Sex Education :
सैय्यद अबू साद
Sex Education : चेतना मंच स्पेशल। इंटरनेट के इस दौर में जब बच्चो के हाथ में हर समय मोबाइल रहता है, तो उसमें कार्टून, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि में बीच-बीच विज्ञापन आना व सोशल मीडिया रील्स के माध्यम से बहुत सारे ऐसे कंटेंट से बच्चों को सामना करना पड़ता है, जो बच्चों में उत्सुकता पैदा करते हैं। इसमें अश्लील व सेक्स से जुड़े विज्ञापन भी अचानक आ जाते हैं। इसलिए इस दौर में बहुत जरूरी है कि बच्चों को सेक्स एजूकेशन के बारे में शुरुआत से ही जानकारी दी जाए। वर्तमान मॉडर्न व इंटरनेट के इस युग में आज भी कई लोग सेक्स एजुकेशन का नाम सुनते ही गुस्से से लाल-पीले हो जाते हैं कि ये कौन सी एजुकेशन है? ये कोई पढ़ने की चीज है? उनका मानना है कि सेक्स एजुकेशन कोई पढ़ने का विषय नहीं है। लेकिन उनको बताने की जरूरत है कि आज के दौर में बच्चों को सेक्स एजूकेशन का ज्ञान होना बहुत जरूरी है। आज चेतना मंच (Chetnamanch) के इस आलेख के जरिए हम आपको बतायेंगे की सेक्स एजुकेशन क्या है और आपके बच्चे के जीवन में यह कितनी महत्वपूर्ण है।
Sex Education :
दरअसल, अगर बच्चों को शुरूआत में ही सेक्स के बारे में सही जानकारी नहीं दी जाए, तो बढ़ती उम्र और हार्मोंनल बदलाव के आधार पर बच्चों को इंटरनेट पर आधी-अधूरी जानकारी मिलती है, जिससे उनको सेक्स से जुड़ी कई प्रकार की समस्याओं और गलत आदतों का सामन करना पड़ सकता है। सही जानकारी न होने से बच्चा उसे जानने को उत्सुक हो जाता है और फिर गलत तरीके से उसे जानना चाहता है। सेक्स एजुकेशन की सही जानकारी न होने से वे अपने हार्माेन्स पर कंट्रोल नहीं कर पाते हैं, जिसके चलते उनसे कई तरह की गलतियां हो जाती हैं। इसलिए आज के दौर में बच्चों को सेक्स एजुकेशन देना बेहद आवश्यक है। उनको यह मालूम होना चाहिए की सेक्स एजुकेशन क्या है।
सेक्स एजुकेशन क्या है
आज कई देशों में सेक्स एजुकेशन बाकी विषय की तरह एक महत्वपूर्ण विषय बना दिया गया है। सेक्स एजुकेशन में सेक्स से जुड़ी एक-एक साधारण और गंभीर बातों पर चर्चा की जाती है। हमारे देश में सेक्स को लेकर क्या-क्या कानून और नियम बनाए गए हैं। इसके बारे में पूरी जानकारी दी जाती है। किस तरह से सेक्स करना हमारे समाज में लीगल माना गया है। इसकी क्या सीमाएं तय की गई हैं, इन सभी बातों की जानकारी व्यवस्थित रूप से दी जाती है। सेक्स एजुकेशन में आपको यह जानकारी भी दी जाती है कि यदि आपकी उम्र के साथ-साथ आपके हार्माेन में बदलाव होता है, तो आप इस बदलाव का सामना कैसे करें। जैसे-जैसे बच्चों की उम्र बढ़ती है वैसे-वैसे उनके शरीर में भी बदलाव आने लगते हैं। कुछ ऐसे बदलाव आने लगते हैं जिनके बारे में बच्चों को पता नहीं होता है और ना ही वह किसी से इस बारे में पूछ पाते हैं। सेक्स एजूकेशन में उनको इसके बारे में प्रारंभ से ही बताया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सेक्स एजुकेशन के बारे में यह निर्देश दिया गया था कि 12 वर्ष और उससे अधिक उम्र के बच्चों को स्कूल में सेक्स एजुकेशन दी जानी जरूरी है। इसके अलावा इस सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ है, कि जिन बच्चों को सेक्स एजुकेशन दी जाती है, वह सही सुरक्षित तरीके से सही उम्र में शारीरिक संबंध बनाते हैं।
