उत्तर प्रदेश को मिलने जा रहा नया क्रिकेट पावरहाउस, गाजियाबाद में बनेगा अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम

स्वीकृति के बाद उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन जल्द ही स्टेडियम के विस्तृत और अंतिम नक्शे के लिए आनलाइन आवेदन करेगा। आगामी 10 दिनों के भीतर जीडीए और यूपीसीए की संयुक्त बैठक में परियोजना को अंतिम हरी झंडी मिलने की पूरी संभावना है, जिससे निर्माण प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू है।

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अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम
locationभारत
userयोगेन्द्र नाथ झा
calendar30 Dec 2025 06:20 PM
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UP News : उत्तर प्रदेश में क्रिकेट इंफ्रास्ट्रक्चर को नई ऊंचाई देने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया गया है। गाजियाबाद में प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम की योजना को आखिरकार गति मिल गई है। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) द्वारा प्रारंभिक नक्शे को मंजूरी मिलने के बाद वर्षों से अटका यह प्रोजेक्ट अब जमीन पर उतरने की ओर बढ़ रहा है। इस स्वीकृति के बाद उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन जल्द ही स्टेडियम के विस्तृत और अंतिम नक्शे के लिए आनलाइन आवेदन करेगा। अधिकारियों के अनुसार, आगामी 10 दिनों के भीतर जीडीए और यूपीसीए की संयुक्त बैठक में परियोजना को अंतिम हरी झंडी मिलने की पूरी संभावना है, जिससे निर्माण प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू हो सकेगी।

इसे पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत बनाया जाएगा

प्रस्तावित स्टेडियम राजनगर एक्सटेंशन के मोरटी इलाके में लगभग 31 से 32 एकड़ भूमि पर विकसित किया जाएगा। इसे पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत बनाया जाएगा, जिससे सरकारी सहयोग और निजी निवेश दोनों का लाभ मिलेगा। इस मॉडल के जरिए न केवल वित्तीय बोझ कम होगा, बल्कि प्रोजेक्ट मैनेजमेंट भी अधिक प्रभावी रहेगा। स्टेडियम में लगभग 55,000 दर्शकों के बैठने की व्यवस्था प्रस्तावित है, जिसे भविष्य की जरूरतों के अनुसार बढ़ाया जा सकता है। इतनी बड़ी क्षमता के साथ यह मैदान अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैचों, आईपीएल मुकाबलों और अन्य बड़े खेल आयोजनों की मेजबानी के लिए पूरी तरह सक्षम होगा। आधुनिक दर्शक सुविधाएं और विश्वस्तरीय स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर इसे यूपी के प्रमुख खेल केंद्रों में शामिल कर सकते हैं।

निर्माण पर करीब 450 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान

निर्माण पर करीब 450 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है, जबकि जमीन अधिग्रहण में पहले ही लगभग 70 करोड़ रुपये लगाए जा चुके हैं। इतना बड़ा निवेश इस बात का संकेत है कि राज्य सरकार और यूपीसीए दोनों इस परियोजना को दीर्घकालिक और रणनीतिक महत्व दे रहे हैं। दर्शकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए स्टेडियम परिसर में करीब 2,510 वाहनों की पार्किंग की योजना बनाई गई है। इसके साथ ही मैच के दिनों में ट्रैफिक नियंत्रण, सुचारु एंट्री-एग्जिट और भीड़ प्रबंधन के लिए विशेष व्यवस्था तैयार की जाएगी, ताकि आसपास के इलाकों में जाम जैसी समस्याएं न हों। 

यह इकाना और वानखेड़े जैसे बड़े स्टेडियमों की श्रेणी में खड़ा नजर आएगा

गौरतलब है कि यह परियोजना वर्ष 2014 से एफएआर और भूमि उपयोग से जुड़े विवादों के कारण ठप पड़ी थी। हालांकि, नए बिल्डिंग बायलॉज लागू होने के बाद इन अड़चनों का समाधान निकल आया है, जिससे स्टेडियम निर्माण का रास्ता पूरी तरह साफ हो गया है। 

