जाने 1857 का दिल्ली की वह सुबह जिसने इतिहास बदल दिया

शहर ने विद्रोहियों का खुले दिल से स्वागत नहीं किया। महमूद फ़ारूक़ी बताते हैं कि लोग अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ थे, लेकिन अपने घरों पर बोझ नहीं चाहते थे। विद्रोहियों का अनुशासनहीन व्यवहार—जूते पहनकर दरबार में घुसना, हथियार लेकर जाना—भी दिल्लीवालों को नागवार गुज़रता था।

Delhi of 1857
1857 का दिल्ली (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar29 Nov 2025 05:25 PM
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11 मई 1857, सोमवार – रमज़ान का 16वाँ दिन दिल्ली की उस सुबह बहादुरशाह ज़फ़र सामान्य दिनचर्या के तहत लाल किले के तस्बीहख़ाने में फ़ज्र की नमाज़ पढ़ चुके थे। लेकिन यमुना पुल के पास उठता धुआँ दिल्ली और पूरे हिंदुस्तान के इतिहास को बदलने वाला था।

विद्रोह की पहली आहट: यमुना पुल से उठता धुआँ

सुबह बादशाह ने देखा कि टोल हाउस की दिशा से धुआँ उठ रहा है। हरकारा भेजा गया, और जल्द ही पता चला कि अंग्रेज़ी वर्दी पहनकर भारतीय सिपाही तलवारें लहराते दिल्ली में दाख़िल हो चुके हैं। इन बाग़ियों ने टोल हाउस में आग लगा दी और लूटपाट की। इसके बाद शहर के सभी दरवाज़े बंद कर दिए गए—but विद्रोही रुके नहीं। शाम होते-होते उन्होंने बादशाह से मिलने का संदेश भेज दिया।

बादशाह की बेबसी और बाग़ियों का दबाव

दीवाने-ख़ास में जमा हुए सिपाही हवा में गोलियाँ दागने लगे। दिल्ली के रईस अब्दुल लतीफ़ के अनुसार “बादशाह की हालत वही थी, जैसे शतरंज में शह दिए राजा की होती है… हमारी ज़िंदगी का सूरज डूब चुका है।” बाग़ियों ने बादशाह से नेतृत्व सँभालने की गुहार की, जबकि प्रधानमंत्री अहसानुल्लाह ख़ाँ ने उन्हें आगाह किया कि बादशाह के पास न फ़ौज है न पैसे। लेकिन सिपाहियों का जवाब था कि हम पूरे मुल्क का पैसा आपके ख़ज़ाने में डाल देंगे… बस रहमत चाहिए और बहादुरशाह ज़फ़र ने अंततः विद्रोह का नेतृत्व स्वीकार कर लिया।

लाल किले में विद्रोहियों का कब्ज़ासिपाहियों ने किले के कमरों में डेरा डाल लिया। अगले दिन पुराना चाँदी का सिंहासन निकाला गया, खिताब वितरित हुए और ज़फ़र के नाम से नए सिक्के ढाले गए।

विद्रोह की असल चिंगारी: कारतूसों की चर्बी

इतिहासकार राना सफ़वी के अनुसार, इनफ़ील्ड राइफल के कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी होने की अफ़वाह ने हिंदू और मुस्लिम दोनों सैनिकों में आक्रोश भरा। इसके साथ 

  • विदेशी युद्धों में भेजना
  • प्रमोशन न मिलना
  • सूबेदार से ऊपर न बढ़ पाना

इन सबने बग़ावत को जन्म दिया। 10 मई को मेरठ में बग़ावत भड़की और सिपाही दिल्ली की तरफ़ कूच कर गए।

दिल्लीवासियों की ठंडी प्रतिक्रिया

शहर ने विद्रोहियों का खुले दिल से स्वागत नहीं किया। महमूद फ़ारूक़ी बताते हैं कि लोग अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ थे, लेकिन अपने घरों पर बोझ नहीं चाहते थे। विद्रोहियों का अनुशासनहीन व्यवहार—जूते पहनकर दरबार में घुसना, हथियार लेकर जाना—भी दिल्लीवालों को नागवार गुज़रता था।

