Hindi Kavita –
पकी फसल पर चोट कर रहे घन जैसे ‘घन’।
घन गरजें, धमका रहे, हैं जैसे बे – बात।
पानी के संग हो रही, ओलों की बरसात।
ओलों की बरसात, लगे मौसम मन-भावन,
अटक-भटककर पुनः लौट आया ज्यों सावन।
‘बाबा’ देख बढ़े कृषकों के दिल की धड़कन,
पकी फसल पर चोट कर रहे घन जैसे ‘घन’।।
– बाबा कानपुरी
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