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खाद्य तेलों की आसमान छूती कीमतों के लिए जिम्मेदार हैं ये देश!

11 September 2021 , 4:46 AM
in Featured, राष्ट्रीय
खाद्य तेलों की आसमान छूती कीमतों के लिए जिम्मेदार हैं ये देश!

आपकी रोजाना जिंदगी में ज्यादा जरूरी क्या है? खाद्य तेल या पेट्रोल-डीजल। पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर हंगामा मचाने वाले भारतीय मीडिया में इस बात को लेकर शायद ही कहीं चर्चा है कि खाद्य तेलों की कीमतों में 30% का उछाल आ चुका है।

आमतौर पर लोग ये मान लेते हैं कि खाद्य तेलों में उछाल की वजह भी पेट्रोल-डीजल ही है। लेकिन, सच इससे बिलकुल उलट है। खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों का पेट्रोल-डीजल से कोई लेना-देना नहीं है।

यह बहस का मुद्दा हो सकता है कि आखिर प्याज और पेट्रोल-डीजन की कीमतों पर हंगामा मचाने वाला भारतीय मीडिया, खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों पर हंगामा क्यों नहीं मचा रहा? इसका जवाब तो टीवी चैनल वाले ही दे सकते हैं लेकिन, फिलहाल हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि खाद्य तेलों की लगातार बढ़ रही कीमतों की असल वजह क्या है?

भारत में खाद्य तेलों की सालाना खपत लगभग ढाई करोड़ मीट्रिक टन है। इसमें से करीब एक करोड़ पैंतालिस लाख टन खाद्य तेल का आयात किया जाता है। यानी भारत में खपत होने वाले कुल खाद्य तेल का 60 से 70 फिसदी हिस्सा विदेशों से मंगाया जाता है।

आयातित खाद्य तेलों में लगभग 70 फिसदी हिस्सा पाम ऑयल यानी वनस्पति तेल/घी (डालडा या रथ) होता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि पाम ऑयल का सबसे बड़ा उत्पादक देश इंडोनेशिया है। दुनिया के कुल पाम ऑयल का लगभग 45% हिस्सा अकेले इं​डोनेशिया में पैदा होता है। पाम ऑयल का 75% से भी ज्यादा उत्पादन इंडोनेशिया, मलेशिया, थाइलैंड, कोलंबिया जैसे दक्षिण पूर्व-एशियाई देश करते हैं। इसके अलावा सोयाबीन और सूरजमुखी के तेल के आयात के लिए हम अमेरिका, ब्राजील, यूक्रेन और रूस पर निर्भर हैं। लगभग 90% आयात इन्हीं देशों से होता है।

भारत सरकार ने पिछले साल आयात शुल्क से करीब 75 हजार करोड़ की कमाई की है। इसमें से 30 हजार करोड़ रुपये, खाद्य तेलों पर लगने वाले आयात शुल्क से मिला है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि खाद्य तेलों के लिए भारत की दूसरे देशों पर निर्भरता कितनी अधिक है। हालांकि, इस दौरान भारत ने खाद्य तेलों पर लगने वाले आयात शुल्क में कमी की है, ताकि तेल की कीमतों को नियंत्रित किया जा सके।

क्यों बढ़ी कीमतें?
1. क्रूड पाम ऑयल का सबसे ज्यादा उत्पादन करने वाली मलेशियाई कंपनी, ‘वर्सा मलेशिया डिरेवेटिव्स’ ने क्रूड पाम ऑयल की कीमतें लगभग दो गुना बढ़ा दी हैं। मई, 2020 में क्रूड पाम ऑयल की कीमत 40780.91 रुपये/टन थी। मई 2021 में इसे बढ़ाकर 69547.45/टन कर दिया गया।

2. इसी तरह सोयाबीन के तेल की कीमत मई 2020 में 22752 रुपये/टन हुआ करती थी, जो मई 2021 में 41580/टन हो गई है।

3. यही वजह है कि भारत में बिकने वाले जिस पाम ऑयल की कीमत जून 2020 में 86 रुपये/किलो थी, वह जून 2021 में बढ़कर 138 रुपये/प्रति किलो हो चुकी है। भारत में खाद्य तेलों में सबसे ज्यादा पाम ऑयल की ही खपत होती है।

4. मई 2021 में खाद्य तेलों की कीमतों में 30.8% का उछाल आया है। खाद्य तेलों की कीमतों में इतना उछाल पहली बार आया है।

क्यों खाद्य तेलों का निर्यात करने वाले देशों ने बढ़ाई कीमत?

