Wednesday, 18 December 2024

Article : अभी तो मैं जवान हूँ…

 त्याग दी हर कामना, निष्काम बनने के लिए, तीन पहरों तक तपा दिन, शाम बनने के लिए। घर, नगर, परिवार,…

Article : अभी तो मैं जवान हूँ…

 त्याग दी हर कामना, निष्काम बनने के लिए, तीन पहरों तक तपा दिन, शाम बनने के लिए।

घर, नगर, परिवार, ममता, प्रेम, अपनापन, दुलार, नहीं भूलती हाय पर, मुझ पर भी आई थी बहार।

Article : जिसने भी ये लाइनें लिखीं गजब ढाया। सभी का शौक होता है युवा दिखने (look young) का मुझे भी बहुत उमंग है कि चिर युवा बनी रहूँ। बहुत विचार करती हूं। कैसे संभव हो ये? इस पर मैंने बहुत सोच विचार किया औैर दिमाग दौड़ाया। भावनाओं का बुद्धि के साथ अच्छे से मंथन किया

। तब जो मेरी समझ में आया, मुझे लगता है कुछ तो सच है, सो आजमाना चाहिए। प्राय: देखा यह जाता है कि हम खुद को संवार तो युवाओं की तरह लेते हैं। बाल भी अच्छे काले रंग लेते हैं। लेकिन जब कुछ

छिछोरी हरकतें सीनियर की तरह करते हैं न। बस वहीं हमारी उम्र का थर्मामीटर खुल जाता है कि हम दिखावटी युवा हैं। अब ज्ञान अर्जित किया है तो सांझा करना भी बनता ही है। क्योंकि यह उम्र सिर्फ हम अपनी अक्ल से ही इंट्रेस्टिंग बना पाएंगे। बाद में तो फिर वही वृद्धावस्था और हमारा बैठ कर जमाने और युवाओं को कोसना होगा।

देखो न उम्र के साथ-साथ दिल करता है घर लेट कर आराम करें। टीवी (TV) देखें हाथ पैर पसार कर पड़े रहें। ऐसे में यदि कोई यार दोस्त बुलाए और हम ना जाऐ, तो दोस्त तो एक मिनट नहीं लगाते। फौरन लानत भेज देते हैं। अरे! तू तो बुड्ढा हो गया या तू तो बुढिय़ा हो गई। मैं तो होशियार हो गई हूँ। इधर चाहने वालों ने बुलाया और उधर में झट से तैयार हो वहां पहुंची। इधर मेरी सहेलियां वैसे तो आने को ही मना करेंगी, आएंगी तो बैठते ही कहेंगी.. थ…क गए ! मैं तो सजकर जाती हूं, मटक कर चलती हूं और मुस्कुराकर सीधे जाकर बैठ जाती हूं। क्योंकि मेरा दिल तो जानता ही है न कि थक तो मैं भी गई हूँ। पर तब मैं बुद्धि की ही अधिक सुनती हूँ कि अभी तो मैं जवान ….हूं  (I’m still young…) ।

Article :

युवा हों, या बच्चे मस्ती (Fun) तो करेंगे ही न। अब यदि हम चाहें की काश वे चुपचाप एक कोने में जाकर बैठे रहें। तो ये तो न होगा। अब हम बच्चों को कोसने लगें। तुम मानो, या न मानो। यह फूहड़ता तो पूरी तरह अपना बुढ़ापा दिखाने का ही एक नक्षत्र है की नहीं? मैं तो बहुत सावधान हो गई हूं। जहां बच्चे युवा मस्ती कर रहे हों। किसी ना किसी तरह उनमें जा शामिल हुये, ज्यादा नहीं तो थोड़ा बहुत ही सही। लेकिन आग लगे जमाने को न बाबा न कभी नहीं। मैंने प्राय: देखा है। कोई मस्त महफिल चल रही हो। युवा बच्चे उसमें हंसते खिलखिलाते हों। ऐसे में ही कोई सीनियर इंटरेक्ट करती हैं। बिना मांगे मशवरे देना शुरू कर देती हैं और स्वयं ही अपनी आयु का प्रदर्शन कर चली भी जाती हैं।

