पश्चिम बंगाल में बाबरी मस्जिद वाले विधायक हुमायूं कबीर पर बड़ा पेंच

TMC से निष्कासित किए गए हुमायूँ कबीर के मुद्दे पर एक बड़ा पेंच फंस गया है। यह पेंच इतना बड़ा है कि विधायक को चिल्ला-चिल्लाकर घोषणा करनी पड़ रही है कि ‘‘मैं बाबरी मस्जिद वाला विधायक हुमायूँ कबीर नहीं हूं।

एक नाम, दो विधायक… बंगाल में ‘हुमायूं कबीर’ को लेकर बड़ा कन्फ्यूजन
एक नाम, दो विधायक… बंगाल में ‘हुमायूं कबीर’ को लेकर बड़ा कन्फ्यूजन
locationभारत
userआरपी रघुवंशी
calendar12 Dec 2025 03:58 PM
bookmark

Humayun Kabir : पश्चिम बंगाल में बाबरी मस्जिद बनाने की नींव पड़ गई है। पश्चिम बंगाल में बाबरी मस्जिद की नींव तृणमूल कांग्रेस (TMC) के एक विधायक हुमायूं कबीर ने रखी है। टीएमसी (TMC) ने विधायक हुमायूं कबीर को पार्टी से निष्कासित कर दिया है। TMC से निष्कासित किए गए हुमायूँ कबीर के मुद्दे पर एक बड़ा पेंच फंस गया है। यह पेंच इतना बड़ा है कि विधायक को चिल्ला-चिल्लाकर घोषणा करनी पड़ रही है कि ‘‘मैं बाबरी मस्जिद वाला विधायक हुमायूँ कबीर नहीं हूं। 

नाम के संकट ने उलझा दिया हुमायूं कबीर का मामला

दुनिया के प्रसिद्ध लेखक तथा दार्शनिक शेक्सपियर ने कहा था कि 'नाम में क्यों रखा है' और कई मायने में यह कथन सच लगता है, लेकिन पश्चिम बंगाल में, इन दिनों यह उक्ति मिथ्या साचित हो रही है। यहां नाम को लेकर राजनीति गरमा गई है। पश्चिम बंगाल में दो-दो हुमायूं कबीर को लेकर अफरा-तफरी मची है। मजे की बात है कि दोनों ही हुमायूं कबीर तृणमूल कांग्रेस के नेता हैं और दोनों ही विधायक भी। एक हुमायूं कबीर हैं भरतपुर के विधायक, जो जो मुर्शिदाबाद जिले के बेलडांगा में बीते 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद की नींव रखने के बाद चर्चा में बने हुए हैं और दूसरे हुमायूं कबीर हैं डेबरा के विधायक, जो पहले भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में थे। डेबरा वाले पुलिस सेवा से राजनीति में आए और तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए। भरतपुर वाले ने कांग्रेस की टिकट पर विधानसभा पहुंचने के बाद तृणमूल का दामन थामा था।

मैं बाबरी मजिस्द वाला हुमायूं कबीर नहीं हूं

एक ही नाम होने के कारण डेबरा वाले हुमायूं कबीर को बीते दो-तीन दिनों से परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उनकी फोन की घंटी लगातार बज रही है और वह यह बताते बताते थक से गए हैं कि मैं बाबरी मस्जिद वाला हुमायूं कबीर नहीं हूं। दरअसल, भरतपुर के विधायक ने छह दिसंबर को बेलडांगा में बाबरी मस्जिद की नींव रखी थी और इसके निर्माण के लिए लोगों से 'क्यूआर कोड' के जरिये आर्थिक मदद देने का आग्रह किया था। जिन्हें नहीं मालूम कि बंगाल में हुमायूं कबीर नाम के दो-दो विधायक हैं, वे मस्जिद निर्माण में आर्थिक सहयोग देने के लिए लगातार डेबरा वाले विधायक को फोन कर 'क्यूआर कोड' या 'गूगल-पे नंबर' या 'बैंक अकाउंट नंबर' मांग रहे हैं। डेबरा विधायक ने बताया कि एक जैसा नाम होने के कारण बीते तीन दिनों में 300 से अधिक लोगों ने चंदा देने की इच्छा से उन्हें फोन किया। ये फोन बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मुंबई, हरियाणा, राजस्थान और विदेशों से भी आ रहे हैं। अब भी अजनबियों के फोन आ रहे हैं। पूर्व आईपीएस और मौजूदा विधायक हुमायूं कबीर ने बताया कि लगातार फोन और संदेश का जवाब देने में बहुत मुश्किल हो रही है। उन्हें बार-बार समझाना पड़ रहा है कि वह मुर्शिदाबाद वाले हुमायूं कबीर नहीं हैं। वह सफाई देते फिर रहे हैं कि उनका नाम भी हुमायूं कंबीर है, लेकिन उन्हें तृणमूल कांग्रेस से निलंबित नहीं किया गया है

