पूर्व गृह मंत्री शिवराज पाटील का मंत्रालय सबसे ज्यादा चर्चा में क्यों रहा?
हालांकि विरोधियों ने इसे लेकर सवाल उठाए। दावा किया गया कि चुनाव हारने के बावजूद पार्टी नेतृत्व से नजदीकी के चलते उन्हें इतना अहम मंत्रालय मिला। बाद में वही कार्यकाल उनके राजनीतिक जीवन का सबसे ज्यादा चर्चा और बहस वाला अध्याय बन गया।

Shivraj Patil : भारतीय राजनीति में कुछ नेता अपने दशकों लंबे अनुभव से पहचाने जाते हैं, लेकिन कुछ की सार्वजनिक छवि किसी एक विवाद की परछाईं में हमेशा के लिए कैद हो जाती है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज विश्वनाथ पाटील का नाम भी इसी वजह से अक्सर चर्चा में रहा। शुक्रवार सुबह उनके निधन की खबर के साथ एक दौर की यादें फिर ताज़ा हो गईं। मनमोहन सिंह सरकार के पहले कार्यकाल (2004–2008) में देश की आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी उनके कंधों पर थी, मगर उसी अवधि में लगातार हुए आतंकी हमलों ने सुरक्षा तंत्र पर तीखे सवाल खड़े किए। और फिर ‘सूट बदलने’ वाला विवाद जिसने उनके प्रशासनिक कामकाज से ज़्यादा, उनकी छवि पर सबसे गहरी छाप छोड़ दी और उन्हें लंबे समय तक सुर्खियों में बनाए रहा।
गृह मंत्रालय बना सबसे विवादित अध्याय
1935 में महाराष्ट्र के लातूर जिले के चाकूर में जन्मे शिवराज विश्वनाथ पाटील ने सियासत में लंबी और असरदार पारी खेली। लातूर की जनता ने उन्हें सात बार लोकसभा पहुंचाया और वे लोकसभा अध्यक्ष जैसे प्रतिष्ठित पद तक भी पहुंचे। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के दौर में भी वे केंद्र सरकार में मंत्री रहे, यानी सत्ता और संगठन दोनों के गलियारों में उनकी पकड़ रही। 2004 में यूपीए की सरकार बनी तो गृह मंत्रालय की कमान उन्हें सौंपी गई। हालांकि विरोधियों ने इसे लेकर सवाल उठाए। दावा किया गया कि चुनाव हारने के बावजूद पार्टी नेतृत्व से नजदीकी के चलते उन्हें इतना अहम मंत्रालय मिला। बाद में वही कार्यकाल उनके राजनीतिक जीवन का सबसे ज्यादा चर्चा और बहस वाला अध्याय बन गया।
2005-2008: हमलों की श्रृंखला और बढ़ता दबाव
उनके गृह मंत्री रहते देश ने एक के बाद एक बड़े आतंकी हमलों और सिलसिलेवार धमाकों का दर्द झेला। हैदराबाद से लेकर मालेगांव, जयपुर, अहमदाबाद, बेंगलुरु और दिल्ली तक फैली इन घटनाओं ने पूरे सुरक्षा तंत्र को कटघरे में खड़ा कर दिया। हर हमले के बाद यही सवाल गूंजता रहा कि खुफिया एजेंसियां खतरे के संकेत समय रहते क्यों नहीं पकड़ पाईं और समन्वय में चूक कहां हुई। विपक्ष ने इन हमलों को सरकार की आंतरिक सुरक्षा रणनीति की कमजोरी बताकर गृह मंत्रालय को लगातार निशाने पर रखा, जिससे संसद से लेकर सियासी मंचों तक तीखी बहस छिड़ी रही।
एक घटना जिसने छवि बदल दी
असल विवाद की शुरुआत 13 सितंबर 2008 के दिल्ली सीरियल ब्लास्ट के बाद हुई। धमाकों के बाद जब गृह मंत्री मौके पर पहुंचे, तब टीवी कवरेज में वे अलग-अलग समय पर अलग-अलग पहनावे में नजर आए। मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया कि उस दिन उन्होंने कई बार कपड़े बदले कभी सफेद बंदगला, कभी काला, फिर दोबारा सफेद। आलोचकों ने इसे प्रतीक बना दिया कि जिस समय देश सदमे में था, उसी समय गृह मंत्री इमेज और अपीयरेंस को प्राथमिकता दे रहे थे। यही वह बिंदु था, जिसके बाद उनके लिए ‘सीरियल ड्रेसर’ जैसे तंज चल पड़े और विवाद उनकी राजनीतिक पहचान का हिस्सा बन गया। हालांकि समर्थकों का तर्क रहा कि मौके पर अलग-अलग कार्यक्रम/बैठकों के कारण पहनावे में बदलाव असामान्य नहीं, लेकिन जनभावना पर इसका असर गहरा पड़ा।
