मुंबई की राजनीति में बड़ा दांव, बीएमसी चुनाव से पहले UBT-मनसे गठबंधन
महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा और ऐतिहासिक मोड़ सामने आ रहा है। बीएमसी चुनाव 2026 से पहले ठाकरे परिवार एक बार फिर एकजुट होता नजर आ रहा है।

बता दें कि करीब 20 साल बाद शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने गठबंधन का औपचारिक ऐलान कर दिया है। इस फैसले से दोनों दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं में उत्साह का माहौल है। शिवतीर्थ पर आयोजित संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने एक मंच साझा करते हुए गठबंधन की घोषणा की। नेताओं का कहना है कि यह सिर्फ राजनीतिक समझौता नहीं, बल्कि बालासाहेब ठाकरे की विचारधारा को आगे बढ़ाने की एक नई शुरुआत है।
भावनात्मक क्षण, कार्यकर्ताओं की आंखें नम
इस गठबंधन को लेकर शिवसैनिकों में खासा भावनात्मक माहौल देखा गया। बालासाहेब ठाकरे के दौर से शिवसेना से जुड़े कई वरिष्ठ कार्यकर्ता, जिनकी उम्र 80–90 वर्ष के करीब है, इस पल को देखकर भावुक हो उठे। लंबे समय से ठाकरे परिवार के एक होने की उम्मीद कर रहे कार्यकर्ताओं के लिए यह सपना पूरा होने जैसा है।
‘मराठी मानुष के लिए मंगलमय दिन’ – संजय राउत
शिवसेना UBT के सांसद संजय राउत ने इस मौके को ऐतिहासिक बताते हुए कहा है कि आज का दिन मराठी मानुष के लिए मंगलमय है। मुझे वह दिन याद आता है जब संयुक्त महाराष्ट्र का मंगल कलश आया था। आज राज और उद्धव मराठी मानुष के लिए वही मंगल कलश लेकर आए हैं।
पोस्टर पर सिर्फ बालासाहेब ठाकरे की तस्वीर
गठबंधन की घोषणा के दौरान एक खास बात सामने आई। मंच पर लगाए गए पोस्टर में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की तस्वीर नहीं थी। केवल शिवसेना और मनसे के चुनाव चिन्हों के साथ बालासाहेब ठाकरे की तस्वीर नजर आई, जिसे उनकी विरासत और विचारधारा के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है।
कांग्रेस और शरद पवार को साथ लाने की इच्छा
गठबंधन के साथ ही शिवसेना UBT की ओर से यह संकेत भी दिया गया कि कांग्रेस और शरद पवार को भी साथ लाने की कोशिश की जाएगी। संजय राउत ने कहा है कि गठबंधन या महागठबंधन में हर बार मनचाही चीज नहीं मिलती। व्यक्तियों के प्रेम में न पड़कर सीटों का बंटवारा जीत की क्षमता के आधार पर होना चाहिए। जो जीत सकता है, उसे सीट मिलनी चाहिए।
बीएमसी चुनाव पर टिकी निगाहें
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक ठाकरे बंधुओं का यह गठबंधन बीएमसी चुनाव 2026 में बड़ा असर डाल सकता है। मुंबई की राजनीति में यह समीकरण सत्ताधारी दलों के लिए चुनौती बन सकता है और मराठी वोट बैंक को एकजुट करने की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है।
बता दें कि करीब 20 साल बाद शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने गठबंधन का औपचारिक ऐलान कर दिया है। इस फैसले से दोनों दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं में उत्साह का माहौल है। शिवतीर्थ पर आयोजित संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने एक मंच साझा करते हुए गठबंधन की घोषणा की। नेताओं का कहना है कि यह सिर्फ राजनीतिक समझौता नहीं, बल्कि बालासाहेब ठाकरे की विचारधारा को आगे बढ़ाने की एक नई शुरुआत है।
भावनात्मक क्षण, कार्यकर्ताओं की आंखें नम
इस गठबंधन को लेकर शिवसैनिकों में खासा भावनात्मक माहौल देखा गया। बालासाहेब ठाकरे के दौर से शिवसेना से जुड़े कई वरिष्ठ कार्यकर्ता, जिनकी उम्र 80–90 वर्ष के करीब है, इस पल को देखकर भावुक हो उठे। लंबे समय से ठाकरे परिवार के एक होने की उम्मीद कर रहे कार्यकर्ताओं के लिए यह सपना पूरा होने जैसा है।
‘मराठी मानुष के लिए मंगलमय दिन’ – संजय राउत
शिवसेना UBT के सांसद संजय राउत ने इस मौके को ऐतिहासिक बताते हुए कहा है कि आज का दिन मराठी मानुष के लिए मंगलमय है। मुझे वह दिन याद आता है जब संयुक्त महाराष्ट्र का मंगल कलश आया था। आज राज और उद्धव मराठी मानुष के लिए वही मंगल कलश लेकर आए हैं।
पोस्टर पर सिर्फ बालासाहेब ठाकरे की तस्वीर
गठबंधन की घोषणा के दौरान एक खास बात सामने आई। मंच पर लगाए गए पोस्टर में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की तस्वीर नहीं थी। केवल शिवसेना और मनसे के चुनाव चिन्हों के साथ बालासाहेब ठाकरे की तस्वीर नजर आई, जिसे उनकी विरासत और विचारधारा के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है।
कांग्रेस और शरद पवार को साथ लाने की इच्छा
गठबंधन के साथ ही शिवसेना UBT की ओर से यह संकेत भी दिया गया कि कांग्रेस और शरद पवार को भी साथ लाने की कोशिश की जाएगी। संजय राउत ने कहा है कि गठबंधन या महागठबंधन में हर बार मनचाही चीज नहीं मिलती। व्यक्तियों के प्रेम में न पड़कर सीटों का बंटवारा जीत की क्षमता के आधार पर होना चाहिए। जो जीत सकता है, उसे सीट मिलनी चाहिए।
बीएमसी चुनाव पर टिकी निगाहें
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक ठाकरे बंधुओं का यह गठबंधन बीएमसी चुनाव 2026 में बड़ा असर डाल सकता है। मुंबई की राजनीति में यह समीकरण सत्ताधारी दलों के लिए चुनौती बन सकता है और मराठी वोट बैंक को एकजुट करने की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है।












