लखीमपुर खीरी की घटना के बाद प्रियंका गांधी, राहुल गांधी, अखिलेश यादव या सतीश मिश्रा का यहां पहुंचना स्वाभाविक है। लेकिन, पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू के यहां आने की आखिर क्या वजह हो सकती है?
किसान आंदोलन एक साल से भी ज्यादा समय से जारी है। ऐसे में, पीलीभीत से सांसद वरुण गांधी और उनकी मां मेनका गांधी का अचानक बीजेपी पर हमलावर होने की क्या वजह हो सकती है?
इस क्षेत्र को मिनी पंजाब भी कहा जाता है
पंजाब कांग्रेस के नेताओं और वरुण व मेनका गांधी के इस व्यवहार की एक कॉमन वजह है। लखीमपुर खीरी हादसे में चार किसानों नक्षत्र सिंह (60), लवप्रीत सिंह (20), दलजीत सिंह (35) और गुरविंदर सिंह (19) की मौत हुई है। इनके अलावा एक स्थानीय पत्रकार सहित तीन अन्य लोग भी मारे गए हैं। हादसे का शिकार हुए चारों किसान सिख समुदाय के हैं।
असल में लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश का ऐसा जिला है जहां सबसे ज्यादा सिख आबादी रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार यूपी में लगभग साढ़े छह लाख सिख रहते हैं। इनमें से 94,000 से ज्यादा सिख अकेले लखीमपुर खीरी में रहते हैं।
हालांकि, लखीमपुर खीरी की कुल आबादी में इनका हिस्सा 2.63 फिसदी है। यूपी की नेपाल से लगी सीमा को तराई क्षेत्र कहा जाता है। यह इलाका सहारनुपर से लेकर कुशीनगर तक फैला हुआ है। इसमें पीलीभीत, रामपुर, बिजनौर और लखीमपुर खीरी शामिल है। इस पूरे इलाके में सिखों की बड़ी आबादी रहती है। इस वजह से इसे मिनी पंजाब तक कहा जाता है।
अविभाजित पंजाब से है नाता
भारत-पाकिस्तान के विभाजन के दौरान शरणार्थी के तौर पर भारत आए सिखों और जाटों को प्रति परिवार 12 एकड़ जमीन दी गई। हालांकि, जमीन केवल उन परिवारों को दी गई जिनके पास अविभाजित पंजाब में जमीनें थीं।
इस आबादी के साथ सिखों की पिछड़ी जातियां (रायसिख और मजहबी) भी मजदूरी करने के लिए इस इलाके में आईं। इन लोगों ने भी स्थानीय जनजातियों से जमीनें खरीद कर खेती करना शुरू कर दिया।
नगदी फसलों में है इस क्षेत्र का दबदबा
तराई क्षेत्र होने की वजह से इस इलाके में गन्ना, धान और गेहूं की अच्छी पैदावार होती है। गन्ना को नगदी फसल माना जाता है। 2019-20 में यूपी के कुल कृषि उत्पादन में सबसे ज्यादा योगदान लखीमपुर खीरी का था।
आतंकी कनेक्शन का लगता रहा है आरोप
अस्सी और नब्बे के दशक में जब पंजाब आतंकवाद की आग में जल रहा था। उस दौरान इस इलाके को आतंकियों का बेस कैंप कहा जाता था। यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह पर यहां के सिख किसानों ने दोयम दर्जे के नागरिकों की तरह व्यवहार करने का आरोप लगाया था।
1991 में यूपी पुलिस ने पीलीभीत में एक एनकाउंटर किया जिसमें 10 सिखों की मौत हुई। पुलिस को शक था कि वे आतंकवादी थे। इस मामले की न्यायिक जांच में पाया गया कि एनकाउंटर फर्जी था। इसमें यूपी पुलिस के 47 पुलिस कर्मियों को दोषी पाया गया और उन्हें उम्र कैद की सजा हुई।
2017 में यूपी पुलिस के आतंकवाद निरोधी दस्ते को पता चला कि बब्बर खालसा इंटरनेशनल (BKI) और प्रतिबंधित खालिस्तानी आतंकी गुट के कुछ सदस्य लखीमपुर खीरी के सिख बहुल इलाकों में छिपे हुए हैं। पुलिस ने यहां से दो लोगों को गिरफ्तार भी किया।
यूपी सरकार से नाराजगी की ये है वजह
तराई क्षेत्र के सिख किसान शुरू से ही नए कृषि कानूनों के विरोध में हैं। इनके नाराजगी की तीन वजहें हैं। गन्ने की खेती में लागत बढ़ने की वजह से मुनाफा कम हुआ है। गन्ने की कीमत में कोई खास सुधार न होने और गन्ने के भुगतान में देरी की वजह से इस इलाके के किसान सरकार से नाराज हैं।
किसानों की इस नाराजगी से किसे राजनीतिक फायदा होगा और किसे नुकसान यह तो चुनाव नतीजे ही बताएंगे। ध्यान रहे कि 2022 में यूपी और पंजाब विधानसभा के चुनाव होने हैं। किसान आंदोलन की बागडोर शुरू से ही सिख किसानों के हाथ में रही है। ऐसे में वरूण गांधी से लेकर चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू के लखीमपुर खीरी में सक्रिय होने का क्या कारण हो सकता है, इसे बताने की जरूरत नहीं है।
– संजीव श्रीवास्तव