Balochistan: इन दिनों पूरी दुनिया में बलूचिस्तान की चर्चा है। पाकिस्तान का यह इलाका कुछ दिनों पहले हुए ट्रैन हाईजैक की वजह से चर्चा में आया। आज इस लेख के माध्यम से हम आपको इसके इतिहास , इसके नक़्शे आदि के बारे में बताएंगे।
बलूचिस्तान का भूगोल और स्थिति
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, जो देश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 40% हिस्सा घेरता है। यह दक्षिण-पश्चिम में स्थित है और अपनी समृद्ध प्राकृतिक संपदाओं के बावजूद पिछड़ेपन का शिकार है। यह प्रांत तेल, गैस, सोना और तांबे जैसे खनिज संसाधनों से भरपूर है, लेकिन इसकी अधिकांश आबादी गरीबी और उपेक्षा में जीवन व्यतीत कर रही है।
बलूचिस्तान का इतिहास – भारत से पाकिस्तान तक का सफर
ब्रिटिश भारत के विभाजन से पहले बलूचिस्तान कई छोटे-बड़े कबायली इलाकों में बंटा हुआ था। इनमें सबसे प्रमुख रियासत कलात थी, जिसके शासक खान ऑफ कलात अहमद यार खान थे। जब भारत और पाकिस्तान का विभाजन तय हुआ, तब ब्रिटिश सरकार ने इन रियासतों को स्वतंत्र रहने या भारत-पाकिस्तान में शामिल होने के दो विकल्प दिए। खान ऑफ कलात ने स्वतंत्र रहने की इच्छा जताई, जिसे जिन्ना ने भी आरंभ में स्वीकार कर लिया था।
ब्रिटिश और जिन्ना का छल
जब भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद बलूचिस्तान ने स्वतंत्र रहने का निर्णय लिया, तो ब्रिटिश सरकार को यह रास नहीं आया। उस समय सोवियत संघ का प्रभाव अफगानिस्तान और ईरान तक बढ़ रहा था, और ब्रिटिश अधिकारियों को डर था कि स्वतंत्र बलूचिस्तान सोवियत संघ के प्रभाव में आ सकता है। इसी कारण से, ब्रिटिश और पाकिस्तानी नेतृत्व ने मिलकर बलूचिस्तान को पाकिस्तान में शामिल करने की योजना बनाई।
बलूचिस्तान का पाकिस्तान में जबरन विलय
अक्तूबर 1947 में पाकिस्तान ने ‘दोस्ती संधि’ को तोड़ते हुए बलूचिस्तान को अपने में मिलाने के प्रयास शुरू कर दिए। 17 मार्च 1948 को पाकिस्तानी सरकार ने कलात के अधीनस्थ तीन कबायली क्षेत्रों को अपने नियंत्रण में ले लिया, जिससे खान ऑफ कलात की शक्ति कमजोर हो गई। इसके बाद 26 मार्च 1948 को पाकिस्तान ने अपनी सेना बलूचिस्तान भेजी, जिससे मजबूर होकर अहमद यार खान को पाकिस्तान के साथ संधि करनी पड़ी।
संघर्ष की शुरुआत और विद्रोह
हालांकि, यह संधि बलूचिस्तान के लोगों को मंजूर नहीं थी। जुलाई 1948 में खान ऑफ कलात के भाई प्रिंस अब्दुल करीम ने पाकिस्तान के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया। इसके बाद 1948, 1958-59, 1962-63 और 1973-77 के बीच कई बार विद्रोह हुए। आज भी बलूचिस्तान की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष जारी है।
पाकिस्तान द्वारा अत्याचार और बलूचों की स्थिति
बलूचिस्तान में अलगाववादी आंदोलन को कुचलने के लिए पाकिस्तानी सेना ने कठोर कदम उठाए।
मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, पाकिस्तानी सेना बलूच नागरिकों के खिलाफ ‘मारो और फेंको’ नीति अपनाती है।
कई बलूच कार्यकर्ताओं को अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया, प्रताड़ित किया गया और मार दिया गया।
2011 में एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान की सेना नियमित रूप से बलूच नागरिकों को टॉर्चर करती है और उनकी हत्या कर देती है।
2001 से 2017 के बीच 5000 से अधिक बलूच लोग लापता हुए।
बलूचिस्तान में विद्रोह की वजहें
बलूच नेता दावा करते हैं कि पाकिस्तानी सरकार और सेना बलूच समुदाय को हाशिए पर रख रही है।
राजनीतिक उपेक्षा: बलूच लोगों को सरकारी नौकरियों और सत्ता में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलता।
सांस्कृतिक भिन्नता: बलूचिस्तान की भाषा, संस्कृति और इतिहास बाकी पाकिस्तान से अलग है।
आर्थिक शोषण: बलूचिस्तान में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जाता है, लेकिन वहां के लोगों को उसका लाभ नहीं मिलता।
क्या बलूचिस्तान बनेगा दूसरा बांग्लादेश?
बलूचिस्तान की स्थिति पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से मिलती-जुलती है। जिस तरह 1971 में सांस्कृतिक और भाषाई भिन्नता के चलते पूर्वी पाकिस्तान ने बांग्लादेश के रूप में स्वतंत्रता प्राप्त की थी, उसी तरह बलूचिस्तान भी पाकिस्तान से अलग होने की मांग कर रहा है। Balochistan
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