Motivational Story: वो कहते हैं ना “अपने लिए जिये तो क्या जिये तू जी ए दिल जमाने के लिए” लेकिन ऐसे लोग कम ही होते हैं जो वाकई दूसरों के लिए जीते हैं, लेकिन अगर इस भागम भाग भरी जिंदगी में आपको ऐसा कोई जुनून वाला आदमी दिख जाए जो अपने जीवन में सुबह आंख खोलते ही गरीब, बीमार, असहाय बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए उनके साथ बैठ उन्हें बिस्किट खिलाए उन्हें गोद लेकर उनकी बीमारी में दवाइयां भी दे और यहां तक की घर पर राशन भी पहुंचाएं… ऐसे व्यक्ति को ढूंढ पाना मुश्किल होता है
ऐसा जुनून लोगों की नजर में सनक होता है लेकिन … वास्तव में हमें ऐसे जुनून वाले व्यक्ति से प्रेरणा लेनी चाहिए ।
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गाजियाबाद में एक कम उम्र का युवा भूपेंद्र सिंह रावत हजारों लोगों की प्रेरणा बन रहा है। वह दफ्तर आते जाते, त्यौहार में या फिर अपने परिवार से समय बचाकर, मजबूर और कमजोर बच्चों की मदद उन्हें ढूंढ ढूंढ कर करते हैं। जो पिछले 5 साल से बच्चों को ढूंढ ढूंढ कर उन्हें खिलाते हैं पिलाते हैं टीबी के बीमार बच्चों को गोद लेते हैं उन्हें दवाई देते हैं गिफ्ट देते हैं और उनके चेहरे पर छोटी सी मुस्कान के लिए पूरी कोशिश करते हैं.। इतना सब कुछ कर गुजरने का जुनून आखिर एक व्यक्ति में कैसे आया जो महंगाई के दौर में अपनी कमाई के लिए जद्दोजहद में लगा रहता है । एक तरफ महंगाई और सरपट भागती जिंदगी में हमें अपने बच्चों के लिए ही जूझने में सारी जिंदगी निकल जाती है लेकिन हमें सड़कों के किनारे कूड़े में ढूंढते चंद बिस्कुट और रोटी के टुकड़े वाले या फिर गरीबी में पल रहे वह बच्चे या स्वास्थ्य केंद्रों में दो रोटी के लिए या दवा के लिए जूझ रहे बच्चे शायद सबको दिखाई नहीं पड़ते।
झुग्गियों में ,सड़क किनारे ,कूड़े के आसपास ढूंढ ढूंढ कर गरीब बच्चों के चेहरे पर लाते है छोटी सी मुस्कान…
लेकिन गाजियाबाद के भूपेंद्र सिंह रावत का हर रोज का यही काम है दफ्तर से लौटते हुए या दफ्तर जाते हुए आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों की सेवा करना ही इनका मुख्य धर्म है। लोग पूजा करते हैं मंदिर जाते हैं लेकिन भूपेंद्र सिंह रावत की निगाहें हमेशा सड़कों के इर्द-गिर्द या अस्पतालों में या कहीं भी जाएं तो उन बच्चों पर रहती है जो असहाय से खड़े अपनी खुशियों के लिए कोई बड़ी-बड़ी कामना नहीं करते बस छोटी सी जरूरत की चीज से ही उनके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है या फिर कोई तसल्ली से उनका हाल-चाल पूछ ले तो उन्हें लगता है सारी दुनिया मिल गई।
ऐसे ही लोगों को ढूंढ ढूंढ कर मदद करने वाले भूपेंद्र सिंह रावत वसुंधरा सेक्टर 5 में रहते हैं
भूपेंद्र सिंह रावत ने अपना जन्मदिन कल कैसे मनाया इस बात पर उन्होंने कहा कि मैं केक काटकर अपना जन्मदिन बड़ी-बड़ी पार्टियों के साथ नहीं मनाता बस एक ही मंशा होती है कि मेरे जिंदगी का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा जो भी मैं अपने घर वालों से बचाता हूं वह उन गरीब बच्चों की सेवा में लगे और उनकी मदद में लगे जिनके बारे में कोई नहीं सोचता या उनका कोई नहीं है या फिर उनके पास पैसे की तंगी है। मेरी निगाहे उन्हें ही ढूंढती रहती हैं और मैंने कल अपना जन्मदिन उन बच्चों की साथ मैकडॉनल्ड में मनाया जो कभी बर्गर का नाम सपने में भी नहीं सोच सकते बल्कि अपने आसपास दो रोटी के लिए भी सूनी निगह से देखते रहते हैं। उन बच्चों के लिए मैकडॉनल्ड में जाना तो सपने में भी नही होता। भूपेंद्र कहते हैं कि जब मैं उनके साथ अपना समय बिताता हूं और उन्हें छोटी से छोटी चीज भी देता हूं तो उनके चेहरे पर वह खुशियां और मुस्कान होती है जो वास्तव में ऐसा लगता है जैसे उन्हें कोई बड़ा उपहार मिल गया हो।
मैकडॉनल्ड’ में उनके साथ मनाया जन्मदिन…
कल ऐसे ही बच्चों के साथ मैकडॉनल्ड में बर्गर खिलाकर बच्चों की पार्टी करके अपना जन्मदिन मनाया था। भूपेंद्र सिंह ने बताया आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के साथ मैं टीबी से ग्रसित बच्चों को पौष्टिक खाना मुहैया कराने के लिए भी मदद करता हूं इसके लिए मैं हर महीने एक दो बच्चे जरूर अडॉप्ट करता हूं और उनके घर दवाई भेजता हूं और उनके खाने के लिए भी कुछ भेजता हूं जो भी मेरी हैसियत में होता है।Motivational Story
कुछ लोग सनकी मानते हैं और कुछ लोग मुझसे लेते हैं प्रेरणा..
