BMC Election: कांग्रेस के अकेले उतरने से बदला मुंबई का सियासी खेल

देश की सबसे अमीर नगर निकायों में शामिल BMC का विशाल बजट और मुंबई के नागरिक प्रशासन पर उसका नियंत्रण इसे राजनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण बनाता है। ऐसे में इस चुनाव पर सभी प्रमुख दलों की नजरें टिकी हुई हैं।

Mumbai Municipal Corporation Elections
मुंबई महानगर पालिका चुनाव (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar25 Dec 2025 04:11 PM
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बृहन्मुंबई महानगर पालिका (BMC) चुनाव को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। कांग्रेस द्वारा इस बार गठबंधन से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने के फैसले ने विपक्षी खेमे की रणनीति को झटका दिया है और आगामी 15 जनवरी को होने वाले चुनाव को बहुकोणीय मुकाबले में बदल दिया है।

MVA से दूरी की वजह

बता दें कि कांग्रेस ने स्पष्ट किया है कि वह इस बार महा विकास आघाड़ी (MVA) के तहत चुनाव नहीं लड़ेगी। पार्टी का कहना है कि उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना (UBT) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के बीच संभावित गठबंधन उसकी वैचारिक लाइन के विपरीत है। खासतौर पर भाषाई पहचान और प्रवासी मुद्दों पर MNS के रुख को कांग्रेस ने अस्वीकार्य बताया है।

राजनीतिक विश्लेषकों की राय

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस का यह फैसला एक तरफ जहां रणनीतिक पुनर्गठन को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर यह राजनीतिक जोखिम से भी भरा है। मजबूत गठबंधनों और उभरते क्षेत्रीय दलों के बीच अकेले चुनाव लड़ना कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, मुंबई में कांग्रेस का प्रदर्शन न सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में पार्टी के भविष्य की दिशा तय कर सकता है।

मुंबई में कांग्रेस का घटता जनाधार

बता दें कि इतिहास पर नजर डालें तो कांग्रेस कभी मुंबई की नगर निकाय राजनीति में एक मजबूत ताकत रही है, लेकिन बीते तीन दशकों में उसकी स्थिति लगातार कमजोर हुई है। 2017 के BMC चुनाव में अविभाजित शिवसेना को 84 और भाजपा को 82 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस महज 31 सीटों पर सिमट गई थी।

MNS से गठबंधन क्यों नहीं?

महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रभारी रमेश चेन्निथला ने साफ कहा है कि कांग्रेस ऐसे किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं बन सकती जो विभाजनकारी राजनीति को बढ़ावा देता हो। पार्टी नेताओं का कहना है कि कांग्रेस की रणनीति अल्पसंख्यक, दलित और प्रवासी मतदाताओं को एकजुट करने की है, जो MVA और MNS की नजदीकियों से खुद को असहज महसूस कर सकते हैं।

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जाने 40 साल पुराने आम के बागों में कैसे होगी दोगुनी कमाई

जीर्णोद्धार तकनीक में पेड़ों की वैज्ञानिक तरीके से छंटाई की जाती है। इससे न केवल पेड़ को पर्याप्त धूप और हवा मिलती है, बल्कि नई और स्वस्थ शाखाएं भी निकलती हैं। विशेषज्ञों का दावा है कि इस तकनीक को अपनाने से फलों का आकार और गुणवत्ता बेहतर होती है और पैदावार लगभग दोगुनी तक हो सकती है।

Mango production
आम की पैदावार (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar25 Dec 2025 01:13 PM
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देशभर में हजारों किसान पुराने आम के बागों की घटती पैदावार से परेशान रहते हैं। आमतौर पर जब बाग 40 साल से अधिक पुराने हो जाते हैं तो उनमें फल आना कम हो जाता है या पूरी तरह बंद हो जाता है। ऐसे में किसान मजबूरी में पेड़ों को कटवा देते हैं। लेकिन अब ऐसा करने की जरूरत नहीं है। भारतीय आम अनुसंधान संस्थान (CISH), लखनऊ द्वारा विकसित ‘आम जीर्णोद्धार तकनीक’ से पुराने और अनुत्पादक पेड़ों को फिर से जवान और फलदार बनाया जा सकता है।

क्यों घटती है पुराने बागों की पैदावार?

