Politics Of Bangladesh : बांग्लादेश की राजनीति इस समय एक ऐसे बिंदु पर पहुंच गई है जहाँ हर निर्णय निर्णायक और हर चुप्पी विनाशकारी बन चुकी है। इस संकट की धुरी बन चुके हैं अंतरिम सरकार के प्रमुख प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस। एक ऐसे व्यक्ति जिन्हें कभी देश की आशा माना गया था, लेकिन अब वह खुद संदेह, दबाव और विद्रोह के घेरे में हैं।
दबाव चार दिशाओं से
1. सेना का सख्त रुख
सेना प्रमुख वाकर-उज-जमां ने साफ कर दिया है कि दिसंबर तक चुनाव, वरना वे चुप नहीं बैठेंगे। यह यूनुस के लिए एक स्पष्ट चेतावनी है। सेना का मानना है कि गैर-निर्वाचित सरकार अब देश को स्थिरता नहीं दे सकती। ऐसे में अगर यूनुस देरी करते हैं, तो सेना के सीधे हस्तक्षेप की संभावना बढ़ जाती है, जो देश के लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा होगा।
2. छात्र संगठनों का मोहभंग
शुरुआत में जो छात्र संगठन यूनुस के सबसे बड़े समर्थक थे, आज वही उनकी आलोचना के अगुवा बन चुके हैं। छात्रों की मांग है कि जब तक शेख हसीना के दौर की कथित ज्यादतियों पर कार्रवाई नहीं होती, वे चुनावों को मान्यता नहीं देंगे। यूनुस के लिए यह दोधारी तलवार बन गया है। अगर वे चुनाव जल्द कराते हैं तो छात्र नाराज, अगर सुधारों पर फोकस करते हैं तो सेना और विपक्ष खफा।
3. विपक्ष का उग्र रुख
बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी जैसी ताकतें अब सड़कों पर उतरने को तैयार हैं। वे किसी भी “बिना टाइमलाइन” वाली सरकार को मान्यता देने को तैयार नहीं। रोडमैप की मांग अब केवल एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि संघर्ष का नारा बन चुकी है।
4. बुद्धिजीवी और मीडिया का नैतिक दबाव
प्रो. यूनुस के इस्तीफे की आशंका को देखते हुए पत्रकारों, शिक्षाविदों और नागरिक संगठनों ने एक सुर में उन्हें आग्रह किया है कि वे पीछे न हटें। उनका मानना है कि यूनुस का इस्तीफा पूरे राष्ट्र के साथ विश्वासघात होगा। ये नैतिक समर्थन यूनुस के लिए ऊर्जा का स्रोत हो सकता है, लेकिन दबाव भी उतना ही बड़ा है।
यूनुस के सामने तीन ही रास्ते बचते हैं
विकल्प -लाभ -जोखिम
इस्तीफा देना- तत्काल संकट से मुक्ति, व्यक्तिगत जिम्मेदारी से दूरी कायर कहे जाएंगे – देश में अराजकता की संभावना
पद पर बने रहना और चुनाव कराना- नेतृत्व की स्थिरता, सेना की संतुष्टि -छात्रों और विपक्ष का व्यापक विरोध
राष्ट्रीय संवाद और साझा सरकार का प्रस्ताव- सामूहिक सहमति की कोशिश -विपक्ष और छात्रों की अस्वीकृति, समय की कमी
क्या हो सकता है यूनुस का अगला कदम?
रणनीतिक रोडमैप का ऐलान : एक ऐसा रोडमैप जो तीनों पक्षों सेना, छात्र और विपक्ष को न्यूनतम रूप से संतुष्ट कर सके। इसमें चुनाव की स्पष्ट तारीख, सुधारों की प्राथमिकता और पूर्ववर्ती सरकारों की जवाबदेही शामिल हो।
नैतिक समर्थन को राजनीतिक समर्थन में बदलना : बुद्धिजीवियों और नागरिक संगठनों से मिले समर्थन को एक प्रचार-आधारित जनआंदोलन में बदला जा सकता है, जो देश में स्थिरता और चुनावी प्रक्रिया के समर्थन में हो।
सेना से गुप्त समझौता : एक आंतरिक संधि जिसमें यूनुस स्पष्ट करें कि वे चुनाव में देरी नहीं करेंगे, लेकिन सुधारों के लिए कुछ अतिरिक्त समय आवश्यक है।
इतिहास बन रहा है, और यूनुस उसका केंद्र हैं
यूनुस के लिए यह क्षण राजनीतिक नहीं, ऐतिहासिक है। यह वही घड़ी है जब नेता अपने निर्णयों से या तो नायक बनते हैं या पराजित नायक। उनके हर शब्द, हर चुप्पी, हर निर्णय को आने वाली पीढ़ियां पढ़ेंगी। अगर वो डगमगाए तो यह देश के लिए एक और तूफान होगा, लेकिन अगर डटे रहे तो शायद यही संकट देश को एक नई स्थिरता दे सकेगा।
संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान का पर्दाफाश ,भारत ने दिया करारा जवाब
ग्रेटर नोएडा – नोएडा की खबरों से अपडेट रहने के लिए चेतना मंच से जुड़े रहें।
देश–दुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमें फेसबुक पर लाइक करें या ट्विटर पर फॉलो करें।