इसलिए जरूरी है सेक्स एजूकेशन
हमारे देश भारत की संस्कृति दूसरे देशों के मुकाबले बहुत अलग मानी जाती हैं। यही कारण है कि हम भारतीय बहुतों से अलग हैं। हमारे भारत की संस्कृति ऐसी है जिस पर हमें गर्व होना चाहिए लेकिन बहुत सी चीजें ऐसी भी हैं जो आज के समय में हम सबको बदल देनी चाहिए। इसी में एक है सेक्स एजूकेशन, जिसे आज भी ज्यादातर स्कूलों में महत्व नहीं दिया जाता है। लोग मानते हैं कि इस टॉपिक पर बातचीत करना ठीक नहीं होता, लेकिन अब समय बदल रहा है तो लोगों को अपनी सोच भी बदलनी चाहिए।
भारत के स्कूलों में सेक्स एजूकेशन बहुत जरूरी है। किशोरावस्था में ज्यादातर बच्चे मनमौजी ही होते हैं। वह बड़ी-बड़ी गलतियां कर देते हैं, जिनके बारे में वह सही से जानते भी नहीं हैं। आज के समय में लोग इंटरनेट के माध्यम से हर चीज जान लेते हैं। इसमें से बहुत सी ठीक भी होती हैं और बहुत सी गलत भी। जो बच्चे किशोरावस्था में होते हैं वह सेक्स की बातों को अलग ढंग से ले सकते हैं। अगर बच्चों को ठीक समय पर सेक्स एजूकेशन नहीं दी जाती है तो वह इसके बारे में जानने के लिए गलत रास्तों पर भी जा सकते हैं। अगर स्कूलों में सेक्स एजूकेशन दी जाएगी तो इससे बच्चे जिम्मेदार बनेंगे और उनका दिमाग भी विकसित होगा। वह गलत रास्ते पर जाने से पहले सोचेंगे। जैसे-जैसे बच्चों की उम्र बढ़ती है वैसे-वैसे उनके शरीर में भी बदलाव आने लगते हैं। कुछ ऐसे बदलाव आने लगते हैं जिनके बारे में बच्चों को पता नहीं होता है और ना ही वह किसी से इस बारे में पूछ पाते हैं। इसलिए वह इंटरनेट की दुनिया में चले जाते हैं जहां वह बहुत ही गलत चीजें धारण कर लेते हैं। जो की बहुत खतरनाक हो सकता है। इसलिए ऐसी सभी चीजों से बचने के लिए स्कूलों में सेक्स एजुकेशन जरूर देनी चाहिए। यह बहुत जरूरी है।
चाइल्ड स्पेश्लिस्ट वंदना श्रीवास्तव कहती हैं कि इसमें कोई शक नहीं कि सेक्स एजुकेशन हर किसी के लिए जरूरी है। लेकिन सबसे ज्यादा, बच्चों और युवा वयस्कों को सही समय पर इसकी जानकारी देना आवश्यक है। ऐसा इसलिए क्योंकि एक निश्चित उम्र में, बच्चे अपने आसपास होने वाली हर चीज के बारे में जानने के लिए अधिक उत्सुक हो जाते हैं। उम्र के साथ उनके शरीर में भी बदलाव होने लगते हैं। आजकल बच्चों को शिक्षा दें या न दें, उन्हें अश्लील बुक्स व मैग्जीन, टीवी, फिल्म और इंटरनेट के जरिए आधी-अधूरी जानकारियां मिल ही जाती हैं, जो कि उन्हें गुमराह करने के लिए काफी होती हैं। ऐसे में माता-पिता की जिम्मेदारी बन जाती है कि वह अपने बच्चों को सही समय पर सही जानकारी दें ताकि वे इसके लिए बाहरी साधनों पर निर्भर न रहें। जो उन्हें नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। हालांकि हर बच्चा अलग होता है, उनके सोचने और समझने की शक्ति अलग होती है। इसलिए बच्चे को उसकी उम्र के अनुसार सेक्स से संबंधित जानकारी दी जानी चाहिए। चलिए जानते हैं किस उम्र में बच्चे को कितनी शिक्षा दी जानी जरूरी है।
