सुप्रीम कोर्ट आज सुनाएगा बड़ा फैसला, सड़कों से हटेंगे आवारा कुत्ते!




हर साल बरसात आते ही भारत के बड़े महानगर मुंबई, दिल्ली, गुरुग्राम और चेन्नई मानो जलसंकट की चपेट में आ जाते हैं। मानसून की तेज बारिश इन शहरों की सड़कों को नदी में बदल देती है, ट्रैफिक घंटों तक ठप हो जाता है और घर-दुकानें पानी में डूबकर भारी नुकसान उठाती हैं। जलवायु परिवर्तन ने इस वार्षिक संकट को और विकराल बना दिया है। जर्जर ड्रेनेज सिस्टम, बेतरतीब शहरीकरण और प्राकृतिक जल निकायों के मिटने से इन महानगरों की मुश्किलें हर साल और गहरी होती जा रही हैं। Hindi India News
भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई मानसून में बाढ़ का पर्याय बन चुकी है। 26 जुलाई 2005 को 24 घंटे में 944 मिमी बारिश ने शहर को घुटनों पर ला दिया था। करोड़ों का आर्थिक नुकसान हुआ और सैकड़ों लोगों की जान गई। आज भी हालात ज्यादा नहीं बदले। ब्रिटिश काल की बनी ड्रेनेज प्रणाली 25 मिमी प्रति घंटा बारिश के लिए तैयार थी, लेकिन अब शहर को कई गुना ज्यादा बारिश झेलनी पड़ती है। 2025 के मॉनसून में भी यही हाल—सड़कों पर पानी, ट्रेनें थमीं और लोग बेहाल।
राजधानी दिल्ली में हर साल मॉनसून के दौरान यमुना का पानी उफन पड़ता है। 2023 में बाढ़ के हालात बने, हजारों लोगों को सुरक्षित ठिकानों पर ले जाना पड़ा। 2025 की बारिश में भी वही तस्वीर दिखी—सड़कें तालाब में बदल गईं, उड़ानें बाधित हुईं और नजफगढ़ ड्रेन जैसे जल निकासी मार्ग कचरे से पटे रहे। पुरानी और असंगठित ड्रेनेज व्यवस्था ने समस्या को और विकराल बना दिया।
हरियाणा का ‘कॉर्पोरेट सिटी’ गुरुग्राम हर बरसात में डूब जाता है। दिल्ली-जयपुर एक्सप्रेसवे से लेकर सोहना रोड तक हर साल वही नज़ारा—पानी से लबालब सड़कें और घंटों लंबा ट्रैफिक जाम। तेज़ी से बढ़ते कंक्रीट जंगलों ने प्राकृतिक जल निकासी को खत्म कर दिया है। 2025 में भी भारी बारिश ने शहर को बेहाल कर दिया और स्थानीय निकाय सिर्फ सफाई और पंपिंग का दावा करते रह गए।
चेन्नई की बारिश अलग है। यहां जून-सितंबर नहीं, बल्कि अक्टूबर-दिसंबर के दौरान उत्तर-पूर्वी मानसून कहर बरपाता है। 2015 की बाढ़ ने पूरे शहर को हिला दिया था, 2023 में चक्रवात माइचौंग ने हालात और बिगाड़ दिए। अधूरा स्टॉर्मवॉटर ड्रेनेज नेटवर्क और आर्द्रभूमियों की बर्बादी ने शहर को बेहद संवेदनशील बना दिया है।
आर्थिक: मुंबई (2005) और चेन्नई (2015) की बाढ़ अरबों का नुकसान कर चुकी है। हर साल वाहनों, सड़कों और कारोबार को करोड़ों का झटका लगता है।
मानवीय: 2023 में ही देशभर में बाढ़ और भूस्खलन से 1,400 से ज्यादा जानें गईं।
बुनियादी ढांचा: सड़कें, रेलवे और हवाई अड्डे अक्सर ठप हो जाते हैं।
आजिविका: किसान और छोटे कारोबार सबसे बड़े नुकसान उठाने वालों में हैं।
भारतीय मौसम विज्ञान संस्थान के शोध बताते हैं कि भारी बारिश की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं।
कुछ राज्यों में बारिश 50% तक बढ़ सकती है, तो कहीं घट सकती है।
शहरी बाढ़ सामान्य से 8 गुना तक तेज़ और घातक हो सकती है।
