पूरे 100 साल बाद आई है खास दीपावली, जाने पूरा विवरण

पूरे 100 साल बाद आई है खास दीपावली, जाने पूरा विवरण
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calendar29 Nov 2025 10:51 PM
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दीपों का पर्व दीपावली भारत का सबसे बड़ा त्यौहार है। दीपावली का पावन पर्व हर साल कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष में अमावस्या तिथि को मनार्ई जाती है। उसी कड़ी में वर्ष-2025 की दीपावली 20 अक्टूबर 2025 को (आज) मनाई जा रही है।  हर साल मनाई जाने वाली दीपावली इस साल यानि 2025 में बहुत ही खास दीपावली है। तमाम धमाचार्यों का कहना है कि दीपावली पर 2025 में गृह नक्षत्रों का जो योग बन रहा है वह योग पूरे 100 साल बाद बना है। Deepawali 2025

वर्ष-1925 में बना था दीपावली पर लक्ष्मी योग

धर्माचार्यों ने बताया कि वर्ष-2025 में दीपावली पर महालक्ष्मी योग बन रहा है। इस प्रकार का योग 100 साल पहले वर्ष-1925 में बना था। धर्माचार्यों का कहना है कि दीपावली पर करीब 100 साल बाद महालक्ष्मी राजयोग का निर्माण अपने आप में सुखद है। दीपावली पर इस महालक्ष्मी राजयोग का बनना किसी शुभ संकेत की दस्तक जैसा है। महालक्ष्मी योग के चलते आम लोगों को आर्थिक मोर्चे पर जबरदस्त लाभ हो सकता है। धर्माचार्यों ने कहा है कि वर्ष-2025 की दीपावली से लेकर 2026 तक महालक्ष्मी योग बन रहा है।    Deepawali 2025

दीपावली का शुभ मुहूर्त

वर्ष-2025 में दीपावली का पहला शुभ मुहूर्त (प्रदोष काल)- शाम 05 बजकर 46 मिनट से रात 08 बजकर 18 मिनट तक। दूसरा शुभ मुहूर्त (वृषभ काल)- शाम 7 बजकर 08 मिनट से लेकर रात 9 बजकर 03 मिनट तक। तीसरा शुभ मुहूर्त (सर्वोच्च मुहूर्त)- शाम 07 बजकर 08 मिनट से लेकर रात 08 बजकर 18 मिनट तक। इस दौरान आपको लक्ष्मी-गणेश की पूजा के लिए करीब 1 घंटा 11 मिनट का समय मिलेगा। इस साल कार्तिक अमावस्या तिथि दो दिन पड़ रही है। कार्तिक अमावस्या 20 अक्टूबर दोपहर 03:44 बजे से प्रारंभ होकर 21 अक्टूबर शाम 05:54 समाप्त होगी। लेकिन प्रदोष काल और निशीत काल के कारण दीपावली का शुभ त्योहार 20 अक्टूबर दिन सोमवार को बनाना ही उचित होगा।

दीपावली के पर्व पर लक्ष्मी पूजन की विधि 

दीपावली के पूर्व पर लक्ष्मी पूजन की विधि की बात करें तो दीपावली पर शाम के समय घर की अच्छी तरह सफाई कर पूजन स्थल को फूलों और दीपों से सजाएं। चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर मां लक्ष्मी, गणेश और कुबेर की मूर्ति स्थापित करें। गंगाजल, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, मिठाई और खील-बताशे से पूजन करें। लक्ष्मी जी के 108 नाम या 'ऊं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:' मंत्र का जाप करें। घर के सभी कोनों में दीपक जलाएं और आरती करें. माना जाता है, इस तरह की श्रद्धा से मां लक्ष्मी स्वयं आपके घर में स्थायी रूप से निवास करती हैं।

