CCTV बना ब्लैकमेल का हथियार: हाईवे-ट्रेन फुटेज लीक करने वालों पर लगाम कब?
सार्वजनिक जगहों पर रिकॉर्ड हुए निजी पलों के वीडियो लीक कर पैसे ऐंठने और दबाव बनाने की शिकायतें बढ़ रही हैं और इसी के साथ उत्तर प्रदेश में डिजिटल निगरानी व्यवस्था की जवाबदेही और सुरक्षा को लेकर बहस तेज हो गई है।

UP News : उत्तर प्रदेश में सुरक्षा और कानून-व्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले सीसीटीवी कैमरे अब एक नई चिंता का कारण बनते दिख रहे हैं। उत्तर प्रदेश में एक्सप्रेसवे, रेलवे प्लेटफॉर्म और भीड़भाड़ वाले सार्वजनिक इलाकों में जिन फुटेज से अपराधियों की पहचान होनी चाहिए, वही कुछ मामलों में बदनामी की धमकी और ब्लैकमेलिंग का हथियार बन रहा है। हैरानी की बात यह है कि इस खेल में कई बार वही लोग शामिल पाए गए हैं, जिन पर निगरानी की जिम्मेदारी होती है यानी सिस्टम के भीतर से ही सिस्टम पर चोट। नतीजा साफ है: आम लोगों की निजता पर सीधा हमला, मानसिक दबाव और भरोसे की दीवार में दरार। हालिया घटनाओं ने यूपी के लिए यह सवाल और भी गंभीर कर दिया है कि “कैमरों की नजर” तो सब पर है, लेकिन कैमरा कंट्रोल करने वालों पर नजर कौन रखेगा? सार्वजनिक जगहों पर रिकॉर्ड हुए निजी पलों के वीडियो लीक कर पैसे ऐंठने और दबाव बनाने की शिकायतें बढ़ रही हैं और इसी के साथ उत्तर प्रदेश में डिजिटल निगरानी व्यवस्था की जवाबदेही और सुरक्षा को लेकर बहस तेज हो गई है।
नमो भारत ट्रेन मामला
हाल ही में ‘नमो भारत’ ट्रेन से जुड़ा एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ, जिसे नवंबर का बताया गया और दिसंबर में बड़े पैमाने पर शेयर किया गया। मामला तूल पकड़ते ही ट्रेन संचालन से जुड़ी एजेंसी ने आंतरिक जांच कर जिम्मेदार कर्मचारी को सेवा से बाहर का रास्ता दिखा दिया। वहीं सार्वजनिक स्थान पर आपत्तिजनक कृत्य के आरोप में संबंधित लोगों के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कराया गया। पुलिस अब इस पूरे प्रकरण की परत-दर-परत पड़ताल कर रही है। इस घटना ने केवल व्यवस्था पर सवाल नहीं उठाए, बल्कि पीड़ित परिवारों पर पड़े मानसिक दबाव और सामाजिक शर्मिंदगी ने यह साफ कर दिया कि डिजिटल निगरानी के दुरुपयोग का खतरा कितना गंभीर और दूरगामी हो सकता है।
पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पर कपल से वसूली का आरोप
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पर सीसीटीवी फुटेज के दुरुपयोग का एक मामला इतना गंभीर निकला कि नवविवाहित जोड़े से कथित तौर पर 32 हजार रुपये की उगाही तक की बात सामने आई। पीड़ित की शिकायत जब सीधे मुख्यमंत्री तक पहुंची, तब जाकर सिस्टम हरकत में आया और टोल से जुड़े कर्मचारियों पर कार्रवाई की गई। आरोप यह भी हैं कि यह केवल एक घटना नहीं, बल्कि एक संगठित नेटवर्क की तरह काम करता रहा जिसके जरिए अन्य राहगीरों को भी “वीडियो लीक” और “बदनामी” का डर दिखाकर अवैध वसूली की गई। कार्रवाई में कुछ कर्मचारियों को हटाया गया, लेकिन उत्तर प्रदेश की निगरानी व्यवस्था के सामने असली सवाल अब भी खड़ा है अगर कैमरे सुरक्षा के लिए हैं, तो उनकी रिकॉर्डिंग को ब्लैकमेलिंग की मशीन बनने से रोकने वाली मजबूत ‘डिजिटल चौकसी’ अब तक क्यों नहीं बन पाई?
