पूरे 100 साल बाद आई है खास दीपावली, जाने पूरा विवरण





आज, 20 अक्टूबर 2025 को पूरा भारत दिवाली का त्यौहार मना रहा है। एक ऐसा उत्सव जो अंधकार पर प्रकाश, नकारात्मकता पर सकारात्मकता और निराशा पर आशा की विजय का प्रतीक है। धनतेरस की मंगल शुरुआत और रूप चतुर्दशी की पवित्र आभा के बाद अब कार्तिक अमावस्या की वह रात्रि आई है, जब दीयों की कतारें न केवल घरों को, बल्कि दिलों को भी रोशन करती हैं। यह पांच दिवसीय पर्व सिर्फ खरीदारी या सजावट का नहीं, बल्कि धन, समृद्धि और सद्भाव का उत्सव है। इस शुभ अवसर पर घर-घर में मां लक्ष्मी, जो वैभव और सौभाग्य की अधिष्ठात्री हैं, तथा भगवान गणेश, जो बुद्धि और सफलता के प्रतीक हैं, की आराधना की जाती है। Importance Of Money
वेदों में देवी लक्ष्मी को ‘माया’ कहा गया है — वह शक्ति, जो संसार को गति देती है और जीवन को अर्थ प्रदान करती है। गणेश आरती में भी उल्लेख है कि “निर्धन को माया दें गणराया”, यानी भगवान गणेश भी संपन्नता के स्रोत माने गए हैं।
यही कारण है कि दीपोत्सव का सार धन और शुभता के संतुलन में निहित है। यह केवल पूजा या परंपरा नहीं, बल्कि उस विश्वास का उत्सव है जो समृद्धि को ईमानदारी से अर्जित करने की प्रेरणा देता है। वैदिक मान्यताओं के अनुसार धन स्वयं लक्ष्मी स्वरूपा है, इसलिए धनतेरस से ही लोग शुभता का प्रतीक समझी जाने वाली सोना-चांदी या अन्य पवित्र धातु खरीदकर नए आरंभ का संकल्प लेते हैं। Importance Of Money
धनतेरस सिर्फ खरीदारी का नहीं, बल्कि संचय और दूरदर्शिता का पर्व है। सदियों से यह दिन लोगों को यह सिखाता आया है कि धन का सही उपयोग ही समृद्धि का आधार है। प्राचीन भारत में जब बैंक या निवेश योजनाएं नहीं थीं, तब लोग साल भर की बचत इसी दिन किसी धातु सोना, चांदी या तांबा में लगाते थे। आज के दौर में यही परंपरा SIP, म्यूचुअल फंड और इंश्योरेंस पॉलिसी के रूप में आगे बढ़ी है। यानी, धनतेरस केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि आर्थिक विवेक की मिसाल भी है।
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — चार पुरुषार्थों में ‘अर्थ’ यानी धन का स्थान दूसरे नंबर पर है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि धन अर्जित करने के लिए कोई भी तरीका सही है। चोरी, रिश्वत, लूट या हत्या करके पाया गया धन कभी स्थायी या पुण्यकारी नहीं हो सकता। लोक कहावत भी यही सिखाती है — “चोरी का माल मोरी में जाता है।” धनतेरस की परंपरा और वैदिक शिक्षाएं इस बात पर जोर देती हैं कि सिर्फ ईमानदारी, श्रम और पुण्य कर्मों से अर्जित धन ही स्थायी और पवित्र माना जाता है। यही धन समय के साथ संपत्ति और सम्मान का रूप धारण करता है। Importance Of Money
हमारे वेद-पुराण और नीतिवान विद्वानों ने धन को सर्वोपरि नहीं माना, लेकिन पूरी तरह नकारा भी नहीं। वे इसे सामाजिक आवश्यकता और जीवन के साधन के रूप में देखते थे। आचार्य चाणक्य ने भी अर्थशास्त्र में स्पष्ट लिखा है: “यस्यार्थस्तस्य मित्राणि यस्यार्थस्तस्य बान्धवाः, यस्यार्थः स पुमांल्लोके यस्यार्थः स च जीवति।” अर्थात, जिसके पास संपत्ति होती है, वही समाज में मित्रता और संबंधों का केंद्र बनता है। निर्धन व्यक्ति से लोग दूरी बनाना ही बेहतर समझते हैं। धनवान व्यक्ति के भाई, दोस्त और नाते-रिश्तेदार भी उसके साथ जुड़े रहते हैं, जबकि वही व्यक्ति प्रतिष्ठित, कर्मठ और प्रभावशाली माना जाता है। Importance Of Money
