उत्तर प्रदेश SIR अपडेट: नोएडा-गाजियाबाद में 25% वोटर्स सत्यापन के घेरे में
अधिकारियों के मुताबिक, बड़ी संख्या में वोटर्स को ‘एब्सेंट, शिफ्टेड, डेड या डुप्लीकेट’ (ASD) और ‘अनमैप्ड’ (Unmapped) श्रेणी में चिन्हित किया गया है यही वजह है कि उत्तर प्रदेश में चुनावी तैयारियों के बीच मतदाता सूची का मुद्दा अचानक केंद्र में आ गया है।

UP News : उत्तर प्रदेश के एनसीआर इलाके में वोटर लिस्ट को लेकर बड़ी हलचल तेज हो गई है। स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के एन्यूमरेशन फेज के पूरा होते ही नोएडा और गाजियाबाद से ऐसे आंकड़े सामने आए हैं, जिनसे लाखों मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से बाहर होने की आशंका बढ़ गई है। अधिकारियों के मुताबिक, बड़ी संख्या में वोटर्स को ‘एब्सेंट, शिफ्टेड, डेड या डुप्लीकेट’ (ASD) और ‘अनमैप्ड’ (Unmapped) श्रेणी में चिन्हित किया गया है यही वजह है कि उत्तर प्रदेश में चुनावी तैयारियों के बीच मतदाता सूची का मुद्दा अचानक केंद्र में आ गया है।
नोएडा में वोटर लिस्ट की बड़ी छंटनी
चुनावी रिकॉर्ड के लिहाज से उत्तर प्रदेश के सबसे तेज़ी से बदलते शहरी जिलों में शामिल नोएडा में मतदाता सूची की SIR पड़ताल ने चौंकाने वाले संकेत दिए हैं। जिले के कुल 18.7 लाख वोटरों में से करीब 4.4 लाख (लगभग 24%) नाम ASD के तौर पर मार्क किए गए हैं यानी वे मतदाता जो सत्यापन के दौरान पते पर नहीं मिले, कहीं और शिफ्ट हो चुके हैं, मृत्यु दर्ज है या फिर दो जगह नाम दर्ज होने की आशंका है। इसके साथ ही, प्रक्रिया में 1.8 लाख (करीब 9.8%) मतदाता ‘अनमैप्ड’ पाए गए। नोएडा के अतिरिक्त जिला निर्वाचन अधिकारी (प्रशासन) अतुल कुमार के मुताबिक, ये वे नाम हैं जिनकी डिटेल्स 2003 की बेसलाइन वोटर लिस्ट से लिंक नहीं हो पा रही हैं न अपने पुराने रिकॉर्ड से, न परिवार के पुराने रिकॉर्ड से। कुल मिलाकर, उत्तर प्रदेश में तेजी से बढ़ते “माइग्रेशन हब” नोएडा में यह कवायद अब सिर्फ सूची अपडेट नहीं, बल्कि चुनावी डेटाबेस की बड़ी शुद्धि और फर्जी/डुप्लीकेट एंट्री पर निर्णायक चोट के तौर पर देखी जा रही है।
लाखों नाम जांच के दायरे में
उत्तर प्रदेश के तेज़ी से फैलते औद्योगिक-आवासीय केंद्र गाजियाबाद में मतदाता सूची की पड़ताल ने और भी बड़ी तस्वीर सामने रख दी है। जिले के करीब 28.4 लाख मतदाताओं में से 8.3 लाख (लगभग 29%) वोटर्स को ASD श्रेणी में दर्ज किया गया है, जबकि करीब 1.6 लाख (लगभग 5.6%) मतदाता ‘अनमैप्ड’ चिन्हित हुए हैं। प्रशासन का स्पष्ट संदेश है कि ‘अनमैप्ड’ का मतलब नाम कटना नहीं ऐसे नाम ड्राफ्ट रोल में अलग कैटेगरी के तौर पर दिखेंगे और फिर दस्तावेज़ी पुष्टि/मैदानी सत्यापन के बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा। कुल मिलाकर, उत्तर प्रदेश में चुनावी व्यवस्था को ज्यादा पारदर्शी और त्रुटिरहित बनाने की दिशा में यह कवायद गाज़ियाबाद में सबसे बड़े पैमाने पर नजर आ रही है।
‘ASD’ बनाम ‘Unmapped’: दोनों में फर्क क्या है?