भूपेंद्र सिंह कहते हैं कि इन गरीब बच्चों को कुछ खिलाने पिलाने और उनके चेहरे पर मुस्कान देखने के लिए यह शुरुआत 5- 6 साल पहले की थी। मैं अपनी स्कूटी में दो-दो रुपए के बिस्किट रख लेता था जो भी असहाय बच्चा नज़र आता था उसी के हाथ में मैं सबसे पहले बिस्कुट रख देता था । फिर मुझे उनके बीच रहना उनके लिए कुछ करना अच्छा लगने लगा
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और ईश्वर की कृपा से जो शुरुआत मैंने 2 रुपए के बिस्कुट से की थी अब वह और लोगों की मदद से काफी हद तक आगे फैलती जा रही है। मेरे ऑफिस के साथी या कुछ और लोग भी जो मदद करना चाहते हैं वह भी कहते हैं कि हमारी तरफ से भी कुछ बच्चों को अडॉप्ट कर लीजिए। लेकिन मैंने कोई एनजीओ नहीं बनाई लोग कहते हैं NGO बनाकर कर लीजिए मदद ताकि यह प्रेरणा दूर तक जा सके, तो मुझे लगा कि जितने पैसे से एनजीओ रजिस्ट्रेशन करूंगा क्यों ना यह पैसे भी मैं बच्चों की मदद में ही लगा दूं और इसलिए मैंने कोई संस्था अभी तक रजिस्टर्ड नहीं कराई है।
हर कोई एक बच्चे की भी मदद कर दे तो हर गरीब के चेहरे पर होगी मुस्कान….
मुझे लगता है की हर कोई अपने आसपास ऐसे गरीब मजबूर बच्चों की मदद कर दे चाहे वह शिक्षा हो या दवाई या खानपान हो या कपड़ा, तो मुझे लगता है कि गरीब बच्चों की समस्या स्वत समाप्त हो जाएगी और इसके लिए हमें भारी भरकम योजनाओं और पैसों की भी जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि मानव के अंदर सेवा भावना से हम हर समस्या का समाधान कर सकते हैं।
कौन है भूपेंद्र सिंह रावत
भूपेंद्र सिंह रावत एक साधारण से परिवार से हैं और स्वयं आईटी कंपनी Crestech Software Systems Pvt. Ltd.में काम करने वाले एक कर्मचारी हैं जो सेक्टर 5 वसुंधरा में रहते हैं. गरीबों की मदद करना उनका पेशा नहीं बल्कि यह उनका व्यक्तिगत जुनून है। उनके पापा भी यह है सेवा किया करते थे । भूपेंद्र बताते हैं जब हम छोटे थे तो हमें अजीब लगता था कि पापा अपने चारों तरफ बच्चों को इकट्ठा करके क्यों हरदम कुछ बताते रहते हैं या खिलाते हैं लेकिन आज समझ में आता है कि हमें समाज के लिए कुछ करके ही जाना चाहिए। समाज को कुछ लौटना अवश्य चाहिए। खुद के लिए तो सब जीते हैं दूसरों के लिए भी जीना सीखना ही चाहिए…
भूपेंद्र के सफल जीवन और खुशी का मूल मंत्र है असहाय और कमजोर लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाने का प्रयास…
आर्थिक रूप से कमजोर बीमार असहाय जिन्हे सपने में भी छोटी-छोटी खुशियां नसीब नहीं हो पाती ऐसे लोगों के लिए हम हर रोज अपने जिंदगी से पूजा पाठ की तरह से एक छोटा सा अंश निकालकर उनको दे दे और उनके चेहरे पर मुस्कान लाने का प्रयास करें तो निश्चित रूप से ईश्वर आपकी सफलता की द्वार खोलेंगे और वही होती है असली खुशियां जब हमारे प्रयास से दूसरे के चेहरे पर मुस्कान हो…Motivational Story
मीना कौशिक
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