सोशल मीडिया पर देनी पड़ रही है सफाई

डेबरा वाले हुमायूं कबीर को सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखकर भी सफाई देनी पड़ रही है। डेबरा वाले हुमायूं कबीर ने कहा कि स्थिति थोड़ी अजीब हो गई है, लेकिन वह विनम्रतापूर्वक लोगों को सही नंबर ढूंढने और भरतपुर वाले हुमायूं कबीर से संपर्क करने की सलाह दे रहे हैं। उन्होंने फेसबुक पर पोस्ट भी लिखा कि मंदिर और मस्जिद राजनीतिक अखाड़ा नहीं, बल्कि प्रार्थना व पूजा के स्थल हैं। Humayun Kabir

अगली खबर पढ़ें

पूर्व गृह मंत्री शिवराज पाटिल का निधन, 90 वर्ष की उम्र में ली अंतिम सांस

इसके बाद वे लगातार सात बार इसी सीट से चुनकर संसद पहुंचे। यह रिकॉर्ड उन्हें महाराष्ट्र की राजनीति में प्रभावशाली चेहरों की कतार में खड़ा करता है और लातूर क्षेत्र में उनकी पकड़ को भी रेखांकित करता है।

पूर्व गृह मंत्री शिवराज पाटिल
पूर्व गृह मंत्री शिवराज पाटिल
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar12 Dec 2025 09:23 AM
bookmark

Shivraj Patil : कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और देश के पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल का शुक्रवार को महाराष्ट्र के लातूर में 90 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वे लंबे समय से अस्वस्थ थे और घर पर ही उपचार व देखरेख के बीच थे। सुबह करीब 6:30 बजे उन्होंने अपने निवास पर अंतिम सांस ली। उनके जाने से महाराष्ट्र ही नहीं, राष्ट्रीय राजनीति में भी शोक की लहर है क्योंकि शिवराज पाटिल को एक शांत, संयत और बेहद कर्मठ नेता के रूप में व्यापक सम्मान मिलता रहा।

शुरुआती जीवन और शिक्षा

12 अक्टूबर 1935 को लातूर जिले के चाकुर में जन्मे शिवराज पाटिल ने पढ़ाई पूरी करने के बाद पहले आयुर्वेद का अभ्यास किया। इसके बाद उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की। राजनीति में उनकी औपचारिक शुरुआत 1967 में मानी जाती है, जब उन्होंने लातूर नगर पालिका से सार्वजनिक जीवन की जिम्मेदारी संभाली और यहीं से उनके लंबे राजनीतिक सफर की नींव पड़ी। शिवराज पाटिल 1980 में पहली बार लातूर लोकसभा सीट से सांसद बने। इसके बाद वे लगातार सात बार इसी सीट से चुनकर संसद पहुंचे। यह रिकॉर्ड उन्हें महाराष्ट्र की राजनीति में प्रभावशाली चेहरों की कतार में खड़ा करता है और लातूर क्षेत्र में उनकी पकड़ को भी रेखांकित करता है।

केंद्र सरकार में अहम भूमिकाएं

अपने राजनीतिक जीवन में शिवराज पाटिल ने केंद्र में कई महत्वपूर्ण विभागों में जिम्मेदारियां निभाईं। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के कार्यकाल में उन्होंने रक्षा, वाणिज्य, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, परमाणु ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स और अंतरिक्ष जैसे मंत्रालयों में राज्य मंत्री के तौर पर काम किया। उनका प्रशासनिक अनुभव और कामकाजी शैली उन्हें पार्टी के भरोसेमंद नेताओं में शामिल करती रही।

लोकसभा स्पीकर के रूप में निर्णायक दौर

शिवराज पाटिल 1991 से 1996 तक लोकसभा अध्यक्ष रहे। उनके कार्यकाल को संसद की कार्यप्रणाली में बदलाव और तकनीकी अपग्रेड के लिए याद किया जाता है। उन्होंने लोकसभा के आधुनिकीकरण, कंप्यूटरीकरण, कार्यवाही के सीधे प्रसारण और नई लाइब्रेरी बिल्डिंग जैसे प्रयासों को गति दी जिसे भारतीय संसद के प्रशासनिक-तकनीकी संक्रमणकाल का महत्वपूर्ण अध्याय माना जाता है।

26/11 के बाद दे दिया था इस्तीफा

2004 में चुनाव हारने के बावजूद उन्हें केंद्र में गृह मंत्री बनाया गया। लेकिन 2008 के मुंबई आतंकी हमलों के बाद उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए पद से इस्तीफा दे दिया। यह फैसला उनके सार्वजनिक जीवन में जवाबदेही के संकेत के तौर पर अक्सर उल्लेखित किया जाता रहा। इसके बाद शिवराज पाटिल को पंजाब का राज्यपाल और चंडीगढ़ का प्रशासक नियुक्त किया गया। उन्होंने 2010 से 2015 तक इस भूमिका में कार्य किया और प्रशासनिक स्तर पर अपने अनुभव का उपयोग किया। Shivraj Patil

