गांधी-नेहरू की इस मुलाकात ने बदल दी थी आजादी की दिशा और दशा
नई दिल्ली। आजादी की लड़ाई में जहां देश क्रांतिकारियों के बलिदान को कभी भुला नहीं पाएगा तो वहीं गांधी और…
Sonia Khanna | October 2, 2021 7:34 AM
नई दिल्ली। आजादी की लड़ाई में जहां देश क्रांतिकारियों के बलिदान को कभी भुला नहीं पाएगा तो वहीं गांधी और नेहरू के योगदान को भी कोई नकार नहीं सकता। वह गांधी ही थे जिनके एक इशारे पर उस समय हवाओं के रुख बदल जाया करते थे। शायद बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से महात्मा गांधी की पहली मुलाकात लखनऊ के चारबाग स्टेशन पर हुई थी। कहते हैं कि पंडित नेहरू और गांधी की इस पहली मुलाकात ने भारत की आजादी की दिशा और दशा बदल कर रख दिया था। दरअसल 1916 में लखनऊ अधिवेश में हिस्सा लेने महात्मा गांधी लखनऊ आए थे। इस इस अधिवेशन में जवाहर लाल नेहरू, मोती लाल नेहरू और सैयद महमूद ने अधिवेशन में आए लोगों को संबोधित किया था। पंडित नेहरू गांधी जी से मिलकर उनके विचारों से खासे प्रभावित हुए थे। भारतीय रेल ने गांधी नेहरू की इस पहली मुलाकात की याद में चारबाग रेलवे स्टेशन के बाहर गांधी उद्यान का निर्माण करवाया जो आज भी मौजूद है और उद्यान में लगा शिलापट उनकी मुलाकात की कहानी बयां करता है। इस अधिवेशन में हिस्सा लेने से पहले मोहनदास करमचंद गांधी को हर कोई बैरिस्टर कहकर बुलाता था। लेकिन यहां से जाने के बाद गांधी जी के बैरिस्टर से महात्मा बनने की नींव पड़ी थी। यह अधिवेशन 26 से 30 दिसंबर के बीच अंबिका चरण मजूमदार की अध्यक्षता में हुआ था।
लखनऊ विश्विवद्यालय में अंग्रेजी विभाग के प्रोफेसर और गांधीवादी विचारक डॉक्टर ओंकार नाथ उपाध्याय ने गांधी और नेहरू की इस मुलाकात को भारत के इतिहास की बेहद महत्वपूर्ण घटना बताया। उन्होंने कहा कि हम ये कह सकते हैं कि गांधी और नेहरू की लखनऊ के चारबार स्टेशन पर हुई मुलाकात के बाद ही गांधी का राजनीतिक जीवन शुरू हुआ। गांधी और नेहरू दोनों ही बहुत पढ़े लिखे लोग थे। इन दोनों ने भारतीय समाज की चेतना जगाने में महत्पपूर्ण भूमिका निभाई। दोनों की जीवनी आज भी भारत के लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। उन्होंने कहा कि गांधी और नेहरू का संघर्ष आज भी प्रारंगिक है। महात्मा गांधी ने देश के लोगों के लिए जिस तरह की आजादी चाही थी अभी उसके लिए और संघर्ष की जरूरत है। अभी देश को सिर्फ राजनीतिक आजादी मिली है। लखनऊ विश्वविद्यायल के लोक प्रशासन विभाग के अध्यक्ष मनोज दिक्षित के मुताबिक आज देश के विकास के लिए गांधी बहुत ज्यादा प्रासांगिक हैं। गांधी कभी भी सफलता मिलने पर बहुत अधिक उत्साहित नहीं हुए और न ही असफल होने पर विचलित हुए। जबकि वो अपने लक्ष्य के लिए लगातार प्रयास करते रहे। प्राप्त जानकारी के अनुसार इंडियन नेशनल कांग्रेस की वार्षिक मीटिंग में शामिल होने के लिए 26 दिसंबर, 1916 को जवाहरलाल नेहरू इलाहाबाद से लखनऊ ट्रेन से आए थे। इस समय उनकी आयु करीब 27 साल थी। इसी मीटिंग में शामिल होने के लिए महात्मा गांधी भी आए थे। चारबाग स्टेशन पर दोनों मिले। करीब 20 मिनट तक दोनों के बीच बातचीत हुई। इस दौरान आजादी के आंदोलन को लेकर काफ बातीचीत हुई। नेहरू ने अपनी आत्मकथा में भी इसका जिक्र किया है। नेहरू चाहते थे कि गांधी मजदूरों को विदेशों में जाकर काम करने से रोकें। दरअसल, उस समय अंग्रेजी हुकूमत हिंदुस्तानियों को अफीक्रा, कैरिबियाई देशों, फिजी वगैरह में मजदूरी के लिए ले जाया करते थे। इस बिल को नेहरू ने कांग्रेस के सामने रखा था। गांधी ने भी इसका समर्थन किया था।
महात्मा गांधी जब लखनऊ में थे तो उन्होंने डालीबाग के गोखले मार्ग पर एक पौधा लगाया था जो आज पेड़ बन चुका है। वैसे तो वो दर्जनों बार लखनऊ आ चुके थे लेकिन आजादी के कुछ साल पहले जब वे लखनऊ आए तो कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष शीला कौल के घर भी गए थे। यहां उन्होंने अपने हाथों से एक बरगद का पौधा लगाया था जो आज भी लहलहा रहा है।