उत्तर प्रदेश में चल रही SIR प्रक्रिया के तहत मतदाताओं की दो श्रेणियां सबसे ज्यादा चर्चा में हैं ‘अनमैप्ड’ और ‘ASD’। अनमैप्ड वोटर वे हैं जिनकी मौजूदगी तो दर्ज है, लेकिन उनकी डिटेल्स 2003 की बेसलाइन वोटर लिस्ट से मेल नहीं खा पा रहीं न व्यक्तिगत रिकॉर्ड से, न परिवार के पुराने रिकॉर्ड से। वहीं ASD वोटर उन नामों को कहा जा रहा है जो सत्यापन के दौरान पते पर नहीं मिले (Absent), कहीं और शिफ्ट हो चुके (Shifted), मृत (Dead) दर्ज हैं या डुप्लीकेट एंट्री (Duplicate) की आशंका में चिन्हित किए गए हैं। प्रशासनिक हलकों में माना जा रहा है कि ASD कैटेगरी में आए नामों पर कटने का जोखिम अपेक्षाकृत ज्यादा हो सकता है, लेकिन तस्वीर पूरी तरह अंतिम नहीं है क्योंकि मतदाता क्लेम/आपत्ति की प्रक्रिया के जरिए अपने दस्तावेज प्रस्तुत कर नाम बहाल कराने का अधिकार रखते हैं। कुल मिलाकर, यह कवायद उत्तर प्रदेश में मतदाता सूची को साफ-सुथरा और भरोसेमंद बनाने की दिशा में निर्णायक कदम के तौर पर देखी जा रही है।
30 जनवरी तक क्लेम-ऑब्जेक्शन का मौका
अधिकारियों के मुताबिक, 31 दिसंबर को वेरिफाइड और ‘अनमैप्ड’ मतदाताओं वाले ड्राफ्ट रोल प्रकाशित किए जाएंगे। इसके बाद क्लेम और ऑब्जेक्शन (दावा-उत्तर प्रदेश में मतदाता सूची से जुड़े दावा/आपत्ति दाखिल करने की विंडो अगले साल 30 जनवरी तक खुली रहेगी। इस अवधि में मतदाता अपने क्षेत्र के BLO (बूथ लेवल ऑफिसर) से सीधे संपर्क कर सकते हैं या चुनाव आयोग के ऑनलाइन पोर्टल के जरिए नाम, पता और अन्य विवरणों में सुधार/आपत्ति दर्ज करा सकते हैं। इसके बाद प्रशासनिक मशीनरी क्लेम की जांच, दस्तावेज़ों का सत्यापन और जरूरत पड़ने पर नोटिस जारी करने की प्रक्रिया आगे बढ़ाएगी। अधिकारियों के मुताबिक, लक्ष्य यह है कि 21 फरवरी तक अंतिम नोटिस की कार्रवाई पूरी कर ली जाए और फिर 28 फरवरी को अपडेटेड फाइनल इलेक्टोरल रोल जारी कर दिया जाए ताकि उत्तर प्रदेश में चुनावी रिकॉर्ड अधिक सटीक, पारदर्शी और भरोसेमंद बने।
पूरे यूपी में ‘अनकलेक्टेबल’ कैटेगरी का बड़ा आंकड़ा
उत्तर प्रदेश में यह कवायद सिर्फ नोएडा-गाजियाबाद तक सीमित नहीं है राज्य स्तर पर आंकड़े और भी विशाल हैं। उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, प्रदेश में करीब 2.9 करोड़ मतदाता (लगभग 18.7%) को ‘अनकलेक्टेबल’ श्रेणी में रखा गया है। इस कैटेगरी में ASD के साथ-साथ वे नाम भी शामिल हैं, जिनके मामलों में फॉर्म पर साइन करने से इनकार, फॉर्म वापस न करना या सत्यापन प्रक्रिया