Article :

दिल तो मेरा भी बहुत कहता है कि कपड़ों की संख्या अब कुछ ज्यादा ही हो गई है। क्या नए-नए कपड़े बनवाना लेकिन एक बार मैंने भारत के 105 वर्ष के धावक फौजदार का इंटरव्यू सुना। पत्रकार से बात करते हुए वे बार-बार इसी बात पर लौट जाते थे। वह अगली दौड़ कहां दौडऩे जा रहे हैं? आप उनके घर में दाखिल हों। पूरी अलमारी ही जूतों से भरी पड़ी है। कम से कम नहीं तो 900 से 1000 जूतों के जोड़े तो होंगे ही। उसके बाद भी वे कह रहे थे कि अरे…? मैंने वह जूता नहीं खरीदा अच्छी ब्रांड का है, अच्छा है। अब ऐसे में यदि हम यह सोचने लगें कि अब क्या कपड़े बनवाने, बहुत हैं तो क्या मैं सीनियर सिटिजऩ नहीं लगूंगी? इसीलिए मैं तो अपना थर्मामीटर छुपाए ही रखना चाहती हूं। त्योहारों कार्यक्रमों के हिसाब से नये- नये ड्रेस जरूर ले-लेती हूं।

हम जब भी परिवार के साथ खाना खाने जाते हैं। सीनियर हैं तो चुप तो रहेंगे नहीं। बच्चे कुछ ऑर्डर करना चाहते हैं हम साथ ही उनको शिक्षा देना शुरू कर देते हैं। ऐसा इसमें क्या रखा है? मैं घर में बना दूंगी सस्ता पड़ेगा। यह लानती आदत तो सबसे बड़ी बुढ़ापे की निशानी है। यूं कह हम सब के दिल के कारखाने में बे स्वादापन भर देते हैं। मेरी तो ये ही सजेशन है। बिल्कुल भी ऐसा ना करें। जो सब आर्डर करें स्वाद से चटकारे लेकर आप भी खायें। यकीन मानो परिवार को भी नहीं पता चलेगा कि अब हम कितने बूढ़े हो गए हैं?
उम्र है, बढ़ती ही रहेगी। इसका मतलब यह तो नहीं कि हम अपने सर पर चिंताओं का टोकरा उठाये-उठाए ही जीएं। बहुत से लोगों की तो आदत ही होती है अधकचरी जानकारी सब में फैला, भ्रम फैलाना। मैं तो जिसकी चिंता है उसकी जानकारी सोच उसी के पास छोड़ आती हूँ। इसीलिए मैं खुशी से झूमती चलती हूं। चिंता लो और चेहरे पर लकीरें बढ़ाओ। बुढ़ापा तो मानसिकता है और हमारी मानसिकता तो हमारे ही हाथ में है। कोई न भी जाने पर अपना दिल (Heart) तो जनता ही है न?


पति के दोस्त भी जब अच्छे न लगें। या पत्नी की सहेलियां जब न सुहाएँ या अपने पति या पत्नी पर ही ज्यादा प्यार आने लगे तो समझ लें कि आप इन सिक्योर फील कर रहे हैं। यानि सुपर सिटिजऩ होने की तरफ जा रहे हैं। बुढ़ापे के द्वार पर प्रवेश शुरू कर ही चुके हैं। ऐसे में आखरी ताकीद। अपने अनुभव, ज्ञान और जीवन के कुछ विशेष नुस्खे बच्चों तथा युवाओं के साथ शेयर करें। पर पहले खुद के ज्ञान को उनके नजरिए तक ले जाएँ। आजमा कर देखें। आपकी आयु के भ्रम से कितने ही लोग तनाव का शिकार हो जाएँगे।

 

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