पंचतंत्र की कहानियों में आचार्य विष्णु शर्मा ने धन के महत्व और उसके उपयोग की गहन समझ प्रस्तुत की है। मित्रलाभ खंड में वे स्पष्ट करते हैं कि “भोजन का शरीर के लिए जितना महत्व है, धन का वही महत्व सभी कार्यों और उद्देश्यों के लिए है।” यानी, धन केवल भौतिक संपत्ति नहीं, बल्कि जीवन के लक्ष्यों की प्राप्ति का साधन है। वे यह भी बताते हैं कि मानव जीवन में धन की लालसा इतनी स्वाभाविक है कि व्यक्ति इसके लिए कठिन परिश्रम से लेकर दूर देश की यात्रा तक करने को तैयार रहता है। संस्कृत के सूत्रों में भी यह बात कही गई है - “इह लोके हि धनिनां परोऽपि स्वजनायते, स्वजनोऽपि दरिद्राणां सर्वदा दुर्जनायते।” इसका अर्थ है कि धनवान व्यक्ति के लिए पराया भी अपना बन जाता है, और निर्धनों के मामले में अपने भी दूरी बनाए रखते हैं।
धन का सामाजिक प्रभाव इतना गहरा है कि यह न केवल प्रतिष्ठा देता है, बल्कि व्यक्ति के संबंधों और सम्मान की दिशा भी तय करता है। एक अन्य प्रसिद्ध श्लोक में कहा गया है- “धनेन अकुलीनाः कुलीनाः भवन्ति, धनं अर्जयध्वम्।” अर्थात, धन के बल पर साधारण व्यक्ति भी समाज में उच्च प्रतिष्ठा पा सकता है। धन का प्रभाव केवल व्यक्तिगत स्तर तक सीमित नहीं; यह समाज में सम्मान, विश्वास और मान्यता की नींव भी रखता है। इसलिए, पंचतंत्र हमें यह संदेश देता है कि धन अर्जित करना मात्र उद्देश्य नहीं, बल्कि उसका सही उपयोग और नैतिक आधार जीवन में सफलता और सम्मान की कुंजी है। Importance Of Money
महाभारत में जब पांडव इंद्रप्रस्थ में अपनी नई राजधानी बसाते हैं, तब श्रीकृष्ण उन्हें राजसूय यज्ञ करने की सलाह देते हैं। युधिष्ठिर भीष्म और धृतराष्ट्र के जीवित रहते इसे करने में संकोच करते हैं, लेकिन श्रीकृष्ण समझाते हैं कि धर्म की वास्तविक स्थापना केवल राजा बनने से नहीं, बल्कि सम्राट बनकर शासन करने से होती है। सम्राट बनने के कई लाभ हैं - सबसे महत्वपूर्ण यह कि देश की संपत्ति और संसाधनों की देखरेख आपके हाथ में होगी। इससे किसानों, ब्राह्मणों, व्यापारियों और विद्वानों का समर्थन अर्जित किया जा सकता है।
वही राजा जो मन ही मन शत्रुता पाल रहे हैं, वे केवल आपकी धन-वैभव और सामर्थ्य देखकर आपको सम्मान देंगे और प्रेमपूर्वक संबंध बनाए रखेंगे। इस रणनीति से पांडवों ने न केवल अपने समर्थकों का संरक्षण सुनिश्चित किया, बल्कि सत्य और धर्म के आदर्शों को समाज में फैलाने का अवसर भी प्राप्त किया। श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन पर उन्होंने इंद्रप्रस्थ का विस्तार और राजसूय यज्ञ संपन्न किया, और बाद में मय दानव की मदद से माया महल बनवाकर इसे और भी भव्य बनाया।
संस्कृत के एक प्रसिद्ध श्लोक में कहा गया है - धनेन अकुलीनाः कुलीनाः भवन्ति, धनं अर्जयध्वम्।” धन के बल पर अकुलीन व्यक्ति भी सम्मानित हो जाता है। लेकिन इसके साथ ही एक चेतावनी भी दी गई है - “पूज्यते यदपूज्योऽपि… स प्रभावो धनस्य च।” अर्थात, धन का प्रभाव इतना है कि अयोग्य व्यक्ति भी पूजनीय बन जाता है, परंतु वही धन जब धर्म से जुड़ा हो, तो वह समाज के उत्थान का कारण बनता है। Importance Of Money