नई नीति के तहत मैप अप्रूवल शुल्क और भूमि रूपांतरण शुल्क में छूट दिए जाने की संभावना भी है। इससे न केवल परियोजना की कुल लागत घटेगी, बल्कि निजी निवेशकों का भरोसा भी बढ़ेगा और निर्माण कार्य तेजी से आगे बढ़ सकेगा। कुल मिलाकर, गाजियाबाद में प्रस्तावित यह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम उत्तर प्रदेश को खेलों के नक्शे पर एक नई पहचान दिलाने की क्षमता रखता है और भविष्य में यह इकाना और वानखेड़े जैसे बड़े स्टेडियमों की श्रेणी में खड़ा नजर आ सकता है।

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उत्तर प्रदेश में मदरसा घोटाला : एसआईटी जांच ने खोली पोल, 42 मदरसा प्रबंधक फंसे

विशेष जांच दल (एसआईटी) की जांच में मिजार्पुर में 89 मदरसों की मंजूरी में गंभीर गड़बड़ियां मिली हैं। इन्हें पहले फर्जी ढंग से मान्यता दी गई। बाद में मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत यहां तैनात शिक्षकों को बिना सत्यापन के अवैध रूप से 10 करोड़ रुपये से ज्यादा का भुगतान किया गया।

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यूपी मदरसा घोटाला
locationभारत
userयोगेन्द्र नाथ झा
calendar30 Dec 2025 05:37 PM
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UP News : उत्तर प्रदेश के मिजार्पुर में मदरसों की मंजूरी और सरकारी धन के दुरुपयोग से जुड़ा घोटाला सामने आया है। विशेष जांच दल (एसआईटी) की जांच में मिजार्पुर में 89 मदरसों की मंजूरी में गंभीर गड़बड़ियां मिली हैं। इन्हें पहले फर्जी ढंग से मान्यता दी गई। बाद में मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत यहां तैनात शिक्षकों को बिना सत्यापन के अवैध रूप से 10 करोड़ रुपये से ज्यादा का भुगतान किया गया। एसआईटी की जांच रिपोर्ट में 42 मदरसा प्रशासकों के साथ-साथ मिजार्पुर में तैनात रहे तीन जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी और कर्मचारी दोषी पाए गए हैं।

42 मदरसा प्रबंधकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज 

रिपोर्ट में मिजार्पुर के दो तत्कालीन जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी, दो क्लर्क, एक कंप्यूटर आॅपरेटर और 42 मदरसा प्रबंधकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की सिफारिश की गई है। इसके अलावा एक अन्य तत्कालीन जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी पर 2017 में बिना सत्यापन के डिजिटल हस्ताक्षरों के माध्यम से मदरसों को लॉक करने और लगभग 1 करोड़ 94 लाख रुपये का भुगतान करने का आरोप है। उनके खिलाफ विभागीय जांच की संस्तुति की गई है। वर्ष 2020 में निदेशक, अल्पसंख्यक कल्याण की सिफारिश पर मामले की जांच एसआईटी को सौंपी गई थी। अल्पसंख्यक कल्याण की प्रमुख सचिव संयुक्ता समद्दार ने बताया कि एसआईटी की रिपोर्ट मिली है। इसका परीक्षण कराया जा रहा है।

मिजार्पुर में एसआईटी की जांच में खुलासा

जांच में यह भी पता चला कि अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों ने मदरसों के प्रशासकों के साथ मिलीभगत करके सरकारी आदेशों और उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद अधिनियम-2004 का उल्लंघन किया। अधिनियम के अनुसार कोई भी गैर मुस्लिम द्वारा स्थापित या संचालित मदरसे विधि मान्य नहीं होंगे, लेकिन एक मदरसे के संचालक को मुस्लिम न होने पर भी योजना का लाभ दिया गया। मानकों को ताक पर रखकर मदरसों को अस्थायी मंजूरी दी गई। इन मदरसों के रिकॉर्ड की उचित जांच किए बिना ही शिक्षकों के वेतन के लिए बजट मांगा गया और कुछ ऐसे मदरसों को भी भुगतान कर दिया गया, जिनके लिए बजट स्वीकृत नहीं किया गया था।

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उत्तर प्रदेश CM हिस्ट्री: किस जाति ने कितनी बार संभाली सत्ता की कमान?

