचायक नहीं है। महापुरुषों को जाति व संप्रदाय के नाम पर बांटने की परंपरा पर रोक लगनी चाहिए। ताकि हमारे महापुरुष और हमारे देश की महान विभूतियां सभी जातियों और संप्रदायों में प्रेरणा स्रोत बनी रहे।

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