मक्का की खेती: किसानों के लिए टिकाऊ और लाभकारी विकल्प
भारत में बदलते मौसम और घटते जल संसाधनों के बीच मक्का (कॉर्न) किसानों के लिए एक लाभकारी विकल्प के रूप में उभर रही है। मक्का को ‘अनाज की रानी’ भी कहा जाता है क्योंकि अन्य फसलों की तुलना में इसकी पैदावार अधिक होती है और यह अनाज व चारे—दोनों के रूप में उपयोग की जाती है।

बता दें कि कृषि विशेषज्ञों के अनुसार मक्का की फसल केवल तीन महीनों में तैयार हो जाती है, जबकि धान को पकने में लगभग 145 दिन लगते हैं। यही नहीं, मक्का धान की तुलना में लगभग 90 प्रतिशत कम पानी और 79 प्रतिशत तक मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बचाए रखती है। वाइस चांसलर के अनुसार, मक्का की खेती से किसान अपनी खराब और कम उपजाऊ जमीन को भी संरक्षित कर सकते हैं।
बहुउपयोगी फसल
मक्का से स्टार्च, कॉर्न फ्लैक्स, ग्लूकोज, तेल और शराब जैसे कई औद्योगिक उत्पाद बनाए जाते हैं। इसके अलावा यह पोल्ट्री और पशु आहार के रूप में भी व्यापक रूप से प्रयोग की जाती है। यही कारण है कि गेहूं और धान की तुलना में मक्का किसानों को अधिक आर्थिक लाभ देती है।
देश के प्रमुख मक्का उत्पादक राज्य
उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पंजाब मक्का उत्पादन में अग्रणी हैं। दक्षिण भारत में आंध्र प्रदेश और कर्नाटक प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।
मिट्टी और जलवायु की अनुकूलता
मक्का लगभग हर प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है, बशर्ते जल निकास अच्छा हो। मैरा और लाल मिट्टी जिसमें नाइट्रोजन की उचित मात्रा हो, मक्का के लिए उपयुक्त मानी जाती है। अधिक पैदावार के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। विशेषज्ञ मिट्टी की जांच कराने की भी सलाह देते हैं।
उन्नत किस्में दे रही हैं बेहतर पैदावार
पंजाब और अन्य राज्यों के लिए कई उन्नत किस्में विकसित की गई हैं, जिनमें प्रभात, केसरी, PMH-2, JH-3459, प्रकाश, मेघा, पंजाब साथी-1, पर्ल पॉपकॉर्न और पंजाब स्वीट कॉर्न प्रमुख हैं। इसके अलावा पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय और अन्य अनुसंधान संस्थानों द्वारा विकसित हाइब्रिड किस्में जैसे JH-10655, HQPM-1 और FH-3211 भी किसानों में लोकप्रिय हो रही हैं।
खेत की तैयारी और बीज दर
विशेषज्ञों के अनुसार मक्का की खेती के लिए खेत को खरपतवार और पिछली फसल के अवशेषों से मुक्त रखना चाहिए। 6–7 बार जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बनाएं और प्रति एकड़ 4–6 टन गोबर की खाद डालें।
फसल के उद्देश्य के अनुसार बीज की मात्रा तय की जाती है—
- खरीफ मक्का: 8–10 किलो प्रति एकड़
- स्वीट कॉर्न: 8 किलो
- बेबी कॉर्न: 16 किलो
- पॉप कॉर्न: 7 किलो
- चारा मक्का: 20 किलो प्रति एकड़
मिश्रित खेती और बीज उपचार
मक्का के साथ मटर या गन्ने की मिश्रित खेती कर किसान अतिरिक्त आय प्राप्त कर सकते हैं। फसल को रोगों से बचाने के लिए बीज उपचार आवश्यक है। कार्बेन्डाजिम या थीरम से उपचार के बाद अज़ोस्पिरिलम का प्रयोग मिट्टी में नाइट्रोजन बनाए रखने में सहायक होता है।
किसानों के लिए बेहतर विकल्प
