IIT Delhi vs IIT Bombay: बीटेक के लिए कौन बेहतर? जानें प्लेसमेंट से लेकर रैंकिंग तक सबकुछ

IIT Delhi vs IIT Bombay: बीटेक के लिए कौन बेहतर? जानें प्लेसमेंट से लेकर रैंकिंग तक सबकुछ
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userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 09:50 PM
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हर साल लाखों छात्र जेईई मेन्स और जेईई एडवांस जैसी कठिन परीक्षाओं के जरिए देश के टॉप इंजीनियरिंग संस्थानों में दाखिला लेने का सपना देखते हैं। IIT दिल्ली और IIT बॉम्बे दोनों ही इस लिस्ट में सबसे ऊपर आते हैं। जेईई एडवांस्ड क्लियर करने के बाद स्टूडेंट्स की सबसे आम दुविधा होती है IIT दिल्ली चुनें या बॉम्बे? IIT Delhi vs IIT Bombay

 NIRF रैंकिंग में टॉप पर दोनों

भारत सरकार की NIRF (National Institutional Ranking Framework) 2025 रैंकिंग के मुताबिक, IIT दिल्ली को दूसरा स्थान, जबकि IIT बॉम्बे को तीसरा स्थान मिला है। यह दोनों संस्थानों की उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा और रिसर्च क्षमताओं को दर्शाता है। IIT दिल्ली में कुल 6,897 छात्र पढ़ाई कर रहे हैं, जिनमें 5,488 लड़के और 1,409 लड़कियां हैं। वहीं IIT बॉम्बे में कुल 8,826 छात्र जिनमें 7,215 लड़के और 1,611 लड़कियां शामिल हैं। दोनों ही संस्थानों में छात्रवृत्ति, रिसर्च लैब्स और सुविधाएं बेहतरीन हैं।

प्लेसमेंट में कौन है आगे?

IIT दिल्ली में इस साल (2025) अब तक 850 से ज्यादा जॉब ऑफर मिले हैं यह पिछले 3 वर्षों में सबसे ज्यादा है। 2024 में 781 ऑफर, 2023 में 768 और 2022 में 712 ऑफर मिले थे। पैकेज की बात करें तो पिछले वर्षों में BTech छात्रों को औसतन ₹9.08 लाख से ₹20.5 लाख तक का सालाना पैकेज मिला। वहीं IIT बॉम्बे ने 2025 के प्लेसमेंट में एक नया रिकॉर्ड बनाया है यहां एक छात्र को 2.2 करोड़ रुपये का इंटरनेशनल ऑफर मिला है, जो Da Vinci Derivatives कंपनी द्वारा दिया गया। इसके अलावा 50 से ज्यादा कंपनियों ने प्लेसमेंट में हिस्सा लिया। 2024 में यहां का औसत पैकेज ₹23.5 लाख और मीडियन पैकेज ₹17.92 लाख प्रति वर्ष रहा।

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कौन है बेहतर?

दोनों ही IITs में अत्याधुनिक लैब्स, अनुभवी फैकल्टी और ग्लोबल कोलैबोरेशन की सुविधा मौजूद है। रिसर्च, इनोवेशन और स्टार्टअप के लिए भी छात्रों को प्रेरित किया जाता है जिससे उनके करियर को एक ग्लोबल दिशा मिलती है। IIT दिल्ली और IIT बॉम्बे दोनों में शिक्षा का स्तर अत्यधिक उच्च है। यदि आपका झुकाव इंटरनेशनल प्लेसमेंट और हाई पैकेज की ओर है तो IIT बॉम्बे एक शानदार विकल्प है। वहीं स्थिर प्लेसमेंट ग्राफ, इंडस्ट्री नेटवर्क और लोकेशन एडवांटेज के हिसाब से IIT दिल्ली भी टॉप चॉइस है। अंततः यह निर्णय आपकी ब्रांच प्रायोरिटी, स्कोर, और करियर गोल्स पर निर्भर करता है। IIT Delhi vs IIT Bombay
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लद्दाख आंदोलन: राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की मांग क्यों बनी निर्णायक