दिल्ली–मुंबई एक्सप्रेसवे प्रकरण
दिल्ली - मुंबई एक्सप्रेसवे से जुड़ा एक और मामला बताता है कि निगरानी की तकनीक कब “सुरक्षा” से फिसलकर “सौदेबाज़ी” का औजार बन जाती है, पता ही नहीं चलता। यहां सार्वजनिक स्थान पर रिकॉर्ड हुए एक वीडियो को आधार बनाकर ब्लैकमेलिंग की कोशिशों की बात सामने आई, जिसके बाद जांच में टोल स्टाफ की भूमिका पर सवाल उठे और कार्रवाई भी की गई। लेकिन यह प्रकरण सिर्फ एक विभागीय कार्रवाई तक सीमित नहीं है यह उस खतरनाक हकीकत की तरफ इशारा करता है कि कैमरे की एक क्लिक और फुटेज की एक लीक, किसी के निजी जीवन को पल भर में सोशल मीडिया के कटघरे में खड़ा कर सकती है।
समाधान क्या?
उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में जहां एक्सप्रेसवे नेटवर्क से लेकर स्मार्ट सर्विलांस तक का दायरा लगातार फैल रहा है अब सिर्फ कैमरे लगाना ही “सुरक्षा” नहीं माना जा सकता। असली कसौटी यह है कि रिकॉर्ड होने वाला डेटा कितना सुरक्षित है और सिस्टम कितना जवाबदेह। विशेषज्ञों की राय में यूपी को अब निगरानी व्यवस्था के साथ डेटा-सुरक्षा का मजबूत कवच भी खड़ा करना होगा। इसके लिए फुटेज तक पहुंच को “सीमित और लॉग-आधारित” बनाना जरूरी है, ताकि हर क्लिक का रिकॉर्ड रहे और यह साफ दिखे कि कौन, कब और किस फुटेज को देख रहा है। साथ ही रियल-टाइम ऑडिटिंग से सिस्टम में पारदर्शिता आएगी। फुटेज लीक या दुरुपयोग के मामलों में “जीरो टॉलरेंस” अपनाते हुए तत्काल निलंबन के साथ आपराधिक कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। नियमित अंतराल पर स्वतंत्र एजेंसी से थर्ड-पार्टी ऑडिट कराया जाए, ताकि अंदरूनी गड़बड़ियों की समय रहते पहचान हो सके। UP News
UP News : उत्तर प्रदेश में सुरक्षा और कानून-व्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले सीसीटीवी कैमरे अब एक नई चिंता का कारण बनते दिख रहे हैं। उत्तर प्रदेश में एक्सप्रेसवे, रेलवे प्लेटफॉर्म और भीड़भाड़ वाले सार्वजनिक इलाकों में जिन फुटेज से अपराधियों की पहचान होनी चाहिए, वही कुछ मामलों में बदनामी की धमकी और ब्लैकमेलिंग का हथियार बन रहा है। हैरानी की बात यह है कि इस खेल में कई बार वही लोग शामिल पाए गए हैं, जिन पर निगरानी की जिम्मेदारी होती है यानी सिस्टम के भीतर से ही सिस्टम पर चोट। नतीजा साफ है: आम लोगों की निजता पर सीधा हमला, मानसिक दबाव और भरोसे की दीवार में दरार। हालिया घटनाओं ने यूपी के लिए यह सवाल और भी गंभीर कर दिया है कि “कैमरों की नजर” तो सब पर है, लेकिन कैमरा कंट्रोल करने वालों पर नजर कौन रखेगा? सार्वजनिक जगहों पर रिकॉर्ड हुए निजी पलों के वीडियो लीक कर पैसे ऐंठने और दबाव बनाने की शिकायतें बढ़ रही हैं और इसी के साथ उत्तर प्रदेश में डिजिटल निगरानी व्यवस्था की जवाबदेही और सुरक्षा को लेकर बहस तेज हो गई है।
नमो भारत ट्रेन मामला