अराजकता के बीच भी व्यवस्था

हालात उथल–पुथल के थे, लेकिन फ़ारूक़ी के मुताबिक व्यवस्था पूरी तरह ढही नहीं थी। रोज़मर्रा की ज़रूरतें—चारपाइयाँ, मिट्टी, मज़दूर—सब किसी न किसी ढाँचे से जुटाए जा रहे थे।

56 अंग्रेज़ महिलाओं व बच्चों का नरसंहार

12 मई तक दिल्ली अंग्रेज़ों से खाली हो चुकी थी। लेकिन लाल किले के पास पनाह लिए 56 अंग्रेज़ महिलाओं व बच्चों को बाग़ियों ने मार डाला, जबकि बहादुरशाह ज़फ़र ने रोकने की कोशिश की थी।

अंग्रेज़ों की वापसी और क़त्ले-आम

कुछ ही दिनों में अंग्रेज़ सैनिकों ने पलटवार किया और दिल्ली में दोबारा दाख़िल हो गए। कच्चा चलाँ मोहल्ले में ही 1400 लोग मारे गए।

19 वर्षीय सैनिक एडवर्ड विबार्ड ने लिखा है कि ईश्वर करे ऐसा दृश्य फिर कभी न देखूं...

ग़ालिब का दर्द और दिल्ली का उजड़ना

पूरे शहर को खाली कराया गया। छह महीने तक लोग बारिश और ठंड में खुले आसमान के नीचे रहे। ग़ालिब तक सदमे में आ गए—1857 के बाद उन्होंने सिर्फ़ 11 ग़ज़लें लिखीं।

बहादुरशाह ज़फ़र का आत्मसमर्पण

18 सितंबर 1857 को हुमायूँ के मक़बरे में कैप्टन हॉडसन ने बादशाह को गिरफ़्तार किया। हॉडसन ने वादा किया कि आपकी जान बख़्शी जाएगी, बशर्ते आपको बचाने की कोशिश न हो।

तीन शहज़ादों की हत्या

ज़फ़र की जान तो बची, लेकिन उनके बेटे मिर्ज़ा मुग़ल, ख़िज़्र सुल्तान और अबू बक्र को हॉडसन ने प्वॉइंट ब्लैंक शॉट से मार डाला।

कैद, अपमान और निर्वासन

बादशाह को लाल किले की एक कोठरी में जानवरों की तरह रखा जाता था। अंग्रेज़ “सैलानी” आकर उन्हें देखते थे। आख़िरकार उन्हें रंगून (बर्मा) भेज दिया गया।

बहादुरशाह ज़फ़र का आख़िरी सफ़र

7 नवंबर 1862— 87 वर्षीय बूढ़े बादशाह का अंतिम जनाज़ा चंद लोगों की मौजूदगी में उठाया गया। कब्र पर चूना छिड़ककर उसे मिटने के लिए छोड़ दिया गया ताकि कोई पहचान न सके और उनके अपने ही शब्द इतिहास की तल्ख़ सच्चाई बन गए कितना बदनसीब है ज़फ़र दफ़्न के लिए दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में…”

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नया सीस्मिक मैप जारी: 61% भारत में भूकंप का बड़ा खतरा

बीआईएस का मानना है कि भूकंप संबंधी सुरक्षा मानकों को मजबूत करने के लिए एक बड़ा कदम है। देशभर में निर्माण कार्यों और भवन निर्माण में इन नए नियमों का कड़ाई से पालन करने का निर्देश दिया गया है, ताकि भारत को भूकंप से होने वाले संभावित नुकसान से सुरक्षित किया जा सके।

Earthquake in India
भारत में भूकंप (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar29 Nov 2025 03:17 PM
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भारत में भूकंप के खतरे से जुड़ा अब तक का सबसे बड़ा अपडेट सामने आया है। ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (BIS) ने देश का नया सीस्मिक जोन मैप 2025 जारी कर दिया है। इस बार वैज्ञानिकों ने एक नया ‘जोन-6’ जोड़ा है, जिसे अब तक का सबसे खतरनाक जोन माना गया है। पूरा हिमालयी क्षेत्र—जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक—इस नई कैटेगिरी में आ गया है। यह बदलाव केवल वैज्ञानिक नहीं, बल्कि आपके घर, आपकी सुरक्षा और भविष्य की बिल्डिंग डिज़ाइनों से सीधे जुड़ा है।

क्यों बदला गया भूकंप जोन का नक्शा?

