उत्तर प्रदेश की महिला जिसने रूस में रचा इतिहास, भारत की पहली राजदूत बनीं
भारत और रूस दशकों से भरोसे और परंपरागत साझेदारी पर आधारित संबंधों को साझा करते आए हैं। लेकिन इस रिश्ते की एक खास कड़ी वह महिला हैं, जिनका नाम भारतीय कूटनीति के स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है विजयलक्ष्मी पंडित, जो सोवियत संघ में भारत की पहली राजदूत बनीं।

UP News : रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा एक बार फिर दोनों देशों के गहरे रिश्तों को चर्चा में ले आई। भारत और रूस दशकों से भरोसे और परंपरागत साझेदारी पर आधारित संबंधों को साझा करते आए हैं। लेकिन इस रिश्ते की एक खास कड़ी वह महिला हैं, जिनका नाम भारतीय कूटनीति के स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है विजयलक्ष्मी पंडित, जो सोवियत संघ में भारत की पहली राजदूत बनीं।
प्रयागराज में जन्मी प्रतिभा, जिसने दुनिया को दिखाया भारत का दम
विजयलक्ष्मी पंडित का जन्म 18 अगस्त 1900 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में प्रतिष्ठित नेहरू परिवार में हुआ। वह वकील और स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेता मोतीलाल नेहरू की बेटी तथा पंडित जवाहरलाल नेहरू की छोटी बहन थीं। घर पर ही पढ़ाई पूरी करने के बावजूद उनका व्यक्तित्व, संवाद क्षमता और राजनीतिक समझ इतनी गहरी थी कि बड़े-बड़े शिक्षाविद भी उनके सामने साधारण लगते थे। 1921 में उनका विवाह बैरिस्टर रंजीत सीताराम पंडित से हुआ। गांधीजी से प्रेरित होकर उन्होंने विलासिता का जीवन त्यागकर खादी अपनाई और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
भारत की पहली महिला कैबिनेट मंत्री
1937 में ब्रिटिश शासन के दौरान संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) की विधानसभा चुनाव में विजयलक्ष्मी पंडित ने जीत हासिल की।
उन्हें प्रांतीय सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया और इसी के साथ वे भारत की पहली महिला कैबिनेट मंत्री बनीं। उन्होंने साबित किया कि महिलाएं केवल सामाजिक भूमिका ही नहीं, बल्कि शासन प्रशासन में भी महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती हैं।
सोवियत संघ की राजदूत बनकर निभाई ऐतिहासिक भूमिका
आजादी के बाद भारत को ऐसे चेहरे की तलाश थी जो बड़े देशों के सामने भारत का दृष्टिकोण मजबूत तरीके से रख सके। पंडित नेहरू अच्छी तरह जानते थे कि उनकी बहन में कूटनीति, बातचीत और नेतृत्व की अद्भुत क्षमता है। इसी विश्वास के आधार पर विजयलक्ष्मी पंडित को सोवियत संघ में भारत का पहला राजदूत नियुक्त किया गया।
अपने व्यक्तित्व और समझदारी से स्टालिन जैसे कठोर नेता को भी प्रभावित किया
जब वे मॉस्को पहुँचीं, उस समय दुनिया शीतयुद्ध की शुरुआत से जूझ रही थी। अमेरिका और सोवियत संघ के बीच तनाव चरम पर था। ऐसे समय में भारत का प्रतिनिधित्व करना आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने अपने व्यक्तित्व और समझदारी से स्टालिन जैसे कठोर नेता को भी प्रभावित कर लिया। उनकी उपस्थिति ने दुनिया को दिखाया कि भारतीय महिलाएँ अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी बराबरी से जगह बना सकती हैं।
भारत-रूस संबंधों की मजबूत नींव में उनका योगदान