स्कूलों में एक विषय हो सेक्स एजूकेशन
अब बात आती है स्कूलों में सेक्स एजूकेशन कैसे देनी चाहिए। एकदम से ही लोग सेक्स के मामले में खुलकर विचार प्रकट नहीं करेंगे। इसलिए धीरे-धीरे हमें सेक्स एजुकेशन पर विचार करना चाहिए। सबसे पहले सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में यौन शिक्षा अनिवार्य कर देनी चाहिए। इसमें सेक्स एजूकेशन के सभी पहलुओं को शामिल जरूर करना होगा। जिससे बच्चों को में जानकारियां बढ़े। बच्चों को जो अध्ययन सामग्री दी जाए उसमें किशोरावस्था में जोखिम भरे व्यवहारों से निपटने के तरीके भी मौजूद होने जरूरी है। इसमें शारीरिक शोषण, गर्भधारण और जबरन यौन संबंध बनाने जैसे टॉपिक शामिल है। जिसकी जानकारी बच्चों को जरूर होनी चाहिए। इन स्कूलों में गर्भनिरोधक तरीकों की शिक्षा भी जरूर दी जानी चाहिए जो कि बहुत महत्वपूर्ण है। यह शिक्षा देने के लिए आप फिल्म स्क्रीनिंग स्कूलों में दे सकते हैं। सेक्स जैसे टॉपिक को बस एक पाठ्यक्रम में नहीं रखना चाहिए बल्कि इसे अच्छे तरीके से स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए। जिससे बच्चे सेक्स के महत्व को समझें और सेक्स एजुकेशन के बारे में अधिक से अधिक जानकारी उन्हें मिल पाए।
जरूरी क्यों है सेक्स एजुकेशन
बढ़ते उम्र के साथ खुद के शरीर मे उत्पन होते अंतर को जानने की इच्छा, जिसके बारे में कोई जानकारी किताबों में नही मिलती।
उम्र के साथ साथ शरीर मे हार्माेन बदलाव से, यौन भावनाओं का पनपना और विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण। तत्पश्चात, यौन इच्छा का जन्म लेना।
यौन इच्छा और खुद की तृष्णा को मिटाने हेतु गलत आदतों का आदी होना, जिससे शारिरिक दोष उत्पन्न होना।
असुरक्षित यौन संबंध का चलन बढ़ते अकेलेपन का घटक है। अकेलेपन और प्यार पाने की लालसा को मिटाने के लिए, टिंडर, जैसे प्लेटफार्म का चलन बढना, सेक्स संबंधी क्राइम को बढ़ावा देता है।
अपने इंद्रियों पे काबू ना पाना और सही वक्त पे सही ज्ञान का ना मिलना भी सेक्स सम्बन्धी समस्याओं को जन्म देता है? जो सिर्फ सेक्स एजुकेशन से ही निपटा जा सकता है।
किस उम्र में दें कितनी जानकारी
सिर्फ स्कूलों में ही नहीं बल्कि घर पर भी मां-बाप को इस तरह की जानकारियां अपने बच्चों को जरूर देते रहना चाहिए। इसमें किसी भी तरह का संकोच आपको नहीं करना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों से सेक्स को लेकर बातचीत करेंगे तो आप उन्हें गलत रास्तों पर चलने से रोक सकते हैं।
13 से 24 महीने में