पुराना नक्शा कई दशकों पुराना था और पिछले भूकंपों के रिकॉर्ड पर आधारित था। लेकिन अब नई तकनीक और डेटा के आधार पर पता चला है कि: हिमालय पिछले 200 साल से “शांत” है, यानी जमीन के नीचे भारी ऊर्जा जमा हो चुकी है। पुराने नक्शे में इस लॉक्ड एनर्जी का आकलन नहीं था। जमीन की प्लेटें राज्य या जिले की सीमा नहीं मानतीं, इसलिए हिमालय को टुकड़ों में बांटना गलत था। नए मैप में पूरा हिमालयन आर्क Zone-6 में डाल दिया गया है—सबसे संवेदनशील जोन।

61% भारत भूकंप की चपेट में

नए डेटा के अनुसार, भारत का 61% भू-भाग मध्यम से गंभीर खतरे वाले जोन में आ गया है। पहले यह आंकड़ा 59% था। यानी देश की करीब 75% आबादी भूकंप जोखिम वाले इलाकों में रहती है। जो शहर दो जोन की सीमा पर हैं, उन्हें अब ऑटोमैटिकली ऊंचे खतरे वाले जोन में रखा जाएगा।

कैसे बना नया मैप? — PSHA तकनीक

नया मैप बनने में इस्तेमाल हुआ:

Probabilistic Seismic Hazard Assessment (PSHA)

यह तकनीक देखती है:

  • एक्टिव फॉल्ट लाइन्स का डेटा
  • भूकंप की ऊर्जा जमीन में कैसे फैलती है
  • किस इलाके में भविष्य में कितनी तीव्रता का भूकंप संभव है
  • मिट्टी, चट्टानों और भूगर्भीय गतिविधियों का पूरा विश्लेषण

यह दुनिया की सबसे आधुनिक तकनीक मानी जाती है।

नया सीस्मिक मैप: भवन निर्माण के नियम कड़े

2025 से बनने वाली सभी इमारतों पर नए भूकंप डिजाइन कोड लागू होगा।

नए नियमों की मुख्य बातें:

  • फॉल्ट लाइन के पास इमारतों के लिए खास डिज़ाइन
  • हर प्लॉट की साइट-स्पेसिफिक जांच अनिवार्य
  • इमारतों के भारी हिस्से—जैसे पानी की टंकी, कांच के पैनल, फॉल्स सीलिंग—को मजबूती से एंकर करना जरूरी
  • नॉन-स्ट्रक्चरल सेफ्टी को पहली बार कोड में शामिल किया गया
  • अस्पताल, स्कूल, बिजली-पानी जैसे महत्वपूर्ण ढांचे को भूकंप के बाद भी काम करते रहने लायक बनाना अनिवार्य

यह कदम भूकंप में होने वाली मध्यम स्तर पर भी होने वाली मौतों में भारी कमी ला सकता है।

पुराने घरों पर क्या असर?

पुरानी इमारतें तुरंत बदलने की जरूरत नहीं, लेकिन: जोन-5 या नए जोन-6 में आने वाले पुराने घरों को रेट्रोफिटिंग की सलाह दी गई है। स्ट्रक्चरल इंजीनियर से घर की मजबूती की जांच कराना जरूरी होगा। खासकर टंकियों, छज्जों, बालकनी और भारी फिटिंग्स को सुरक्षित करना अनिवार्य होगा।

एक्सपोजर विंडो: आबादी भी होगी अब एक फैक्टर

नई मैपिंग में पहली बार PEMA मॉडल अपनाया गया है:

  • जहाँ आबादी ज्यादा है, वहाँ भूकंप मानक और कड़े होंगे।
  • घनी बस्तियों में हल्के झटके भी बड़ा नुकसान कर सकते हैं।

दक्षिण भारत के लिए राहत

प्रायद्वीपीय भारत (दक्षिण) की प्लेटें स्थिर मानी जाती हैं। इसलिए साउथ इंडिया में जोन में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया है। लेकिन नई बिल्डिंग के लिए नॉन-स्ट्रक्चरल सेफ्टी के नियम वहाँ भी लागू होंगे।

