Wednesday, 18 December 2024

Noida News : कश्मीर की वादियों में नहीं बल्कि यहाँ कमरे में उगता है केसर…

Noida News :  केसर का नाम सुनते ही सबसे पहले किसी भी इंसान के दिमाग़ में कश्मीर की वादियों के…

Noida News : कश्मीर की वादियों में नहीं बल्कि यहाँ कमरे में उगता है केसर…

Noida News :  केसर का नाम सुनते ही सबसे पहले किसी भी इंसान के दिमाग़ में कश्मीर की वादियों के नजारे और ठंडा वातावरण घूमने लगता है लेकिन Noida के एक इंजीनियर रमेश गेरा ने इस सोच को पूरी तरह बदल कर रख दिया है। उन्होंने नोएडा जैसे शहर में एक कमरे के अंदर ऐसा वातावरण बनाया है जो पूरी तरह से केसर की खेती के लिए अनुकूल है। रमेश मूलतः हिसार के रहने वाले हैं और उनकी रुचि आर्गेनिक और हाइड्रोफॉनिक खेती को करने में थी। वे तमाम तरह की सब्जियाँ और फल उगाने के बाद अब वे एडवांस फार्मिंग के जरिये केसर की खेती शुरू कर चुके हैं और अन्य किसानों को भी इसके बारे में जानकारी दे रहे हैं।

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64 वर्ष के रमेश गेरा ने Noida के सैक्टर 63 में ही एक दस बाई दस के कमरे में कश्मीर से केसर के बीज मंगा कर पहले छोटे स्तर पर इसकी उपज की लेकिन आज वे अपने अनुभव और एडवांस फार्मिंग की मदद से लाखों रुपये कमा रहे हैं। इसके लिए उन्होंने वर्ष 2006 में साउथ कोरिया से एडवांस फार्मिंग के जरिये केसर की खेती करना सीखा और फिर वर्ष 2017 में अपनी नौकरी से रिटायरमेंट लेने के बाद वे केसर उत्पादन में लग गए।

शुरुआत में नहीं बनी बात

हालांकि आज रमेश गेरा जिस जगह पर पहुंचे हैं वहाँ तक जाने का सफर आसान बिल्कुल भी नहीं था क्योंकि ज़ब रिटायर होने के बाद उन्होंने साउथ कोरिया से सीखी हुई एडवांस फार्मिंग की शिक्षा को यहाँ Noida में केसर उगाने में प्रयोग किया तब उन्हें कोई लाभ नहीं मिला। केसर की खेती के बारे में और ज्यादा जानकारी के लिए वे कश्मीर गए। यहाँ से वे अपने साथ केसर के कुछ बीज और मिट्टी लेकर आये और अपने एडवांस फार्मिंग के स्थान पर इसका प्रयोग किया। इसके बाद रमेश गेरा को उनकी इच्छा के अनुसार परिणाम मिलने शुरू हो गए। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि आज एक किलो केसर का उत्पादन करके रमेश गेरा करीब तीन से चार लाख रुपये अर्जित करते हैं।

दूसरों को सिखाने की भी है ललक

आज रमेश गेरा अपने क्षेत्र में कई किसानों के बीच फेमस हो चुके हैं और इसकी वजह है कि वे कई अन्य किसानों को आर्गेनिक और हाइड्रोफॉनिक खेती के बारे में सीखा रहे हैं और कई तरह के फल और सब्जियां उगाने में उनकी मदद कर रहे हैं।

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