आज, 20 अक्टूबर 2025 को पूरा भारत दिवाली का त्यौहार मना रहा है। एक ऐसा उत्सव जो अंधकार पर प्रकाश, नकारात्मकता पर सकारात्मकता और निराशा पर आशा की विजय का प्रतीक है। धनतेरस की मंगल शुरुआत और रूप चतुर्दशी की पवित्र आभा के बाद अब कार्तिक अमावस्या की वह रात्रि आई है, जब दीयों की कतारें न केवल घरों को, बल्कि दिलों को भी रोशन करती हैं। यह पांच दिवसीय पर्व सिर्फ खरीदारी या सजावट का नहीं, बल्कि धन, समृद्धि और सद्भाव का उत्सव है। इस शुभ अवसर पर घर-घर में मां लक्ष्मी, जो वैभव और सौभाग्य की अधिष्ठात्री हैं, तथा भगवान गणेश, जो बुद्धि और सफलता के प्रतीक हैं, की आराधना की जाती है। Importance Of Money
वेदों में देवी लक्ष्मी को ‘माया’ कहा गया है — वह शक्ति, जो संसार को गति देती है और जीवन को अर्थ प्रदान करती है। गणेश आरती में भी उल्लेख है कि “निर्धन को माया दें गणराया”, यानी भगवान गणेश भी संपन्नता के स्रोत माने गए हैं।
यही कारण है कि दीपोत्सव का सार धन और शुभता के संतुलन में निहित है। यह केवल पूजा या परंपरा नहीं, बल्कि उस विश्वास का उत्सव है जो समृद्धि को ईमानदारी से अर्जित करने की प्रेरणा देता है। वैदिक मान्यताओं के अनुसार धन स्वयं लक्ष्मी स्वरूपा है, इसलिए धनतेरस से ही लोग शुभता का प्रतीक समझी जाने वाली सोना-चांदी या अन्य पवित्र धातु खरीदकर नए आरंभ का संकल्प लेते हैं। Importance Of Money
धनतेरस सिर्फ खरीदारी का नहीं, बल्कि संचय और दूरदर्शिता का पर्व है। सदियों से यह दिन लोगों को यह सिखाता आया है कि धन का सही उपयोग ही समृद्धि का आधार है। प्राचीन भारत में जब बैंक या निवेश योजनाएं नहीं थीं, तब लोग साल भर की बचत इसी दिन किसी धातु सोना, चांदी या तांबा में लगाते थे। आज के दौर में यही परंपरा SIP, म्यूचुअल फंड और इंश्योरेंस पॉलिसी के रूप में आगे बढ़ी है। यानी, धनतेरस केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि आर्थिक विवेक की मिसाल भी है।
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — चार पुरुषार्थों में ‘अर्थ’ यानी धन का स्थान दूसरे नंबर पर है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि धन अर्जित करने के लिए कोई भी तरीका सही है। चोरी, रिश्वत, लूट या हत्या करके पाया गया धन कभी स्थायी या पुण्यकारी नहीं हो सकता। लोक कहावत भी यही सिखाती है — “चोरी का माल मोरी में जाता है।” धनतेरस की परंपरा और वैदिक शिक्षाएं इस बात पर जोर देती हैं कि सिर्फ ईमानदारी, श्रम और पुण्य कर्मों से अर्जित धन ही स्थायी और पवित्र माना जाता है। यही धन समय के साथ संपत्ति और सम्मान का रूप धारण करता है। Importance Of Money
हमारे वेद-पुराण और नीतिवान विद्वानों ने धन को सर्वोपरि नहीं माना, लेकिन पूरी तरह नकारा भी नहीं। वे इसे सामाजिक आवश्यकता और जीवन के साधन के रूप में देखते थे। आचार्य चाणक्य ने भी अर्थशास्त्र में स्पष्ट लिखा है: “यस्यार्थस्तस्य मित्राणि यस्यार्थस्तस्य बान्धवाः, यस्यार्थः स पुमांल्लोके यस्यार्थः स च जीवति।” अर्थात, जिसके पास संपत्ति होती है, वही समाज में मित्रता और संबंधों का केंद्र बनता है। निर्धन व्यक्ति से लोग दूरी बनाना ही बेहतर समझते हैं। धनवान व्यक्ति के भाई, दोस्त और नाते-रिश्तेदार भी उसके साथ जुड़े रहते हैं, जबकि वही व्यक्ति प्रतिष्ठित, कर्मठ और प्रभावशाली माना जाता है। Importance Of Money
