Saturday, 18 May 2024

बुंदेलखंड की वीरगाथा: आल्हा-ऊदल ने लड़ी 52 लड़ाईयां,किसी भी युद्ध में नहीं हुई पराजय

Alha-Udal History : यदि महोबा के राजकवि ने”आल्हारासो”नही लिखा होता तो शायद आज उन्हें कोई जानता भी नही । सदा…

बुंदेलखंड की वीरगाथा: आल्हा-ऊदल ने लड़ी 52 लड़ाईयां,किसी भी युद्ध में नहीं हुई पराजय

Alha-Udal History : यदि महोबा के राजकवि ने”आल्हारासो”नही लिखा होता तो शायद आज उन्हें कोई जानता भी नही । सदा की तरह उपेक्षित ही रह जाता । राजकवि जगनिक केवल एक कवि ही नहीं वरन् कुशल योद्धा भी थे । वह हर युद्ध में आल्हा-ऊदल के साथ लड़े । आल्हा-ऊदल ने 52 लड़ाईयां लड़ी और किसी भी युद्ध में उन्हें पराजय नही मिली । चंदेल राज्य का विस्तार और महोबा के राजा परमार्दिदेव (परिमल) की कीर्ति उन्हीं के कारण थीं । आल्हा-ऊदल , मलखान सुलखान,महोबा राज्य के सेनापति दस्सराज के पुत्र थे । उनकी मां देवला और सुलखा महोबा की महारानी मल्हना की छोटी बहिन थी ।

दस्सराज और बच्छराज बनाफर जनजाति कबीले के शूरवीर योद्धा थे 

बनाफर जाति के विषय में पहले कहा जाता था कि :-“जिनको पानी कोऊ न पीवै‌ ओछी जाति बनाफर राय” । जिनको महाराज परिमल ने महोबा में लाकर उन्हें अपना सेनापति बनाया । राजा परिमल ने अपने राज्य के विस्तार के लिये उरई रियासत पर आक्रमण कर उसे जीत लिया उरई के राजा वासुदेव क्षत्रिय थे । अपनी हार के बाद उन्हें राजा परिमल से संधि करनी पड़ी जिसके कारण अपनी बड़ी पुत्री मल्हना का विवाह राजा परिमल से करने के बाद राजा परिमल के ही आदेश पर अपनी अन्य दो पुत्रियों देवला और सुल्खा का विवाह न चाहते हुये भी अपमान का घूंट पीकर दस्सराज और बच्छराज से करना पड़ा । अपने पिता के इस अपमान को उनका बड़ा बेटा माहिल कभी नही भूल सका । इसीलिये मांडो की लड़ाई में धोखे से दस्सराज और बच्छराज को मारने के बाद भी वह उनकी संतान को ही महोबा से निकाल कर बदला लेने की सोचता रहा ।

बुंदेलखंड की वीरगाथा : आल्हा-ऊदल

Alha-Udal History

गोरखपुर के पास ताली गांव के‌ सैय्यद मीर हसन काशी नरेश के यहां नौकरी करते थे । एक बार जब वह किसी बात पर काशी नरेश से नाराज़ होकर उनकी नौकरी छोड़ कर कन्नौज जा रहे थे। उसी समय बिठूर के मेले में मांडो के राजा करिंगाराय अपनी रानी के लिये नौलखा हार लेने आये । वह नौलखा हार न मिलने पर जब वापिस जा रहे थे तब उरई के राजा माहिल ने उनसे कहा कि यदि तुम्हें नौलखा हार ही चाहिये तो महोबा की रानी मल्हना भी इसी मेले में आई है और गंगा स्नान करने गई है उनसे लूट लो । करिंगा राय ने उन पर आक्रमण कर दिया और जब वह रानी मल्हना से नौलखा हार छीन रहे थे तभी सैयद मीर हसन जिन्हें उनके गांव के नाम पर लोग ताहिल्खां कहते थे उन्होंने आकर महारानी को बचाते हुये दस्सराज और बच्छराज के साथ करिंगाराय से युद्ध कर महारानी को बचाया ।

धोखे से दस्सराज एवं बच्छराज को  उनके खाने में जहर देकर मार दिया

Alha-Udal History

इस युद्ध में मांडो के राजा करिंगाराय की हार होने पर उसने कुटिल चाल चलते हुये सन्धि के लिये महोबा के सेनापति दस्सराज एवं बच्छराज को अपने शिविर में आमंत्रित कर धोखे से उनके खाने में जहर देकर उन्हें मार दिया और उनका सिर काट कर चुनौती देता हुआ कि यदि महोबा वालों में दम है तो अपने सेनापति के कटे सिर आकर ले जायें मांडो चला गया । उस समय सैयद मीर हसन रानी मल्हना को सुरक्षित महोबा ले आये थे । राजा परिमल ने उनकी शूरवीरता को देखकर उन्हें अपना प्रमुख सेनापति नियुक्त किया । बिठूर के मेले में ही उनकी दस्सराज और बच्छराज से अच्छी मित्रता हो गई थी इसलिये उन्होंने उनसे कन्नौज की जगह महोबा का निमंत्रण देकर उन्हें अपने साथ रखा था । अपने पिता की मृत्यु के समय आल्हा छोटे थे और ऊदल मां के गर्भ में । इसी तरह बच्छराज के बेटे मलखान -सुलखान भी बहुत छोटे थे । दस्सराज और बच्छराज की मृत्यु के पश्चात उनके मित्र ताहिर खान सेनापति बने । वह जब अपने मित्र की हत्या का बदला लेने के लिये राजा परिमल की आज्ञा पाकर महोबा की सेना लेकर मांडो जा रहे थे तब देवला ने उनसे हाथ जोड़कर विनती करते हुये कहा -“पिता की मृत्यु का बदला लेने का अधिकार केवल पुत्र को होता है,आप मेरे पुत्र से इस अधिकार को मत छीनिये, उन्हें अपनी छत्रछाया में लेकर इस योग्य बनाईये कि वह स्वयं अपने पिता की मौत का बदला ले‌ सकें “। देवला के कहने पर सेनापति ताहिर खां को ही महाराज परिमल ने आल्हा ऊदल की शिक्षा दीक्षा का भार उन्हें सौंप दिया। अब आल्हा ऊदल , मलखान -सुलखान के साथ ही स्वयं महाराज परिमल के पुत्र ब्रह्मा की शिक्षा दीक्षा के साथ ही रण विद्या में पारंगत होने के लिये सभी प्रकार के अस्त्र शस्त्र संचालन करते हुये घुड़सवारी की शिक्षा भी सेनापति ताहिर खां के संरक्षण में दी जाने लगी । समय पाकर सभी प्रकार से युद्ध कौशल में पारंगत होने परर ताहिर की अनुमति से आल्हा-ऊदल और मलखान सुलखान को सेनापति बनाया गया । ऊदल सबसे अधिक शक्तिशाली योद्धा बने ।

इत यमुना उत टौंस,छत्रसाल से लड़न को रही न काहूँ ठौंस : वो सूरमा जिसने मुगलों को नाकों चने चबवा दिये

Related Post