Delhi Assembly Election 2025 : दिल्ली भारत की राजधानी है। दिल्ली में इन दिनों विधानसभा के चुनाव चल रहे हैं। पूरे देश की नजर दिल्ली विधानसभा के चुनाव पर लगी हुई हैं। दिल्ली विधानसभा के दौरान बहुत सारे नागरिक दिल्ली विधानसभा का इतिहास भी जानना चाहते हैं। दिल्ली विधानसभा का इतिहास बहुत ही रोचक है, हम यहां अपने शब्दों में दिल्ली विधानसभा का रोचक इतिहास आपको बता रहे हैं।
दिल्ली को विधानसभा मिलने की कहानी
भारत की राजधानी दिल्ली अपने ऐतिहासिक और राजनितिक महत्त्व के लिए जानी जाती है, लेकिन दिल्ली को अपनी विधानसभा और मुख्यमंत्री मिलने की कहानी एक लम्बी और दिलचस्प रही है। इस यात्रा की शुरुआत 1952 से हुई और 1993 में जाकर खत्म हुई, जब दिल्ली को एक निर्वाचित विधानसभा का दर्जा और मुख्यमंत्री मिला। दिल्ली को अपनी विधानसभा का पहला अवसर 1952 में मिला, जब इसे पार्ट सी राज्य के रूप में राज्य सरकार अधिनियम 1951 के तहत विधानसभा दी गई। उस समय दिल्ली विधानसभा में 48 सदस्य थे और एक मंत्री परिषद भी बनाई गई थी, जो मुख्य आयुक्त को उनके कार्यो में सहायता और सलाह देती थी। इस व्यवस्था के तहत विधानसभा को कानून बनाने की शक्ति भी मिली थी। लेकिन यह व्यवस्था लम्बे समय तक नहीं चल सकीं। 1956 में राज्य पूर्ण गठन आयोग की सिफारिशों के बाद दिल्ली का पार्ट सी राज्य का दर्जा खत्म कर दिया गया और इसे एक केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया।
इसके साथ ही दिल्ली की विधानसभा और मंत्रिपरिषद को भी समाप्त कर दिया गया। इसके बाद दिल्ली का प्रशासन राष्ट्रपति के प्रत्यक्षस्व शासन के तहत होने लगा। इसके बावजूद दिल्ली के नागरिकों के बीच एक लोकतांत्रिक व्यवस्था और उत्तरदायी प्रशासन की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। इस मांग को देखते हुए 1966 में दिल्ली प्रशासन अधिनियम के तहत महानगर परिषद का गठन किया गया था। यह एक सदन वाली लोकतांत्रिक निकाय थी, जिसमें 56 निर्वाचित सदस्य होते थे और 5 राष्ट्रपति के द्वारा मनोनीत किए जाते थे। हालांकि यह व्यवस्था पूर्ण नहीं थी और दिल्ली विधानसभा के लिए संघर्ष जारी रहा।
ने 1987 में सरकारिया समिति का किया गठन
दिल्ली को अपनी विधानसभा देने की मांग को लेकर भारत सरकार ने 1987 में सरकारिया समिति का गठन किया, बाद में इस समिति को बालकृष्ण समिति के नाम से जाना गया। इस समिति ने 14 दिसंबर 1989 को अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसमें यह सिफारिश की गई की गई कि दिल्ली को केंद्रशासित प्रदेश बने रहना चाहिए, लेकिन इसे नागरिकों से जुड़े मामलों को हल करने के लिए एक विधानसभा दी जानी चाहिए। बालकृष्णन समिति की सिफारिशों के आधार पर 1991 में संसद ने संविधान (69 वां संशोधन ) अधिनियम पारित किया गया। इस संशोधन के तहत संविधान में नए अनुच्छेद 239 AA और 239 AB डाले गए, जो दिल्ली के लिए एक विधानसभा की व्यवस्था करते थे। हालांकि, विधानसभा को लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि से संबंधित मामलों में कानून बनाने का अधिकार नहीं था।
इसके बाद, 1992 में परिसीमन के बाद 1993 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव आयोजित किए गए। इन चुनावों के परिणामस्वरूप दिल्ली को एक निर्वाचित विधानसभा और एक मुख्यमंत्री मिला। दिल्ली की पहली विधानसभा का गठन हुआ और शहरी विकास मामले में नीतियों के निर्धारण में दिल्ली विधानसभा की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई।
क्या है दिल्ली की वर्तमान स्तिथि?
आज दिल्ली को एक विशेष दर्जा प्राप्त है, जहां केंद्रशासित प्रदेश होने के बावजूद विधानसभा और मुख्यमंत्री की व्यवस्था है। प्रदेश के पास लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि जैसे कई महत्वपूर्ण मामलों में अपने अधिकार नहीं है, इसके बावजूद दिल्ली की विधानसभा ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए है, और दिल्ली के नागरिकों को उनके स्थानीय मुद्दों पर भागीदारी प्राप्त हुई है। Delhi Assembly Election 2025
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