अफवाह से हिंसा तक: बिसाहड़ा की वह रात जिसने उत्तर प्रदेश को हिला दिया
गंभीर रूप से घायल दानिश को अस्पताल ले जाया गया, जहां उसे लंबे समय तक इलाज कराना पड़ा। कई बार ब्रेन सर्जरी हुई। यह घटना उत्तर प्रदेश ही नहीं, पूरे देश में मॉब लिंचिंग की सबसे भयावह मिसालों में गिनी जाने लगी।

UP News : उत्तर प्रदेश के दादरी क्षेत्र के बिसाहड़ा गांव में 28 सितंबर 2015 की रात जो कुछ हुआ, वह केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं थी, बल्कि कानून, सामाजिक सद्भाव और मानवीय विवेक की सामूहिक विफलता थी। गोमांस की एक अपुष्ट अफवाह ने उस रात ऐसा उन्माद पैदा किया कि मोहम्मद अखलाक को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला और उनका बेटा दानिश जिंदगी और मौत के बीच झूलता रह गया। करीब साढ़े दस बजे का वक्त था। गांव में यह बात फैलाई गई कि अखलाक के घर में गोमांस रखा है और बछड़े की हत्या की गई है। बिना किसी पुष्टि के यह अफवाह देखते ही देखते सैकड़ों लोगों तक पहुंच गई। माहौल में तनाव घुलने लगा और फिर अचानक वह हिंसा में तब्दील हो गया। उन्मादी भीड़ ने अखलाक के घर को घेर लिया। दरवाजा तोड़ा गया, घर में घुसकर अखलाक और उनके बेटे को बाहर घसीटा गया। लाठियों, ईंटों और पत्थरों से उन पर बेरहमी से हमला किया गया। घर की महिलाएं मदद की गुहार लगाती रहीं, लेकिन भीड़ पर न कानून का डर था और न इंसानियत का। कुछ ही देर में अखलाक ने दम तोड़ दिया। गंभीर रूप से घायल दानिश को अस्पताल ले जाया गया, जहां उसे लंबे समय तक इलाज कराना पड़ा। कई बार ब्रेन सर्जरी हुई। यह घटना उत्तर प्रदेश ही नहीं, पूरे देश में मॉब लिंचिंग की सबसे भयावह मिसालों में गिनी जाने लगी।
जांच, सवाल और विरोधाभास
घटना के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और गांव में सुरक्षा बल तैनात किया गया। अखलाक के घर से बरामद मांस को सबूत के तौर पर जब्त कर जांच के लिए भेजा गया। यहीं से विवादों की एक नई श्रृंखला शुरू हुई। शुरुआती पशु चिकित्सा रिपोर्ट में मांस को मटन बताया गया, जबकि बाद में मथुरा की प्रयोगशाला की रिपोर्ट में उसे गाय या उसके वंश का बताया गया। इन विरोधाभासी रिपोर्टों ने जांच की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े किए।पीड़ित परिवार का आरोप रहा कि अगर पुलिस समय पर पहुंचती, तो अखलाक की जान बचाई जा सकती थी। साथ ही यह भी कहा गया कि जांच के दौरान सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई।
चार्जशीट और लंबा इंतजार
मामला राष्ट्रीय बहस का विषय बन गया। देश-विदेश में भारत में बढ़ती मॉब लिंचिंग पर सवाल उठे। कई लेखकों और कलाकारों ने विरोध स्वरूप अपने पुरस्कार लौटाए। इस बीच 19 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई, जिनमें गांव के प्रभावशाली लोग और एक स्थानीय राजनीतिक नेता का बेटा भी शामिल था। हालांकि, मुकदमे की धीमी गति और गवाहों के बयान बदलने की खबरों ने पीड़ित परिवार की उम्मीदों को बार-बार चोट पहुंचाई। घटना के बाद अखलाक का परिवार बिसाहड़ा छोड़ने को मजबूर हुआ। उनकी पत्नी न्याय की तलाश में अदालतों के चक्कर लगाती रहीं और आरोप लगाया गया कि गवाहों पर दबाव बनाया गया।
केस वापसी की कोशिश और अदालत का फैसला
अक्टूबर 2025 में उत्तर प्रदेश सरकार ने सामाजिक सौहार्द और गवाहों के विरोधाभासी बयानों का हवाला देते हुए मुकदमा वापस लेने की अर्जी दाखिल की। इस कदम ने नया विवाद खड़ा कर दिया। अखलाक की पत्नी ने इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी और कहा कि इससे न्याय की अंतिम उम्मीद भी खत्म हो जाएगी।अब गौतम बुद्ध नगर की सूरजपुर कोर्ट ने सरकार की केस वापसी की अर्जी को खारिज कर दिया है। अदालत ने अभियोजन की इस मांग को आधारहीन और महत्वहीन बताते हुए स्पष्ट किया कि आरोपियों के खिलाफ मुकदमा जारी रहेगा। कोर्ट ने मामले की डे-टू-डे सुनवाई के निर्देश भी दिए हैं। अगली सुनवाई 6 जनवरी को तय की गई है।
न्याय की उम्मीद अभी बाकी
