Indo-Pak War : हाजी पीर दर्रा एलओसी के बेहद करीब है और भारत के लिए रणनीतिक लाभ का स्थान हो सकता है। यदि भारत इसका नियंत्रण पा लेता है तो पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों पर करारा प्रहार होगा। 1965 में भारत ने इसे अपने कब्जे में ले लिया था लेकिन ताशकंद समझौते में यह पाकिस्तान को वापस लौटा दिया गया। समुद्र तल से 8662 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह दर्रा श्रीनगर और पुंछ जैसे संवेदनशील क्षेत्रों के बहुत करीब है। पाकिस्तान इसका उपयोग आतंकी गतिविधियों के लिए ‘लॉन्चिंग पैड’ के रूप में करता है।
क्या यह पाकिस्तान की कमजोर नस है?
इस संदर्भ में “चिकन नेक” की उपमा सही प्रतीत होती है। यदि हाजी पीर दर्रे को काटा जाए या भारत इसका नियंत्रण ले ले, तो पाकिस्तान की आतंकी लॉजिस्टिक्स और एलओसी पर पकड़ कमजोर हो जाएगी, जो उसे सामरिक रूप से असहज स्थिति में डाल सकती है।
इस दर्रे पर नियंत्रण से भारतीय सेना की आवाजाही सरल हो सकती है और जम्मू-कश्मीर के इलाकों के बीच दूरी भी काफी घट जाएगी।
दर्रे पर नियंत्रण अब बिना युद्ध के संभव नहीं
हाजी पीर दर्रा न केवल भौगोलिक रूप से अहम है, बल्कि यह भारत-पाक रणनीतिक संतुलन को भी प्रभावित कर सकता है। हालांकि इसका दोबारा नियंत्रण पाना सैन्य और राजनीतिक दोनों स्तरों पर बड़ा कदम होगा। इस दर्रे पर नियंत्रण अब बिना युद्ध के संभव नहीं है। लेकिन आतंकवाद को रोकने के लिए यह बहुत जरूरी हो गया है क्यों कि पाकिस्तान इस दर्रे को आतंकी गलियारे के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। यह दर्रा सामरिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है।
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