बता दें कि विशेषज्ञों का कहना है कि समय के साथ आम के पेड़ों की शाखाएं बहुत घनी हो जाती हैं, जिससे पेड़ के अंदरूनी हिस्सों तक धूप और ताजी हवा नहीं पहुंच पाती। प्रकाश की कमी से प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया धीमी हो जाती है और कीट व रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है। इसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ता है।

कब और कैसे करें आम के पेड़ों का कायाकल्प?

आम के पेड़ों के कायाकल्प के लिए 15 दिसंबर से 15 जनवरी का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। जिस पेड़ की 3-4 मजबूत और बाहर की ओर बढ़ने वाली मुख्य शाखाओं को चुनें। इन्हें आधार से लगभग 2 फीट छोड़कर काट दें। बाकी अनावश्यक, सूखी और घनी शाखाओं को पूरी तरह हटा दें। पेड़ की ऊंचाई जमीन से 3 से 4 मीटर तक सीमित रखें। शाखा काटते समय पहले नीचे हल्का चीरा और फिर ऊपर से कट लगाएं, ताकि छाल न उखड़े।

कटाई के बाद दवा का लेप जरूरी

छंटाई के बाद कटे हुए हिस्सों पर संक्रमण का खतरा रहता है। इससे बचाव के लिए 1 किलो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड और 250 ग्राम अरंडी के तेल का गाढ़ा घोल लगाएं। जैविक विकल्प के रूप में ताजा गाय का गोबर और पीली मिट्टी का पेस्ट भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यह लेप फंगल और बैक्टीरियल संक्रमण से सुरक्षा देता है।

नई कोपलों की थिनिंग जरूरी

मार्च-अप्रैल में जब नई कोपलें निकलने लगें, तब विरलीकरण (थिनिंग) करें। केवल मजबूत और सही दिशा में बढ़ने वाली टहनियों को रखें और आपस में टकराने वाली कमजोर टहनियों को हटा दें।

पोषण और सिंचाई से आएगी नई जान

बता दें कि कटाई के बाद पेड़ों को ज्यादा पोषण की जरूरत होती है। फरवरी में प्रति पेड़ में 120 किलो सड़ी गोबर की खाद, 3 किलो यूरिया, 1.5 किलो फॉस्फोरस, 1.5 किलो पोटाश डालें। नीम की खली डालना भी फायदेमंद होता है। इसके बाद हर 15 दिन में नियमित सिंचाई करें और कीटों से बचाव के लिए समय-समय पर छिड़काव करते रहें।

इंटरक्रॉपिंग से अतिरिक्त कमाई

जीर्णोद्धार के बाद बाग में पर्याप्त धूप पहुंचने लगती है। जब तक आम के पेड़ पूरी तरह फल देने लगते हैं (करीब 2–3 साल), तब तक किसान खाली जगह में सब्जियां, दलहन या औषधीय पौधे उगाकर अतिरिक्त आय कमा सकते हैं। इससे बाग की देखभाल का खर्च भी आसानी से निकल जाता है।

सरकार दे रही है सब्सिडी

पुराने बागों के जीर्णोद्धार को बढ़ावा देने के लिए सरकार भी किसानों को सब्सिडी दे रही है। इसकी जानकारी के लिए किसान अपने जिले के उद्यान विभाग कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं।

50–60 किलो तक फल दे रहे पुराने पेड़

विशेषज्ञों के अनुसार, इस तकनीक को अपनाने के बाद जो पेड़ पहले बेकार हो चुके थे, वे औसतन 50 से 60 किलो प्रति पेड़ तक फल देने लगते हैं। थोड़े से धैर्य और वैज्ञानिक प्रबंधन के साथ किसान अपने पुराने आम के बाग को फिर से मुनाफे का सौदा बना सकते हैं।