लद्दाख आंदोलन: राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की मांग क्यों बनी निर्णायक
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userचेतना मंच
calendar25 Sep 2025 02:07 PM
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लद्दाख की सड़कों पर पिछले दिनों जो हिंसा और आगजनी हुई, उसने एक बार फिर इस क्षेत्र की असल मांगों और चिंताओं को सुर्खियों में ला दिया है। शांतिपूर्ण आंदोलन के बीच भड़की हिंसा में भाजपा कार्यालय और सुरक्षा बलों की गाड़ियां जलाई गईं। हालात बिगड़ने के बाद आंदोलन के अगुवा पर्यावरणविद सोनम वांगचुक ने अपना अनशन समाप्त करते हुए अपील की कि जनता हिंसा का रास्ता छोड़कर आंदोलन को एकजुट रखे। लेकिन असल सवाल यह है कि लद्दाख को अगर छठी अनुसूची का संरक्षण या पूर्ण राज्य का दर्जा मिलता है, तो आखिरकार यहां क्या-क्या बदलेगा?    Ladakh protest 

लद्दाख क्यों है खास?

भारत के सुदूर उत्तर में बसा लद्दाख सामरिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक दृष्टि से बेहद अहम क्षेत्र है। 2019 में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के तहत इसे केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिला। इससे स्थानीय लोगों को लगा कि उनकी आवाज सीधे दिल्ली तक पहुंचेगी, लेकिन विधानसभा न होने और निर्णय लेने की सीमित शक्ति के कारण असंतोष लगातार बढ़ा। तेज़ी से बढ़ते पर्यटन, नाज़ुक पारिस्थितिकी और सांस्कृतिक संरक्षण की चुनौतियों ने लद्दाख के लोगों को छठी अनुसूची और राज्य के दर्जे की मांग करने पर मजबूर कर दिया।    Ladakh protest 

छठी अनुसूची क्या है?

भारतीय संविधान की छठी अनुसूची आदिवासी और सांस्कृतिक रूप से विशिष्ट क्षेत्रों को स्वायत्त शासन का अधिकार देती है। यह वर्तमान में पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में लागू है। इसके तहत:

  • स्वायत्त परिषदों का गठन होता है।

  • जमीन, जंगल और जल स्रोतों पर स्थानीय नियंत्रण मिलता है।

  • स्थानीय भाषाओं, परंपराओं और धार्मिक स्थलों को संवैधानिक सुरक्षा मिलती है।

  • रोजगार और शिक्षा में प्राथमिकता मिलती है।

  • पर्यावरणीय संसाधनों पर स्थानीय स्तर के कानून बनाए जा सकते हैं।

यदि लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल किया गया, तो यहां की जनता को दिल्ली पर निर्भर रहने के बजाय अपने मुद्दों पर खुद फैसले लेने की शक्ति मिलेगी।

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राज्य का दर्जा मिलने पर क्या बदलेगा?

अगर लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलता है, तो:

  • यहां की अपनी विधानसभा और मुख्यमंत्री होंगे।

  • स्थानीय प्रतिनिधि शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और भूमि सुधार जैसे मुद्दों पर निर्णय लेंगे।

  • प्रशासनिक फैसले दिल्ली से नहीं, बल्कि लेह और कारगिल से होंगे।

  • राजनीतिक आत्मनिर्णय की मांग पूरी होगी। हालांकि, सामरिक दृष्टि से इतने संवेदनशील इलाके को राज्य का दर्जा देना केंद्र की सुरक्षा चिंताओं को और गहरा सकता है, क्योंकि लद्दाख चीन और पाकिस्तान से सीधी सीमा साझा करता है।    Ladakh protest 

सोनम वांगचुक की लड़ाई

पर्यावरण और संस्कृति की सुरक्षा को लेकर सोनम वांगचुक लगातार चेतावनी देते रहे हैं। उनका मानना है कि अनियंत्रित पर्यटन, खनन और जल संकट लद्दाख के अस्तित्व पर खतरा है। वे कहते हैं कि केवल केंद्र शासित प्रदेश का ढांचा इन चुनौतियों से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं है। लद्दाख का सवाल महज प्रशासनिक नहीं है, बल्कि इसमें तीन बड़े पहलू जुड़े हैं:

  1. सांस्कृतिक पहचान – क्या बौद्ध और मुस्लिम समुदायों की परंपराओं को संवैधानिक सुरक्षा मिलेगी?