‘जवाबदेही’ की मांग और कुर्सी पर संकट
दिल्ली ब्लास्ट के ठीक दो महीने बाद 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर भयावह आतंकी हमला हुआ। ताज होटल, ओबेरॉय, नरीमन हाउस और CST सहित कई स्थान निशाने पर रहे। तीन दिन तक चले ऑपरेशन में 166 लोगों की मौत और सैकड़ों के घायल होने की खबरें सामने आईं। इस हमले के बाद केंद्र सरकार और गृह मंत्रालय पर जवाबदेही का दबाव चरम पर पहुंच गया। मीडिया और विपक्ष ने सुरक्षा चूक, खुफिया इनपुट, और त्वरित कार्रवाई/समन्वय पर गंभीर सवाल उठाए। कुछ रिपोर्टों में एनएसजी की तैनाती और निर्णय प्रक्रिया को लेकर भी देरी के आरोप उठे। इस पूरे माहौल में शिवराज पाटील के इस्तीफे की मांग जोर पकड़ने लगी। दबाव बढ़ने के बाद 30 नवंबर 2008 को शिवराज पाटील ने गृह मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने हमले के लिए नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए प्रधानमंत्री को इस्तीफा सौंपा। इसके बाद उनकी जगह पी. चिदंबरम को गृह मंत्री बनाया गया। इस्तीफे के साथ ही उनका सक्रिय राजनीतिक प्रभाव भी धीमा पड़ता चला गया। आगे चलकर वे पंजाब के राज्यपाल भी बने और कुछ समय बाद सार्वजनिक राजनीति के केंद्र से दूर होते गए।
जनता की यादों में क्यों रह गए ‘विवाद’ के साथ?
शिवराज पाटील का करियर उपलब्धियों और बड़े पदों से भरा रहा, लेकिन गृह मंत्रालय का वह दौर जहां एक तरफ देश आतंकी चुनौती से जूझ रहा था और दूसरी तरफ उनके ऊपर नेतृत्व, तैयारी और प्राथमिकताओं को लेकर सवाल उठते रहे उनकी छवि का निर्णायक अध्याय बन गया। समर्थक उन्हें अनुभवी और संयमित नेता मानते रहे, जबकि आलोचकों की नजर में वे संकट के समय कमजोर नेतृत्व और विवादित अपीयरेंस के प्रतीक बन गए। Shivraj Patil
Shivraj Patil : भारतीय राजनीति में कुछ नेता अपने दशकों लंबे अनुभव से पहचाने जाते हैं, लेकिन कुछ की सार्वजनिक छवि किसी एक विवाद की परछाईं में हमेशा के लिए कैद हो जाती है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज विश्वनाथ पाटील का नाम भी इसी वजह से अक्सर चर्चा में रहा। शुक्रवार सुबह उनके निधन की खबर के साथ एक दौर की यादें फिर ताज़ा हो गईं। मनमोहन सिंह सरकार के पहले कार्यकाल (2004–2008) में देश की आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी उनके कंधों पर थी, मगर उसी अवधि में लगातार हुए आतंकी हमलों ने सुरक्षा तंत्र पर तीखे सवाल खड़े किए। और फिर ‘सूट बदलने’ वाला विवाद जिसने उनके प्रशासनिक कामकाज से ज़्यादा, उनकी छवि पर सबसे गहरी छाप छोड़ दी और उन्हें लंबे समय तक सुर्खियों में बनाए रहा।
गृह मंत्रालय बना सबसे विवादित अध्याय
1935 में महाराष्ट्र के लातूर जिले के चाकूर में जन्मे शिवराज विश्वनाथ पाटील ने सियासत में लंबी और असरदार पारी खेली। लातूर की जनता ने उन्हें सात बार लोकसभा पहुंचाया और वे लोकसभा अध्यक्ष जैसे प्रतिष्ठित पद तक भी पहुंचे। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के दौर में भी वे केंद्र सरकार में मंत्री रहे, यानी सत्ता और संगठन दोनों के गलियारों में उनकी पकड़ रही। 2004 में यूपीए की सरकार बनी तो गृह मंत्रालय की कमान उन्हें सौंपी गई। हालांकि विरोधियों ने इसे लेकर सवाल उठाए। दावा किया गया कि चुनाव हारने के बावजूद पार्टी नेतृत्व से नजदीकी के चलते उन्हें इतना अहम मंत्रालय मिला। बाद में वही कार्यकाल उनके राजनीतिक जीवन का सबसे ज्यादा चर्चा और बहस वाला अध्याय बन गया।