सेक्स एजुकेशन की शुरुआत बच्चे के जन्म से ही करें। बच्चा हमारी तरह आम इंसान है और हर आम इंसान में सेक्स की भावना विद्यमान होती है। बता दें कि बच्चे में भी जन्म से ही यह भावना मौजूद रहती है। जिस वजह से वह अपने सभी अंगों के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहता है। अधिकतर पेरेंट्स इस बात पर ध्यान नहीं देते और बच्चे की हरकतों को इग्नोर कर देते हैं। इस उम्र में टॉडलर्स को प्राइवेट पार्ट सहित शरीर के सभी अंगों के नाम बताने में सक्षम होना चाहिए। उन्हें शरीर के अंगों के सही नाम सिखाने से आप ये सुनिश्चित कर सकते हैं कि वह स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों, चोटों या यौन शोषण के बारे में बेहतर ढंग से बता पाएगा। इससे उन्हें यह समझने में भी मदद मिलेगी कि शरीर के ये अंग उतने ही सामान्य हैं जितने कि दूसरे अंग।
2 से 4 साल में
बच्चे की समझ और इंट्रेस्ट के लेवल के आधार पर आप बच्चों को उनके जन्म की कहानी के बारे में बता सकते हैं। ऐसा मत सोचें कि आपको एक ही बार में सारे टॉपिक कवर करने होंगे। छोटे बच्चे सेक्स की अपेक्षा प्रेग्नेंसी और शिशु के जन्म में रुचि रखते हैं। इसके अलावा, उन्हें यह समझाना चाहिए कि उनका शरीर उनका अपना है और उनकी अनुमति के बिना कोई भी उनके शरीर को छू नहीं सकता है। इसके अलावा इस उम्र में, बच्चे को किसी और को छूने से पहले पूछना भी सीखना चाहिए। साथ ही पेरेंट्स को उनकी लिमिटेशन के बारे में सिखाना चाहिए।
5 से 8 साल में
इस उम्र में बच्चे को सेक्स एजुकेशन की बुनियादी समझ होनी चाहिए। इस उम्र में बच्चे अपने माता-पिता पर बहुत ज्यादा विश्वास रखते हैं। माता-पिता द्वारा कही बातों पर वे अधिक ध्यान देते हैं, इसलिए बच्चों के सामने ऐसी कोई हरकत न करें, जिससे उसके मन में आपकी बुरी छवि बनें। अक्सर पेरेंट्स बच्चों को सेक्स से संबंधित गलत जवाब देते हैं, लेकिन जब बच्चे को सच का पता चलता है तो बच्चे का विश्वास डगमगाने लगता है। इस उम्र में बच्चे के मन में कई सवाल आते हैं जिसे जानने के लिए वह भरसक प्रयास करता है। इस उम्र में बच्चे को लड़का, लड़की और ट्रांसजेंडर में क्या अंतर है, इसके बारे में बताएं। साथ ही उसके सवालों के जवाब दें लेकिन समझदारी से।
9 से 12 साल में
ये बच्चों की बहुत नाजुक उम्र होती है। कुछ बच्चे इस उम्र में पीरियड्स का भी सामना करने लगते हैं। इसलिए इस उम्र में बच्चे को जो जानकारी दी जाती है, उसे वह जिंदगीभर याद रखता है। प्री-टीन्स को सुरक्षित सेक्स और गर्भनिरोधक के बारे में सिखाया जाना चाहिए। मुख्य रूप से इस उम्र में बच्चे को प्रेग्नेंसी और सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन के बारे में बेसिक जानकारी होनी चाहिए। उन्हें पता होना चाहिए कि किशोर होने का मतलब सेक्सुअली एक्टिव होना नहीं है। उन्हें समझाना चाहिए कि पॉजेटिव रिलेशनशिप क्या होता है और क्या रिलेशनशिप को खराब कर सकता है। साथ ही उन्हें सेक्सुअली बुली करने, डराने और धमकाने के बारे में अवगत कराएं। पेरेंट्स को सेक्सटिंग सहित इंटरनेट सुरक्षा के विषय में भी बताना चाहिए।