प्राकृतिक जल निकायों की तबाही ने खतरा कई गुना बढ़ा दिया है।
आधुनिक ड्रेनेज सिस्टम: शहरों को सस्टेनेबल अर्बन ड्रेनेज सिस्टम (SUDS) अपनाना होगा।
प्राकृतिक संसाधनों की बहाली: झीलों, नदियों और आर्द्रभूमियों को पुनर्जीवित करना अनिवार्य है।
बाढ़ मानचित्रण: जोखिम क्षेत्रों की पहचान और योजना जरूरी।
जलवायु अनुकूलन नीति: मुंबई क्लाइमेट एक्शन प्लान जैसी योजनाओं को लागू करना होगा।
बेहतर शहरी नियोजन: बेतरतीब निर्माण और कंक्रीट सतहों को कम करना, हरित क्षेत्रों को बढ़ाना जरूरी है।
प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: मौसम विभाग की भविष्यवाणियां और अधिक सटीक और समय पर हों। Hindi India News
हर साल बरसात आते ही भारत के बड़े महानगर मुंबई, दिल्ली, गुरुग्राम और चेन्नई मानो जलसंकट की चपेट में आ जाते हैं। मानसून की तेज बारिश इन शहरों की सड़कों को नदी में बदल देती है, ट्रैफिक घंटों तक ठप हो जाता है और घर-दुकानें पानी में डूबकर भारी नुकसान उठाती हैं। जलवायु परिवर्तन ने इस वार्षिक संकट को और विकराल बना दिया है। जर्जर ड्रेनेज सिस्टम, बेतरतीब शहरीकरण और प्राकृतिक जल निकायों के मिटने से इन महानगरों की मुश्किलें हर साल और गहरी होती जा रही हैं। Hindi India News
भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई मानसून में बाढ़ का पर्याय बन चुकी है। 26 जुलाई 2005 को 24 घंटे में 944 मिमी बारिश ने शहर को घुटनों पर ला दिया था। करोड़ों का आर्थिक नुकसान हुआ और सैकड़ों लोगों की जान गई। आज भी हालात ज्यादा नहीं बदले। ब्रिटिश काल की बनी ड्रेनेज प्रणाली 25 मिमी प्रति घंटा बारिश के लिए तैयार थी, लेकिन अब शहर को कई गुना ज्यादा बारिश झेलनी पड़ती है। 2025 के मॉनसून में भी यही हाल—सड़कों पर पानी, ट्रेनें थमीं और लोग बेहाल।
राजधानी दिल्ली में हर साल मॉनसून के दौरान यमुना का पानी उफन पड़ता है। 2023 में बाढ़ के हालात बने, हजारों लोगों को सुरक्षित ठिकानों पर ले जाना पड़ा। 2025 की बारिश में भी वही तस्वीर दिखी—सड़कें तालाब में बदल गईं, उड़ानें बाधित हुईं और नजफगढ़ ड्रेन जैसे जल निकासी मार्ग कचरे से पटे रहे। पुरानी और असंगठित ड्रेनेज व्यवस्था ने समस्या को और विकराल बना दिया।
हरियाणा का ‘कॉर्पोरेट सिटी’ गुरुग्राम हर बरसात में डूब जाता है। दिल्ली-जयपुर एक्सप्रेसवे से लेकर सोहना रोड तक हर साल वही नज़ारा—पानी से लबालब सड़कें और घंटों लंबा ट्रैफिक जाम। तेज़ी से बढ़ते कंक्रीट जंगलों ने प्राकृतिक जल निकासी को खत्म कर दिया है। 2025 में भी भारी बारिश ने शहर को बेहाल कर दिया और स्थानीय निकाय सिर्फ सफाई और पंपिंग का दावा करते रह गए।
चेन्नई की बारिश अलग है। यहां जून-सितंबर नहीं, बल्कि अक्टूबर-दिसंबर के दौरान उत्तर-पूर्वी मानसून कहर बरपाता है। 2015 की बाढ़ ने पूरे शहर को हिला दिया था, 2023 में चक्रवात माइचौंग ने हालात और बिगाड़ दिए। अधूरा स्टॉर्मवॉटर ड्रेनेज नेटवर्क और आर्द्रभूमियों की बर्बादी ने शहर को बेहद संवेदनशील बना दिया है।