का पूरा न हो पाना जैसी स्थितियां सामने आईं। अधिकारियों के अनुसार, इस बड़े समूह में बड़ी संख्या उन मतदाताओं की है जो स्थायी रूप से कहीं और शिफ्ट हो चुके हैं; कई रिकॉर्ड में मृत्यु दर्ज मिलने की बात सामने आई है; और कुछ मामलों में डुप्लीकेट एंट्री की आशंका भी उजागर हुई है। कुल मिलाकर, यह तस्वीर बताती है कि उत्तर प्रदेश में मतदाता सूची की “सफाई” अब एक सामान्य अपडेट नहीं, बल्कि चुनावी डेटाबेस की सबसे बड़ी शुद्धिकरण प्रक्रिया बनती जा रही है।
प्रशासन की अपील
अधिकारियों का तर्क है कि पूरी कवायद का मकसद मतदाता सूची को ज्यादा साफ-सुथरा, सटीक और त्रुटिरहित बनाना है, लेकिन उत्तर प्रदेश के एनसीआर जिलों में जिस बड़े पैमाने पर नाम ASD/Unmapped श्रेणियों में गए हैं, उसने आम मतदाताओं की बेचैनी बढ़ा दी है। प्रशासन ने साफ अपील की है कि हर मतदाता समय रहते अपना नाम और स्टेटस जरूर जांच ले। यदि किसी तरह की गड़बड़ी, पता-त्रुटि या कैटेगरी का मसला दिखे, तो निर्धारित समयसीमा के भीतर दस्तावेज़ जमा कर क्लेम/आपत्ति दर्ज कराएं, ताकि किसी तकनीकी चूक या रिकॉर्ड मिसमैच के कारण “वोट का अधिकार” सूची से बाहर न चला जाए। UP News
UP News : उत्तर प्रदेश के एनसीआर इलाके में वोटर लिस्ट को लेकर बड़ी हलचल तेज हो गई है। स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के एन्यूमरेशन फेज के पूरा होते ही नोएडा और गाजियाबाद से ऐसे आंकड़े सामने आए हैं, जिनसे लाखों मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से बाहर होने की आशंका बढ़ गई है। अधिकारियों के मुताबिक, बड़ी संख्या में वोटर्स को ‘एब्सेंट, शिफ्टेड, डेड या डुप्लीकेट’ (ASD) और ‘अनमैप्ड’ (Unmapped) श्रेणी में चिन्हित किया गया है यही वजह है कि उत्तर प्रदेश में चुनावी तैयारियों के बीच मतदाता सूची का मुद्दा अचानक केंद्र में आ गया है।
नोएडा में वोटर लिस्ट की बड़ी छंटनी
चुनावी रिकॉर्ड के लिहाज से उत्तर प्रदेश के सबसे तेज़ी से बदलते शहरी जिलों में शामिल नोएडा में मतदाता सूची की SIR पड़ताल ने चौंकाने वाले संकेत दिए हैं। जिले के कुल 18.7 लाख वोटरों में से करीब 4.4 लाख (लगभग 24%) नाम ASD के तौर पर मार्क किए गए हैं यानी वे मतदाता जो सत्यापन के दौरान पते पर नहीं मिले, कहीं और शिफ्ट हो चुके हैं, मृत्यु दर्ज है या फिर दो जगह नाम दर्ज होने की आशंका है। इसके साथ ही, प्रक्रिया में 1.8 लाख (करीब 9.8%) मतदाता ‘अनमैप्ड’ पाए गए। नोएडा के अतिरिक्त जिला निर्वाचन अधिकारी (प्रशासन) अतुल