Dr. Bheemrao Ambedkar- आज ही के दिन 1956 में कुछ ऐसा हुआ था कि हर तरफ सनसनी मच गई थी। भारत के संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपने 3 लाख 65 हज़ार फॉलोवर्स के साथ अपना धर्म परिवर्तन कर लिया था। डॉ. अंबेडकर ने हिंदू धर्म का त्याग करते हुए बौद्ध धर्म को अपना लिया था। अंबेडकर का धर्म परिवर्तन हमेशा से तर्क- वितर्क का एक मुद्दा रहा है। उनके धर्म परिवर्तन के पीछे भी एक विशेष कारण था।
इसे हम ऐसे ही नहीं समझ सकते हैं। इसके लिए हमें इतिहास को थोड़ा खंगालना होगा। हमें अंबेडकर के 1935 के भाषण पर एक नज़र डालनी होगी। इस भाषण में उन्होंने नीच जाति को सोचने पर मजबूर कर दिया था। अस्पृश्यता को इसी भाषण से समझा जा सकता है। इस भाषण पर उस समय तो कोई कदम नहीं उठाए गए और ये महज भाषण ही रह गया, परन्तु 20 साल बाद उनका ये भाषण हकीकत में तब्दील हुआ। इस भाषण में उन्होंने साफ साफ इस बात पर जोर दिया था कि अगर ताकत, सत्ता या समानता चाहते हैं तो धर्म बदलिए। उनका मानना था कि बौद्ध धर्म में समानता विशेष रूप में विद्यमान है। अंबेडकर (Dr. Bheemrao Ambedkar) ने अपने इसी भाषण में ये भी एलान कर दिया था कि वो भले ही हिंदू धर्म में पैदा हुए हैं, लेकिन हिंदू नहीं मरेंगे।
हालांकि अंबेडकर जब ऐसा करें तो इसका विरोध न हो, ऐसा कहां संभव था। कई बड़े बड़े नेता उनके विरोध में आगे आए और उन पर आरोप लगाए गए कि वो अपने साथ बाकी लोगों को भी धर्म परिवर्तन करने के लिए भड़का रहे हैं। यहां तक कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी इस बात का विरोध किया और कहा कि धर्म परिवर्तन किसी बात का हल नहीं है।गांधीजी ने धर्म परिवर्तन से बेहतर समाज सुधार के रास्ते को माना था। गांधीजी का कहना था कि, ‘धर्म कोई मकान या चोगा नहीं है जिसे जब चाहो बदल लो या उतार दो।’
अंबेडकर का ये मानना था कि जो अस्पृश्य लोग होते हैं, वो बौद्ध धर्म के अनुयायी ही हैं। उनका ये मानना था कि इसीलिए ब्राह्मण उनसे नफरत करते थे। 1944 में अंबेडकर ने अपने भाषण से ये साबित कर दिया कि बौद्ध धर्म सबसे ज्यादा तर्क संगत और वैज्ञानिक धर्म है। उनका इस धर्म के प्रति झुकाव बढ़ता चला गया और अंत में उन्होंने धर्म परिवर्तन कर लिया। फिर आज ही के दिन 14 अक्टूबर को 1956 में उन्होंने नागपुर में स्थित दीक्षाभूमि में पूरे विधि विधान से बौद्ध धर्म को चुना। इसके बाद अंबेडकर ने अपने अनुयायियों को भी शपथ दिलाई और कहा कि बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद कोई भी हिंदू देवी देवता को नहीं मानेगा। न तो हिंदू धर्म के हिसाब से कोई भी कर्मकांड किये जाएंगे और न ही ब्राह्मणों से कोई पूजा पाठ करवाया जाएगा।
डॉ. अंबेडकर (Dr. Bheemrao Ambedkar) 1948 से ही डायबिटीज के पेशेंट थे। वो जून से लेकर 1954 तक बहुत ज्यादा बीमार रहे। फिर 6 दिसंबर 1956 में दिल्ली में उनका देहांत हो गया। 7 दिसंबर को उनका अंतिम संस्कार किया गया। डॉ. अंबेडकर का अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म के अनुसार चौपाटी समुद्र तट पर किया गया।