Delhi Air Pollution : हर साल सर्दी की शुरुआत से पहले दिल्ली नोएडा एनसीआर में बढ़ता प्रदूषण सभी के लियें मुसीबत का सबब बन जाता हैं । जिसकी वजह से लोगों का बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है । दिल्ली नोएडा में प्रदूषण के बहुत से कारण है, लेकिन उनमे से एक कारण खेतों में जलने वाले कृषि अवशेष/पराली/स्ट्रॉ बर्निंग भी है। नोएडा एनसीआर में इससे ज्यादा परेशानी श्वास सम्बंधित मरीजों को होती है, उसमे भी बच्चो एवम बुजुर्गो को सबसे अधिक परेशानी होती हैं।
क्या होती हैं पराली:
पराली फसल का वो हिस्सा है जो धान काटते समय जड़ से नही काटा जाता है, बल्कि ऊपर का कुछ हिस्सा छोड़ दिया जाता है। अब नई फसल के लिए खाली खेत चाहिए। तो छूटे हुए हिस्से को जलाने के लिए आग लगा दी जाती है ताकि खेत तुरंत रबी की फसल के लिए तैयार हो सकें।
ये कम मेहनत और कम बजट मे खेतों को साफ करने का तरीका है । इससे जो धुआं उठता है वो आसपास के इलाकों तक पहुंच जाता है और लंबे समय तक हवा में टिका रहता है। दिल्ली-एनसीआर के साथ भी यही हो रहा है।
वैज्ञानिकों के अनुसार प्रदूषण:
वैज्ञानिकों के अनुसार एक टन कृषि अवशेष जलाने से 2 Kg-सल्फर डाईऑक्साइड ,3Kg-कणिका तत्व,60Kg – कार्बनमोनोक्साइड ,1460Kg कार्बनडाइऑक्साइड गैस निकलती हैं जो एक बड़े पैमाने पर प्रदूषण फैलाती है ।
मशीनीकरण ने उत्पाद के साथ मुश्किलें भी बढ़ायी:
मशीनीकरण ने जहां खेतों का उत्पाद बढ़ाया है वही कुछ मुश्किलें भी खड़ी की है । आजकल खेती में मशीनों का चलन बढ़ रहा था और लोग हाथों से फसल कटाई की बजाय मशीनों के उपयोग की तरफ तेजी से बढ़ रहे थे और इससे पराली खेत में ज्यादा मात्रा में बचने लगी जिन्हें साफ़ करने के लिए जलाना सबसे आसान रास्ता माना गया है।वर्ष दिसंबर 2015 मे नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने भी पर्यावरण हित और किसानों के हित में उक्त चारों राज्यों में पराली जलाने पर रोक लगा दी थी और सरकार को आदेश दिया गया था कि किसानों को मशीनों पर सब्सिडी दी जाए, उन्हें जागरूक किया जाये, जिससे वह पराली को जलाने के बजाए उचित निस्तारण कर सकें। इसके साथ ही NGT का आदेश था की जो भी किसान पराली जलाते पाएं जायें उं पर फाइन लगाया जायें । लेकिन इस आदेश का पालन ठीक से ना हो पाने के कारण पराली लगातार जलाई जा रही है और हर साल प्रदूषण बढ़ रहा है ।
किसानों कर साथ मिल कर ठोस नीति बनाएं:
यदि पराली को खेत मे ही छोड़ दिया जाता है तो उसे गलने में काफ़ी समय लगेगा और उससे दूसरी फ़सल में समस्या आएगी हालांकि इस पराली को बायो कम्पोस्ट के माध्यम से खाद बनाकर खेत मे डाला जाए तो यह खेती के लिए अमृत है इससे अगली फसल बिना बजारू पेस्टिसाइड और खाद अच्छी हो सकती है। लेकिन कई किसान जानकारी के अभाव में अगली फ़सल के उद्देश्य से इसे जला कर ख़त्म करना पसंद करते हैं। दो मौसमों के बीच कम अंतराल के कारण पराली जलाना पसंदीदा तरीका है। इससे रात भर में जमीन साफ हो जाती है। अन्य तरीकों के लिए कम से कम 20 से 30 दिनों की आवश्यकता होती है। इससे रबी सीजन के लिए बुआई प्रक्रिया में देरी होती है। ऐसे मे सरकार को फाइन के साथ पराली के निस्तारण के लिए किसानों से सलाह लेकर एक ठोस निति बनाई जाए।