कुमार के मुताबिक, ये वे नाम हैं जिनकी डिटेल्स 2003 की बेसलाइन वोटर लिस्ट से लिंक नहीं हो पा रही हैं न अपने पुराने रिकॉर्ड से, न परिवार के पुराने रिकॉर्ड से। कुल मिलाकर, उत्तर प्रदेश में तेजी से बढ़ते “माइग्रेशन हब” नोएडा में यह कवायद अब सिर्फ सूची अपडेट नहीं, बल्कि चुनावी डेटाबेस की बड़ी शुद्धि और फर्जी/डुप्लीकेट एंट्री पर निर्णायक चोट के तौर पर देखी जा रही है।
लाखों नाम जांच के दायरे में
उत्तर प्रदेश के तेज़ी से फैलते औद्योगिक-आवासीय केंद्र गाजियाबाद में मतदाता सूची की पड़ताल ने और भी बड़ी तस्वीर सामने रख दी है। जिले के करीब 28.4 लाख मतदाताओं में से 8.3 लाख (लगभग 29%) वोटर्स को ASD श्रेणी में दर्ज किया गया है, जबकि करीब 1.6 लाख (लगभग 5.6%) मतदाता ‘अनमैप्ड’ चिन्हित हुए हैं। प्रशासन का स्पष्ट संदेश है कि ‘अनमैप्ड’ का मतलब नाम कटना नहीं ऐसे नाम ड्राफ्ट रोल में अलग कैटेगरी के तौर पर दिखेंगे और फिर दस्तावेज़ी पुष्टि/मैदानी सत्यापन के बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा। कुल मिलाकर, उत्तर प्रदेश में चुनावी व्यवस्था को ज्यादा पारदर्शी और त्रुटिरहित बनाने की दिशा में यह कवायद गाज़ियाबाद में सबसे बड़े पैमाने पर नजर आ रही है।
‘ASD’ बनाम ‘Unmapped’: दोनों में फर्क क्या है?
उत्तर प्रदेश में चल रही SIR प्रक्रिया के तहत मतदाताओं की दो श्रेणियां सबसे ज्यादा चर्चा में हैं ‘अनमैप्ड’ और ‘ASD’। अनमैप्ड वोटर वे हैं जिनकी मौजूदगी तो दर्ज है, लेकिन उनकी डिटेल्स 2003 की बेसलाइन वोटर लिस्ट से मेल नहीं खा पा रहीं न व्यक्तिगत रिकॉर्ड से, न परिवार के पुराने रिकॉर्ड से। वहीं ASD वोटर उन नामों को कहा जा रहा है जो सत्यापन के दौरान पते पर नहीं मिले (Absent), कहीं और शिफ्ट हो चुके (Shifted), मृत (Dead) दर्ज हैं या डुप्लीकेट एंट्री (Duplicate) की आशंका में चिन्हित किए गए हैं। प्रशासनिक हलकों में माना जा रहा है कि ASD कैटेगरी में आए नामों पर कटने का जोखिम अपेक्षाकृत ज्यादा हो सकता है, लेकिन तस्वीर पूरी तरह अंतिम नहीं है क्योंकि मतदाता क्लेम/आपत्ति की प्रक्रिया के जरिए अपने दस्तावेज प्रस्तुत कर नाम बहाल कराने का अधिकार रखते हैं। कुल मिलाकर, यह कवायद उत्तर प्रदेश में मतदाता सूची को साफ-सुथरा और भरोसेमंद बनाने की दिशा में निर्णायक कदम के तौर पर देखी जा रही है।
30 जनवरी तक क्लेम-ऑब्जेक्शन का मौका