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जाने टमाटर की 8 उन्नत किस्में, जो दिला सकती हैं अधिक उत्पादन

8 उन्नत किस्मों की खेती कर किसान खरीफ, रबी और गर्मी—तीनों मौसमों में बेहतर उत्पादन और अधिक लाभ कमा सकते हैं। सही किस्म का चयन टमाटर की खेती में सफलता की पहली सीढ़ी है।

Tomato Farming 8 Varieties
टमाटर खेती 8 किस्म (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar29 Nov 2025 01:46 PM
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टमाटर किसानों के लिए अतिरिक्त आय का बड़ा स्रोत माना जाता है, क्योंकि इसकी मांग सालभर बनी रहती है। देशभर में करीब 1000 से अधिक किस्में उपलब्ध हैं, लेकिन कुछ चुनिंदा किस्में किसानों को अधिक उत्पादन और बेहतर गुणवत्ता के साथ अच्छी कमाई दिला सकती हैं। खरीफ मौसम की बुवाई शुरू होते ही किसान उपयुक्त किस्मों की तलाश में जुट जाते हैं।

ऐसे में हम आपके लिए लेकर आए हैं टमाटर की 8 बेहतरीन किस्में, जिनसे किसान उच्च उत्पादन और बेहतर लाभ कमा सकते हैं।

1. दिव्या (Divya) टमाटर

यह संकर किस्म रोपाई के 75–90 दिन बाद फल देने लगती है। पछेता झुलसा और आँख सड़न जैसी बीमारियों से सुरक्षित रहती है। इसका शेल्फ लाइफ लंबा और उत्पादन 400–500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिलता है।

2. अर्का विशेष (Arka Vishesh) टमाटर

प्रोसेसिंग के लिए बेहतरीन किस्म, जिसका उपयोग प्यूरी, पेस्ट, केचअप और सॉस में होता है। प्रति हेक्टेयर 750–800 क्विंटल तक उत्पादन देती है। फल का वजन 70–75 ग्राम होता है।

3. पूसा गौरव (Pusa Gaurav) टमाटर

मध्यम आकार के चिकने और लाल फल वाली किस्म। मोटे छिलके के कारण लंबी दूरी तक परिवहन योग्य। डिब्बाबंदी के लिए उपयुक्त और 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार देती है। इसे बसंत, गर्मी और खरीफ में उगाया जा सकता है।

4. अर्का अभिजीत (Arka Abhijeet)टमाटर

अर्ध-दृढ़ पौधे और गहरे हरे पत्ते। 65–70 ग्राम वजन वाले गोल और मोटे गूदे वाले फल। जीवाणु विल्ट प्रतिरोधी और 140 दिन में पकने वाली किस्म। एक एकड़ में 26 टन तक उत्पादन देती है।

5. अर्का रक्षक (Arka Rakshak)टमाटर

उच्च उपज वाली एफ1 संकर किस्म, जो पत्ती मोड़क विषाणु, जीवाणु झुलसा व अगेती धब्बे रोगों के प्रति प्रतिरोधी है। 140 दिनों में तैयार और 75–80 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन। गहरे लाल, दृढ़ और 75–100 ग्राम वजन वाले फल।

6. अर्का अभेद (Arka Abhed)टमाटर

हाइब्रिड किस्म, जिसमें पौधे अर्ध-निर्धारित प्रकृति के होते हैं। 90–100 ग्राम वजन वाले फल देती है। 140–150 दिनों में तैयार और 70–75 टन प्रति हेक्टेयर उपज। रोग प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत।

7. अर्का मेघली (Arka Meghali)टमाटर

125 दिनों में तैयार होने वाली किस्म, जो अधिक बारिश वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। 65 ग्राम वजन वाले फल और लगभग 18 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन देती है। खरीफ सीजन के लिए सही विकल्प।

8. अभिनव (Abhinav) टमाटर

अर्ध-निश्चयी पौधे, चौड़ी पत्तियों के साथ। फल 60–65 दिन में तैयार और लंबी दूरी तक परिवहन योग्य। 80–100 ग्राम वजन वाले मजबूत व उच्च गुणवत्ता वाले फल। गर्मी में भी अच्छी उपज देती है और TYLCV के प्रति सहनशील।