Article : माँ-बाप (Mother- Father) तो अपने बच्चों की परछाईं से भी प्यार (Love) करते हैं। फिर ये प्रश्न कैसा? बच्चों को सब कुछ देने के नाम पर
कहीं हम उनका बचपन बर्बाद तो नहीं कर रहे हैं। सच भी है मेड पैसे लेती हैं और बच्चे बड़े कर देती हैं। यानि पैसों के बदले में हमें बड़े हुए बच्चे मिल जाते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं की बच्चे भी फिर पैसों का ही महत्व अच्छी तरह से सीख जाते हैं। न कि वैल्यूस या रिश्ते। इसीलिए शायद बड़े होकर वे भी हमें पैसे ही लौटाने की कोशिश करते हैं। माता -पिता को बड़ी कोठी देकर, कीमती सामान इत्यादि देकर। फिर वहां अपनापन कहाँ ?
सुमन गुप्ता, हमारे घर के सामने के घर में ग्राउंड फ्लोर में एक नई किराएदार आई थीं। पति-पत्नी दोनों अच्छी कंपनी में कार्यरत थे। उनके दो बेटे छोटा प्ले स्कूल में, बड़ा तीसरी क्लास में। उनको घर पसंद था मकान मालिक को सुमन और उसकी फैमिली पसंद थी। लेकिन सुमन के पति को बाथरूम से थोड़ी दिक्कत थी। अच्छी पेमेंट वाले किराएदार तो शहर में भगवान सबको दे। मकान मालकिन ने कहा गुप्ता जी आपके पास दो बाथरूम हैं। आप एक यूज कीजिए दूसरा आप जैसा चाहे वैसे ही हम डिज़ाइन करवा देते हैं। अगले ही दिन एक मिस्त्री अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ काम करने आ गया। बेलदार महिला ने 2 साल की बेटी की उंगली पकड़ रखी थी चार -पाँच साल का बेटा पीछे पीछे चल रहा था। उसने आते ही अपने सामान का पोटला रखा। वे लगभग 8:30 बजे पहुंच गए थे। 9 बजे काम शुरू होना था । सुमन ने ऑफिस जाने से पहले बेलदार महिला का नाम पूछा? उसने अपना नाम रेखा बताया और बड़े प्यार से सुमन के दोनों बच्चों के सर पर हाथ फेरा। मुस्कुरा कर बोली बाबू आप भी ऑफिस जा रहे हैं?
सुमन का बड़ा बेटा खिलखिला कर हंस पड़ा। छोटे को ज्यादा समझ नहीं आया मुस्कुरा कर बोला बॉय-बॉय। यहीं से हुई शुरुआत मॉम की एक नई कैटेगरी की। रेखा वहीं आंगन के एक कोने में बैठ गई। उसने अपने थैले में से थोड़ी सब्जी और रोटी निकाली अपने बच्चों के आगे एक प्लेट में रख दी। वह खुद भी खाती और बच्चों के मुंह में भी देती जाती। 9.00 बजते ही रेखा अपने पति के साथ काम पर लग गई। बच्चे भी वहीं खेलने लगे। 12 बजे सुमन का छोटा बेटा प्ले स्कूल से आया। आते ही वह घर के अंदर जाने की बजाय रेखा के बच्चों में ही अटक गया। रेखा की बेटी उसकी पानी की बॉटल छेड़ रही थी। रेखा बहुत ही प्यार से मधुर स्वर में बोली आ गये बाबू बच्चा खिल उठा। मेड जो अंदर से ही चिल्ला रही थी। अब बाहर आकर हाथ पकड़ कर बेटे को अंदर ले गयी। पर कपड़े बदलते ही वो बाहर आकर उन दोनों बच्चों को अपनी मैड़म की बातें बताने लगा। रेखा तसला उठाती जाती और बच्चे की हर बात पर खूब हँसती। 1:30 बजे दूसरा बेटा भी आ गया। वह भी बस से उतरकर अंदर जाने की बजाय बाहर आंगन में बतियाते खेलते हुए बच्चों में ही शामिल हो गया।
