हिन्दी दिवस पर महफिल ए बारादरी में बही गंगा: जमुनी रसधार
गाजियाबाद(चेतना मंच)। मीडिया 360 लट्रेरी फाउंडेशन की ओर से आयोजित महफ़िल ए बारादरी को संबोधित करते हुए वरिष्ठ कवि अशोक…
चेतना मंच | September 13, 2021 5:23 PM
गाजियाबाद(चेतना मंच)। मीडिया 360 लट्रेरी फाउंडेशन की ओर से आयोजित महफ़िल ए बारादरी को संबोधित करते हुए वरिष्ठ कवि अशोक मैत्रेय ने कहा कि कविता ऐसा संवाद है जो जीवन में छाए कुहासे और सन्नाटे को तोड़ती है। कविता रेशम की ऐसी डोर है जो मानव और प्रकृति को आत्मीय रिश्ते में बांधती है। आज के परिवेश में जब फूल खुशबू के बजाए अंगारे बांटते हों, गमलों में तुलसी की जगह नागफनी पनपती हो, ऐसे हालातों में केवल कविता है जो जीवन को बचा सकती है। निसंदेह यह कहा जा सकता है कि जिंदगी एक घबराया हुआ खरगोश बन गई है, कविता है जो उसे अपने आगोश में लेती है, आश्वस्त करती है, कहती है- मैं हूं ना।
नेहरू नगर स्थित सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में बतौर अध्यक्ष अपने वक्तव्य में श्री मैत्रेय ने कहा कि यह कविता ही है जो हमें पराजित और हतप्रभ नहीं होने देती। विश्व हिंदी दिवस के उपलक्ष में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि इस मंच पर बह रही गंगा जमुना की रसधार हमारे भाईचारे की मिसाल है। अपनी पंक्तियों पर वाहवाही लूटते हुए उन्होंने कहा एक खत हिंदी और उर्दू के नाम लिखता हूं, कर्जदार हूं दोनों का सरेआम लिखता हूं। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि शरफ़ नानपारवी ने अपने अशआर से महफिल लूट ली। उन्होंने फरमाया कहां और कोई इबारत लिखेंगे, मोहब्बत लिखा है मोहब्बत लिखेंगे। बारादरी की संस्थापक डॉ. माला कपूर गौहर ने कहा उसने जब पलकें झुकाई तो हुआ यह एहसास, शायद अब लफ्ज़ ए वफा जान लिया है उसने।
बंद दरवाजा किया देखकर उसने मुझको, फिर दरीचे से मगर झांक लिया उसने। उसने ख़त मेरा नहीं पढ़ा तसल्ली है मुझे, मुतमइन हूं मेरा खत पढ़ तो लिया उसने।
बारादरी की संरक्षिका उर्वशी अग्रवाल उर्वी ने कहा मैं शबरी हूं राम की चखती रहती बेर, तकती रहती रास्ता हुई कहां पर देख। कितना अचरज भरा शबरी का ये काम, बेरों पर लिखती रही दातों से वो राम। संस्था के अध्यक्ष गोविंद गुलशन ने फरमाया भूल जाता है बशर जिस्म का फानी होना, हमने देखा है मगर बर्फ का पानी होना। बहते बहते मैं भी पानी से अलग हो जाऊंगा, एक तिनका हूं रवानी से अलग हो जाऊंगा। लफ्ज हूं तरतीब से मिसरे में मुझको बांध लो, वर्ना में अपने मआनी से अलग हो जाऊंगा। मीडिया 360 लिट्रेरी फाउंडेशन नव दीफ सम्मान से सम्मानित सरिता जैन ने कहा पैंतरे जब हवा के चलते हैं, सब दीए लडख़ड़ा के जलते हैं। उनको भी आईने की आदत है, जो मुखौटा लगा के चलते हैं।
वरिष्ठ शायर सुरेंद्र सिंघल ने कहा यह उलजलूल बहस है कहीं न पहुंचेगी, जरा सी देर को खामोश होकर देखते हैं। किताब में रहेंगी तो तोड़ देंगी दम, मोहब्बत को जमीनों में बो कर देखते हैं। कवयित्री मनु लक्ष्मी मिश्रा ने कहा डर से किसी के भला हम लहजा बदल लें क्या, बिल्ली जो रास्ता काट दे तो हम रास्ता बदल दें क्या। शायरा तरुणा मिश्रा ने फरमाया इस तरह दिल में तेरी याद रखी जाती है, जिस तरह चुपके से इमदाद रखी जाती है। नेहा वैद ने कहा उंगलियों के पोर खुरदुरे हुए रुमाल पर, कितनी बार हाथ में सुई चुभी, एक फूल तब खिला रुमाल पर। रवि पाराशर ने शेर कुछ यूं पढ़े दोस्ती का गुमान टूटा है, सर पर एक आसमान टूटा है।
फूल अब भी हैं शाख पर लेकिन, फूल का इत्मीनान टूटा है। निधि सिंह पाखी ने कहा खमोशी पहन कर रहा दर्द दिल में, किस तौर गम को जताना नहीं था। विपिन जैन ने कहा भूख जब अपनी जरूरत से आगे बढ़ गई, हमने जहनी तौर पर ही कुछ पका ली रोटियां। कार्यक्रम का संचालन दीपाली जैन जय़िा ने किया। महफ़िल में मजबूर गाजियाबादी, कुलदीप बरतरिया, अंकुर तिवारी टेकचंद, कीर्ति रतन, आलोक यात्री, सुभाष अखिल, प्रताप सिंह, डॉ. ईश्वर सिंह तेवतिया, सुभाष चंदर, अर्चना शर्मा, रिंकल शर्मा, अनिमेष शर्मा, संजय जैन, राजीव कुमार सिंघल, सुभाष अखिल, तूलिका सेठ, बी. एल. बत्रा, नंदनी श्रीवास्तव, मंजू कौशिक, श्वेता त्यागी, श्रीबिलास सिंह, विजया अहसास आदि ने रचनापाठ किया।
इस अवसर पर प्रदीप आवल, रश्मि पाठक, दिनेश दत्त पाठक, सौरभ कुमार, ऋचा सूद, अंजलि, सुशील शर्मा, दीपा गर्ग, निखिल शर्मा, वागीश शर्मा, राकेश सेठ, डॉ. रजत रश्मि मित्तल, सर्वेश मित्तल सुरेश शर्मा अखिल, तिलक राज अरोड़ा, के. के. सिंघल, टी. पी. चौबे, डॉ. नवीन चंद्र लोहनी, अजय पाल नागर, विजेंद्र सिंह, अभिषेक कौशिक, पराग कौशिक, अशहर इब्राहिम, सहित बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी मौजूद थे।