Wednesday, 4 December 2024

Hand Washing Day: दिन में छह बार हाथ धोएं, लंबा जीएं 

   विनय संकोची आज ग्लोबल हैंडवाशिंग डे बोले तो ‘विश्व हस्तप्रक्षालन दिवस’ है। कोरोना संकट में इस दिन का ध्येय…

Hand Washing Day: दिन में छह बार हाथ धोएं, लंबा जीएं 

   विनय संकोची

आज ग्लोबल हैंडवाशिंग डे बोले तो ‘विश्व हस्तप्रक्षालन दिवस’ है। कोरोना संकट में इस दिन का ध्येय वाक्य होना चाहिए था-‘हाथों को बार-बार नहीं धोएंगे तो जिन्दगी से हाथ धो बैठेंगे।’ क्या मैंने गलत कहा, अगर मेरी बात गलत या बुरी लगी हो तो हाथ मत धोना, अगर गलती से तीसरी लहर आई फिर कोरोना आपके साथ जो करेगा उसकी जिम्मेदारी आपकी होगी।

एक आंकड़ा बताता है कि पूरी दुनिया में करीब 300 करोड़ लोग अपने हाथों को साफ नहीं रख पाते। मात्र 20 प्रतिशत लोग ही दुनियाभर में हाथों की सफाई का ध्यान रख पाते हैं। दुनिया में ऐसे लोगों का भी अकाल नहीं है जो ‘खाकर’ ही नहीं ‘धोकर’ भी हाथ नहीं धोते हैं-गंदे कहीं के। ब्रिटेन में हुई एक रिसर्च का निर्णय है कि कोरोना के संक्रमण का खतरा 90 प्रतिशत तक घटाने के लिए सभी को दिन में कम से कम 6 बार हाथ धोने चाहिएं और मास्क को मास्क की तरह ही लगाना चाहिए। कुछ लोग हैं जो मास्क को फ्रेंच कट दाढ़ी की तरह इस्तेमाल करते हैं। कुछ लोग मुंह को कवर कर नाक को खुला छोड़कर कोरोना वायरस को निमंत्रण देते हैं।

कोरोना काल में जब से चाट-पकौड़ी की दुकानें खुल गईं, तमाम साफ-सुथरी मातायें-बहनें, बेटियां गोलगप्पे खाने को टूट पड़ीं। फुल्लू जी ने एक जानकार महिला से पूछा-‘भाभी जी, आप गोलगप्पे खाकर आई हैं, आपको डर नहीं लगा कि कहीं आपको कोरोना न लपक ले।’ भाभी जी का उत्तर सुनकर फुल्लू जी अचेत होते-होते बचे। भाभी जी ने कहा-‘गोलगप्पे के पानी में हाथ धोकर ही तो ‘भैया’ गोलगप्पे खिला रहा था। वह बार-बार हाथ धो रहा था तो डर कैसा?’ है कोई इलाज ऐसी ‘विद्वान’ भाभियों का?

गंदे हाथों से सबसे ज्यादा बीमारियां बच्चों में फैलती हैं, उनमें डायरिया और निमोनिया सबसे ज्यादा कॉमन हैं। हाथों को साफ न रखने वाले लोगों की वजह से दुनिया भर के देशों को 19 लाख करोड़ रुपये प्रति वर्ष अतिरिक्त खर्च करने पड़ते हैं-यह विश्व बैंक की रिपोर्ट है। इस हिसाब से हाथ न धोने वालों की वजह से तमाम विकास कार्यों पर विपरीत असर पड़ता है। मेरे विचार से हाथ धोने में कोताही बरतने वालों पर बकायदा दंड का प्रावधान होना चाहिए।

ग्लोबल हैंडवाशिंग डे की नींव अगस्त 2008 में स्वीडन में स्टॉकहोम में वर्ल्ड वाटर वीक के दौरान पड़ी थी। पहली बार यह दिन 15 अक्टूबर 2008 को मनाया गया। पहली बार यह दिवस स्कूली बच्चों के बीच मनाया गया था। इस दिन को मनाने का उद्देश्य बहुत अच्छा है लेकिन इसके लिए उन लोगों को जगाना होगा जो सो नहीें रहे हैं लेकिन आंखें मूंदकर पड़े हैं। अफसोस की बात है कि लोग अपनी भलाई के लिए हाथ धोने तक को तैयार नहीं होते हैं। दिन में 6 बार हाथ धोना यानी निरोग रहना और लंबा जीना।

अमरीकी न्यूज चैनल फॉक्स न्यूज के एक एंकर पीट हेगसेथ ने 2019 में कहा था-‘मुझे याद नहीं पड़ता कि पिछले दस सालों में मैंने कभी अपने हाथ धोए।’ हेगसेथ के इस बयान पर खूब चिकचिक हुई थी। हेगसेथ को छोड़ो 2015 में अमरीकी अभिनेत्री जेनिफर लॉरेंस ने यह कहकर सनसनी फैला दी थी कि वो बाथरूम जाने के बाद कभी भी अपने हाथ नहीं धोती हैं।

सन् 2015 में ही एक विचित्र किन्तु सत्य सर्वे के मुताबिक दुनिया में करीब 26.2 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जो मल त्याग के बाद साबुन से हाथ नहीं धोते हैं। छी कैसे गंदे लोग हैं। शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि शौच के बाद भी हाथ न धोना एक आम आदत है। हम हाथ न धोने वालों को बुरा भला कह सकते हैं, नाक-भौं सिकोड़ सकते हैं लेकिन यह सब करने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि दुनिया की एक बड़ी आबादी के पास हाथ धोने की बुनियादी सुविधाएं ही नहीं हैं-जैसे कि साबुन और पानी। दुनिया के सबसे कम विकसित देशों में केवल 29 प्रतिशत लोगों को ही ये सुविधाएं सुलभ है, वो भी सहज नहीं।

डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ के अनुमान के अनुसार दुनिया भर में करीब 300 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनके पास हाथ धोने के लिए साबुन और पानी ही नहीं है। बेशक लोग बार-बार हाथ धोने के प्रति इतने अधिक सजग न हों लेकिन ‘बहती गंगा में हाथ धोने’ के लिए लोग एक दूसरे को धकिया कर आगे आने को भयंकर रूप से उतावले रहते हैं। हाथ सफाई के प्रति इसलिए जागरूक रहना जरूरी है क्योंकि इस पर जिंदगियां निर्भर हैं। तो हाथ धोते रहने का संकल्प लें और स्वस्थ रहें।

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