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार ब्राह्मण समाज से 6 मुख्यमंत्री बने, ठाकुर समाज से 5, जबकि ओबीसी में यादव समाज से 3 मुख्यमंत्री सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे। इसी तरह वैश्य समाज से 3 मुख्यमंत्री बने और कायस्थ, जाट, लोधी व दलित समाज से एक-एक बार नेतृत्व का अवसर मिला।

उत्तर प्रदेश CM हिस्ट्री
उत्तर प्रदेश CM हिस्ट्री: 75 साल का जातीय ट्रेंड फिर चर्चा में
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar30 Dec 2025 03:41 PM
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UP News : उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातीय संतुलन की चर्चा एक बार फिर तेज हो गई है। उत्तर प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान राजधानी लखनऊ में भाजपा के ब्राह्मण विधायकों की एक बैठक के बाद यह मुद्दा फिर सियासी बहस के केंद्र में आ गया है। पार्टी नेतृत्व की ओर से ऐसी बैठकों पर आपत्ति जताए जाने और फिर विधायक पंचानंद पाठक के सोशल मीडिया पर दिए जवाब ने प्रतिनिधित्व बनाम संगठनात्मक अनुशासन की बहस को नई धार दे दी है। इसी बीच उत्तर प्रदेश के 75 वर्षों के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो साफ दिखता है कि लंबे समय तक सत्ता की कमान ब्राह्मण समाज के नेताओं के हाथ रही, लेकिन पिछले तीन दशक से यह समुदाय मुख्यमंत्री पद से दूर है। ऐसे में सवाल उठता है उत्तर प्रदेश में अब तक किस समाज के कितने मुख्यमंत्री बने और किस वर्ग का प्रतिनिधित्व किस दौर में मजबूत रहा?

लखनऊ की बैठक से क्यों गरमाई राजनीति?

23 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर से भाजपा विधायक पंचानंद पाठक के सरकारी आवास पर हुई ब्राह्मण विधायकों की बैठक ने सियासी हलकों में खासा शोर मचा दिया। चर्चा रही कि इस बैठक में बड़ी संख्या में विधायक शामिल हुए, जिसने लखनऊ से लेकर जिलों तक राजनीतिक संदेशों की गूंज बढ़ा दी। इसके तुरंत बाद उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पंकज चौधरी का सार्वजनिक बयान सामने आया, जिसमें उन्होंने इशारों-इशारों में साफ किया कि इस तरह की अलग-अलग सामाजिक समूहों की बैठकें पार्टी के तय संगठनात्मक ढांचे और अनुशासन के अनुरूप नहीं मानी जातीं। जवाब में विधायक पंचानंद पाठक ने सोशल मीडिया के जरिए अपनी बात रखी, और यहीं से यूपी की राजनीति में ब्राह्मण प्रतिनिधित्व बनाम संगठन में भूमिका की बहस ने नया तूल पकड़ लिया।

उत्तर प्रदेश में किस समाज के कितने मुख्यमंत्री?

आजादी के बाद से अब तक उत्तर प्रदेश की सत्ता की कुर्सी पर कुल 21 मुख्यमंत्री बैठे हैं और यह आंकड़े यूपी की राजनीति की प्रतिनिधित्व-यात्रा की पूरी कहानी कह देते हैं। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार ब्राह्मण समाज से 6 मुख्यमंत्री बने, ठाकुर समाज से 5, जबकि ओबीसी में यादव समाज से 3 मुख्यमंत्री सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे। इसी तरह वैश्य समाज से 3 मुख्यमंत्री बने और कायस्थ, जाट, लोधी व दलित समाज को एक-एक बार नेतृत्व का अवसर मिला। साफ है कि उत्तर प्रदेश के शुरुआती दशकों में सत्ता की कमान ब्राह्मण नेतृत्व के इर्द-गिर्द घूमती रही, लेकिन समय के साथ राजनीतिक धुरी बदली और उत्तर प्रदेश में ताकत का केंद्र ठाकुर नेतृत्व, ओबीसी (खासतौर पर यादव) तथा अन्य सामाजिक समूहों की ओर धीरे-धीरे शिफ्ट होता चला गया।