अगली खबर पढ़ें

दस लाख साल पुरानी खोपड़ी से बदली इंसानी विकास की कहानी

चीन में मिली करीब 10 लाख साल पुरानी मानव खोपड़ी ने मानव विकास की अब तक मानी गई कहानी को चुनौती दे दी है। नई स्टडी के मुताबिक यह खोपड़ी दिखाती है कि होमो सेपियन्स की शुरुआत अब तक सोचे गए समय से लगभग 5 लाख साल पहले हो चुकी थी।

Research on the human skull
मानव खोपड़ी पर रिसर्च करते (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar11 Dec 2025 05:22 PM
bookmark

बता दें कि इसका मतलब यह भी हो सकता है कि हमारी प्रजाति लंबे समय तक नियंडरथल्स और होमो लॉन्गी जैसी अन्य मानव प्रजातियों के साथ धरती पर एक-साथ रहती थी। यह शोध प्रतिष्ठित मैगज़ीन 'साइंस' में प्रकाशित हुआ है, जिसे चीन की फ़ुदान यूनिवर्सिटी और ब्रिटेन के नेचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम के वैज्ञानिकों ने मिलकर किया है। शोधकर्ताओं के अनुसार यह खोज मानव विकास की समझ को पूरी तरह बदल सकती है।

खोपड़ी की पहचान में बड़ा उलटफेर

बता दें कि मिली हुई इस खोपड़ी — जिसका नाम ‘युनशियन 2’ रखा गया है जो कि पहले होमो इरेक्टस माना गया था। लेकिन नए विश्लेषण से पता चला कि यह वास्तव में होमो लॉन्गी का पुराना रूप है, यानी वह प्रजाति जो विकास के मामले में नियंडरथल्स और आधुनिक इंसानों के बराबर थी। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर होमो लॉन्गी लगभग 10 लाख साल पहले मौजूद था, तो संभव है कि होमो सेपियन्स और नियंडरथल्स भी उसी समय उभर चुके हों।

जेनेटिक विश्लेषण से मजबूत हुआ दावा

बता दें कि खोपड़ी के आकार के साथ-साथ जेनेटिक डेटा ने भी यही संकेत दिए है कि यह साधारण होमो इरेक्टस नहीं बल्कि ज्यादा विकसित मानव समूह का हिस्सा था। हालांकि कुछ वैज्ञानिक इन निष्कर्षों को अभी शुरुआती मानते हैं और कहते हैं कि ''और साक्ष्यों की जरूरत है'' ताकि यह पक्का कहा जा सके कि इंसानों की आधुनिक वंशावली वास्तव में कितनी पुरानी है।

क्या होमो सेपियन्स की उत्पत्ति एशिया में हुई?

अफ्रीका से मिले सबसे पुराने होमो सेपियन्स जीवाश्म करीब 3 लाख साल पुराने हैं। लेकिन अगर चीन की नई खोज सही साबित होती है, तो यह संकेत मिल सकता है कि आधुनिक इंसानों की जड़ें एशिया में और पहले विकसित हुई हों। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि अफ्रीका और यूरोप से मिले 10 लाख साल पुराने जीवाश्मों का भी विश्लेषण जरूरी है।

तीन प्रजातियां हजारों साल तक साथ रहीं

नई टाइमलाइन के अनुसार होमो सेपियन्स, होमो लॉन्गी और नियंडरथल्स तीनों प्रजातियां लगभग 8 लाख साल तक धरती पर साथ रहीं है और इस लंबे समय में आपस में मिलने-मिलाने और प्रजनन की संभावना भी है। इससे उन कई पुराने जीवाश्मों को समझने में आसानी होगी जो अब तक किसी एक प्रजाति में फिट नहीं बैठते थे।

कैसे हुई असली रूप में पहचान?

युनशियन क्षेत्र से मिली खोपड़ियां बुरी तरह दबकर क्षतिग्रस्त हो गई थीं। शोधकर्ताओं ने इन्हें स्कैनिंग, कंप्यूटर मॉडलिंग और 3D प्रिंटिंग तकनीक से फिर से असली आकार दिया। इसके बाद ही वैज्ञानिक पहचान सके कि यह इंसानों की एक ज्यादा एडवांस प्रजाति थी।

नतीजा: मानव विकास की कहानी फिर से लिखनी पड़ सकती है

अगर यह अध्ययन आगे भी सही साबित होता है, तो मानव विकास की शुरुआत से लेकर विभिन्न प्रजातियों के आपसी संबंधों तक— पूरी टाइमलाइन को नए सिरे से लिखना पड़ सकता है।