  2. पर्यावरणीय संकट – क्या हिमालयी पारिस्थितिकी को बचाते हुए विकास संभव है?

  3. राष्ट्रीय सुरक्षा – क्या इस संवेदनशील सीमा क्षेत्र में अधिक स्वायत्तता सुरक्षित होगी?    Ladakh protest 

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बिहार के 10 बड़े नेता प्रशांत किशोर के निशाने पर, जानिए क्यों?

बिहार के 10 बड़े नेता प्रशांत किशोर के निशाने पर, जानिए क्यों?
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calendar02 Dec 2025 03:06 AM
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बिहार चुनावों से पहले प्रशांत किशोर ने जन सुराज पार्टी के जरिए एक नया राजनीतिक मोड़ लेने की तैयारी कर ली है। पिछले कुछ महीनों में उन्होंने बीजेपी‑एनडीए और विपक्षी दलों के कई नेताओं को निशाने पर लिया है। आरोपों की सूची लंबी है भ्रष्टाचार, चरित्र, नेतृत्व की योग्यता, गंभीरता आदि पर सवाल उठाए गए हैं। अब चर्चा ये है कि इन आरोपों से कितनी राजनीति बदलेगी और कौन खोयेगा, कौन सहेगा? नीचे उन दस नेताओं की सूची है जिन्हें प्रशांत किशोर ने सार्वजनिक रूप से निशाना बनाया है और ये भी कि यह हमला उनके राजनीतिक भविष्य पर क्या असर डाल सकता है। Prashant Kishor 

तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav)

प्रशांत किशोर लगातार तेजस्वी यादव को “नौवीं फेल” कह कर चुनौती देते रहे हैं। उनका कहना है कि शिक्षा की कमी राजनीतिक नेतृत्व में विश्वास घटाती है। तेजस्वी ने इस तरह के आरोपों के जवाब में कहा है कि हर व्यक्ति की यात्रा अलग होती है। बावजूद इसके तेजस्वी यादव के राजनीतिक ग्राफ पर ये टिप्पणी असर कर सकती है खासकर उन मतदाताओं में जो शिक्षा और नेतृत्व को जोड़कर देखते हैं।

नीतीश कुमार (Nitish Kumar)

नीतीश कुमार पर प्रशांत किशोर का आरोप है कि उनके शासन में कुछ मंत्री भ्रष्ट हैं और सरकार में कार्यशैली सही नहीं है। हालांकि, किशोर यह भी कहते हैं कि नीतीश खुद ईमानदार हैं लेकिन उनके नजदीकी लोगों ने सिस्टम को बिगाड़ा है। बिहार में नीतीश कुमार की साख पर ये बातें असर डाल सकती हैं विशेषकर उन दक्षिण‑पश्चिम जिलों में जहां जनसुराज की मांग तेज है।

राहुल गांधी (Rahul Ganshi)

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को किशोर ने अक्सर ‘वोटर अधिकार यात्रा’ और कथित वोटिंग irregularities के जरिये निशाने पर लिया है। किशोर उनके यात्रा‑शैली और भाषणों को जनता के समक्ष पर्याप्त नहीं बताते। कांग्रेस के लिए यह एक बड़ी चुनौती है कि वे राहुल गांधी की भूमिका को मजबूत तरीके से साबित कर सकें।

नरेंद्र मोदी (Narendra Modi)

प्रधानमंत्री मोदी पर आरोप हैं कि विकास और परियोजनाएं गुजरात‑केन्द्रित रही हैं जबकि बिहार को अपेक्षित लाभ नहीं मिले। किशोर ये सवाल उठाते हैं कि क्या केंद्र सरकार ने बिहार के विकास को प्राथमिकता दी है या नहीं। पीएम मोदी की स्वीकार्यता उन वर्गों में प्रभावित हो सकती है जो विकास की अपेक्षा रखते हैं मगर महसूस करते हैं कि लाभ कहीं और जा रहा है।

अमित शाह (Amit Shah)

अमित शाह को भी किशोर ने चुनावी कोड, सीमांकन, घुसपैठ आदि मुद्दों पर निशाने पर रखा है। ये आरोप केंद्र सरकार की कानून व्यवस्था और सुरक्षा नीति के प्रति जनता की मांग को भी सामने लाते हैं। अमित शाह को यह सुनिश्चित करना होगा कि सार्वजनिक धारणा सकारात्मक बनी रहे।

