अंजना भागी
Twin Tower Noida : 28 अगस्त दोपहर लगभग 2.31 मिनट पर हमारा देश हिंदुस्तान भी बनी बनाई इमारतों को ढहाने की रेस में शुमार हो गया। वाह वाह जितनी भी तारीफ की जाये कम है। गजब की इंप्लोजन तकनीक। लगभग सम्पूर्ण विश्व ने वीडियोज में या अपने घर बैठे टीवी की स्क्रीन्स पर देखा, अपने मित्रों को फोन कर कर के बधाई दीं, अवसर ही ऐसा था। भ्रष्टाचार की इमारत ढहाई गई थी आखिरकार। लगभग एक साल पहले से इंप्लोजन तकनीक को कारगर करने के लिए 32 मंजिले ट्विन टावर्स की दीवारों में ड्रिल मशीन से छेद किए जा रहे थे। ड्रिल मशीन जब छेद करती है तो कितनी बारीक सीमेंट की धूल तेजी से बाहर निकलती है, ये तो उसके बराबर की बिल्डिंग्स में रहने वालों के दिल से ही पूछिये। जो यदि ताजी हवा खाने को भी घर से बाहर निकालना चाहते थे तो गाड़ी से थोड़ी दूर जाकर ही खुली सांस लेते थे। घर के दरवाजे, खिड़कियां, पर्दे सब बंद, छोटे बच्चे जो साइकिल चलाना सीखना चाहते थे, एक साल पीछे रह गये। नौसिखिए भी पानी पी पीकर यह काम कब पूरा होगा, उस दिन को कोसते थे।
चलो ढह ही गया। मलबा निस्तारण की प्रक्रिया एक हफ्ते बाद शुरू होनी थी। जब सब दरवाजे बंद हो जाते हैं, तब प्रभु का ही एक आसरा रह जाता है। सांस के रोगी दिन तो काट लेते हैं, क्योंकि धूप में पेड़ ऑक्सीजन बनाते हैं पर रात तो सांस के रोगी खासकर सीनियर सिटीजन्स बैठ बैठकर ही काटते हैं। बच्चों के पास उनका एक ही हथियार रो रोकर और रोना यह तो उनके मां-बाप का दिल ही जानता है। डॉ. नेबूलाइजर लगा सांस दिलवाते हैं, बल्कि मां-बाप को भी सीखा देते हैं। बच्चे के दिल पर क्या बीतती है, शायद इसीलिए ऊपरवाला मेहरबान हुआ, जमकर जल बरसाया, धूल मलबा बैठा। घरों की खिड़कियां खुली ऐसी कि बासी हवा के अलावा ताजी हवा ने भी रास्ता पाया। यानि जिसका कोई नहीं, उसका तो खुदा है यारों। वैसे भी इन टावर्स को बनाने या ढहाने के भ्रष्टाचार में इनका कोई दोष है क्या? हे प्रभु! आप ऐसे ही मेहरबान रहना। रिशतेदारों ने तो देखना शुरू कर ही दिया है, आखिर कब जाओगे? होटेल्स के बिल बजट बिगाड़ रहे हैं। प्रभु यदि आप ही समय समय पर जल बरसाते रहे तो होगा समस्या का समाधान, अब इससे ज्यादा क्या कहूं।