विशेषज्ञों का मानना है कि जल संकट और मिट्टी की गिरती उर्वरता के दौर में मक्का किसानों के लिए एक टिकाऊ और लाभकारी फसल साबित हो सकती है। कम लागत, कम पानी और बहुउपयोगी होने के कारण आने वाले समय में मक्का की खेती का दायरा और बढ़ने की संभावना है।
बता दें कि कृषि विशेषज्ञों के अनुसार मक्का की फसल केवल तीन महीनों में तैयार हो जाती है, जबकि धान को पकने में लगभग 145 दिन लगते हैं। यही नहीं, मक्का धान की तुलना में लगभग 90 प्रतिशत कम पानी और 79 प्रतिशत तक मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बचाए रखती है। वाइस चांसलर के अनुसार, मक्का की खेती से किसान अपनी खराब और कम उपजाऊ जमीन को भी संरक्षित कर सकते हैं।
बहुउपयोगी फसल
मक्का से स्टार्च, कॉर्न फ्लैक्स, ग्लूकोज, तेल और शराब जैसे कई औद्योगिक उत्पाद बनाए जाते हैं। इसके अलावा यह पोल्ट्री और पशु आहार के रूप में भी व्यापक रूप से प्रयोग की जाती है। यही कारण है कि गेहूं और धान की तुलना में मक्का किसानों को अधिक आर्थिक लाभ देती है।
देश के प्रमुख मक्का उत्पादक राज्य
उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पंजाब मक्का उत्पादन में अग्रणी हैं। दक्षिण भारत में आंध्र प्रदेश और कर्नाटक प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।
मिट्टी और जलवायु की अनुकूलता
मक्का लगभग हर प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है, बशर्ते जल निकास अच्छा हो। मैरा और लाल मिट्टी जिसमें नाइट्रोजन की उचित मात्रा हो, मक्का के लिए उपयुक्त मानी जाती है। अधिक पैदावार के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। विशेषज्ञ मिट्टी की जांच कराने की भी सलाह देते हैं।
उन्नत किस्में दे रही हैं बेहतर पैदावार
पंजाब और अन्य राज्यों के लिए कई उन्नत किस्में विकसित की गई हैं, जिनमें प्रभात, केसरी, PMH-2, JH-3459, प्रकाश, मेघा, पंजाब साथी-1, पर्ल पॉपकॉर्न और पंजाब स्वीट कॉर्न प्रमुख हैं। इसके अलावा पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय और अन्य अनुसंधान संस्थानों द्वारा विकसित हाइब्रिड किस्में जैसे JH-10655, HQPM-1 और FH-3211 भी किसानों में लोकप्रिय हो रही हैं।
खेत की तैयारी और बीज दर
विशेषज्ञों के अनुसार मक्का की खेती के लिए खेत को खरपतवार और पिछली फसल के अवशेषों से मुक्त रखना चाहिए। 6–7 बार जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बनाएं और प्रति एकड़ 4–6 टन गोबर की खाद डालें।
फसल के उद्देश्य के अनुसार बीज की मात्रा तय की जाती है—
- खरीफ मक्का: 8–10 किलो प्रति एकड़
- स्वीट कॉर्न: 8 किलो
- बेबी कॉर्न: 16 किलो
- पॉप कॉर्न: 7 किलो
- चारा मक्का: 20 किलो प्रति एकड़
मिश्रित खेती और बीज उपचार
मक्का के साथ मटर या गन्ने की मिश्रित खेती कर किसान अतिरिक्त आय प्राप्त कर सकते हैं। फसल को रोगों से बचाने के लिए बीज उपचार आवश्यक है। कार्बेन्डाजिम या थीरम से उपचार के बाद अज़ोस्पिरिलम का प्रयोग मिट्टी में नाइट्रोजन बनाए रखने में सहायक होता है।
किसानों के लिए बेहतर विकल्प
विशेषज्ञों का मानना है कि जल संकट और मिट्टी की गिरती उर्वरता के दौर में मक्का किसानों के लिए एक टिकाऊ और लाभकारी फसल साबित हो सकती है। कम लागत, कम पानी और बहुउपयोगी होने के कारण आने वाले समय में मक्का की खेती का दायरा और बढ़ने की संभावना है।












