Delhi Election : आप की सरकार पिछले 11 सालों से दिल्ली की सत्ता पर काबिज है जो केंद्र सरकार के आंख की किरकिरी बनी हुई है। केंद्र की सरकार किसी भी तरह से आप की सरकार को उखाड़ फेंकना चाहती है। दूसरी ओर आम आदमी पार्टी 2025 के विधानसभा चुनाव में फिर से अपनी वापसी के लिए बेताब नजर आ रही है। इस चुनाव में उसकी विपक्षी बीजेपी और कांग्रेस ने आक्रामक चुनाव प्रचार कर दिल्ली के चुनावी मुकाबले को रोचक बना दिया है। दिल्ली के बदले सियासी माहौल में आम आदमी पार्टी अपने ही दुर्ग में घिरी हुई नजर आ रही है। 2020 के चुनाव में जहां आम आदमी पार्टी बड़े मार्जिन के साथ ऐतिहासिक जीत दर्ज करने में कामयाब रही थी, कांग्रेस और बीजेपी के चक्रव्यूह के चलते अब उन्हीं सीटों पर केजरीवाल के सिपहसलारों की सांसें फूल रही हैं।
प्रमुख सीटों पर कांटे का मुकाबला
लोगों को दिल्ली में बदलाव चाहिए था और आप ने एक ऐसा ईमानदारी का बाना पेश किया जिससे लोग रीझ गए थे, तब आम आदमी पार्टी ने 2015 और 2020 के दिल्ली चुनाव में एकतरफा जीत दर्ज की थी। पांच साल पहले 2020 के विधानसभा चुनाव में आप ने इसे जारी रखते हुए दिल्ली की 70 में से 62 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की थी, जिसमें से पांच सीटें रिकॉर्ड मतों से जीती थीं। बड़े मार्जिन के साथ दिल्ली की जिन सीटों को आम आदमी पार्टी ने फतह कर मजबूत गढ़ में तब्दील किया था, इस बार के चुनाव में वो दरकता हुआ नजर रहा है। बीजेपी और कांग्रेस ने इन सीटों पर ऐसा सियासी तानाबाना बुना है, जिसमें आम आदमी पार्टी पूरी तरह से उलझी हुई है। ऐसे में पांच तारीख को होने वाले मतदान में पता चल जाएगा कि वह सीट आप कायम रख पाएगी या नहीं।
आप का मजबूत दुर्ग भी दरक रहा
इस चुनाव में कुछ प्रमुख सीटों जिन पर आप का कब्जा पिछले दो चुनावों से था उसपर संशय के बादल नजर आ रहे हैं। इस चुनाव में साफ दिख रहा है कि दिल्ली के पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को जिन सीटों पर रिकॉर्ड मतों से जीत मिली थी, उसमें बुराड़ी सीट पहले स्थान पर रही थी। आम आदमी पार्टी ने करीब 90 हजार वोटों से यहां जीत दर्ज की थी। इसके बाद मुस्लिम बहुल ओखला विधानसभा सीट लंबी मार्जिन से जीत दर्ज करने वाली सीट बनी थी। इसके अलावा आम आदमी पार्टी की मजबूत माने जाने वाली सीटों में सीमापुरी, मटिया महल और सुल्तानपुर माजरा सीट शामिल है, जहां पर उसे करीब 50 हजार वोटों के अंतर से जीत मिली थी। इस बार वहां भाजपा और कांग्रेस के आक्रामक प्रचार के कारण स्थितियां बदल गई हैं और आप का यहां से जीतना काफी मुश्किल नजर आ रहा है।
कैसे बदले बुराड़ी के समीकरण
बुराड़ी विधानसभा सीट पर आम आदमी पार्टी के संजीव झा जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं। तीन बार से विधायक रहने और उतना काम न होने के चलते क्षेत्र में उनके खिलाफ नाराजगी भी दिख रही है। ऐसे में संजीव झा के लिए काफी चुनौती भरा चुनाव बन गया है। संजीव झा 2015 चुनाव में 67950 वोटों और 2020 में 88158 वोटों से जीतकर विधायक बने थे। आप को इस सीट पर कुल 139598 वोट मिले थे, जबकि जेडीयू को 51440 वोट मिले थे। दिल्ली में सबसे ज्यादा वोट से जीत दर्ज करने वाली सीट 2020 में बनी थी। संजीव झा चौथी बार चुनाव मैदान में उतरे हैं तो जेडीयू से फिर शैलेंद्र कुमार हंै, लेकिन कांग्रेस ने इस बार प्रत्याशी बदला है और मंगेश त्यागी को उतारा गया है। मंगेश त्यागी कांग्रेस के कार्यकर्ता हैं और रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं। इस सीट पर पूर्वांचली खासकर बिहारी मतदाता बड़ी संख्या में हैं। संजीव झा अपनी पार्टी के पूर्वांचली चेहरा हैं, लेकिन कांग्रेस और जेडीयू के सियासी चक्रव्यूह के चलते इस बार उनकी राह काफी मुश्किल भरी लग रही है। अगर जनता ने अपनी नाराजगी बरकरार रखी तो इस बार आप के हाथ से यह सीट निकलती हुई नजर आ रही है। Delhi Election