आर्थिक: मुंबई (2005) और चेन्नई (2015) की बाढ़ अरबों का नुकसान कर चुकी है। हर साल वाहनों, सड़कों और कारोबार को करोड़ों का झटका लगता है।
मानवीय: 2023 में ही देशभर में बाढ़ और भूस्खलन से 1,400 से ज्यादा जानें गईं।
बुनियादी ढांचा: सड़कें, रेलवे और हवाई अड्डे अक्सर ठप हो जाते हैं।
आजिविका: किसान और छोटे कारोबार सबसे बड़े नुकसान उठाने वालों में हैं।
भारतीय मौसम विज्ञान संस्थान के शोध बताते हैं कि भारी बारिश की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं।
कुछ राज्यों में बारिश 50% तक बढ़ सकती है, तो कहीं घट सकती है।
शहरी बाढ़ सामान्य से 8 गुना तक तेज़ और घातक हो सकती है।
प्राकृतिक जल निकायों की तबाही ने खतरा कई गुना बढ़ा दिया है।
आधुनिक ड्रेनेज सिस्टम: शहरों को सस्टेनेबल अर्बन ड्रेनेज सिस्टम (SUDS) अपनाना होगा।
प्राकृतिक संसाधनों की बहाली: झीलों, नदियों और आर्द्रभूमियों को पुनर्जीवित करना अनिवार्य है।
बाढ़ मानचित्रण: जोखिम क्षेत्रों की पहचान और योजना जरूरी।
जलवायु अनुकूलन नीति: मुंबई क्लाइमेट एक्शन प्लान जैसी योजनाओं को लागू करना होगा।
बेहतर शहरी नियोजन: बेतरतीब निर्माण और कंक्रीट सतहों को कम करना, हरित क्षेत्रों को बढ़ाना जरूरी है।
प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: मौसम विभाग की भविष्यवाणियां और अधिक सटीक और समय पर हों। Hindi India News

उपराष्ट्रपति पद के लिए हो रही सियासी जंग इस बार दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गई है। भारत का उपराष्ट्रपति चुनाव इस बार अस्मिता की जंग में बदल गया है। बीजेपी के नेतृत्व वाले NDA ने तमिल नेता सी.पी. राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाकर तमिल गौरव को सामने रखा है, तो विपक्षी इंडिया ब्लॉक ने पूर्व न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी को उतारकर तेलुगु पहचान को केंद्र में ला खड़ा किया है। इस तरह मुकाबला केवल दो नेताओं का नहीं, बल्कि तमिल बनाम तेलुगु अस्मिता का प्रतीक बन गया है। जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद उपराष्ट्रपति पद खाली हुआ और अब 9 सितंबर को होने वाला मतदान दक्षिण भारतीय सियासत के क्षत्रपों को धर्मसंकट में डाल चुका है। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की राजनीति इस चुनाव में पहले से कहीं ज्यादा अहम हो गई है। Vice Presidential Election
उपराष्ट्रपति चुनाव में इस बार मुकाबला जितना नेताओं के बीच है, उतना ही पहचान और अस्मिता का भी बन गया है। NDA ने अपने उम्मीदवार के तौर पर सी.पी. राधाकृष्णन को उतारकर साफ संदेश दिया है कि पार्टी तमिल गौरव को राष्ट्रीय मंच पर उभारना चाहती है। वहीं विपक्षी इंडिया ब्लॉक ने बी. सुदर्शन रेड्डी को मैदान में लाकर तेलुगु अस्मिता को मजबूती से सामने रखा है। इस सियासी चाल ने तमिलनाडु की डीएमके और आंध्र–तेलंगाना की क्षेत्रीय पार्टियों को धर्मसंकट में डाल दिया है। सवाल यह है कि क्या एम.के. स्टालिन की डीएमके तमिल पहचान के दबाव में एनडीए की ओर झुकेगी या फिर विपक्षी एकजुटता को तरजीह देगी ?
उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी इंडिया ब्लॉक ने बड़ा दांव खेलते हुए पूर्व न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाया है। उनकी साफ-सुथरी छवि और तेलंगाना से लेकर आंध्र प्रदेश तक गहरे रिश्तों ने चुनाव को और दिलचस्प बना दिया है। इस कदम ने आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू और वाईएसआर कांग्रेस प्रमुख जगनमोहन रेड्डी दोनों को असहज कर दिया है। नायडू की टीडीपी भले ही एनडीए का हिस्सा होकर पहले ही समर्थन घोषित कर चुकी है, लेकिन क्षेत्रीय दबाव उनके लिए चुनौती बना हुआ है। वहीं, तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव (KCR) की बीआरएस भी उलझन में है, क्योंकि रेड्डी समुदाय विपक्षी प्रत्याशी के साथ खड़ा हो सकता है और यह समीकरण उनकी सियासत को सीधे प्रभावित कर सकता है।
यह पहला मौका है जब उपराष्ट्रपति चुनाव इतना स्पष्ट रूप से तमिल बनाम तेलुगु के रूप में खड़ा दिख रहा है। विपक्ष भले ही संख्या बल में कमजोर हो, लेकिन उसने दक्षिण भारतीय पहचान को केंद्र में लाकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। बी. सुदर्शन रेड्डी न केवल एक सम्मानित न्यायविद हैं बल्कि रेड्डी समुदाय से आते हैं, जो आंध्र और तेलंगाना दोनों राज्यों में सियासी रूप से निर्णायक माना जाता है। ऐसे में सवाल यही है—क्या नायडू, केसीआर और जगन जैसे क्षेत्रीय क्षत्रप अपने-अपने राजनीतिक हित साधेंगे या फिर क्षेत्रीय अस्मिता को तरजीह देंगे ? Vice Presidential Election
उपराष्ट्रपति पद के लिए हो रही सियासी जंग इस बार दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गई है। भारत का उपराष्ट्रपति चुनाव इस बार अस्मिता की जंग में बदल गया है। बीजेपी के नेतृत्व वाले NDA ने तमिल नेता सी.पी. राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाकर तमिल गौरव को सामने रखा है, तो विपक्षी इंडिया ब्लॉक ने पूर्व न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी को उतारकर तेलुगु पहचान को केंद्र में ला खड़ा किया है। इस तरह मुकाबला केवल दो नेताओं का नहीं, बल्कि तमिल बनाम तेलुगु अस्मिता का प्रतीक बन गया है। जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद उपराष्ट्रपति पद खाली हुआ और अब 9 सितंबर को होने वाला मतदान दक्षिण भारतीय सियासत के क्षत्रपों को धर्मसंकट में डाल चुका है। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की राजनीति इस चुनाव में पहले से कहीं ज्यादा अहम हो गई है। Vice Presidential Election
उपराष्ट्रपति चुनाव में इस बार मुकाबला जितना नेताओं के बीच है, उतना ही पहचान और अस्मिता का भी बन गया है। NDA ने अपने उम्मीदवार के तौर पर सी.पी. राधाकृष्णन को उतारकर साफ संदेश दिया है कि पार्टी तमिल गौरव को राष्ट्रीय मंच पर उभारना चाहती है। वहीं विपक्षी इंडिया ब्लॉक ने बी. सुदर्शन रेड्डी को मैदान में लाकर तेलुगु अस्मिता को मजबूती से सामने रखा है। इस सियासी चाल ने तमिलनाडु की डीएमके और आंध्र–तेलंगाना की क्षेत्रीय पार्टियों को धर्मसंकट में डाल दिया है। सवाल यह है कि क्या एम.के. स्टालिन की डीएमके तमिल पहचान के दबाव में एनडीए की ओर झुकेगी या फिर विपक्षी एकजुटता को तरजीह देगी ?
उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी इंडिया ब्लॉक ने बड़ा दांव खेलते हुए पूर्व न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाया है। उनकी साफ-सुथरी छवि और तेलंगाना से लेकर आंध्र प्रदेश तक गहरे रिश्तों ने चुनाव को और दिलचस्प बना दिया है। इस कदम ने आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू और वाईएसआर कांग्रेस प्रमुख जगनमोहन रेड्डी दोनों को असहज कर दिया है। नायडू की टीडीपी भले ही एनडीए का हिस्सा होकर पहले ही समर्थन घोषित कर चुकी है, लेकिन क्षेत्रीय दबाव उनके लिए चुनौती बना हुआ है। वहीं, तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव (KCR) की बीआरएस भी उलझन में है, क्योंकि रेड्डी समुदाय विपक्षी प्रत्याशी के साथ खड़ा हो सकता है और यह समीकरण उनकी सियासत को सीधे प्रभावित कर सकता है।
यह पहला मौका है जब उपराष्ट्रपति चुनाव इतना स्पष्ट रूप से तमिल बनाम तेलुगु के रूप में खड़ा दिख रहा है। विपक्ष भले ही संख्या बल में कमजोर हो, लेकिन उसने दक्षिण भारतीय पहचान को केंद्र में लाकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। बी. सुदर्शन रेड्डी न केवल एक सम्मानित न्यायविद हैं बल्कि रेड्डी समुदाय से आते हैं, जो आंध्र और तेलंगाना दोनों राज्यों में सियासी रूप से निर्णायक माना जाता है। ऐसे में सवाल यही है—क्या नायडू, केसीआर और जगन जैसे क्षेत्रीय क्षत्रप अपने-अपने राजनीतिक हित साधेंगे या फिर क्षेत्रीय अस्मिता को तरजीह देंगे ? Vice Presidential Election