Saturday, 30 November 2024

 हर दस कोस पर श्रीहनुमान मंदिर बनवाए थे वीर शिवाजी ने!

विनय संकोची जिस समय भारत पर मुगलों का शासन था, उस समय गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान चालीसा, हनुमान बाहुक, संकट…

 हर दस कोस पर श्रीहनुमान मंदिर बनवाए थे वीर शिवाजी ने!

विनय संकोची

जिस समय भारत पर मुगलों का शासन था, उस समय गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान चालीसा, हनुमान बाहुक, संकट मोचन आदि रचनाओं के माध्यम से निष्प्राण हिंदुओं की नसों में प्राण फूंकते हुए काशी पुरी में ‘संकट मोचन हनुमान’ की स्थापना की और स्थान – स्थान पर हनुमान जी की पूजा भक्ति का प्रचार कराया।

औरंगजेब के शासनकाल में गोस्वामी तुलसीदास के आदर्श पर छत्रपति शिवाजी महाराज ने 10-10 कोस की दूरी पर हनुमान मंदिर की स्थापना कर पवनसुत हनुमान के नेतृत्व में वहां अखाड़े और दुर्गों की स्थापना की थी। यही अखाड़े आगे चलकर हिंदू धर्म संरक्षण के गढ़ बने और इन्हीं की सहायता से भारत में मुगल साम्राज्य का पतन किया जा सका। आज भी दक्षिण में गांव – गांव में ‘ग्राम रक्षक’ के रूप में हनुमान जी की मूर्तियां स्थापित हैं, इन्हें ‘ग्राम मारूति ‘ कहा जाता है।

हनुमान जी का चरित्र सेवा और समर्पण का मूर्त रूप है। हनुमान जी शास्त्र मर्मज्ञ और अपूर्व विद्वान थे। गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री हनुमान को ‘विमल गुण बुद्धि – वारिधि, विधाता’ कहा है। विद्या और बुद्धि के निदान होते हुए भी उन्होंने स्वयं को श्रीराम की सेवा में अर्पित कर दिया। अखंड ब्रह्मचर्य के प्रतीक हनुमान जी सदैव धर्म परायण और असहाय लोगों के रक्षक बने रहे।

हनुमान जी की पूजा अर्चना कब से प्रारंभ हुई, यह कहना कठिन है लेकिन यह निर्विवाद सत्य है कि हनुमानजी से बढ़कर कोई और जनदेवता है ही नहीं। मारुति नंदन हनुमान का जीवन
श्रीराम के लिए प्रत्यक्षत: और ऋषि-मुनियों तथा रावण – खरदूषण से त्रस्त समाज की सेवा के निमित्त परोक्ष रूप से समर्पित था। उनके समग्र जीवन में स्वार्थ को कोई स्थान नहीं है। काम, लोभ, अभिमान पर विजय प्राप्त करने वाले हनुमान जी का क्रोध शत्रु संहार के समय अवश्य ही प्रकट हो जाता है। स्वामी सेवा और समाज सेवा के लिए जैसा आदर्श समर्पित जीवन हनुमान जी का है, वैसा उदाहरण अन्यत्र दुर्लभ है।

एक बार महाराष्ट्र में व्यायाम मंदिर में मारुति प्रतिष्ठा के उपरांत महात्मा गांधी ने बच्चों से कहा – ‘इन मारुति के प्रतिष्ठा हम क्यों करते हैं? क्या इसलिए कि वे वीर योद्धा थे? क्या इसलिए कि उनमें अतुलित बल अतुल – शरीर बल था? क्या उनके जैसा शरीर बल हमें भी चाहिए? परंतु केवल शरीर – बल हमारा आदर्श नहीं है। शरीर – बल ही हमारा आदर्श होता तो हम रावण की मूर्ति की स्थापना ना करते, पर हम रावण के बदले मारुति की स्थापना करते हैं। इसलिए कि हनुमान जी का शरीर – बल आत्मबल से संपन्न था। श्री राम के प्रति हनुमान जी का अनन्य प्रेम था, उसी का फल था यह आत्मबल। इसी आत्मबल कि हम प्रतिष्ठा करते हैं। आज हमने पाषाण खंड की नहीं, भावना की प्रतिष्ठा की है। हम चाहते हैं कि आत्मबल की इसी भावना को आदर्श बना कर हम भी मारुति बने। भगवान हमें मारुति सा शरीर जेड बल दें, भगवान हमें मारुति सा आत्मबल दें। भगवान हमें इस आत्मबल की प्राप्ति के लिए ब्रह्मचर्य पालन का बल दें।’ महात्मा गांधी का यह संदेश आज भी अनुकरणीय है। श्रीहनुमान का चरित्र आज भी वंदनीय है।

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