दोपहर मेड ने पूछा बेटा आप क्या खाओगे। मम्मा आपके लिए मटर पनीर की सब्जी और रोटी बनाने को कह कर गई थी। मैंने टेबल पर खाना लगा दिया है अब आप भी खाना खाओ। बच्चे अभी टेबल पर बैठे ही थे कि आंगन में उन्हें शोर सा सुनाई दिया। रेखा का काम खत्म हो गया था। लंच टाइम था उसका पति, रेखा दोनों बच्चे भी भोजन कर रहे थे। थाली में रोटी, रोटी पर सब्जी, रेखा का पति अलग खा रहा था। लेकिन बच्चे और मां एक साथ खा रहे थे। मां रोटी को बीच-बीच में भींच-भींच कर छोटी बेटी के मुंह में भी डाल देती थी। पता ही नहीं क्या हुआ कि एक झटके में सुमन के दोनों बच्चों ने भी अपनी अपनी प्लेट उठाई और जाकर रेखा के बच्चों के साथ शामिल हो गए। बच्चे तो बच्चे ही होते हैं अब सुमन का छोटा बेटा भी रेखा के सामने मुंह खोलने लगा। पता ही नहीं चला कब वह भी चटपटी मिर्चों वाली सब्जी चटकारे ले -लेकर खाने लगा। मेड मुस्कुरा-मुस्कुरा कर रोकने लगी पर रोक नही पाई रेखा ने एक कौर बड़े बेटे के मुंह की ओर भी कर दिया तो उसने भी मुंह खोल दिया। रेखा ने सुमन के खाने को छुआ भी नहीं।
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आज लंच टाइम में रेखा ने अपने बच्चों को नहलाया। सुमन के बच्चे भी उनके साथ ही नहाना चाहते थे। रेखा से बालों में तेल लगवाना चाहते थे। रेखा ने मुसकुराते हुए मेड से तेल ले उन दोनों के सर पर भी प्यार से तेल मालिश कर दी। उसने कपड़े धोए उसका पति पेड़ के नीचे सोता रहा। पानी के पाइप से रेखा ने स्वयं भी नहा लिया। बाल गीले थे पर माथे पर बिंदी लगाई, मांग भरी। सुमन के बच्चे बहुत खुश हुए सुमन की मेड ने शाम को 4 बजे रेखा और मिस्त्री को चाय दी। दोनों ही बच्चों ने अपना खाना तो खाया ही नहीं था मेड बार-बार बच्चों को पकड़ कर भी लाई थी । मेड परेशान, बच्चों ने तो घर का खाना छुआ ही नहीं। मैडम गुस्सा होंगी और यदि यह पता चला कि सुमन के बच्चों ने रेखा का खाना खाया है तो मैडम क्या कर दें? इसलिए उसने रेखा से पूछा आपको चाय के साथ ही कुछ रोटियाँ भी दे दूँ क्या? रेखा ने भी हां में सिर हिला दिया साथ ही पूछा चाय कुछ बची हो तो वो भी दे दें । देखते ही देखते रेखा ने अपनी आधी चाय कटोरे में डाली। रोटियाँ तोड़- मरोड़ कर चाय में डालीं और चम्मच भर-भर बच्चों के मुंह में देनी शुरू कर दीं। तीनों छोटे बच्चे खुशी-खुशी खा गए फिर खूब खेले।
सुमन घर आई तो उसको अपने बच्चों का यूं मिस्त्री के बच्चों में घुलना-मिलना बिलकुल भी पसंद नहीं आया। उसके बच्चों का तो पूरा टाइम टेबल ही आउट था । फिर भी मुस्कुरा कर बड़े प्यार से उसने पैसे देकर मिस्त्री परिवार को विदा किया। रेखा ने जैसे ही घर से बाहर कदम रखा सुमन का छोटा बेटा रोने लगा अम्मा…। सुमन धक सी रह गई ये कौन सी अम्मा हो गई। रेखा भी जाते-जाते लौटी, बड़े प्यार से सुमन के छोटे बेटे के सर पर हाथ फेरा और बोली- बाबू हम कल फिर आएंगे! अगले दिन रविवार था सुमन और उसके पति को ऑफिस नहीं जाना था। बच्चों की भी छुट्टी थी। अत: सुमन