इस बार अमानतुल्लाह की राह आसान नहीं
दिल्ली में 2020 के विधानसभा चुनाव में बड़ी मार्जिन से जीतने वाली दूसरी सीट ओखला बना थी। पिछले दो चुनाव से आम आदमी पार्टी यह सीट हाई मार्जिन से जीतती रही है। 2020 में आप को कुल 130367 वोट मिले थे और बीजेपी के ब्रह्म सिंह को 58540 मत मिले थे। इस तरह अमानतुल्लाह खान ने बड़े अंतर से जीती थी, लेकिन इस बार के समीकरण बदल गए हैं। इस बार मुस्लिम बहुल ओखला सीट पर आप से अमानतुल्लाह खान, कांग्रेस से अरीबा खान, बीजेपी से मनीष चौधरी और शिफाउर रहमान चुनाव लड़ रहे हैं। बीजेपी और बसपा को छोड़कर सभी दलों से मुस्लिम कैंडिडेट चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन शिफाउर रहमान के चलते ओखला का चुनाव बदल गया है। 2020 में रिकॉर्ड वोटों से जीतने वाले अमानतुल्लाह की मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। मुस्लिम वोटर आप से छिटकता हुआ नजर आ रहा है, जिसके लिए आप को जीत की हैट्रिक लगाना आसान नहीं है। Delhi Election
मुस्लिम बहुल मटिया महल सीट फंसी
दिल्ली में बड़ी मार्जिन से जीत दर्ज करने वाली सीटों में मटिया महल सीट भी रही है। आम आदमी पार्टी के शोएब इकबाल ने 50 हजार से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की थी। आप से ज्यादा शोएब इकबाल का गढ़ मटिया महल को माना जाता है। शोएब इकबाल छह बार इस सीट से विधायक रहे हैं और सिर्फ एक बार उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा है। 2020 में शोएब इकबाल को 67282 वोट और बीजेपी के रविंद्र गुप्ता को 17041 वोट मिले थे। लेकिन इस बार के सियासी हालात बदले हुए हैं। मटिया महल सीट पर इस बार शोइब इकबाल खुद चुनाव लड़ने के बजाय अपने बेटे आले मोहम्मद इकबाल को प्रत्याशी बनाया है। बीजेपी ने भी अपना प्रत्याशी बदल दिया है और दीप्ति इंदौरा को उतारा है। कांग्रेस ने 2015 में आप से विधायक रहे आसिम मोहम्मद खान को प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से मुस्लिम कैंडिडेट आमने-सामने हैं तो बीजेपी से दलित प्रत्याशी दीप्ति इंदौरा हैं, जिसके चलते मटिया महल सीट आम आदमी पार्टी के लिए फंसी हुई नजर आ रही है। कांग्रेस की मजबूती आम आदमी पार्टी के लिए चिंता का सबब बन गई है। Delhi Election
दलित आरक्षित सीट पर भी हालात ठीक नहीं
दिल्ली में 12 दलित आरक्षित सीटें हैं, जिसमें सीमापुरी और सुल्तानपुर माजरा सीट पर आम आदमी पार्टी रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज करने में सफल रही है। राजेंद्र पाल 2015 और 2020 में आप से लगातार दो बार विधायक रहे हैं, लेकिन अब वो कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। इसके अलावा सुल्तानपुर माजरा सीट भी आम आदमी पार्टी की मजबूत सीटों में रही है। यहां से जीते आप के मुकेश कुमार अहलावत दिल्ली सरकार में मंत्री रहे हैं। दिल्ली के बदले हुए सियासी माहौल में सीमापुरी और सुल्तानपुर माजरा सीट के समीकरण बदल गए हैं। जहां सीमापुरी से विधायक रहे राजेंद्र गौतम कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। वहीं इस बार सीमापुरी से आम आदमी पार्टी से पर्ू्व विधायक वीर सिंह धिंगान, बीजेपी से रिंकू और कांग्रेस से राजेश लिलोठिया चुनाव लड़ रहे हैं, तीनों ही मजबूत प्रत्याशी के उतरने से मामला फंसा हुआ है। Delhi Election
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