अधिकारियों के मुताबिक, 31 दिसंबर को वेरिफाइड और ‘अनमैप्ड’ मतदाताओं वाले ड्राफ्ट रोल प्रकाशित किए जाएंगे। इसके बाद क्लेम और ऑब्जेक्शन (दावा-उत्तर प्रदेश में मतदाता सूची से जुड़े दावा/आपत्ति दाखिल करने की विंडो अगले साल 30 जनवरी तक खुली रहेगी। इस अवधि में मतदाता अपने क्षेत्र के BLO (बूथ लेवल ऑफिसर) से सीधे संपर्क कर सकते हैं या चुनाव आयोग के ऑनलाइन पोर्टल के जरिए नाम, पता और अन्य विवरणों में सुधार/आपत्ति दर्ज करा सकते हैं। इसके बाद प्रशासनिक मशीनरी क्लेम की जांच, दस्तावेज़ों का सत्यापन और जरूरत पड़ने पर नोटिस जारी करने की प्रक्रिया आगे बढ़ाएगी। अधिकारियों के मुताबिक, लक्ष्य यह है कि 21 फरवरी तक अंतिम नोटिस की कार्रवाई पूरी कर ली जाए और फिर 28 फरवरी को अपडेटेड फाइनल इलेक्टोरल रोल जारी कर दिया जाए ताकि उत्तर प्रदेश में चुनावी रिकॉर्ड अधिक सटीक, पारदर्शी और भरोसेमंद बने।
पूरे यूपी में ‘अनकलेक्टेबल’ कैटेगरी का बड़ा आंकड़ा
उत्तर प्रदेश में यह कवायद सिर्फ नोएडा-गाजियाबाद तक सीमित नहीं है राज्य स्तर पर आंकड़े और भी विशाल हैं। उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, प्रदेश में करीब 2.9 करोड़ मतदाता (लगभग 18.7%) को ‘अनकलेक्टेबल’ श्रेणी में रखा गया है। इस कैटेगरी में ASD के साथ-साथ वे नाम भी शामिल हैं, जिनके मामलों में फॉर्म पर साइन करने से इनकार, फॉर्म वापस न करना या सत्यापन प्रक्रिया का पूरा न हो पाना जैसी स्थितियां सामने आईं। अधिकारियों के अनुसार, इस बड़े समूह में बड़ी संख्या उन मतदाताओं की है जो स्थायी रूप से कहीं और शिफ्ट हो चुके हैं; कई रिकॉर्ड में मृत्यु दर्ज मिलने की बात सामने आई है; और कुछ मामलों में डुप्लीकेट एंट्री की आशंका भी उजागर हुई है। कुल मिलाकर, यह तस्वीर बताती है कि उत्तर प्रदेश में मतदाता सूची की “सफाई” अब एक सामान्य अपडेट नहीं, बल्कि चुनावी डेटाबेस की सबसे बड़ी शुद्धिकरण प्रक्रिया बनती जा रही है।
प्रशासन की अपील
अधिकारियों का तर्क है कि पूरी कवायद का मकसद मतदाता सूची को ज्यादा साफ-सुथरा, सटीक और त्रुटिरहित बनाना है, लेकिन उत्तर प्रदेश के एनसीआर जिलों में जिस बड़े पैमाने पर नाम ASD/Unmapped श्रेणियों में गए हैं, उसने आम मतदाताओं की बेचैनी बढ़ा दी है। प्रशासन ने साफ अपील की है कि हर मतदाता समय रहते अपना नाम और स्टेटस जरूर जांच ले। यदि किसी तरह की गड़बड़ी, पता-त्रुटि या कैटेगरी का मसला दिखे, तो निर्धारित समयसीमा के भीतर दस्तावेज़ जमा कर क्लेम/आपत्ति दर्ज कराएं, ताकि किसी तकनीकी चूक या रिकॉर्ड मिसमैच के कारण “वोट का अधिकार” सूची से बाहर न चला जाए। UP News












