Sunday, 19 May 2024

नोएडा दिल्ली में नवंबर माह में ही क्यों बढ़ता है वायु प्रदूषण ? ये हैं बड़े कारण

Noida News :  वायु प्रदूषण और स्मॉग की चादर में लिपटी दिल्ली और इससे सटे यूपी के शहर नाऐडा और…

नोएडा दिल्ली में नवंबर माह में ही क्यों बढ़ता है वायु प्रदूषण ? ये हैं बड़े कारण

Noida News :  वायु प्रदूषण और स्मॉग की चादर में लिपटी दिल्ली और इससे सटे यूपी के शहर नाऐडा और ग्रेटर नोएडा में लोगों का दम घुटने लगा है। पूरे एनसीआर की भी स्थिति गंभीर बनी हुई है। स्मॉग के कारण लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है। कई लोग इससे गंभीर बीमारियों के शिकार भी हो सकते हैं। आमतौर पर लोग कहते हैं कि पराली जलाने के कारण दिल्ली में वायु प्रदूषण हो रहा है, लेकिन क्या केवल पराली ही इस स्मॉग और प्रदूषण का जिम्मेदार है ?

हर बार बढ़ते AQI के बाद बैठकों का दौर जारी हो जाता है। इन बैठकों में आनन फानन में प्रदूषण को कम करने के लिए फैसले लिए जाते है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये नोएडा, ग्रेटर नोएडा और दिल्ली की आबोहवा नवंबर के महीने में ही क्यों जानलेवा हो जाती है।

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ग्रीनपीस इंडिया के जलवायु और ऊर्जा के लिए अभियान के प्रबंधक अविनाश चंचल ने इंडिया टुडे को दिए एक साक्षात्कार के दौरान कहा कि नवंबर का समय वह समय होता है, जब गेहूं बोने के लिए पंजाब और हरियाणा के किसान धान की फसल के ठूंठ को जलाने का काम बड़ी तेजी से करते हैं। उन्होंने कहा कि ये किसान सिर्फ धान और गेहूं उगाते हैं क्योंकि उन्हें सरकार की ओर से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदा जाता है। इन दोनों फसलों की बुआई के बीच में उनके पास बहुत कम समय होता है।

धान की कटाई और गेहूं की बुवाई के लिए खेत तैयार के लिए मैनुअल से कंबाइन हार्वेस्टर में बदलाव एक प्रमुख कारक है। हालाँकि कंबाइन हार्वेस्टर बहुत पहले शुरू किए गए थे। लेकिन सन 2000 के बाद उनका उपयोग बड़े पैमाने पर बढ़ गया। धान की कटाई मैन्युअल रूप से करते समय, डंठल को जड़ से कुछ ही दूरी से काट दिया जाता है, लेकिन कंबाइन हार्वेस्टर आधा से एक फुट लंबे डंठ छोड़ देते हैं। किसान हमेशा उसी डंठ को जला देते हैं, जिससे खेतों में आग लग जाती है और प्रदूषण होता है।

सांस के मरीजों में हुई वृद्धि

दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण के कारण इस क्षेत्र में सांस के मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है। जिसके बारे में मीडिया से बात करते हुए पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. जीसी खिलनानी ने बताया कि, पहले हम सिर्फ दिवाली से पहले और बाद में ही सांस की समस्याओं से ग्रस्त मरीजों को देखते थे। इस साल हमारे पास ऐसे मरीज अक्टूबर की शुरुआत से ही हमारे पास आ रहे हैं। और नवंबर आते-आते यह और भी खराब हो जाता है। डॉ. खिलनानी ने आगे आगे कहा कि ‘मैं अक्टूबर की शुरुआत से ही लोगों को सांस की समस्याओं की सूचना देते हुए देख रहा हूं और ऐसे मरीजों में 30-40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।’

दिल्ली में प्रदूषण के जिम्मेदार है ये फैक्टर

आपको बता दें कि दिल्ली वायु प्रदूषण के लिए तीन फैक्टर जिम्मेदार हैं, वाहनों का उत्सर्जन, निर्माण के दौरान उड़ने वाली धूल और खेतों में परानी का जलना।

वाहनों और उद्योगों से उत्सर्जन और बायोमास जलने से छोटे PM2.5 प्रदूषक अहम योगदान निभाते हैं, जबकि निर्माण के वक्त उड़ने वाली धूल के मोटे PM10 प्रदूषकों को जन्म देता है। इस साल PM10 में PM2.5 का प्रतिशत हिस्सा 50 प्रतिशत को पार कर गया है। जो बहुत ज्यादा है।

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