पीड़ित पक्ष के वकील का कहना है कि यह फैसला न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। बिसाहड़ा की वह रात आज भी उत्तर प्रदेश के सामाजिक ताने-बाने और कानून-व्यवस्था पर एक कठोर सवाल की तरह खड़ी है—क्या अफवाहों के दौर में इंसाफ समय पर पहुंच पाएगा? UP News
UP News : उत्तर प्रदेश के दादरी क्षेत्र के बिसाहड़ा गांव में 28 सितंबर 2015 की रात जो कुछ हुआ, वह केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं थी, बल्कि कानून, सामाजिक सद्भाव और मानवीय विवेक की सामूहिक विफलता थी। गोमांस की एक अपुष्ट अफवाह ने उस रात ऐसा उन्माद पैदा किया कि मोहम्मद अखलाक को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला और उनका बेटा दानिश जिंदगी और मौत के बीच झूलता रह गया। करीब साढ़े दस बजे का वक्त था। गांव में यह बात फैलाई गई कि अखलाक के घर में गोमांस रखा है और बछड़े की हत्या की गई है। बिना किसी पुष्टि के यह अफवाह देखते ही देखते सैकड़ों लोगों तक पहुंच गई। माहौल में तनाव घुलने लगा और फिर अचानक वह हिंसा में तब्दील हो गया। उन्मादी भीड़ ने अखलाक के घर को घेर लिया। दरवाजा तोड़ा गया, घर में घुसकर अखलाक और उनके बेटे को बाहर घसीटा गया। लाठियों, ईंटों और पत्थरों से उन पर बेरहमी से हमला किया गया। घर की महिलाएं मदद की गुहार लगाती रहीं, लेकिन भीड़ पर न कानून का डर था और न इंसानियत का। कुछ ही देर में अखलाक ने दम तोड़ दिया। गंभीर रूप से घायल दानिश को अस्पताल ले जाया गया, जहां उसे लंबे समय तक इलाज कराना पड़ा। कई बार ब्रेन सर्जरी हुई। यह घटना उत्तर प्रदेश ही नहीं, पूरे देश में मॉब लिंचिंग की सबसे भयावह मिसालों में गिनी जाने लगी।
जांच, सवाल और विरोधाभास
घटना के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और गांव में सुरक्षा बल तैनात किया गया। अखलाक के घर से बरामद मांस को सबूत के तौर पर जब्त कर जांच के लिए भेजा गया। यहीं से विवादों की एक नई श्रृंखला शुरू हुई। शुरुआती पशु चिकित्सा रिपोर्ट में मांस को मटन बताया गया, जबकि बाद में मथुरा की प्रयोगशाला की रिपोर्ट में उसे गाय या उसके वंश का बताया गया। इन विरोधाभासी रिपोर्टों ने जांच की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े किए।पीड़ित परिवार का आरोप रहा कि अगर पुलिस समय पर पहुंचती, तो अखलाक की जान बचाई जा सकती थी। साथ ही यह भी कहा गया कि जांच के दौरान सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई।
चार्जशीट और लंबा इंतजार
मामला राष्ट्रीय बहस का विषय बन गया। देश-विदेश में भारत में बढ़ती मॉब लिंचिंग पर सवाल उठे। कई लेखकों और कलाकारों ने विरोध स्वरूप अपने पुरस्कार लौटाए। इस बीच 19 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई, जिनमें गांव के प्रभावशाली लोग और एक स्थानीय राजनीतिक नेता का बेटा भी शामिल था। हालांकि, मुकदमे की धीमी गति और गवाहों के बयान बदलने की खबरों ने पीड़ित परिवार की उम्मीदों को बार-बार चोट पहुंचाई। घटना के बाद अखलाक का परिवार बिसाहड़ा छोड़ने को मजबूर हुआ। उनकी पत्नी न्याय की तलाश में अदालतों के चक्कर लगाती रहीं और आरोप लगाया गया कि गवाहों पर दबाव बनाया गया।
केस वापसी की कोशिश और अदालत का फैसला
अक्टूबर 2025 में उत्तर प्रदेश सरकार ने सामाजिक सौहार्द और गवाहों के विरोधाभासी बयानों का हवाला देते हुए मुकदमा वापस लेने की अर्जी दाखिल की। इस कदम ने नया विवाद खड़ा कर दिया। अखलाक की पत्नी ने इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी और कहा कि इससे न्याय की अंतिम उम्मीद भी खत्म हो जाएगी।अब गौतम बुद्ध नगर की सूरजपुर कोर्ट ने सरकार की केस वापसी की अर्जी को खारिज कर दिया है। अदालत ने अभियोजन की इस मांग को आधारहीन और महत्वहीन बताते हुए स्पष्ट किया कि आरोपियों के खिलाफ मुकदमा जारी रहेगा। कोर्ट ने मामले की डे-टू-डे सुनवाई के निर्देश भी दिए हैं। अगली सुनवाई 6 जनवरी को तय की गई है।
न्याय की उम्मीद अभी बाकी
पीड़ित पक्ष के वकील का कहना है कि यह फैसला न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। बिसाहड़ा की वह रात आज भी उत्तर प्रदेश के सामाजिक ताने-बाने और कानून-व्यवस्था पर एक कठोर सवाल की तरह खड़ी है—क्या अफवाहों के दौर में इंसाफ समय पर पहुंच पाएगा? UP News


