पश्चिम बंगाल : हम सब जानते है की पश्चिम बंगाल की पूरी आबादी का लगभग 30 फीसदी हिस्सा मुस्लिमों का है. पश्चिम बंगाल पर आधिपत्य जमाने के लिए मुस्लिमों का समर्थन अत्यंत आवश्यक हो जाता है ख़ासकर तब जब विरोधी पार्टी हिंदुत्व की जमीन पर निपुण हो. इस बात से इंकार नही किया जा सकता है की तृणमूल कांग्रेस की चुनावों में लगातार जीत के पीछे मुस्लिमों का समर्थन माना जाता है. लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा चुनाव या निकाय या पंचायत चुनाव ही क्यों न हो. मुस्लिमों ने ममता बनर्जी का खुलकर समर्थन किया है. ममता बनर्जी की इस चाल का काट अब भाजपा ने भी ढूंढ लिया है और अब भाजपा भी मुस्लिमों को लुभाने की तैयारी में जुट गयी है।
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक बीजेपी ने बंगाल ‘त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव’ में 650 अल्पसंख्यक उम्मीदवार उतारे हैं. भाजपा गुट का दावा है कि यह संख्या और ज्यादा होती, लेकिन तृणमूल कांग्रेस के डर के कारण ऐसा नहीं हुआ. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को खौफ इस तरह है लोगो में की कई मुस्लिम कैंडिडेट चाहकर भी खड़े नहीं हो सकते।
उम्मीदवारों की संख्या में युवाओं और महिलाओं की संख्या काफी अधिक है. उससे बंगाल के बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व काफी खुश हैं. बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष चार्ल्स नंदी ने कहा की, ”अल्पसंख्यकों ने बीजेपी से मुंह नहीं मोड़ा है. यह हमारे लिए बहुत बड़ी उम्मीद है. 2024 के लोकसभा चुनाव में यह संख्या और भी बढ़ती हुई नजर आएगी।
भाजपा से मुस्लिम अल्पसंख्यकों का डर हुआ है कम
चार्ल्स नंदी ने कहा की अल्पसंख्यकों के मन से बीजेपी का डर खत्म हो रहा है. वह साफ कहते हैं, ”अल्पसंख्यकों को ज्यादा दिनों तक गुमराह नहीं किया जा सकता है.” इस वक्तव्य को सूचित करते हुए टीएमसी नेताओं ने कहा की बीजेपी ये मानती है की उसके सासन में अल्पसंख्यकों का विश्वास सरकार के प्रति कम हुआ है
सूत्रों के मुताबिक मुर्शिदाबाद में बीजेपी के अल्पसंख्यक उम्मीदवार सबसे ज्यादा हैं. बीरभूम भी पीछे नहीं है. संयोग से कुछ ही दिन पहले बीजेपी के नेताओं को समाज के अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों से जनसंपर्क का निर्देश दिया गया है। यानी साफ तौर पर बीजेपी अल्पसंख्यकों पर निशाना साधती हुई दिख रही है। वहीं बीजेपी नेता शमिक भट्टाचार्य कहते हैं, ”संगठन बढ़ रहा है. इस बार अल्पसंख्यक गलतफहमी छोड़कर भाजपा के पास आ रहे हैं.”
उन्होंने कहा कि वोट की खातिर दूसरी पार्टियां उनका इस्तेमाल करती हैं. लेकिन, बीजेपी का लक्ष्य अल्पसंख्यकों का विकास करना है. वहीं, बीजेपी ने पंचायत चुनाव में 64 फीसदी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. 2018 के पंचायत चुनाव में यह 46 फीसदी था. अब देखते हैं कि वोट का नतीजा क्या कहता है. राजनीतिक मुखबिरों का कहना है की बीजेपी लिटमस टेस्ट कर रही है पश्चिम बंगाल के अल्पसंख्यकों को साधने के लिए।
मिथुन चक्रवर्ती ने भी साधा था अल्पसंख्यकों पर निशाना।
कुछ दिन पहले अभिनेता से नेता बने मिथुन चक्रवर्ती जब बंगाल आए थे. उन्होंने कहा था कि बीजेपी कभी भी मुसलमानों की विरोधी नहीं रही है. मैं यह बात मुस्लिम भाइयों और बहनों तक पहुंचाना चाहता हूं की टीएमसी के नेताओं ने आपके अंदर बीजेपी का डर बैठाकर ये नेता आपका इस्तेमाल कर रहे है ।
अपनी बात रखते हुए उन्होंने गुजरात, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बीजेपी की जीत का मुद्दा भी उठाया था. मिथुन चक्रवर्ती ने दावा किया कि बीजेपी इतनी सीटें इसलिए जीत पाई क्योंकि मुसलमानों ने वोट दिया.उन्होंने आगे दावा किया कि मुसलमानों से इतने लंबे समय तक झूठ बोला गया, लेकिन अब उनका भ्रम टूट रहा है, लेकिन सवाल अभी भी यही है की क्या वाकई राज्य के अल्पसंख्यक भाजपा पर भरोसा करने लगे हैं? पंचायत चुनाव 2023 में कई अल्पसंख्यक उम्मीदवारों का जिक्र कर बंगाल बीजेपी नेता यही कहना चाहते हैं, लेकिन चुनाव परिणाम से ही सही तस्वीर साफ होगी. अगर बीजेपी ने इस लिटमस टेस्ट का सफलता पूर्वक परीक्षण कर लिया तो जितना फायदा बीजेपी को होगा उतना ही नुकसान टीएमसी को झेलना पड़ सकता है।