2005-2008: हमलों की श्रृंखला और बढ़ता दबाव
उनके गृह मंत्री रहते देश ने एक के बाद एक बड़े आतंकी हमलों और सिलसिलेवार धमाकों का दर्द झेला। हैदराबाद से लेकर मालेगांव, जयपुर, अहमदाबाद, बेंगलुरु और दिल्ली तक फैली इन घटनाओं ने पूरे सुरक्षा तंत्र को कटघरे में खड़ा कर दिया। हर हमले के बाद यही सवाल गूंजता रहा कि खुफिया एजेंसियां खतरे के संकेत समय रहते क्यों नहीं पकड़ पाईं और समन्वय में चूक कहां हुई। विपक्ष ने इन हमलों को सरकार की आंतरिक सुरक्षा रणनीति की कमजोरी बताकर गृह मंत्रालय को लगातार निशाने पर रखा, जिससे संसद से लेकर सियासी मंचों तक तीखी बहस छिड़ी रही।
एक घटना जिसने छवि बदल दी
असल विवाद की शुरुआत 13 सितंबर 2008 के दिल्ली सीरियल ब्लास्ट के बाद हुई। धमाकों के बाद जब गृह मंत्री मौके पर पहुंचे, तब टीवी कवरेज में वे अलग-अलग समय पर अलग-अलग पहनावे में नजर आए। मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया कि उस दिन उन्होंने कई बार कपड़े बदले कभी सफेद बंदगला, कभी काला, फिर दोबारा सफेद। आलोचकों ने इसे प्रतीक बना दिया कि जिस समय देश सदमे में था, उसी समय गृह मंत्री इमेज और अपीयरेंस को प्राथमिकता दे रहे थे। यही वह बिंदु था, जिसके बाद उनके लिए ‘सीरियल ड्रेसर’ जैसे तंज चल पड़े और विवाद उनकी राजनीतिक पहचान का हिस्सा बन गया। हालांकि समर्थकों का तर्क रहा कि मौके पर अलग-अलग कार्यक्रम/बैठकों के कारण पहनावे में बदलाव असामान्य नहीं, लेकिन जनभावना पर इसका असर गहरा पड़ा।
‘जवाबदेही’ की मांग और कुर्सी पर संकट
दिल्ली ब्लास्ट के ठीक दो महीने बाद 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर भयावह आतंकी हमला हुआ। ताज होटल, ओबेरॉय, नरीमन हाउस और CST सहित कई स्थान निशाने पर रहे। तीन दिन तक चले ऑपरेशन में 166 लोगों की मौत और सैकड़ों के घायल होने की खबरें सामने आईं। इस हमले के बाद केंद्र सरकार और गृह मंत्रालय पर जवाबदेही का दबाव चरम पर पहुंच गया। मीडिया और विपक्ष ने सुरक्षा चूक, खुफिया इनपुट, और त्वरित कार्रवाई/समन्वय पर गंभीर सवाल उठाए। कुछ रिपोर्टों में एनएसजी की तैनाती और निर्णय प्रक्रिया को लेकर भी देरी के आरोप उठे। इस पूरे माहौल में शिवराज पाटील के इस्तीफे की मांग जोर पकड़ने लगी। दबाव बढ़ने के बाद 30 नवंबर 2008 को शिवराज पाटील ने गृह मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने हमले के लिए नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए प्रधानमंत्री को इस्तीफा सौंपा। इसके बाद उनकी जगह पी. चिदंबरम को गृह मंत्री बनाया गया। इस्तीफे के साथ ही उनका सक्रिय राजनीतिक प्रभाव भी धीमा पड़ता चला गया। आगे चलकर वे पंजाब के राज्यपाल भी बने और कुछ समय बाद सार्वजनिक राजनीति के केंद्र से दूर होते गए।
जनता की यादों में क्यों रह गए ‘विवाद’ के साथ?
शिवराज पाटील का करियर उपलब्धियों और बड़े पदों से भरा रहा, लेकिन गृह मंत्रालय का वह दौर जहां एक तरफ देश आतंकी चुनौती से जूझ रहा था और दूसरी तरफ उनके ऊपर नेतृत्व, तैयारी और प्राथमिकताओं को लेकर सवाल उठते रहे उनकी छवि का निर्णायक अध्याय बन गया। समर्थक उन्हें अनुभवी और संयमित नेता मानते रहे, जबकि आलोचकों की नजर में वे संकट के समय कमजोर नेतृत्व और विवादित अपीयरेंस के प्रतीक बन गए। Shivraj Patil