हाल ही में ‘नमो भारत’ ट्रेन से जुड़ा एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ, जिसे नवंबर का बताया गया और दिसंबर में बड़े पैमाने पर शेयर किया गया। मामला तूल पकड़ते ही ट्रेन संचालन से जुड़ी एजेंसी ने आंतरिक जांच कर जिम्मेदार कर्मचारी को सेवा से बाहर का रास्ता दिखा दिया। वहीं सार्वजनिक स्थान पर आपत्तिजनक कृत्य के आरोप में संबंधित लोगों के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कराया गया। पुलिस अब इस पूरे प्रकरण की परत-दर-परत पड़ताल कर रही है। इस घटना ने केवल व्यवस्था पर सवाल नहीं उठाए, बल्कि पीड़ित परिवारों पर पड़े मानसिक दबाव और सामाजिक शर्मिंदगी ने यह साफ कर दिया कि डिजिटल निगरानी के दुरुपयोग का खतरा कितना गंभीर और दूरगामी हो सकता है।
पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पर कपल से वसूली का आरोप
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पर सीसीटीवी फुटेज के दुरुपयोग का एक मामला इतना गंभीर निकला कि नवविवाहित जोड़े से कथित तौर पर 32 हजार रुपये की उगाही तक की बात सामने आई। पीड़ित की शिकायत जब सीधे मुख्यमंत्री तक पहुंची, तब जाकर सिस्टम हरकत में आया और टोल से जुड़े कर्मचारियों पर कार्रवाई की गई। आरोप यह भी हैं कि यह केवल एक घटना नहीं, बल्कि एक संगठित नेटवर्क की तरह काम करता रहा जिसके जरिए अन्य राहगीरों को भी “वीडियो लीक” और “बदनामी” का डर दिखाकर अवैध वसूली की गई। कार्रवाई में कुछ कर्मचारियों को हटाया गया, लेकिन उत्तर प्रदेश की निगरानी व्यवस्था के सामने असली सवाल अब भी खड़ा है अगर कैमरे सुरक्षा के लिए हैं, तो उनकी रिकॉर्डिंग को ब्लैकमेलिंग की मशीन बनने से रोकने वाली मजबूत ‘डिजिटल चौकसी’ अब तक क्यों नहीं बन पाई?
दिल्ली–मुंबई एक्सप्रेसवे प्रकरण
दिल्ली - मुंबई एक्सप्रेसवे से जुड़ा एक और मामला बताता है कि निगरानी की तकनीक कब “सुरक्षा” से फिसलकर “सौदेबाज़ी” का औजार बन जाती है, पता ही नहीं चलता। यहां सार्वजनिक स्थान पर रिकॉर्ड हुए एक वीडियो को आधार बनाकर ब्लैकमेलिंग की कोशिशों की बात सामने आई, जिसके बाद जांच में टोल स्टाफ की भूमिका पर सवाल उठे और कार्रवाई भी की गई। लेकिन यह प्रकरण सिर्फ एक विभागीय कार्रवाई तक सीमित नहीं है यह उस खतरनाक हकीकत की तरफ इशारा करता है कि कैमरे की एक क्लिक और फुटेज की एक लीक, किसी के निजी जीवन को पल भर में सोशल मीडिया के कटघरे में खड़ा कर सकती है।
समाधान क्या?
उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में जहां एक्सप्रेसवे नेटवर्क से लेकर स्मार्ट सर्विलांस तक का दायरा लगातार फैल रहा है अब सिर्फ कैमरे लगाना ही “सुरक्षा” नहीं माना जा सकता। असली कसौटी यह है कि रिकॉर्ड होने वाला डेटा कितना सुरक्षित है और सिस्टम कितना जवाबदेह। विशेषज्ञों की राय में यूपी को अब निगरानी व्यवस्था के साथ डेटा-सुरक्षा का मजबूत कवच भी खड़ा करना होगा। इसके लिए फुटेज तक पहुंच को “सीमित और लॉग-आधारित” बनाना जरूरी है, ताकि हर क्लिक का रिकॉर्ड रहे और यह साफ दिखे कि कौन, कब और किस फुटेज को देख रहा है। साथ ही रियल-टाइम ऑडिटिंग से सिस्टम में पारदर्शिता आएगी। फुटेज लीक या दुरुपयोग के मामलों में “जीरो टॉलरेंस” अपनाते हुए तत्काल निलंबन के साथ आपराधिक कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। नियमित अंतराल पर स्वतंत्र एजेंसी से थर्ड-पार्टी ऑडिट कराया जाए, ताकि अंदरूनी गड़बड़ियों की समय रहते पहचान हो सके। UP News