देर तक सोती रही। वहाँ सारा कार्यक्रम ही सुबह से शुरू हो गया था बच्चों ने रेखा के साथ बैठकर नाश्ता किया। उसी के हाथों नहाए धोए सारा दिन उसके बच्चों के साथ खेले रेत – मिट्टी से। मेड बार-बार डांट खाती उन्हें उठा उठा कर, पकड़ पकड़ कर लाती लेकिन वह भाग भागकर वहीं चले जाते। सुमन के पति भी बुला बुला कर हार गये। बच्चे मस्त खेल रहे थे रेखा के आसपास। सुमन गुस्से से पागल गुप्ता जी भी बात मिलाते रहे। रेखा ने आंगन में पाइप में पानी चलाया बच्चों ने भी गा गा कर खूब नहाया। रेखा ओर बच्चों की हंसी से सारा घर गूंज उठा । लंच टाइम पर गुप्ता जी तो आपे से बाहर हो गये। मेड को अच्छी झाड मारी। तय हुआ आज मिस्त्री के जाने के बाद इनकी जम कर पिटाई होगी। फिर वे दोनों अपने अपने व्हाट्स ऐप के ग्रुप्स देखते हुए रिलैक्स करने लगे।
बेलदार रेखा का बड़ा बेटा आज जिद कर रहा था अम्मा कल हम सर्कस देखने जाएंगे? रेखा हर बार हंस के कहती। हां बाबू, हम चारों जाएंगे। रेखा का बेटा तो उतावला था ही रेखा की आतुरता भी देखते ही बनती थी। सुमन के दोनों बेटे भी देख रहे थे कई बार सुमन के पास भाग-भाग कर भी गये। हम भी सर्कस जाएंगे उसने दो तीन बार ओके भी कहा फिर झल्ला गई। सुमन रिलैक्स मूड में थी उसने शॉर्ट्स और टीशर्ट पहनी थी। सुमन का छोटा बेटा रेखा की ओर उंगली उठा बोला मॉम आप भी वैसे कपड़े पहनो ना? इतना सुनते हैं। सुमन के साथ साथ उसके पति भी चिल्लाकर बोले यह बच्चे तो कुछ पागल ही हो गए हैं।
मेड ने उन्हें चाय दी रेखा ने फिर कटोरे में चाय रोटी तैयार की। चारों बच्चे चाय रोटी खाने को अपने हाथों में चमच ले आए पर …सुमन तो पागल ही हो गई दोनों बच्चों को घसीटते हुए अंदर लाई। इतने महंगे खिलौने, बच्चों के वीडियो गेम, महंगे स्नैक्स सब बेकार सर पीट लिया गुप्ता दंपति ने। घसीट कर दोनों को अंदर ले गई एक एक चांटा रसीद किया और खुद भी रोने लगी। हम तुम्हारे लिए क्या नहीं कर रहे। अपनी जिंदगी हम भूल गए हैं। सब तुम्हारे लिए हैं तुम लोग क्या सीख रहे हो। लेकिन जो सुमन के बड़े बेटे के मुंह से निकला उसने सुमन और उसके पति दोनों को हतप्रभ कर दिया बहुत जोर से चिल्लाया हमें कुछ नहीं चाहिए हमें सिर्फ ऑफलाइन मां चाहिए।
बाहर वो काम करने वाली आंटी के जैसी जो साड़ी पहनें हमें नहीं अच्छी लगती आप निकर-शर्ट में। हमें ऐसी मां नहीं चाहिए जो हमारी बात भी ना सुने। नहीं चाहिए हमें वीडियो गेम, हमें वह मां चाहिए जो हमारे साथ खेले। नहीं चाहिए हमें आपके पिज़्ज़ा-बर्गर हमें आपके हाथ से बना हुआ कुछ भी खाने को चाहिए। नहीं चाहिए हमें ऐसी माँ जो बात-बात पर पापा को डांटे झगड़े। हमें हमारी बात सुनने वाले अम्मा-पापा चाहिए आंसुओं से भरे चेहरे से वह जोर से चिल्लाया आई वांट ऑफलाइन मॉम। नोट यू। ओन्ली ऑफ लाइन अम्मा। अपने छोटे से बच्चे की बातें सुनकर सुमन हैरान थी और सोच रही थी कि हमसे कहां गलती हो गई?
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