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पीएम मोदी के अमेरिकी दौरे के लिए जिम्मेदार हैं ये 5 बातें

पश्चिमी देशों को तब पता चला कि यह देश उनकी कमजोरी बन चुका है। यहां उत्पादन बंद होते ही यूरोप का व्यापार तबाह हो जाएगा।

Anjanabhagi by Anjanabhagi
24 September 2021 , 11:11 AM
in Featured, National-International, Political, राष्ट्रीय
File Photo

PM Modi US Visit

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लगभग डेढ़ साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एशिया के बाहर किसी देश की यात्रा पर हैं। अपने तीन दिवसीय अमेरिकी दौरे के दौरान वह क्वॉड (Quad: Quadrilateral Security Dialogue) की बैठक में हिस्सा लेंगे। आखिर, पीएम मोदी के अमेरिका जाने और क्वॉड के चर्चा में आने की वजह क्या है?

पहली बार पश्चिमी देश हुए इतने मजबूर!
कोरोना महामारी ने दुनिया के विकसित और औद्योगिक देशों को चीन पर उनकी निर्भरता का एहसास करा दिया है। अब तक हुए दो विश्व युद्धों में अमेरिका व यूरोपीय देशों ने अपनी सामरिक क्षमता और एकता के बल पर जर्मनी और सोवियत संघ को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया था। लेकिन, कोरोना महामारी ने पश्चिमी देशों को बता दिया कि चीन से सीधी लड़ाई में जीत किसी की भी हो लेकिन, आर्थिक नुकसान अमेरिका और यूरोप का ही होगा।

कोरोना ने अमेरिका और यूरोप के प्रमुख देशों ब्रिटेन, जर्मनी और इटली को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। यह पता होने के बावजूद कि इस महामारी को फैलाने वाला चीन है, पश्चिमी देश उसके खिलाफ कोई कार्यवाही करना तो दूर उसे दोषी ठहराने का भी साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। आखिर, पश्चिमी देश इतने मजबूर क्यों हैं?

पश्चिमी देशों को यह अनदेखी पड़ गई भारी
कोरोना महामारी से पहले चीन अपनी सैन्य ताकत और आर्थिक शक्ति को तेजी से बढ़ा रहा था। एशिया में दादागिरी कर रहा था। ताईवान से लेकर उत्तरी और दक्षिणी चीन सागर में अपनी सैन्य गतिविधियां बढ़ा रहा था। ग्वादर और जिबूती में सैन्य अड्डे बना रहा था।

पश्चिमी देशों को इससे कोई आपत्ति नहीं थी, क्योंकि उन्हें अपनी सैन्य और आर्थिक ताकत पर पूरा भरोसा था। लेकिन, कोरोना ने उनके मुगालते को एक झटके में चकनाचूर कर दिया। पैसे, टेक्नॉलिजी और उच्च गुणवत्ता वाले इंफ्रास्ट्रक्चर के बावजूद पश्चिमी देशों में मौतों का सिलसिला रोके नहीं रुका। अमेरिका तो अब भी इस महामारी से बुरी तरह जूझ रहा है।

पश्चिमी देशों की इस निर्भरता ने उन्हें बनाया कमजोर
अमेरिका सहित यूरोपीय देशों ने चीन के खिलाफ कार्यवाही का मन तो बना लिया लेकिन, जल्द ही उन्हें एहसास हुआ कि इसमें भी उनका ही नुकसान है। असल में चीन अपने सस्ते श्रम, विशाल उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता के कारण दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बन चुका है।

आईफोन की एक्सेसरीज से लेकर इटली की फैशन इंडस्ट्री में इस्तेमाल होने वाले हर छोटे-बड़े सामान का बल्क प्रोडक्शन चीन में होता है। कोरोना काल में चीन से आने वाले कच्चे माल का प्रोडक्शन और सप्लाई ठप्प हो गई। तब पश्चिमी देशों को पता चला कि चीन उनके व्यापार की रीढ़ बन चुका है। चीन में उत्पादन बंद होते ही यूरोप का व्यापार तबाह हो जाएगा।

क्यों भारत की ओर देख रहे पश्चिमी देश?
चीन कम लागत में गुणवत्तापूर्ण सामान बनाने और उसका बहुत बड़े पैमाने पर उत्पादन करने की क्षमता रखता है। साथ ही, दुनिया के किसी भी कोने में जल, थल या हवाई मार्ग से उतनी ही जल्दी डिलीवरी भी कर सकता है। फिलहाल, कोई भी दूसरा देश चीन को इस क्षेत्र में टक्कर देने की हालत में नहीं है।

अमेरिका सहित पश्चिमी देश मैन्युफैक्चरिंग और सप्लाई चेन पर चीन के एकाधिकार (Monopoly) को खत्म करने के लिए अ​फ्रीका और एशिया के दूसरे देशों की ओर देख रहे हैं। अफ्रीकी देशों की गरीबी सहित तकनीकी पिछड़ापन और एशियाई देशों में बढ़ रही कट्टरता और आतंकवाद इस राह में सबसे बड़ा रोड़ा हैं। ऐसे में पश्चिमी देशों को भारत से काफी उम्मीदें हैं।

भारत एक लोकतांत्रिक देश होने के साथ-साथ तकनीक को तेजी से सीखने और प्रयोग करने वाला देश है। चीन की तरह भारत की बड़ी आबादी शिक्षित और तकनीकी दक्षता वाली है। यही वजह है कि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे विकसित और औधोगिक देश भारत के साथ मिल कर क्वॉड को मजबूत बनाने का गंभीर प्रयास कर रहे हैं। अमेरिका में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ क्वॉड देशों की बैठक का असली मकसद वैश्विक आपूर्ति श्रंखला (Global Supply Chain) में चीन के एकाधिकार को कम करना है।

भारत के सामने है दोहरी चुनौती
ग्लोबल सप्लाई चेन पर चीन के एकाधिकार को चुनौती देना बेहद मुश्किल है। चीन में साम्यवादी और तानाशाही शासन है। चीनी सरकार को किसी भी तरह के श्रम कानून बनाने या उन्हें लागू करने से पहले विपक्ष या विरोध का सामना नहीं करना पड़ता।

भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां मजबूत से मजबूत सरकार भी मनमाना कानून नहीं बना सकती। केवल विपक्ष या जनांदोल ही नहीं, भारत की न्यायपालिका ऐसे किसी भी कानून को निष्प्रभावी कर सकती है जो संविधान की मूल भावना के खिलाफ हो।

ऐसे में भारत के सामने चीन के सस्ते श्रम और तकीनीकी दक्षता के साथ-साथ आंतरिक विरोधों से निपटने की दोहरी चुनौती है। देखना दिलचस्प होगा कि भारत इस चुनौती को अवसर में बदल पाने में सफल होता है या नहीं।

– संजीव श्रीवास्तव

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