साल 2021 मे पराली जलाने की सबसे ज्यादा समस्या:Delhi Air Pollution
साल 2021 मे पराली जलाने की समस्या सबसे ज्यादा हरियाणा और पंजाब से आयी थी। लेकिन वहा के कलक्टर विक्रम यादव ने इस समस्या को बहुत हद तक अपने काबू मे कर लिया। उनहोंने ने पराली के अन्य वैकल्पिक उपयोग खोजें और किसानों को पराली ना जलाने के लियें जागरुक किया ।
कौन हैं विक्रम यादव:![](https://chetnamanch.com/wp-content/uploads/2023/11/ias-e1700027477698.jpg)
साल 2021 मे विक्रम यादव की अंबाला में जिला कलेक्टर के तौर पर तैनाती हुई । उन्होनें कुछ ही महीनों के भीतर उन्होंने सैकड़ों एकड़ भूमि पर पराली जलाने से रोकने के लिए सरकारी मशीनरी लगा दी। उन्होंने अत्यधिक बल के उपयोग के बिना इसे हासिल किया। साल 2020 की रिपोर्ट की तुलना मे पराली जलाने की घटनाओं मे 80 प्रतिशत की कमी आयी। पराली जलाने से होने वाले नुक्सान और खतरों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए स्कूल और कॉलेज के छात्रों द्वारा किसान कार्यक्रम और रैलियाँ आयोजित की गईं। इसके अलावा स्थानीय लोगों को एक प्रभावी संदेश भेजने के लिए ईंधन स्टेशनों, दीवारों और होर्डिंग्स जैसे सार्वजनिक स्थानों का भी इस्तेमाल किया गया।
पराली के लियें रिवर्सिबल हल:
उनका कहना है कि कृषि अपशिष्ट को कम करने के लिए सरकारी सब्सिडी के साथ स्मार्ट सीडर मशीनें, श्रेडर और अन्य उपकरण पेश किए। अन्य तकनीकी समाधान जैसे कि एक रैक के साथ स्ट्रॉ बेलर, एक रोटरी स्लेशर, एक हाइड्रोलिक रिवर्सिबल हल और अन्य जो अवशेषों को उर्वरक में बदल देते हैं, किसानों के लिए पेश किए गए थे।उन्होनें किसानों को कस्टम हायरिंग सेंटर (सीएचसी) के बारें मे बताया जहा से किसानों को उपकरण किराए पर लेने या उन्हें सीधे खरीदने का विकल्प मिला। उनका ध्यान रेड जोन वाले खेतों मे आग के मामलें को शून्य तक कम करना था।
जागरुकता अभियान चलाए:
दिल्ली नोएडा मे पहले पराली जलाने की वजह से उपजे स्मोग से बुरा हाल हो जाता था । इस तरह जागरुकता अभियान महीनों तक चला और सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए। 15 सितंबर से 30 अक्टूबर, 2020 के बीच 702 मामले दर्ज किए गए। 2021 में इसी समय सीमा के लिए पंजीकृत मामलों की संख्या घटकर 146 हो गई।उनका कहना है कि इसके बाद आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं किया गया। लेकिन 41 किसानों को पराली या अपशिष्ट जलाने के लियें जुर्माना मिला। हालाँकि, विक्रम का लक्ष्य संख्याओं को शून्य पर लाना है। उनका कहना है कि आने वाले वर्षों में इस पहल की सफलता लगातार बनी रहेगी और यह अन्य किसानों के लिए पराली जलाने से रोकने के लिए एक मॉडल के रूप में काम करेगी।
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