ब्राह्मण नेतृत्व का दौर

आजादी के बाद उत्तर प्रदेश की सियासत का शुरुआती लंबा दौर कांग्रेस के वर्चस्व के नाम रहा और इसी समय सत्ता की कमान अक्सर ब्राह्मण नेतृत्व के हाथों में दिखी। गोविंद वल्लभ पंत से लेकर सुचेता कृपलानी, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, श्रीपति मिश्र और नारायण दत्त तिवारी तक, कई ऐसे चेहरे रहे जिन्होंने लखनऊ की कुर्सी पर बैठकर प्रदेश की दिशा तय की। खास बात यह कि नारायण दत्त तिवारी ने तीन बार मुख्यमंत्री पद संभाला, जबकि गोविंद वल्लभ पंत ने दो बार नेतृत्व किया। आंकड़ों की भाषा में देखें तो करीब 23 वर्षों तक उत्तर प्रदेश की सत्ता पर ब्राह्मण मुख्यमंत्रियों की मौजूदगी दर्ज हुई

ठाकुर, यादव और वैश्य समाज का उभार

ब्राह्मण नेतृत्व के लंबे दौर के बाद उत्तर प्रदेश की सत्ता में ठाकुर समाज की भी मजबूत मौजूदगी रही। इस वर्ग से त्रिभुवन नारायण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह और कांग्रेस के वीर बहादुर सिंह से लेकर भाजपा के राजनाथ सिंह और वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक, कई बड़े नाम लखनऊ की गद्दी तक पहुंचे। कुल मिलाकर, उत्तर प्रदेश की राजनीति में ठाकुर मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल जोड़ें तो यह अवधि करीब 17 वर्षों के आसपास बैठती है। इधर मंडल राजनीति के उभार के बाद उत्तर प्रदेश में सत्ता की धुरी धीरे-धीरे ओबीसी राजनीति की ओर शिफ्ट हुई और यादव नेतृत्व एक निर्णायक ताकत बनकर सामने आया। राम नरेश यादव से शुरू होकर मुलायम सिंह यादव और फिर अखिलेश यादव तक, इस समाज ने लगभग 13 वर्षों तक शासन की कमान संभाली। वहीं, वैश्य समाज से भी प्रदेश को मुख्यमंत्री मिलेचंद्रभान गुप्ता, बाबू बनारसी दास और राम प्रकाश गुप्ता। इनमें चंद्रभान गुप्ता दो बार मुख्यमंत्री बने, जबकि बाकी नेताओं को एक-एक बार राज्य का नेतृत्व करने का अवसर मिला।

जाट, लोधी, दलित और कायस्थ: एक-एक मुख्यमंत्री

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने की कहानी केवल कुछ बड़े सामाजिक समूहों तक सीमित नहीं रही। समय-समय पर अन्य समाजों से भी ऐसे चेहरे उभरे, जिन्होंने उत्तर प्रदेश की सत्ता और राजनीति को नई दिशा दी। कायस्थ समाज से डॉ. सम्पूर्णानंद मुख्यमंत्री बने, जबकि जाट समाज से चौधरी चरण सिंह ने नेतृत्व संभालकर किसान राजनीति को नई धार दी। लोधी समाज से कल्याण सिंह का उभार भी उत्तर प्रदेश की राजनीति का बड़ा मोड़ माना जाता है। इसी क्रम में दलित समाज से मायावती का नाम उत्तर प्रदेश की सियासत में सबसे प्रभावशाली अध्यायों में गिना जाता है। चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी मायावती ने न सिर्फ दलित नेतृत्व को निर्णायक मंच दिया, बल्कि लखनऊ की सत्ता में बहुजन राजनीति को लंबे समय तक केंद्र में बनाए रखा।

32 साल से ब्राह्मण समाज मुख्यमंत्री पद से दूर क्यों?

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो 1989 के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में मंडल–कमंडल के उभार ने सत्ता की पूरी दिशा बदल दी। कांग्रेस का प्रभुत्व तेजी से ढला और उसकी जगह समाजवादी धारा, बसपा तथा भाजपा के विस्तार ने नए सामाजिक गठजोड़ गढ़ दिए। इसी राजनीतिक करवट में ब्राह्मण समाज की भूमिका भी बदलती गई जो नेतृत्व कभी सीधे मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचता था, वह धीरे-धीरे रणनीतिक वोटबैंक, संगठन, चुनावी प्रबंधन और सत्ता-तंत्र की दूसरी अहम भूमिकाओं तक सिमटता चला गया। नतीजा यह रहा कि 1989 के बाद उत्तर प्रदेश में सरकारें कई बार बदलीं, सत्ता की धुरी भी कई बार घूमी लेकिन ब्राह्मण समाज से कोई मुख्यमंत्री नहीं बन सका। UP News

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