अशोक चौधरी (Ashok Choudhary)

ग्रामीण विकास मंत्री अशोक चौधरी पर जमीन हड़पने, संपत्ति बढ़ाने और भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। उन्होंने खुद भी भगवानी जवाब दिया है और मानहानि का नोटिस जारी किया है। ये एक ऐसे नेता की लड़ाई है जिसमें आरोप और बचाव दोनों बहुत सार्वजनिक हो चले हैं।

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सम्राट चौधरी (Samrat Choudhary)

सम्राट चौधरी पर उम्र छिपाने, आपराधिक पृष्ठभूमि और मैट्रिक जैसे शिक्षण प्रमाणपत्रों में अनियमितताओं के आरोप हैं। ये आरोप उनके लिए सबसे संवेदनशील हो सकते हैं क्योंकि ये चरित्र और विश्वसनीयता से जुड़े प्रश्न हैं।

दिलीप जायसवाल (Dilip Jaiswal)

दिलीप जायसवाल पर आरोप है कि उन्होंने किशनगंज मेडिकल कॉलेज पर अवैध कब्जा किया है। ऐसा माना जाता है कि यह मामला सिर्फ व्यक्ति विशेष का नहीं बल्कि राजनीतिक गठजोड़ और व्यवस्था की कमजोरी को उजागर करता है। यदि ये आरोप सही साबित होते हैं तो राजनीतिक संकट बढ़ सकता है।

मंगल पांडेय (Mangal Pandey)

स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय पर उनके परिवार के बैंक खाते में संदिग्ध राशि जमा होने का आरोप लगाया गया है। सार्वजनिक विश्वास के लिए पारदर्शिता बहुत जरूरी होती है और इस तरह के मामले मामलों के त्वरित और स्पष्ट जवाब की मांग करते हैं।

चिराग पासवान (Chirag Paswan)

चिराग पासवान को प्रशांत किशोर ने युवा और जातिगत राजनीति से ऊपर उठने वाले नेता बताया है। लेकिन उनके नाम भी आरोपों में जुड़े हैं कि उन्होंने टिकट वितरण और राजनीतिक समझौतों में प्रभाव इस्तेमाल किया है। यदि सार्वजनिक धारणा यह हो जाए कि चिराग भी उसी तरह की राजनीति कर रहे हैं जैसे अन्य बड़े नेता तो उनकी युवा प्रतिष्ठा को झटका लग सकता है।

ये तेजी से बदलती राजनीति कितनी बदल देगी सब?

विश्वसनीयता (Credibility): उन नेताओं को अधिक मेहनत करनी होगी जो आरोपों के घेरे में हैं खासकर उन मतदाताओं के बीच जो बदलाव, पारदर्शिता और ईमानदारी की मांग करते हैं। मतदाताओं की उम्मीदें: बहुत‑से लोग सिर्फ वादों से नहीं बल्कि काम से प्रभावित होते हैं। यदि जन सुराज पार्टी और प्रशांत किशोर ये आरोप साबित कर पाते हैं तो यह एनडीए और विपक्ष दोनों के लिए चुनौती बन सकता है। प्रचार और विरोधी रणनीति: आरोपी नेताओं को बचाव की रणनीतियां तैयार करनी होंगी उदाहरण के लिए, यह दिखाना कि आरोप आधारहीन हैं, प्रमाण कैसे गलत हैं या जनता को सुधार दिखाना। भविष्य की राजनीति: आपसी आरोप‑प्रत्यारोप, मीडिया एक्सपोजर, न्यायालयिक कार्रवाई आदि इससे सार्वजनिक राजनीति का स्वरूप और धारणा बदल सकती है।

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प्रशांत किशोर की इन “हिट‑लिस्ट” से राजनीति में हलचल जरूर बढ़ी है। संक्रमण की यह स्थिति है अब देखना है कि इन आरोपों का राजनीतिक नतीजा क्या होगा जनता की सोच, पार्टियों के गठबंधन और चुनावी परिणाम कैसे प्रभावित होंगे। Prashant Kishor