केसर की खीर का भोग पसंद है माँ लक्ष्मी को

दीपावली  पर माँ लक्ष्मी को भोग का विशेष महत्व है। धर्माचार्यों ने बताया कि माँ लक्ष्मी को केसर की खीर का भोग बहुत पसंद है। केसर का रंग और सुगंध लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है और इससे घर में समृद्धि और सुख-शांति आती है. खीर में काजू, किशमिश, मखाना मिला कर अर्पित करें।  खील का भोग : खील या गुड़-चावल की मिठाई माता लक्ष्मी को अर्पित करने के लिए बहुत ही शुभ है। इसी कड़ी में सिंघाड़े का भोग भी माता लक्ष्मी को बहुत पसंद है। इसकी उत्पत्ति भी जल से होती है। नारियल को श्रीफल भी कहा जाता है, इसका जल बेहद शुभ माना जाता है. वहीं ईख सफेद हाथी को प्रिय होता है। अनार माता लक्ष्मी के प्रिय फलों में से एक है। सफेद और पीले रंग की मिठाई शांति, पुण्य और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक मानी जाती है। इसे भोग के रूप में अर्पित करने से परिवार में सौभाग्य और सुख-शांति बनी रहती है। पान का माँ लक्ष्मी की पूजा में विशेष महत्व रखता है। खासकर मीठा पान, जिसे सुपारी, गोंद, मिश्री और गुलाब जल के साथ तैयार किया जाता है, माता लक्ष्मी को अर्पित करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। 

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मखाना भी जरूरी है माँ लक्ष्मी की पूजा में 

 जैसे मां लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई और उन्हें धन, वैभव और समृद्धि का प्रतीक माना गया, उसी तरह मखाने की उत्पत्ति भी जल से जुड़ी हुई है। इस प्रकार करें माँ लक्ष्मी की आरती जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता। तुमको निस दिन सेवत, हर विष्णु धाता   जय... उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग माता।  सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता   जय...  दुर्गारूप निरंजनि, सुख सम्पति दाता।  जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि-धन पाता   जय...  तुम पाताल निवासिनि, तुम ही शुभ दाता।  कर्म प्रभाव प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता   जय...  जिस घर तुम रहती, तहं सब सद्गुण आता।  सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता   जय...          Deepawali 2025 तुम बिन यज्ञ होते, वस्त्र हो पाता।  खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता   जय...  शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता।  रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता   जय...  महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता। उर आनंद समाता, पाप उतर जाता   जय...॥      Deepawali 2025
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नौसेना के साथ दिवाली मनाकर खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं PM मोदी

नौसेना के साथ दिवाली मनाकर खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं PM मोदी
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calendar30 Nov 2025 07:55 PM
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार दिवाली का पर्व खास अंदाज़ में मनाया — देश के पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत पर नौसेना के जवानों के साथ। उन्होंने इस अवसर को "सौभाग्यशाली" बताते हुए कहा कि देश की समुद्री सीमाओं की रक्षा में तैनात इन बहादुर जवानों के बीच रहकर दिवाली मनाना उनके लिए गर्व की बात है। PM Modi

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अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा “मैं कल से आपके बीच हूं और हर पल मैंने उस पल को जीने के लिए कुछ न कुछ सीखा है। आपका समर्पण इतना ऊंचा है कि मैं उसे जी तो नहीं पाया, लेकिन मैंने उसे अनुभव ज़रूर किया है।” प्रधानमंत्री मोदी ने रात में गहरे समुद्र के बीच बिताए पलों और सूर्योदय की सुंदरता का भी ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि यह दृश्य उनकी दिवाली को और भी अविस्मरणीय बना गया।

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“आज, एक तरफ मेरे पास अनंत क्षितिज और आकाश है, और दूसरी तरफ अनंत शक्तियों का प्रतीक यह विशालकाय आईएनएस विक्रांत। समुद्र के पानी पर सूर्य की किरणें दिवाली के दीयों की तरह जगमगा रही हैं।” प्रधानमंत्री की यह दिवाली देश के सशस्त्र बलों के प्रति उनके सम्मान और जुड़ाव को दर्शाती है। इससे पहले भी वे पर्वों पर जवानों के साथ समय बिताते रहे हैं, चाहे वह हिमालय की बर्फीली चोटियां हों या राजस्थान का रेगिस्तान। PM Modi
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धन का महत्व: वेद-पुराण और चाणक्य की नजर में क्यों है अनिवार्य