पंचतंत्र की कहानियों में आचार्य विष्णु शर्मा ने धन के महत्व और उसके उपयोग की गहन समझ प्रस्तुत की है। मित्रलाभ खंड में वे स्पष्ट करते हैं कि “भोजन का शरीर के लिए जितना महत्व है, धन का वही महत्व सभी कार्यों और उद्देश्यों के लिए है।” यानी, धन केवल भौतिक संपत्ति नहीं, बल्कि जीवन के लक्ष्यों की प्राप्ति का साधन है। वे यह भी बताते हैं कि मानव जीवन में धन की लालसा इतनी स्वाभाविक है कि व्यक्ति इसके लिए कठिन परिश्रम से लेकर दूर देश की यात्रा तक करने को तैयार रहता है। संस्कृत के सूत्रों में भी यह बात कही गई है - “इह लोके हि धनिनां परोऽपि स्वजनायते, स्वजनोऽपि दरिद्राणां सर्वदा दुर्जनायते।” इसका अर्थ है कि धनवान व्यक्ति के लिए पराया भी अपना बन जाता है, और निर्धनों के मामले में अपने भी दूरी बनाए रखते हैं।
धन का सामाजिक प्रभाव इतना गहरा है कि यह न केवल प्रतिष्ठा देता है, बल्कि व्यक्ति के संबंधों और सम्मान की दिशा भी तय करता है। एक अन्य प्रसिद्ध श्लोक में कहा गया है- “धनेन अकुलीनाः कुलीनाः भवन्ति, धनं अर्जयध्वम्।” अर्थात, धन के बल पर साधारण व्यक्ति भी समाज में उच्च प्रतिष्ठा पा सकता है। धन का प्रभाव केवल व्यक्तिगत स्तर तक सीमित नहीं; यह समाज में सम्मान, विश्वास और मान्यता की नींव भी रखता है। इसलिए, पंचतंत्र हमें यह संदेश देता है कि धन अर्जित करना मात्र उद्देश्य नहीं, बल्कि उसका सही उपयोग और नैतिक आधार जीवन में सफलता और सम्मान की कुंजी है। Importance Of Money
महाभारत में जब पांडव इंद्रप्रस्थ में अपनी नई राजधानी बसाते हैं, तब श्रीकृष्ण उन्हें राजसूय यज्ञ करने की सलाह देते हैं। युधिष्ठिर भीष्म और धृतराष्ट्र के जीवित रहते इसे करने में संकोच करते हैं, लेकिन श्रीकृष्ण समझाते हैं कि धर्म की वास्तविक स्थापना केवल राजा बनने से नहीं, बल्कि सम्राट बनकर शासन करने से होती है। सम्राट बनने के कई लाभ हैं - सबसे महत्वपूर्ण यह कि देश की संपत्ति और संसाधनों की देखरेख आपके हाथ में होगी। इससे किसानों, ब्राह्मणों, व्यापारियों और विद्वानों का समर्थन अर्जित किया जा सकता है।
वही राजा जो मन ही मन शत्रुता पाल रहे हैं, वे केवल आपकी धन-वैभव और सामर्थ्य देखकर आपको सम्मान देंगे और प्रेमपूर्वक संबंध बनाए रखेंगे। इस रणनीति से पांडवों ने न केवल अपने समर्थकों का संरक्षण सुनिश्चित किया, बल्कि सत्य और धर्म के आदर्शों को समाज में फैलाने का अवसर भी प्राप्त किया। श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन पर उन्होंने इंद्रप्रस्थ का विस्तार और राजसूय यज्ञ संपन्न किया, और बाद में मय दानव की मदद से माया महल बनवाकर इसे और भी भव्य बनाया।
संस्कृत के एक प्रसिद्ध श्लोक में कहा गया है - धनेन अकुलीनाः कुलीनाः भवन्ति, धनं अर्जयध्वम्।” धन के बल पर अकुलीन व्यक्ति भी सम्मानित हो जाता है। लेकिन इसके साथ ही एक चेतावनी भी दी गई है - “पूज्यते यदपूज्योऽपि… स प्रभावो धनस्य च।” अर्थात, धन का प्रभाव इतना है कि अयोग्य व्यक्ति भी पूजनीय बन जाता है, परंतु वही धन जब धर्म से जुड़ा हो, तो वह समाज के उत्थान का कारण बनता है। Importance Of Money