13 से 18 साल में
ये उम्र बच्चे के लिए काफी चुनौतीपूर्ण होती है। इस उम्र में शरीर में कई तरह के बदलाव आते हैं जिसे बच्चे को पॉजेटिवली लेना बहुत जरूरी है। टीनेज में पीरियड्स, नाईट फॉल और स्लीप ऑर्गेज्म जैसी प्रक्रिया सामान्यतौर पर शुरू हो जाती है। इसलिए बच्चे को इसके बारे में सही जानकारी दी जानी चाहिए। उन्हें प्रेग्नेंसी और सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज और विभिन्न गर्भनिरोधक विकल्पों के बारे में बताना चाहिए। इसके अलावा उन्हें सुरक्षित यौन संबंध बनाने के तरीके और उनका उपयोग करने के बारे में जानकारी होनी चाहिए। इसके अलावा बच्चों को ये बताना भी जरूरी है कि यौन संबंधों में सहमति का क्या अर्थ है। इस उम्र में बच्चे काफी कुछ सीखना और समझना चाहते हैं इसलिए उन्हें सही जानकारी दें न कि उन्हें भ्रमित करें।
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कैसे करें बच्चों से सेक्स एजूकेशन की बात
जैसे कि हम ऊपर बता चुके हैं कि सेक्स एजुकेशन एक दिन का विषय नहीं है। यह 2 साल से लेकर बच्चे के व्यस्क होने तक निरंतर जागरूक करने वाला विषय है। इसलिए, बच्चों को सेक्स एजुकेशन देने के लिए निम्न तरीकों को अपनाकर इस प्रक्रिया को आसान बनाया जा सकता है।
कम उम्र से ही बच्चों के साथ सेक्स एजुकेशन के विषय पर खुलकर बात करें। इससे आपको भी कम हिचकिचाहट होगी और बच्चे भी खुलकर आपसे बात कर सकेंगे।
रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी बातों में सेक्स एजुकेशन के महत्त्व और बातों को ढूंढें और उन मौकों पर बच्चों से बात करें।
टीवी पर दिखने वाले विज्ञापन (जैसे सेनेटरी पैड्स और कंडोम) आने पर बच्चों से उनके बारे में बात करें।
रोज बच्चों के साथ कुछ समय बिताएं व उनके विचार जानने का प्रयास करें। साथ ही उन्हें समझने की कोशिश भी करें।
बच्चों के यौन संबंधी सवाल पूछने पर उन्हें बिल्कुल भी हतोत्साहित न करें, बल्कि सहजता से उन सवालों का जवाब दें। अगर किसी सवाल का जवाब आपके पास नहीं हो, तो उसके बारे में जानकारी हासिल करें और फिर बच्चे को उस सवाल का जवाब दें।
यौन शोषण और समलैंगिकता जैसे नाजुक मुद्दों पर बात करते वक्त बच्चों से बहुत आराम से बात करें और इन मुद्दों को आसान तरीके से बच्चों को समझाने का प्रयास करें।
ले सकते हैं इंटरनेट का सहारा
बच्चे को सेक्स एजुकेशन के विषय में सही जानकारी देने के लिए इंटरनेट का सहारा लिया जा सकता है। यू-ट्यूब या गूगल पर कई ऐसे वीडियोज हैं जो बच्चे को सेक्स एजुकेशन के बारे में विस्तार से समझा सकते हैं। पैरेंट्स अपने सामने ऐसे इंफॉर्मेटिव वीडियोज दिखाएं ताकि बच्चा चीजों को गलत ढंग से न ले। इसके अलावा सेक्स एजुकेशन से संबंधित किताबे भी बच्चों की मदद कर सकती हैं।
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