1. मलेशिया में बड़े पैमाने पर पाम की खेती होती है। आमतौर पर इन खेतों में काम करने वाले मजदूर आस-पास के गरीब देशों से आते थे। पिछले दो साल से महामारी (कोरोना) के चलते मजदूरों का पलायन लगभग रुक गया है। इस वजह से मलेशिया में मजदूरों की भारी कमी पैदा हो गई है।

2. मौसम के मिजाज में लगातार हो रहे उतार-चढ़ाव या क्लाइमेट चेंज का भी पाम की खेती पर गंभीर असर पड़ा है। इससे उत्पादन में कमी आई है।

3. साथ ही, इंडोनशिया में जैव ईंधन के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा रहा है। ईंधन की कुल खपत में से 30% हिस्सा जैव ईंधन पर निर्भर होने की वजह से पाम का इस्तेमाल खाद्य तेल की जगह जैव ईंधन बनाने में किया जा रहा है।

4. सोयाबीन का उत्पादन करने वाले अमेरिकी राज्यों और सूरजमुखी का उत्पादन करने वाले यूक्रेन और रूस में इस साल सूखा पड़ने की वजह से खाद्य तेलों के उप्पादन में भारी गिरावट आई है। भारत में सोयाबीन के तेल का 85% हिस्सा और सूरजमुखी के तेल का 90% हिस्सा इन्हीं देशों से आयात होता है।

भारत में क्यों नहीं बढ़ रहा उत्पादन ?

देश के किसान और सरकार, खाद्य तेलों के लिए आयात की निर्भरता को कम करने का लगातार प्रयास कर रहे हैं। इसी का नतीजा है कि…

1. भारत में पिछले साल खरीफ के मौसम में लगभग 18 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि पर तिलहन की खेती की गई। यानी एक साल पहले की अपेक्षा 10% ज्यादा भूमि पर तिलहन पैदा किया गया। इस वजह से भारत में मूंगफली के उत्पादन में 30% और सोयाबीन के उत्पादन में 7% की बढ़ोत्तरी हुई।

2. रबी की फसल के दौरान पिछले साल की तुलना में 4% ज्यादा भूमि पर सरसों की खेती की गई।

इन सबके बावजूद भारत खाद्य तेलों की घरेलू मांग के लगभग 40% हिस्से का ही उत्पादन कर पाता है। असल में पिछले कुछ दशकों में भारत में खाद्य तेलों की मांग बहुत तेजी से बढ़ी है।

इसकी सबसे बड़ी वजह है, उदारीकरण। उदारीकरण के बाद भारतीयों के जीवन-स्तर और आमदनी में तेजी से सुधार हुआ है। इस वजह से अन्य चीजों के साथ खाद्य तेलों की मांग लगातार बढ़ रही है।

सरकार क्या कर रही है?

सरकार ने खाद्य तेलों की बढ़ती मांग से​ निपटने के लिए ‘ऑयल पाम प्लान’ (National Mission on Edible Oils – Oil Palm) का एलान किया है। इस योजना के तहत सरकार 11,040 करोड़ रुपये का निवेश करेगी, ताकि लोगों को पाम ऑयल के उत्पादन और पाम की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।

फिलहाल, भारत में लगभग 3.5 लाख हेक्टेयर भूमि पर पाम की खेती होती है। ऑयल पाम प्लान के तहत 2025-26 तक पाम की खेती को 10 लाख हेक्टेयर क्षेत्र तक ले जाने का लक्ष्य है। सरकार आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात में बड़े पैमान पर पाम की खेती को बढ़ाने का प्रयास कर रही है। हालांकि, पाम की खेती पर राजनीति होने की पूरी संभावना है, क्योंकि यह सीधे तौर पर पर्यावरण से जुड़ा मुद्दा है। देखना दिलचस्प होगा कि सरकार पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना पाम का उत्पादन बढ़ाने में सफल हो पाती है या नहीं।

-संजीव श्रीवास्तव

Tags: Edible OilHike in priceImport Export

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