धन का महत्व: वेद-पुराण और चाणक्य की नजर में क्यों है अनिवार्य
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calendar20 Oct 2025 10:59 AM
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आज, 20 अक्टूबर 2025 को पूरा भारत दिवाली का त्यौहार मना रहा है। एक ऐसा उत्सव जो अंधकार पर प्रकाश, नकारात्मकता पर सकारात्मकता और निराशा पर आशा की विजय का प्रतीक है। धनतेरस की मंगल शुरुआत और रूप चतुर्दशी की पवित्र आभा के बाद अब कार्तिक अमावस्या की वह रात्रि आई है, जब दीयों की कतारें न केवल घरों को, बल्कि दिलों को भी रोशन करती हैं। यह पांच दिवसीय पर्व सिर्फ खरीदारी या सजावट का नहीं, बल्कि धन, समृद्धि और सद्भाव का उत्सव है। इस शुभ अवसर पर घर-घर में मां लक्ष्मी, जो वैभव और सौभाग्य की अधिष्ठात्री हैं, तथा भगवान गणेश, जो बुद्धि और सफलता के प्रतीक हैं, की आराधना की जाती है।    Importance Of Money

देवी लक्ष्मी - माया और समृद्धि का अद्भुत संगम

वेदों में देवी लक्ष्मी को ‘माया’ कहा गया है — वह शक्ति, जो संसार को गति देती है और जीवन को अर्थ प्रदान करती है। गणेश आरती में भी उल्लेख है कि “निर्धन को माया दें गणराया”, यानी भगवान गणेश भी संपन्नता के स्रोत माने गए हैं।
यही कारण है कि दीपोत्सव का सार धन और शुभता के संतुलन में निहित है। यह केवल पूजा या परंपरा नहीं, बल्कि उस विश्वास का उत्सव है जो समृद्धि को ईमानदारी से अर्जित करने की प्रेरणा देता है। वैदिक मान्यताओं के अनुसार धन स्वयं लक्ष्मी स्वरूपा है, इसलिए धनतेरस से ही लोग शुभता का प्रतीक समझी जाने वाली सोना-चांदी या अन्य पवित्र धातु खरीदकर नए आरंभ का संकल्प लेते हैं।  Importance Of Money

धनतेरस: परंपरा नहीं, समझदारी से निवेश की संस्कृति

धनतेरस सिर्फ खरीदारी का नहीं, बल्कि संचय और दूरदर्शिता का पर्व है। सदियों से यह दिन लोगों को यह सिखाता आया है कि धन का सही उपयोग ही समृद्धि का आधार है। प्राचीन भारत में जब बैंक या निवेश योजनाएं नहीं थीं, तब लोग साल भर की बचत इसी दिन किसी धातु  सोना, चांदी या तांबा  में लगाते थे। आज के दौर में यही परंपरा SIP, म्यूचुअल फंड और इंश्योरेंस पॉलिसी के रूप में आगे बढ़ी है। यानी, धनतेरस केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि आर्थिक विवेक की मिसाल भी है।

धन: नैतिकता के साथ अर्जित होना अनिवार्य

धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — चार पुरुषार्थों में ‘अर्थ’ यानी धन का स्थान दूसरे नंबर पर है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि धन अर्जित करने के लिए कोई भी तरीका सही है। चोरी, रिश्वत, लूट या हत्या करके पाया गया धन कभी स्थायी या पुण्यकारी नहीं हो सकता। लोक कहावत भी यही सिखाती है — “चोरी का माल मोरी में जाता है।” धनतेरस की परंपरा और वैदिक शिक्षाएं इस बात पर जोर देती हैं कि सिर्फ ईमानदारी, श्रम और पुण्य कर्मों से अर्जित धन ही स्थायी और पवित्र माना जाता है। यही धन समय के साथ संपत्ति और सम्मान का रूप धारण करता है।    Importance Of Money

हमारे वेद-पुराण और नीतिवान विद्वानों ने धन को सर्वोपरि नहीं माना, लेकिन पूरी तरह नकारा भी नहीं। वे इसे सामाजिक आवश्यकता और जीवन के साधन के रूप में देखते थे। आचार्य चाणक्य ने भी अर्थशास्त्र में स्पष्ट लिखा है: “यस्यार्थस्तस्य मित्राणि यस्यार्थस्तस्य बान्धवाः, यस्यार्थः स पुमांल्लोके यस्यार्थः स च जीवति।” अर्थात, जिसके पास संपत्ति होती है, वही समाज में मित्रता और संबंधों का केंद्र बनता है। निर्धन व्यक्ति से लोग दूरी बनाना ही बेहतर समझते हैं। धनवान व्यक्ति के भाई, दोस्त और नाते-रिश्तेदार भी उसके साथ जुड़े रहते हैं, जबकि वही व्यक्ति प्रतिष्ठित, कर्मठ और प्रभावशाली माना जाता है।    Importance Of Money