विजयलक्ष्मी पंडित ने न केवल सोवियत संघ के साथ भारत के शुरुआती राजनयिक संबंधों को आकार दिया, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि भारत एक स्वतंत्र और दृढ़ राष्ट्र की तरह विश्व मंच पर पहचाना जाए। उनकी नियुक्ति यह संदेश थी कि नए भारत में महिलाएँ नेतृत्व के हर आयाम में आगे बढ़ सकती हैं।
UP News : रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा एक बार फिर दोनों देशों के गहरे रिश्तों को चर्चा में ले आई। भारत और रूस दशकों से भरोसे और परंपरागत साझेदारी पर आधारित संबंधों को साझा करते आए हैं। लेकिन इस रिश्ते की एक खास कड़ी वह महिला हैं, जिनका नाम भारतीय कूटनीति के स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है विजयलक्ष्मी पंडित, जो सोवियत संघ में भारत की पहली राजदूत बनीं।
प्रयागराज में जन्मी प्रतिभा, जिसने दुनिया को दिखाया भारत का दम
विजयलक्ष्मी पंडित का जन्म 18 अगस्त 1900 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में प्रतिष्ठित नेहरू परिवार में हुआ। वह वकील और स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेता मोतीलाल नेहरू की बेटी तथा पंडित जवाहरलाल नेहरू की छोटी बहन थीं। घर पर ही पढ़ाई पूरी करने के बावजूद उनका व्यक्तित्व, संवाद क्षमता और राजनीतिक समझ इतनी गहरी थी कि बड़े-बड़े शिक्षाविद भी उनके सामने साधारण लगते थे। 1921 में उनका विवाह बैरिस्टर रंजीत सीताराम पंडित से हुआ। गांधीजी से प्रेरित होकर उन्होंने विलासिता का जीवन त्यागकर खादी अपनाई और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
भारत की पहली महिला कैबिनेट मंत्री
1937 में ब्रिटिश शासन के दौरान संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) की विधानसभा चुनाव में विजयलक्ष्मी पंडित ने जीत हासिल की।
उन्हें प्रांतीय सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया और इसी के साथ वे भारत की पहली महिला कैबिनेट मंत्री बनीं। उन्होंने साबित किया कि महिलाएं केवल सामाजिक भूमिका ही नहीं, बल्कि शासन प्रशासन में भी महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती हैं।
सोवियत संघ की राजदूत बनकर निभाई ऐतिहासिक भूमिका
आजादी के बाद भारत को ऐसे चेहरे की तलाश थी जो बड़े देशों के सामने भारत का दृष्टिकोण मजबूत तरीके से रख सके। पंडित नेहरू अच्छी तरह जानते थे कि उनकी बहन में कूटनीति, बातचीत और नेतृत्व की अद्भुत क्षमता है। इसी विश्वास के आधार पर विजयलक्ष्मी पंडित को सोवियत संघ में भारत का पहला राजदूत नियुक्त किया गया।
अपने व्यक्तित्व और समझदारी से स्टालिन जैसे कठोर नेता को भी प्रभावित किया
जब वे मॉस्को पहुँचीं, उस समय दुनिया शीतयुद्ध की शुरुआत से जूझ रही थी। अमेरिका और सोवियत संघ के बीच तनाव चरम पर था। ऐसे समय में भारत का प्रतिनिधित्व करना आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने अपने व्यक्तित्व और समझदारी से स्टालिन जैसे कठोर नेता को भी प्रभावित कर लिया। उनकी उपस्थिति ने दुनिया को दिखाया कि भारतीय महिलाएँ अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी बराबरी से जगह बना सकती हैं।
भारत-रूस संबंधों की मजबूत नींव में उनका योगदान
विजयलक्ष्मी पंडित ने न केवल सोवियत संघ के साथ भारत के शुरुआती राजनयिक संबंधों को आकार दिया, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि भारत एक स्वतंत्र और दृढ़ राष्ट्र की तरह विश्व मंच पर पहचाना जाए। उनकी नियुक्ति यह संदेश थी कि नए भारत में महिलाएँ नेतृत्व के हर आयाम में आगे बढ़ सकती हैं।