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यादव समाज की नाराजगी के बीच इंद्रेश उपाध्याय ने तोड़ी चुप्पी, मांगी माफी

उन्होंने अपील करते हुए कहा कि “भारत के सभी यादव मेरे अपने हैं - हम एक ही संस्कृति की कड़ी हैं और भगवान श्रीकृष्ण के अनुयायी हैं।” उपाध्याय ने दोहराया कि यदि उनके वक्तव्य से किसी को भी दुख पहुंचा है, तो वह बिना किसी संकोच के क्षमा मांगते हैं।

यादव समाज से माफी मांगते इंद्रेश उपाध्याय
यादव समाज से माफी मांगते इंद्रेश उपाध्याय
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar25 Dec 2025 10:30 AM
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Indresh Upadhyay : वृंदावन के चर्चित कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय ने यदुवंश को लेकर सामने आए कथित विवादित बयान पर यादव समाज से सार्वजनिक रूप से माफी मांगते हुए अपनी बात साफ की है। सोशल मीडिया पर जारी भावुक वीडियो संदेश में उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य किसी भी समाज या समुदाय की भावनाओं को आहत करना नहीं था। उपाध्याय ने स्पष्ट किया कि जिस प्रसंग को लेकर विवाद खड़ा हुआ, वह करीब 4–5 साल पुरानी कथा से जुड़ा है, जिसके चुनिंदा हिस्से हाल में वायरल होकर गलत अर्थों में लिए गए। उन्होंने कहा कि यदि उनके शब्दों से यादव समाज को पीड़ा पहुंची है, तो वह दिल से क्षमाप्रार्थी हैं। साथ ही उन्होंने यह भी दोहराया कि यादव समाज के प्रति उनके मन में हमेशा सम्मान रहा है और आगे भी कायम रहेगा।

मेरे किसी शब्द से पीड़ा हुई तो मैं क्षमा चाहता हूं - इंद्रेश उपाध्याय

वीडियो संदेश में कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय ने साफ किया कि उनके कथन का अभिप्राय किसी भी समाज को छोटा दिखाने या उसकी भावनाओं को आहत करने का कभी नहीं रहा। उन्होंने अपील करते हुए कहा कि “भारत के सभी यादव मेरे अपने हैं - हम एक ही संस्कृति की कड़ी हैं और भगवान श्रीकृष्ण के अनुयायी हैं।” उपाध्याय ने दोहराया कि यदि उनके वक्तव्य से किसी को भी दुख पहुंचा है, तो वह बिना किसी संकोच के क्षमा मांगते हैं। अपनी सफाई में उन्होंने यह भी कहा कि कई बार कुछ लोग पुराने संदर्भों को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं, जिससे समाज में अनावश्यक तनाव और विभाजन की स्थिति बनती है। उन्होंने बताया कि यादव समाज में उनके कई मित्र और परिचित हैं, जिनके प्रति उनके मन में हमेशा आदर रहा है। साथ ही, यादव समाज के गौरवशाली इतिहास का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि वह उसकी परंपरा और योगदान का सम्मान करते हैं और आगे भी करते रहेंगे।

क्या है पूरा विवाद?

यह विवाद तब भड़का जब इंद्रेश उपाध्याय की करीब 4–5 साल पुरानी कथा का एक वीडियो क्लिप अचानक सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। वायरल अंश में यदुवंश और भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े संदर्भ को लेकर कथित तौर पर आपत्तिजनक अर्थ निकाले गए, जिसके बाद मथुरा समेत उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में यादव समाज के बीच नाराजगी उभरकर सामने आई। समाज के विभिन्न संगठनों और प्रतिनिधियों ने बयान को इतिहास व शास्त्रीय संदर्भों के विपरीत बताते हुए आपत्ति दर्ज कराई और सार्वजनिक रूप से माफी की मांग तेज कर दी। कुछ संगठनों ने यह संकेत भी दिया कि यदि माफी नहीं मांगी गई, तो मामला कानूनी कार्रवाई तक जा सकता है, जिससे विवाद ने और तूल पकड़ लिया। Indresh Upadhyay