पंचतंत्र और धन का महत्व

पंचतंत्र की कहानियों में आचार्य विष्णु शर्मा ने धन के महत्व और उसके उपयोग की गहन समझ प्रस्तुत की है। मित्रलाभ खंड में वे स्पष्ट करते हैं कि “भोजन का शरीर के लिए जितना महत्व है, धन का वही महत्व सभी कार्यों और उद्देश्यों के लिए है।” यानी, धन केवल भौतिक संपत्ति नहीं, बल्कि जीवन के लक्ष्यों की प्राप्ति का साधन है। वे यह भी बताते हैं कि मानव जीवन में धन की लालसा इतनी स्वाभाविक है कि व्यक्ति इसके लिए कठिन परिश्रम से लेकर दूर देश की यात्रा तक करने को तैयार रहता है। संस्कृत के सूत्रों में भी यह बात कही गई है - “इह लोके हि धनिनां परोऽपि स्वजनायते, स्वजनोऽपि दरिद्राणां सर्वदा दुर्जनायते।” इसका अर्थ है कि धनवान व्यक्ति के लिए पराया भी अपना बन जाता है, और निर्धनों के मामले में अपने भी दूरी बनाए रखते हैं।

धन का सामाजिक प्रभाव इतना गहरा है कि यह न केवल प्रतिष्ठा देता है, बल्कि व्यक्ति के संबंधों और सम्मान की दिशा भी तय करता है। एक अन्य प्रसिद्ध श्लोक में कहा गया है- “धनेन अकुलीनाः कुलीनाः भवन्ति, धनं अर्जयध्वम्।” अर्थात, धन के बल पर साधारण व्यक्ति भी समाज में उच्च प्रतिष्ठा पा सकता है। धन का प्रभाव केवल व्यक्तिगत स्तर तक सीमित नहीं; यह समाज में सम्मान, विश्वास और मान्यता की नींव भी रखता है। इसलिए, पंचतंत्र हमें यह संदेश देता है कि धन अर्जित करना मात्र उद्देश्य नहीं, बल्कि उसका सही उपयोग और नैतिक आधार जीवन में सफलता और सम्मान की कुंजी है।  Importance Of Money

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महाभारत में धन की महत्ता

महाभारत में जब पांडव इंद्रप्रस्थ में अपनी नई राजधानी बसाते हैं, तब श्रीकृष्ण उन्हें राजसूय यज्ञ करने की सलाह देते हैं। युधिष्ठिर भीष्म और धृतराष्ट्र के जीवित रहते इसे करने में संकोच करते हैं, लेकिन श्रीकृष्ण समझाते हैं कि धर्म की वास्तविक स्थापना केवल राजा बनने से नहीं, बल्कि सम्राट बनकर शासन करने से होती है। सम्राट बनने के कई लाभ हैं -  सबसे महत्वपूर्ण यह कि देश की संपत्ति और संसाधनों की देखरेख आपके हाथ में होगी। इससे किसानों, ब्राह्मणों, व्यापारियों और विद्वानों का समर्थन अर्जित किया जा सकता है।

वही राजा जो मन ही मन शत्रुता पाल रहे हैं, वे केवल आपकी धन-वैभव और सामर्थ्य देखकर आपको सम्मान देंगे और प्रेमपूर्वक संबंध बनाए रखेंगे। इस रणनीति से पांडवों ने न केवल अपने समर्थकों का संरक्षण सुनिश्चित किया, बल्कि सत्य और धर्म के आदर्शों को समाज में फैलाने का अवसर भी प्राप्त किया। श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन पर उन्होंने इंद्रप्रस्थ का विस्तार और राजसूय यज्ञ संपन्न किया, और बाद में मय दानव की मदद से माया महल बनवाकर इसे और भी भव्य बनाया।

धन और धर्म का संतुलन

संस्कृत के एक प्रसिद्ध श्लोक में कहा गया है - धनेन अकुलीनाः कुलीनाः भवन्ति, धनं अर्जयध्वम्।” धन के बल पर अकुलीन व्यक्ति भी सम्मानित हो जाता है। लेकिन इसके साथ ही एक चेतावनी भी दी गई है - “पूज्यते यदपूज्योऽपि… स प्रभावो धनस्य च।” अर्थात, धन का प्रभाव इतना है कि अयोग्य व्यक्ति भी पूजनीय बन जाता है, परंतु वही धन जब धर्म से जुड़ा हो, तो वह समाज के उत्थान का कारण बनता है।    Importance Of Money